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Updated: 19 सितम्बर, 2020 06:25 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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बिहार चुनाव 2020 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ही घोषित तौर पर एनडीए के नेता हैं. एनडीए का चेहरा और मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार भी नीतीश कुमार ही हैं - ये बात बीजेपी का हर नेता जोर जोर से बोल रहा है, लेकिन एनडीए के ही एक नेता चिराग पासवान अलग लाइन लिये हुए हैं.

लालू-राबड़ी के 15 साल के शासन के मुकाबले में बीजेपी कहती है कि नीतीश कुमार जैसा कोई नहीं - और चिराग पासवान ठीक उसके उलट नीतीश कुमार पर बरस पड़ते हैं. हैरानी की बात ये है कि बीजेपी नीतीश कुमार की तारीफ अकेले ही कर रही है - न तो चिराग पासवान को नीतीश कुमार के सपोर्ट में खड़ा करने की कोशिश कर रही है और न ही उन पर हमले के लिए मना कर रही है. आखिर बीजेपी नेतृत्व के मन में नीतीश कुमार को लेकर चल क्या रहा है?

क्या बीजेपी नेतृत्व के मन में नीतीश कुमार के खिलाफ किसी सत्ता विरोधी लहर को लेकर कोई आशंका है?

बिहार चुनाव (Bihar Election 2020) को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की सक्रियता देख कर तो काफी हद तक ऐसा ही लगता है. नीतीश कुमार के पक्ष में बिहार में पहली डिजिटल रैली करके अमित शाह ने जो नींव रखी थी बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा उसे आगे बढ़ा रहे थे और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसकी अगुवाई कर रहे हैं - ऐसा क्यों लग रहा है जैसे बीजेपी बिहार चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़ने का मन बना चुकी हो और नीतीश कुमार को महज मुखौटे के तौर पर पेश किया जा रहा हो!

नीतीश का तो नाम है, नेतृत्व तो मोदी कर रहे हैं

बीजेपी ने बिहार चुनाव की तैयारी जून, 2020 से ही शुरू कर दी थी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार जनसंवाद के जरिये लोगों से कहा कि नीतीश कुमार चुनावों में भारी जीत हासिल करेंगे. अमित शाह की डिजिटल रैली के बाद जेपी नड्डा पटना पहुंचे और बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव और देवेंद्र फडणवीस के साथ तैयारियों में जुट गये. जेपी नड्डा के बिहार दौरे से पहले बीजेपी ने एक आंतरिक सर्वे कराया था - नतीजों में नीतीश कुमार को लेकर आयी रिपोर्ट ने बीजेपी के कान खड़े कर दिये. फिर क्या था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अब खुद मोर्चा संभालना पड़ा है.

पांच साल पहले जिस नीतीश कुमार के डीएनए में खोट वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान पर कोहराम मच गया था, वही प्रधानमंत्री मोदी अब नीतीश कुमार की तारीफों के पुल बांध रहे हैं - 'नीतीश बाबू जैसा सहयोगी हो तो क्या कुछ संभव नहीं है!'

हालात कुछ ऐसे हो चले हैं कि प्रधानमंत्री मोदी को संजीवनी बूटी का इंतजाम भी खुद ही करना पड़ रहा है और सुषेन वैद्य की भूमिका भी निभानी पड़ रही है. रेलवे के एक कार्यक्रम कोसी रेल महासेतु के उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने एक ही लाइन में सबको संदेश देने की कोशिश की - ये विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में तो लड़ा ही जा रहा है, बल्कि उनका भी समर्थन नीतीश कुमार को ही है.

narendra modi, nitish kumarबिहार में बहार हो, नीतीशे कुमार हो - मोदी के सहारे हो!

ये ऐसे भी समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार तो नीतीश कुमार को बताया है, लेकिन वोट के लिए खुद की गारंटी दे दी है. मतलब, प्रधानमंत्री मोदी अब सीधे सीधे लोगों से कह रहे हैं कि जो उनकी बात मानते हैं वे नीतीश कुमार को वोट दें. ऐसा ही प्रधानमंत्री मोदी ने 2019 के आम चुनाव के वक्त भी किया था.

आम चुनाव से पहले बीजेपी ने आकलन कर लिया था कि बीजेपी के ज्यादातर सांसदों के खिलाफ स्थानीय स्तर पर सत्ता विरोधी लहर बन चुकी है, जबकि पुलवामा अटैक के बाद बालाकोट एयर सट्राइक के चलते प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता चरम पर पहुंची हुई थी. लिहाजा अयोध्या के मंदिर मुद्दे को भी पीछे रखते हुए तय हुआ कि चुनाव ब्रांड मोदी के नाम पर ही लड़ा जाएगा - और नतीजे भी शानदार रहे.

प्रधानमंत्री मोदी नीतीश कुमार की तारीफ भी अलग अंदाज में कर रहे हैं. मिथिला और कोसी इलाके को जोड़ने वाले महासेतु और सुपौल रेल लाइन बिहार के लोगों को समर्पित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने भूकंप की एक पुरानी घटना की भी याद दिलायी. बोले - 90 साल पहले आये भूकंप ने इस लाइन को तबाह कर दिया था, लेकिन ये भी संयोग है कि एक वैश्विक महामारी के बीच ही मिथिला और कोसी के टूटे संपर्क को जोड़ा जा रहा है - ये श्रद्धेय अटल बिहार वाजपेयी और नीतीश बाबू का ड्रीम प्रोजेक्ट रहा है.'

प्रधानमंत्री मोदी ने फिर एक ही तीर से कांग्रेस नेतृत्व और लालू प्रसाद यादव दोनों के टारगेट किया. प्रधानमंत्री ने समझाया कि इस महासेतु का फायदा मिथिला और कोसी के लोगों को बहुत पहले से ही मिल रहा होता और निर्माण में 17 साल नहीं लगते. दरअसल, प्रोजेक्ट पर काम तब शुरू हुआ था जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री और नीतीश कुमार रेल मंत्री रहे. बाद में यूपीए की सरकार आयी और लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री बने. दोबारा काम तब शुरू हुआ जब केंद्र में फिर से एनडीए की सरकार बनी. प्रधानमंत्री मोदी ने पिछली सरकार को लेकर कहा कि अगर उनको इलाके के लोगों की फिक्र होती तो ये काम तेजी से होता और अब तक इंतजार नहीं करना पड़ा होता.

प्रधानमंत्री मोदी बीजेपी के लिए तो ऐसा करते हैं लेकिन गठबंधन के साथी दलों के मुख्यमंत्रियों के लिए कभी ऐसी गारंटी नहीं पेश करते. 2017 का ही उदाहरण देखिये. उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में तो प्रधानमंत्री मोदी बीजेपी को वोट देने के लिए लोगों से लगातार कनेक्ट रहे, लेकिन पंजाब को लेकर कभी उनके मुंह से ऐसी बातें सुनने को नहीं मिलीं. ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है कि एक सहयोगी दल जेडीयू के नेता नीतीश कुमार के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे आगे बढ़ कर समर्थन देते हुए वोट मांग रहे हैं - वो भी तब जबकि नीतीश कुमार कभी भी अपनी जरूरत और फायदे के हिसाब से राजनीतिक समीकरणों में फिट होने से परहेज नहीं करते.

नीतीश के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर

अगस्त, 2020 में ही इंडिया टुडे के एक सर्वे में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लोकप्रियता में कमी दर्ज की गयी थी. अब एक नया सर्वे बीजेपी की तरफ से कराया गया है और नतीजे हैरान करने वाले हैं. बीजेपी के इस आंतरिक सर्वे में नीतीश कुमार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर बहुत ज्यादा पायी गयी है.

ऐसे में बिहार सत्ता में वापसी के लिए बीजेपी और जेडीयू के पास ब्रांड मोदी के अलावा कोई विकल्प भी नहीं बच रहा है - क्योंकि नीतीश कुमार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर की काट तो प्रधानमंत्री मोदी के पास ही है. अब बीजेपी को लगने लगा है कि आम चुनाव तो मोदी लहर में निकल गया लेकिन विधानसभा चुनाव में अगर कहीं कोई चूक हुई तो लेने के देने पड़ते देर भी नहीं लगेगी.

बीजेपी के आंतरिक सर्वे का काम जेपी नड्डा के बिहार दौरे से पहले ही पूरा कर लिया गया था. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी ने सर्वे के लिए 90 लोगों की टीम बनायी थी जिसमें राज्य के सभी महासचिव, उपध्यक्षों और उन नेताओं को शामिल किया गया था जो चुनाव मुहिम चला रही कमेटी का हिस्सा हैं. 25 से 28 अगस्त के बीच मंडल स्तर पर बीजेपी के इस आंतरिक सर्वे में हर संभव सोर्स से जानकारियां जुटाई गयीं.

सर्वे के मुताबिक, बीजेपी छोड़ कर लालू प्रसाद के साथ जाने और फिर मौका देख कर एनडीए में लौट आने की वजह से नीतीश कुमार की विश्वसनीयता कम हुई है और लोग संदेह की नजर से देखने लगे हैं. बीजेपी को सर्वे में ये भी मालूम हुआ है कि नीतीश कुमार के मौजूदा कार्यकाल के पांच साल के काम से लोग खुश नहीं हैं. सर्वे टीम ने अपनी रिपोर्ट बिहार के प्रभारी भूपेंद्र यादव और डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी को दे दी है. बताते हैं कि दोनों नेताओं के बीच इस मसले पर चर्चा भी हो चुकी है. ये देखते हुए बीजेपी ने तय किया है कि बिहार विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम और उनके नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के काम पर चुनाव में वोट मांगा जाएगा. बीजेपी को ऐसा

भी लगा है कि पार्टी के सारे नेता लालू यादव पर सीधा और तेज हमला बोलते हैं, लेकिन नीतीश कुमार के मन में कहीं न कहीं एक सॉफ्ट कॉर्नर जरूर है - और ये बात बीजेपी को और भी ज्यादा परेशान कर रही है.

प्रधानमंत्री मोदी के इस कदर सक्रिय होने की एक वजह बीते चुनावों में बीजेपी की हार भी लग रही है. महाराष्ट्र का केस अलग रख कर देखें तो हरियाणा में भी बीजेपी को सत्ता में वापसी के लिए जुगाड़ लगाना पड़ा और झारखंड में तो सत्ता से हाथ ही धो बैठी. 2014 में केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के बाद दिल्ली में लगातार दूसरी बार बीजेपी कोई कमाल नहीं दिखा पायी. बिहार को लेकर बीजेपी की तत्परता की बड़ी वजह ये भी लगती है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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