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Updated: 25 दिसम्बर, 2016 03:54 PM
अरविंद मिश्रा
अरविंद मिश्रा
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आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुंबई तट पर मराठा नायक शिवाजी महाराज के भव्य स्मारक का शिलान्यास कर ही दिया. भव्य स्मारक का शिलान्यास नगर निकाय चुनावों के कुछ महीने पहले ऐसे समय आयोजित हुआ, जब 17वीं सदी के महान शासक की विरासत पर दावा करने के लिए राजनीतिक दलों के बीच संघर्ष जारी है. राज्य सरकार के अनुसार यह स्मारक दुनिया में सबसे ऊंचा होगा जिसकी ऊंचाई 192 मीटर होगी. इस स्मारक की लागत करीब 3,600 करोड़ रुपये आंकी गई है.

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 ये दुनिया में सबसे ऊंचा स्मारक होगा, ऊंचाई होगी 192 मीटर

बीजेपी की नजर मराठा वोटों पर !

काफी लंबे अरसे से महाराष्ट्र की राजनीति में शिवाजी का स्मारक चुनावी मुद्दा रहा है. हालांकि यह योजना कांग्रेस और एनसीपी की सरकार में पिछले 10 सालों से फाइलों में दबा था लेकिन सत्ता में आते ही बीजेपी ने इस मुद्दे को हथिया लिया. और फिलहाल ऐसा प्रतीत होता है कि बीजेपी सरकार राज्य में अपनी राजनीतिक बढ़त बना ली है.

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ऐसा माना जा रहा है कि यह स्मारक मराठा अस्मिता कि नई मिसाल बनेगा. मुंबई में तकरीबन 23 प्रतिशत मराठा वोटरों केलिए स्मारक कि मूर्ति एक बहुत बड़ा आइकॉन होगा. ऐसे में इस स्मारक के कारण पूरे मराठा नहीं तो कम से कम एक वर्ग बीजेपी के प्रति नरम भी हो सकता है. हाल ही में पूरे महाराष्ट्र में मराठी समुदाय के लोगों ने आरक्षण के मुद्दे पर प्रदर्शन किया था. ऐसे में सरकार इस स्मारक के बूते मराठा वोटरों की सहानुभूति लेने का प्रयास भी करेगी. गौरतलब है कि कुछ महीने बाद ही बीएमसी के चुनाव भी होने वाले हैं.

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 नगर निकाय चुनावों के कुछ महीने पहले किया शिलान्यास

शिव सेना और बीजेपी के बीच सब कुछ ठीक नहीं

भले ही शिव सेना महाराष्ट्र में BJP की सहयोगी पार्टी है लेकिन आजकल उसकी भूमिका विपक्ष जैसी ही दिखती है. शिवसेना और बीजेपी दोनों पार्टियों के बीच दोस्ती भी है और वे बार बार एक दूसरे को चुनौती देने की कोशिश भी करती हैं. अभी नोटबंदी के खिलाफ शिव सेना ने बीजेपी के खिलाफ मोर्चा भी खोल रखा है.

पिछले विधान सभा चुनावों में हम लोग देख चुके हैं कि कैसे बीजेपी शिव सेना से बड़े भाई कि भूमिका को छीन कर खुद बड़ी बन बैठी.

पहली बार 1987 में शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन हुआ और ये कई सालों तक चला. महाराष्ट्र में उस समय बीजेपी का कोई जनाधार नहीं था. शिवसेना के पास जनाधार था क्योंकि उसके पास बाला साहब ठाकरे जैसे लीडर थे.

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लेकिन यह माना जाता है कि बीजेपी हमेशा से राजनीति की शातिर खिलाड़ी रही है और जैसे ही मोदी और अमित शाह जैसे सिक्के बीजेपी को मिले और उसका वोट प्रतिशत बढ़ा, उसने उसी दिन से शिवसेना को सबक सिखाने की ठान ली. मुंबई महानगर पालिका में शिवसेना का अधिकार और सत्ता शिवसेना की जान है ऐसे में आने वाले वक़्त में दोनों पार्टियों के बीच खाई गहराने की सम्भावनाएं ज्यादा ही हैं.

BJP के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है. इस वजह से वह हर दांव आजमाएगी. लेकिन अगर शिवसेना BMC चुनाव में हार जाती है तो यह उसके लिए विनाशकारी साबित हो सकता है.

शिवसेना का सबसे बड़ा आइकॉन शिवाजी महाराज हैं जो यहां के मराठी मानुष में बहुत महत्वपूर्ण हैं. ऐसे में शिव सेना को अपनी अस्तित्व बचाने के लिए काफी मशकत करने की जरूरत होगी.

स्मारक का विरोध भी

इस स्मारक का विरोध कुछ राजनीतिक धड़े सहित अन्य संगठन कर रहे हैं. इसके पीछे उनका तर्क है कि इतने पैसों से बड़े विकास कार्यों को अंजाम दिया जा सकता था. इन्हें विकास योजनाओं पर व किसानों के हित पर खर्च करना चाहिए था. एक आंकड़ा बताता है कि महाराष्ट्र के 1250 म्युनिसिपल स्कूलों का बजट 2500 करोड़ रुपये है, जो शिवाजी स्मारक के बजट से 1100 करोड़ रुपये कम ही है. मछुआरों की दलील है कि इससे उनका रोजगार छिन जायेगा, जबकि पर्यावरणकार्यकर्ताओं का कहना है कि इससे समुद्र के उस स्थल की इकोलॉजी प्रभावित होगी व पर्यावरण को नुकसान होगा.

इन सबसे साफ जाहिर है कि मुंबई के मछुआरों की आपत्ति और पर्यावरण सम्बन्धी चिंताएं जताने के बाद भी अगर इस स्मारक का शिलान्याश हुआ है तो इसके पीछे जो वजह है वो है- केवल और केवल राजनीतिक.

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लेखक

अरविंद मिश्रा अरविंद मिश्रा @arvind.mishra.505523

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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