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Updated: 24 जून, 2021 07:16 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) में विधानसभा चुनाव की आहट महसूस की जा रही है - क्योंकि अगस्त, 2019 के बाद पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की पहल पर सर्वदलीय बैठक हो रही है - और किसी बैठक को लेकर इससे अच्छी बात क्या होगी कि हर कोई उत्साहित नजर आ रहा है.

मान भी लेते हैं कि जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रीय नेताओं की अपेक्षा आसमान छूती हो सकती है. वे चाहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में सब कुछ पहले की तरह बहाल होना चाहिये - और कांग्रेस को भी उनकी डिमांड से पूरा इत्तफाक है, ऐसा कांग्रेस नेताओं के हाल के बयानों से समझा जा सकता है. जम्मू कश्मीर के मामले में ही मालूम हुआ कि दिग्विजय सिंह का बयान निजी नहीं था. हालांकि, महबूबा मुफ्ती के केस में गुपकार गठबंधन के नेता फारूक अब्दुल्ला भी अलग नजरिया रखते हैं.

फारूक अब्दुल्ला ने महबूबा मुफ्ती के बातचीत में पाकिस्तान को भी शामिल करने के प्रस्ताव को निजी सोच करार दिया है - और जोर देकर कहा है कि हमें अपने देश से प्यार है. ये दोनों नेताओं के अपने अपने अनुभव और स्टैंड के हिसाब से भी हो सकता है.

वैसे जम्मू-कश्मीर में अभी चुनावी मौसम की फुहारें भर ही पड़ती लग रही हैं. वास्तव में फुल चुनावी मॉनसून कब आएगा और बारिश कब होगी, फिलहाल अंदाजा लगा पाना भी मुश्किल लगता है. जम्मू-कश्मीर में 2019 के आम चुनाव के बाद महज डीडीसी चुनाव हो पाये हैं, जो सूबे में पहले के मुकाबले बेहतर माहौल के इशारे के तौर पर भी लिये जा सकते हैं - लेकिन विधानसभा चुनाव तो परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही हो सकेंगे. अभी तो ये भी नहीं मालूम कि वो काम कब तक पूरा हो सकेगा.

जम्मू-कश्मीर को लेकर राजनीतिक सक्रियता ऐसे वक्त बढ़ी हुई है जब यूपी सहित पांच राज्यों में चुनावी हलचल तेज हो चली है. केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के लिए सबसे महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश है - और कोविड 19 के दौरान मची अफरातफरी से लेकर योगी आदित्यनाथ के स्टैंड तक बीजेपी नेतृत्व उत्तर प्रदेश के मामले में, न सिर्फ जोखिम उठाने से बच रहा है बल्कि वो हर संभव कोशिश कर रहा है जो चुनावों में जीत सुनिश्चित करने के लिए जरूरी लगती हो.

'जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान' - ये ऐसे मुद्दे हैं जिनके जिक्र के बगैर बीजेपी का कोई भी इलेक्शन कैंपेन पूरा ही नहीं हो पाता - क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल से जम्मू-कश्मीर पर शुरू हुई राजनीतिक हलचल का फायदा यूपी में बीजेपी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) उठा पाएंगे?

जम्मू कश्मीर का चुनाव-कालीन महत्व!

2014 के बाद से जब भी बीजेपी कोई विधानसभा चुनाव हार जाती है तो एक चर्चा ये जरूर होती है कि वो कभी स्थानीय मुद्दों को तरजीह नहीं देती, राष्ट्रीय मुद्दे ही बीजेपी की चुनाव मुहिम के फोकस पर होते हैं - महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव से लेकर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव तक प्रचार सामग्री एक जैसी ही नजर आती है. तोलाबाजी और कट मनी जैसे मसले भी होते हैं लेकिन सेकंड ग्रेड में या मसाले के तौर पर ही इस्तेमाल किये जाते रहे हैं. जैसे बिहार चुनाव में जंगलराज के युवराज और दिल्ली में शाहीन बाग का जिक्र होता रहा.

देखने में तो अब तक यही आया है कि बीजेपी का शायद ही ऐसा कोई चुनाव अभियान हो जिसमें किसी न किसी बहाने जम्मू कश्मीर का नाम न लिया जाता हो - और सिर्फ जम्मू-कश्मीर ही क्यों - धीरे धीरे उसके तार पाकिस्तान और आतंकवाद से जोड़ते हुए एक ही कड़ी में पेश करते देखे जाते हैं.

बिहार चुनाव में तो केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने ही नीतीश कुमार की जगह किसी और के मुख्यमंत्री बन जाने की सूरत में राज्य में कश्मीर जैसे माहौल बन जाने की आशंका जतायी थी. चूंकि बिहार चुनाव के शुरुआती दिनों में सुशांत सिंह राजपूत को मुद्दा बनाने की कोशिश हुई, इसलिए जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान की बातें थोड़ी कम हो गयी थीं. वरना, 'पाकिस्तान चले जायें...' जैसा फेमस जुमला भी गिरिराज सिंह ने बिहार में भी लॉन्च किया था.

पश्चिम बंगाल हो या फिर उससे पहले हुआ दिल्ली विधानसभा चुनाव - क्या क्या न बोला गया? ये तब तक जोर पकड़े रहा जब तक कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बोल नहीं दिया कि अगर आतंकवादी मानते हो तो बीजेपी को वोट दे देना. दिल्ली चुनावों के बाद एक इंटरव्यू में बीजेपी नेता अमित शाह ने माना भी था कि ऐसे बयानों को विपक्ष मुद्दा बना रहा है, लेकिन आगे भी वो सिलसिला जारी ही रहा.

जम्मू कश्मीर पर मौजूदा बातचीत चाहे जिस भी नजीजे पर पहुंचे या फिर बेनतीजा ही क्यों न रहे, अभी की बातें आने वाले चुनावों में भाषण को ओजस्वी बनाने में मददगार साबित तो होंगी ही.

बीजेपी का सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा अयोध्या में भव्य मंदिर निर्माण तो उत्तर प्रदेश से ही जुड़ा है, लेकिन 2019 के आम चुनाव में संघ और बीजेपी के राम मंदिर मुद्दा होल्ड कर लेने के फैसले के बाद बीजेपी ने भी छोड़ दिया था. अभी तो अयोध्या में मंदिर निर्माण का काम तेजी से चल रहा है.

आपने ये तो ध्यान दिया ही होगा कि राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन का मुहूर्त भी ऐसा रखा गया जो जम्मू-कश्मीर से जुड़ रहा था. तब भूमि पूजन के लिए कई मुहूर्त पर विचार हुआ था, लेकिन राजनीतिक हिसाब से तो वही ठीक भी रहा जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया - 5 अगस्त, 2020.

अयोध्या में भूमि पूजन से ठीक एक साल पहले 5 अगस्त, 2019 को ही संसद में जम्मू कश्मीर से जुड़ी धारा 370 खत्म करने का प्रस्ताव पास हुआ था - और अब जबकि चुनाव की तारीखें धीरे धीरे करीब आ रही हैं, देखना दिलचस्प होगा कि 5 अगस्त, 2021 को मीडिया में क्या सुर्खियां बनती हैं?

योगी आदित्यनाथ के दिल्ली दौरे के बाद खबर आयी थी कि मोदी-शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से जो मार्गदर्शन मिले उसमें राम मंदिर निर्माण कार्य पर भी जोर रहा. लखनऊ पहुंचते ही योगी आदित्यनाथ ने मंदिर प्रोजेक्ट से जुड़ी प्रोग्रेस की समीक्षा की और काम में तेजी लाने के लिए अफसरों को जरूरी हिदायतें दे दी है.

राम मंदिर निर्माण पर बीजेपी नेतृत्व के जोर देने की एक बड़ी वजह जमीन खरीद को लेकर शुरू हुए विवाद भी हो सकते हैं - निर्माण के काम में तेजी आने के साथ ही ऐसे विवाद बड़ी आसानी से पीछे छूट जाएंगे, बीजेपी को ये अच्छी तरह मालूम है.

अब तक तो ऐसा ही लग रहा है कि बीजेपी यूपी विधानसभा चुनाव में राम मंदिर निर्माण का क्रेडिट लेने की पूरी कोशिश करेगी, लेकिन याद रहे, आम चुनाव में मंदिर मुद्दा होल्ड कर लेने की वजह जम्मू कश्मीर से ही जुड़ा पुलवामा हमला भी माना गया. कुछ सर्वे और हमलावर विपक्ष को जिस तरीके से पुलवामा के नाम पर बीजेपी नेतृत्व ने घेर डाला, उससे तो आतंकी हमले को लेकर बने जनमत का चुनावी फायदा उठाने की कोशिश साफ तो हो ही जाती है.

जम्मू-कश्मीर के चुनाव-कालीन महत्व को देखते हुए अब तो ऐसा ही लगता है कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में ये मुद्दा प्रमुख तो होगा ही!

यूपी में कश्मीर मुद्दा कितना कारगर

पश्चिम बंगाल चुनावों में शिकस्त के बाद बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा की समीक्षा के बाद ये तो साफ हो ही गया था कि बीजेपी यूपी चुनाव में 'श्मशान-कब्रिस्तान 2.0' लेकर आ रही है - अब धर्मांतरण के मुद्दे पर जिस तरीके से योगी आदित्यनाथ एनएसए लागू करने का फरमान जारी कर चुके हैं, ये तो लगता ही है कि चुनावी माहौल दस्तक देने लगा है. वैसे एनएसए तो योगी आदित्यनाथ का फेवरेट एक्ट है - चाहे वो ऑक्सीजन की कमी को लेकर उठती आवाजें हों, तबलीगी जमात का मामला हो या फिर CAA-NRC जैसे कानूनों के खिलाफ लोगों का विरोध प्रदर्शन ही क्यों न हो.

जम्मू-कश्मीर को लेकर मीटिंग शुरू होने से पहले ही 'पाकिस्तान' पर घाटी की क्षेत्रीय राजनीति में बंटवारा देखने को मिला है. पाकिस्तान के मसले पर फारूक और महबूबा के नजरिये में फूट पड़ती दिखायी दे रही है.

जैसे ही सर्वदलीय बैठक को लेकर मीडिया में खबरें आयीं, दिल्ली की पहल की पुष्टि करने वाले पहले लोगों में महबूबा मुफ्ती भी रहीं. जब मीडिया ने महबूबा मुफ्ती से संपर्क किया तो झट से पीडीपी नेता ने पाकिस्तान को भी बातचीत में शामिल किये जाने की डिमांड रख दी - और उसमें तालिबान से अफसरों की वार्ता को लेकर आयी खबरों से तार भी जोड़ कर पेश कर दिया, लेकिन महबूबा मुफ्ती की इस मांग को घाटी में ही समर्थन नहीं मिल सका है.

farooq abdullah, mehbooba muftiजम्मू कश्मीर पर बातचीत में महबूबा मुफ्ती की तरफ से पाकिस्तान की पैरवी से पल्ला झाड़ कर फारूक अब्दुल्ला ने साफ कर दिया है कि घाटी के नेता ही नहीं जो भी राजनीतिक दल ऐसे व्यवहार करेंगे वे दूसरी छोर पर ही नजर आएंगे - और बीजेपी को ऐसे मुद्दे चुनावों में काफी सूट करते हैं.

नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने पाकिस्तान को बातचीत में शामिल किये जाने की महबूबा मुफ्ती की मांग को निजी राय करार दी है. फारूक अब्दुल्ला बातचीत में गुपकार गठबंधन की अगुवाई कर रहे हैं जिसमें महबूबा मुफ्ती भी शामिल हैं.

जम्मू कश्मीर पर सर्वदलीय बैठक पर पाकिस्तान की भी निगाह है - वो भी कश्मीरी लोगों के बहाने अगस्त, 2019 के पहले वाला स्टेटस बहाल किये जाने की मांग तो करता ही रहा है, हर वक्त ऐसे मौके की तलाश में रहता जब उसे कश्मीर मामले को संयुक्त राष्ट्र में उठाने का अवसर मिल सके. ये महबूबा मुफ्ती जैसे ही नेता हैं जो पाकिस्तान को ऐसी हरकतों के लिए ईंधन भी मुहैया कराते रहते हैं.

कश्मीर मुद्दा वैसे भी 2019 में बीजेपी के चुनावी वादों का हिस्सा रहा और केंद्र की सत्ता में वापसी के बाद जब अमित शाह गृह मंत्री के रूप में मोदी कैबिनेट में शामिल हुए तो ऐसे चुनावी वादे पूरे करने में ज्यादा दिलचस्पी दिखायी जिनको आगे के चुनावों में मुद्दे के रूप में इस्तेमाल किया जा सके.

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भी जम्मू-कश्मीर के जिक्र की रस्म का रिवाज तो दिखेगा ही, कांग्रेस के स्टैंड के बहाने बीजेपी के लिए चुनावों में प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ साथ राहुल गांधी और सोनिया गांधी को घेरने में भी मददगार साबित होगा. जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर कांग्रेस के स्टैंड को लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद जैसे नेताओं ने राहुल और सोनिया गांधी के सामने उसी वक्त विरोध जताया था - और बाद में दोनों ही बीजेपी ज्वाइन कर चुके हैं. चुनाव नजदीक आते आते ऐसी घटनाएं और भी देखने को मिल सकती हैं, इनकार नहीं किया जा सकता.

आम चुनाव में बीजेपी की तरफ से चुनावी रैलियों में बार बार बताया जाता रहा कि किस तरह विपक्षी दलों खासकर राहुल गांधी के भाषणों पर पाकिस्तान में सुर्खियां बन रही हैं. अपने स्टैंड को लेकर कांग्रेस नेता पाकिस्तान में हीरो बने हुए हैं. अभी कुछ दिन पहले ही दिग्विजय सिंह ने कहा था कि कांग्रेस सत्ता में आयी तो जम्मू-कश्मीर पूरी तरह पुरानी स्थिति में बहाल कर दिया जाएगा - और अब तो कांग्रेस की तरफ से भी साफ कर दिया गया है कि जम्मू-कश्मीर को लेकर शुरू से अब तक उसके स्टैंड में कोई बदलाव नहीं आया है.

जम्मू-कश्मीर का मुद्दा चुनावों के दौरान बीजेपी के लिए राजनीतिक विरोधियों की देशभक्ति पर सवाल उठाने के लिए बेहद कारगर साबित होता है. जैसे ही बीजेपी नेतृत्व या कोई भी पार्टी नेता कांग्रेस या दूसरे विरोधी दलों पर टूट पड़ते हैं. विरोधी राजनीतिक दल की देशभक्ति पर सवाल उठते ही उनके नेता तिलमिला उठते हैं और बचाव में सफाई पेश करना शुरू कर देते हैं - और इतने में तो बीजेपी का काम बन ही जाता है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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