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Updated: 08 जून, 2019 03:59 PM
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कांग्रेस अध्यक्ष Rahul Gandhi के बाद प्रधानमंत्री Narendra Modi भी केरल पहुंचे. प्रधानमंत्री मोदी और राहुल गांधी के केरल दौरे बता रहे हैं कि बीजेपी को लगातार बढ़त क्यों मिल रही है - और कांग्रेस का ये हाल क्यों हुआ है?

राहुल गांधी Wayanad की जीत के बाद केरल दौरे पर निकले और नरेंद्र मोदी सूबे में बीजेपी का खाता भी न खुल पाने के बावजूद. राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी दोनों के फैसले बता रहे हैं कि कौन किस तरह की राजनीति करता है - और कैसे राजनीतिक फैसले लेता है?

कांग्रेस और बीजेपी का मौजूदा सूरत-ए-हाल भी नेतृत्व के गुणों के चलते ही मुमकिन हो पा रहा है - शायद यही वजह है कि बीजेपी नेता राम माधव को लगता है कि उनकी पार्टी कांग्रेस का रिकॉर्ड तोड़ डालेगी और 2047 तक सत्ता पर यूं ही काबिज रहेगी.

ये सिर्फ विचारधारा की लड़ाई तो नहीं है

सारे अमेठीवासी न सही, लेकिन वे लोग जिन्होंने राहुल गांधी को वोट दिया होगा - वायनाडवालों से पहले उनकी एक झलक पाने का इंतजार तो करते ही होंगे. वायनाड वालों को भी राहुल गांधी का इंतजार जरूर रहा होगा - क्योंकि ये समझते हुए भी उन्होंने राहुल गांधी को वोट दिया होगा कि जीतने के बाद वो चुनेंगे तो अमेठी को ही. वैसे वायनाड के लोगों को अपने नेता को अभी से समझ लेना चाहिये कि कहीं और से चुनाव लड़ने का मन या मजबूरी हुई तो वो वायनाड का रूख शायद ही करें.

केरल के लोगों को तो उम्मीद भी नहीं होगी कि नरेंद्र मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद केरल दौरे को इस कदर तरजीह देंगे. वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव जीतने के बाद और प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने से पहले वाराणसी पहुंच कर काशीवासियों से मुलाकात कर आभार जता चुके हैं.

केरल के लोगों से प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'जिन्होंने हमें जिताया और जो चूक गए वे भी हमारे हैं... केरल भी मेरा उतना ही अपना है, जितना बनारस है... जीत के बाद देश के 130 करोड़ नागरिकों की जिम्मेदारी हमारी है... भाजपा के कार्यकर्ता सिर्फ चुनावी राजनीति के लिए मैदान में नहीं होते. हम लोग 365 दिन अपने राजनीतिक चिंतन के आधार पर जनता की सेवा में जुटे रहते हैं.'

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी दूसरी पारी में 'सबका साथ, सबका विकास' के साथ 'सबका विश्वास' भी जोड़ दिया है - और अब कदम कदम पर बीजेपी नेतृत्व लोगों के बीच अपना संदेश प्रचारित करने में जुटा हुआ है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का अपने सहयोगी मंत्री गिरिराज सिंह और जूनियर मिनिस्टर जी. किशन रेड्डी को सख्त लहजे में आगाह करने के पीछे भी यही मकसद रहा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केरल के साथ साथ वाराणसी का नाम भी उतनी ही शिद्दत से लेते हैं - लेकिन राहुल गांधी लगता है अब पूरी तरह वायनाड पर फोकस हो चुके हैं. पीछे मुड़ कर तो कतई नहीं देखने वाले. पीछे मुड़ कर देखने का सबके लिए मतलब भी नहीं होता - क्योंकि आईना तो अक्सर आगे ही होता है.

modi in kerala after rahul gandhiमोदी के लिए बराबर है केरल और काशी कनेक्शन

राहुल गांधी खुद ही ये इरादा भी जाहिर कर देते हैं, 'मैं वायनाड के लोगों के लिए लड़ूंगा. मैं संसद के भीतर और बाहर वायनाड के मुद्दे उठाऊंगा. मैं इस संसदीय क्षेत्र के लिए आपके साथ काम करूंगा, आपकी बात सुनूंगा. मेरे प्रति दिखाए गए प्रेम और स्नेह के लिए आप सभी का धन्यवाद.’

अमेठी के लिए राहुल गांधी अब तो ऐसी कोई बात नहीं कह रहे हैं. पहले कहा जरूर था कि अमेठी के लोगों ने ही संस्कार दिये जिसकी बदौलत वो वायनाड का रूख कर पाये. वैसे अमेठी के लोगों ने जो संस्कार दिये उसमें ये तो नहीं ही होगा कि वायनाड मिल जाने के बाद वो अमेठी को भुला दें. बीजेपी तो निश्चिंत होगी कि प्रधानमंत्री मोदी तो सबका विश्वास जीतने के लिए निकल ही पड़े हैं - कांग्रेस को तो फिक्र होगी ही कि राहुल गांधी का यही हाल रहा तो वायनाड के अलावा कहीं और चुनाव कैसे जीत पाएंगे?

राहुल गांधी कहते तो हैं कि वो विचारधारा की लड़ाई लड़ रहे हैं. बताते नहीं थकते कि बीजेपी और कांग्रेस की विचारधारा अलग अलग है - और वो उसी के लिए लड़ रहे हैं.

केरल के मलप्पुरम में रोड शो के दौरान राहुल गांधी के निशाने पर प्रधानमंत्री मोदी ही रहे, 'मोदी के पास अपार धन हो सकता है. उनके पास मीडिया हो सकता है. उनके साथ अमीर दोस्त हो सकते हैं लेकिन बीजेपी द्वारा फैलाई गई असहिष्णुता के खिलाफ कांग्रेस पार्टी लड़ती रहेगी. बीजेपी और मोदी की नफरत और असहिष्णुता का जवाब कांग्रेस पार्टी प्यार और स्नेह से देगी.’

सवाल है कि अगर बीजेपी अमेठी में भी नफरत और असहिष्णुता फैला रही है तो राहुल गांधी की कांग्रेस पार्टी प्यार और स्नेह क्यों नहीं देती? क्या वाकई राहुल गांधी सिर्फ विचारधारा की लड़ाई लड़ रहे हैं? क्या वास्तव में राहुल गांधी नफरत और असहिष्णुता के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं? क्या राहुल गांधी सही में बीजेपी के खिलाफ प्यार और स्नेह बांट रहे हैं - राहुल गांधी का मौजूदा केरल दौरा तो अलग ही नजर आ रहा है.

'सबका विश्वास' कैसे जीता जाये?

केरल में सत्ताधारी लेफ्ट को सिर्फ दो सीटें मिली हैं और कांग्रेस 15 सीटें जीतने में कामयाब रही है. तमाम कोशिशों के बावजूद बीजेपी केरल में खाता भी नहीं खोल पायी है. फिर भी बीजेपी निराश नहीं है.

केरल में मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैही रूख अख्तियार किया है जो अब तक वो स्मृति ईरानी से अमेठी में कराते रहे - और राहुल गांधी वो कर रहे हैं जो बरसों पहले उनकी दादी इंदिरा गांधी करती रहीं. अपनी दादी का कामयाब नुस्खा अपनाते हुए राहुल गांधी अमेठी को पीछे छोड़ काफी आगे निकल चुके हैं - जहां से लौटना फिलहाल तो संभव नहीं लगता.

अगर पांच साल लगातार कोशिश कर स्मृति ईरानी गांधी परिवार का गढ़ राहुल गांधी से छीनने में कामयाब हो सकती हैं, फिर तो 2024 में बीजेपी केरल में भी भगवा लहरा ही सकती है. वैसे भी 2019 के नतीजों से साफ है कि ओडिशा और पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने जो कुछ भी हासिल कर पायी, तरीका तो यही अपनाये रखा.

प्रधानमंत्री मोदी समझाते हैं कि उनका केरल दौरा बीजेपी और आरएसएस के संस्कार का हिस्सा है, 'चाहे गुरुवायूर हो या द्वारकाधीश... हम गुजरात के लोगों का आपसे खास रिश्ता है... यहां के नागरिकों का अभिनंदन करता हूं. आपने लोकतंत्र में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. राजनीतिक दल और पॉलिटिकल पंडित जनता के मिजाज को नहीं पहचान पाये. सर्वे एजेंसियां भी इधर-उधर होती रहीं, लेकिन जनता ने अपना मत दिया. कई पंडितों को विचार आता होगा कि केरल में मोदी का खाता भी नहीं खुला और लोगों को धन्यवाद देने केरल आए हैं, लेकिन ये हमारे संस्कार हैं.'

राजनीति में भावनाएं दोधारी तलवार की तरह होती रिजल्ट देती हैं. भावनाओं के साथ जनता के जुड़ जाने से फायदा ये होता है वोटों की सौगात उमड़ पड़ती है, लेकिन भावनाओं के बूते वोट भावनाओं की वजह से लिये गये फैसले बड़े ही हानिकारक होते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का केरल दौरा अलग अलग तरीके से यही बात समझाने की कोशिश कर रहा है - अब ये समझने वाले पर है कि कौन कितना और कितनी जल्दी क्या समझ पाता है.

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