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Updated: 17 अप्रिल, 2021 09:44 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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देर से ही सही, लेकिन हरिद्वार कुंभ को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की संतों से अपील काफी राहत भरी लगती है - जैसे अस्पतालों में बेड के लिए दर दर भटकते मरीजों और उनके परिवार वालों में से कुछ को एक अधभरा सिलेंडर मिल गया हो!

बहुत हुआ कुंभ स्नान - कोरोना के बेकाबू होने के साथ ही लोग कुछ कुछ ऐसा ही सोचने लगे थे - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 'दो शाही स्नान' हो जाने का हवाला देते हुए हरिद्वार कुंभ को आगे के लिए प्रतीकात्मक रखने की सलाह दी है. ऐसे भी समझ सकते हैं कि अब इसे समेट लेने की ही अपील की है.

संतों की तरफ से जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि (Avdheshanand Giri) ने भी 'एवमस्तु' वाले अंदाज में ही रिस्पॉन्ड किया है - बिलकुल ऐसा ही होगा.

कुंभ की ही तरह चुनावी रैलियों से भी कोरोना वायरस के फैलने की आशंका जतायी जा रही है. प्रधानमंत्री मोदी ने दो शाही स्नान के बाद कुंभ को तो प्रतीकात्मक रूप में लेने की सलाह दी है, लेकिन पश्चिम बंगाल में चुनाव (West Bengal Election 2021) के पांचवें चरण के बाद भी आगे की वोटिंग को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने किसी तरह की चिंता नहीं जतायी है.

चुनावी रैलियों में कोविड प्रोटोकॉल को लेकर कलकत्ता हाई कोर्ट की भी फिक्र दिखी है - और अदालत ने जिलाधिकारियों से प्रोटोकॉल के पूरी तरह पालन की हिदायत दी है. चुनाव आयोग ने भी राजनीतिक दलों को पत्र लिख कर कोविड प्रोटोकॉल पर अमल की सलाह दी है. पश्चिम बंगाल के डॉक्टरों ने चुनाव आयोग को सामूहिक चिट्ठी लिख कर इस बारे में चिंता जाहिर की है.

हरिद्वार कुंभ से तो लाखों करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है और आस्था तो सारी व्यवस्था पर भारी है, लेकिन क्या कुंभ की तरह पश्चिम बंगाल के चुनावों को जल्दी नहीं समेटा जा सकता? अगर नहीं तो क्या बड़ी रैलियों की भीड़ से बचने का कोई रास्ता नहीं निकाला जा सकता?

कुंभ में कोरोना का कहर

कुंभ में शामिल संतों में से कोविड पॉजिटिव होने वालों की तादाद बढ़ती ही जा रही है - और हालत ये हो गयी है कि कुंभ में संक्रमण फैलने को लेकर अखाड़ों के साधु आपस में ही भिड़ गये हैं. ये साधु अब एक दूसरे पर कोरोना संक्रमण फैलाने के आरोप लगा रहे हैं.

मिसाल के तौर पर बैरागी अखाड़े के साधुओं का सीधा आरोप है कि कुंभ में कोरोना संन्यासी अखाड़ों से फैला है. खबरों के मुताबिक, निर्मोही अखाड़े के अध्यक्ष महंत राजेंद्र दास ने तो अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि को ही कुंभ में कोरोना संक्रमण के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया है.

narendra modi, avadheshanand giriअगर कुंभ से कोरोना बढ़ने का खतरा है तो चुनावी रैली से क्यों नहीं?

अव्वल तो हरिद्वार कुंभ जनवरी में होना था लेकिन कोरोना के प्रकोप के चलते ही ये 1 अप्रैल को शुरू हो सका - और अब ये 30 अप्रैल तक चलने वाला है. पहले तो कुंभ मेले में कोरोना के खतरे को देखते हुए सख्ती और पाबंदियां लगायी गयी थीं, लेकिन उत्तराखंड में बीजेपी के मुख्यमंत्री बदलने के साथ ही कुंभ के भी नियम बदल गये. मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने शपथ लेने के साथ ही जो फैसले बदले उनमें से कुछ हरिद्वार कुंभ को लेकर भी रहे. तीरथ सिंह रावत ने कई नियमों में ढील तो दी ही, एंट्री के लिए कोरोना निगेटिव रिपोर्ट की अनिवार्यता को भी खत्म कर दिया.

तीरथ सिंह रावत ने ये सब या तो गहरी आस्था के चलते किया होगा या अति आत्मविश्वास की वजह से. तीरथ सिंह रावत ने तो ये तक कह दिया था कि कुंभ में मां गंगा की कृपा से कोरोना नहीं फैलेगा. तीरथ सिंह रावत को कुंभ और तब्लीगी जमात के मरकज में हो रही तुलना पर भी ऐतराज रहा, कह रहे थे, कुंभ और मरकज की तुलना करना गलत है. तीरथ रावत की दलील रही, मरकज से जो कोरोना फैला वो एक बंद कमरे से फैला क्योंकि वे सभी लोग एक बंद कमरे में रहे, जबकि हरिद्वार में हो रहा कुंभ का क्षेत्र नीलकंठ और देवप्रयाग तक फैला हुआ है.

मुख्यमंत्री तीरथ रावत कुंभ में हिस्सा लेने तो पहुंचे ही, संतों के साथ पूजा में भी शामिल हुए, लेकिन अगले ही दिन खुद ही ट्विटर पर बताया कि वो भी कोरोना पॉजिटिव हो गये हैं, ‘मेरी कोरोना टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आई है. मैं ठीक हूं और मुझे कोई परेशानी नहीं है. डॉक्टर की निगरानी में मैंने स्वयं को आइसोलेट कर लिया है. आप में से जो भी लोग गत कुछ दिनों में मेरे निकट संपर्क में आएं हैं - कृपया सावधानी बरतें और अपनी जांच करवायें.’

लगता है कुंभ से आ रही ऐसी खबरों के चलते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साधु-संतों से अपील की है कि अब कुंभ को प्रतीकात्मक ही रखा जाये. प्रधानमंत्री मोदी ने इस सिलसिले में महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि से फोन पर बातचीत भी की है - और कुंभ मेले में कोरोना पॉजिटिव पाये गये साधु-संतों का हालचाल भी पूछा है.

बातचीत की जानकारी भी प्रधानमंत्री मोदी ने खुद ही ट्विटर पर शेयर की है, 'आचार्य महामंडलेश्वर पूज्य स्वामी अवधेशानंद गिरि जी से आज फोन पर बात की. सभी संतों के स्वास्थ्य का हाल जाना. सभी संतगण प्रशासन को हर प्रकार का सहयोग कर रहे हैं. मैंने इसके लिए संत जगत का आभार व्यक्त किया. मैंने प्रार्थना की है कि दो शाही स्नान हो चुके हैं और अब कुंभ को कोरोना के संकट के चलते प्रतीकात्मक ही रखा जाये - इससे इस संकट से लड़ाई को एक ताकत मिलेगी.'

प्रधानमंत्री मोदी के ट्वीट को टैग करते हुए स्वामी अवधेशानंद ने भी ट्विटर पर लिखा, 'माननीय प्रधानमंत्री जी के आह्वान का हम सम्मान करते हैं. स्वयं एवं अन्य के जीवन की रक्षा महत पुण्य है. मेरा धर्म परायण जनता से आग्रह है कि कोविड की परिस्थितियों को देखते हुए कोरोना के नियमों का निर्वहन करें.'

कुंभ को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की अपील पर अपनी प्रतिक्रिया में कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने ट्विटर पर लिखा है, 'शुक्र है प्रधानमंत्री मोदी ने कुंभ समाप्त करने की अपील की. और कोई करता तो उसे हिंदू द्रोही कह दिया जाता... कोलकाता तक जाने वाली गंगा पता नहीं कितने कोरोना कहां तक ले जाएगी.'

मालूम ये भी हुआ है कि कुंभ से लौटने वालों को लेकर कोरोना वायरस के फैलने के खतरे को देखते हुए राज्यों ने तैयारी भी शुरू कर दी है. मुंबई में अधिरकारी कुंभ से लौटने वालों के लिए जरूरी क्वारंटीन की व्यवस्था की रणनीति तैयार कर रहे हैं. वैसे भी महाराष्ट्र में हालात तो बहुत ही खराब हैं. मुंबई की मेयर किशोरी पेडनेकर ने तो कह दिया है कि कुंभ से लौटने वाले लोग प्रसाद के रूप में कोरोना वायरस ही बाटेंगे.

चुनावों के लिए भी कुछ है क्या?

सुबह तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुंभ की भीड़ पर चिंता जताते हुए उसे प्रतीकात्मक रखने की सलाह दी, लेकिन दोपहर तक जब वो पश्चिम बंगाल चुनावी रैली के लिए पहुंचे तो राजनीति अपना असर दिखाने लगी थी - और कोरोना वायरस का तो शायद किसी को ख्याल भी न रहा हो.

आसनसोल की रैली में भारी भीड़ देख प्रधानमंत्री मोदी बेहद खुश थे और खुशी का इजहार भी वो खुद ही किये. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह दोनों ही को पश्चिम बंगाल की रैलियों और रोड में जुटने वाली भीड़ को लेकर खुशी का खास तौर पर इजहार करते देखने को मिला है. मोदी और शाह दोनों ही कह चुके हैं कि जैसी भीड़ उनको पश्चिम बंगाल में देखने को मिली है, वैसी वे अब तक पूरे देश में कहीं नहीं देख पाये.

आसनसोल में प्रधानमंत्री मोदी बीजेपी नेता बाबुल सुप्रियो के पक्ष में चुनावी रैली कर रहे थे, जहां उनका कहना रहा, 'मैं दो बार आया था... बाबुल जी के लिए वोट मांगने... पहले एक चौथाई लोग भी न थे सभा में... पर आज ऐसी सभा पहली बार देखी... बताइए, ये मेरी शिकायत मीठी है या कड़वी है? आज आपने ऐसी ताकत दिखाई कि लोग ही लोग दिखते हैं - क्या कमाल कर दिया आप लोगों ने!'

पश्चिम बंगाल में कोरोना वायरस के केस 24 घंटे में सात हजार के करीब पहुंचने लगे हैं - और अब तक दो उम्मीदवारों की मौत हो चुकी है जबकि चार अन्य की टेस्ट रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव मिली है.

मुर्शिदाबाद में जंगीपुर विधानसभा क्षेत्र से यूनाइटेड फ्रंट उम्मीदवार प्रदीप नंदी से पहले वहीं की शमशेरगंज सीट से कांग्रेस उम्मीदवार रिजउल हक की भी कोविड के चलते ही मौत हो गयी थी, जिसके बाद वहां चुनाव स्थगित कर दिया गया. गोलपोखर विधायक और उम्मीदवार मोहम्मद गुलाम रब्बानाी, तपन से उम्मीदवार कल्पना किस्कु, जलपाईगुड़ी से तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे प्रदीप कुमार वर्मा और मटिगारा नक्सलबाड़ी से बीजेपी प्रत्याशी आनंदमय बर्मन भी कोरोना पॉजिटिव पाये गये हैं.

जहां चुनाव नहीं हुए हैं वहां के उम्मीदवारों के कोरोना पॉजिटिव पाये जाने की सूरत में उनके चुनाव प्रचार पर रोक लगा दी जाती है - और उनके कॉन्टैक्ट चेन का पता लगाने की कोशिश होती है. तबीयत ज्यादा खराब हुई तो अस्पताल में भर्ती भी कराया जाता है. बाकी जो नियम वोटर पर लागू होते हैं वो उन पर भी लागू होंगे.

कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मांग की थी कि बचे हुए चरणों की वोटिंग एक साथ करा दी जाये, लेकिन चुनाव आयोग ने इसे खारिज कर दिया. कहने को तो चुनाव आयोग ने एक सर्वदलीय बैठक भी बुलायी थी जहां तृणमूल कांग्रेस ने तो अपनी मांग दोहरायी लेकिन बीजेपी के प्रतिनिधि का कहना रहा कि इसकी कोई जरूरत नहीं है.

बहरहाल, सीपीएम की एक पहल को लेकर रिएक्शन तो मिले जुले हैं, लेकिन मेडिकल कम्युनिटी काफी तारीफ कर रही है - क्योंकि सीपीएम ने कोरोना संकट को देखते हुए बाकी बचे चरणों में होने वाली वोटिंग के लिए किसी भी बड़ी रैली के आयोजन न करने का ऐलान किया है. सीपीएम की तरफ से बताया गया है कि रैलियों की जगह पार्टी नेता सोशल मीडिया की मदद लेंगे - और जहां तक मुमकिन होगा घर घर जाकर चुनाव प्रचार करेंगे.

मानते हैं कि ऐसे प्रयास नाममात्र के योगदान दे सकते हैं, लेकिन अगर ऐसा करके कोरोना को बढ़ने से रोकने की छोटी सी कोशिश भी होती है तो बाकियों के लिए प्रेरणास्रोत हो सकते हैं.

पश्चिम बंगाल में अब भी मतदान के तीन फेज बचे हुए हैं. जैसे दो शाही स्नान हो चुके वैसे ही पांच चरणों के चुनाव भी - अगर बाकी बचे चरणों के चुनाव को एक साथ नहीं कराया जा सकता तो क्या बड़ी रैलियों से सीपीएम की पहल की तरह परहेज भी नहीं किया जा सकता?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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