New

होम -> सियासत

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 17 अगस्त, 2021 10:22 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
  • Total Shares

अफगानिस्तान (Afghanistan) पर इस्लामिक आतंकवादी संगठन तालिबान (Taliban) पर कब्जे के साथ देश को इस्लामी अमीरात (Afghanistan crisis) घोषित करने की ओर कदम बढ़ा दिए गए हैं. अफगानिस्तान पर पूरी तरह से कब्जा करने से पहले तालिबान ने घोषणा की थी कि वो अफगानी लोगों के जान-माल की रक्षा करेंगे. लेकिन, ताजा हालातों पर नजर डालने से स्थितियां बद से बदतर होती ही दिखती हैं. काबुल एयरपोर्ट पर भगदड़ की स्थिति से (Afghanistan current situation) साफ हो जाता है कि तालिबान के डर से अफगानी लोग किसी भी हाल में देश छोड़ देना चाहते हैं.

दुनियाभर के कई देश तालिबान (Afghanistan Taliban) से मानवाधिकारों की रक्षा का अनुरोध कर रहे हैं. हथियारों के दम पर सत्ता पर काबिज हुआ तालिबान अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी (Ashraf Ghani) के देश छोड़कर भागने को लेकर माखौल उड़ा रहा है. इस बीच रूस के दूतावास ने एक चौंकाने वाला दावा करते हुए कहा है कि अशरफ गनी एक हेलीकॉप्टर और चार कारों में ढेर सारा पैसा भरकर भागे हैं.

हालांकि, देश छोड़ने के समय अशरफ गनी ने अपने बयान में कहा था कि वो खूनखराबा रोकने के मकसद से अफगानिस्तान छोड़ रहे हैं. लेकिन, अमेरिका से लेकर आम अफगान नागरिक भी यही सवाल कर रहे हैं कि 'कहां हैं राष्ट्रपति गनी?' लेकिन, अशरफ गनी पर सवाल उठा रहे लोगों को देखकर ऐसा लगता है कि वो अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नजीबुल्लाह (Mohammad Najibullah) का हश्र भूल गए हैं.

अशरफ गनी के अफगानिस्तान छोड़ने पर सवाल उठा रहे लोग नजीबुल्लाह का हश्र भूल गए.अशरफ गनी के अफगानिस्तान छोड़ने पर सवाल उठा रहे लोग नजीबुल्लाह का हश्र भूल गए.

चार साल से ज्यादा संयुक्त राष्ट्र के कंपाउंड में बिताए

1989 में अफगानिस्तान से सोवियत संघ की सेना हटने के साथ अफगान राष्ट्रपति नजीबुल्लाह (Afghanistan President Najibullah) की पकड़ देश के अन्य प्रांतों पर कमजोर होने लगी थी. वहीं, सोवियत संघ के विघटन के कुछ ही महीनों बाद 1992 में तालिबान के बढ़ते आतंक को देखकर अफगानिस्तान के राष्ट्रपति नजीबुल्लाह ने इस्तीफे की पेशकश कर दी. नजीबुल्लाह ने कहा था कि उनके विकल्प की व्यवस्था होते ही वो सत्ता छोड़ देंगे. इस दौरान उन्होंने देश छोड़ने की कोशिश भी की. जिसे तालिबान के प्रभाव वाले लोगों ने कामयाब नहीं होने दिया. दरअसल, तालिबान लोगों के सामने नजीबुल्लाह को एक उदाहरण के तौर पर पेश करने का मन बना चुका था. हालात ये थे कि 1992 से लेकर अपनी मौत के दिन तक नजीबुल्लाह को संयुक्त राष्ट्र के कंपाउंड में अपनी जिंदगी गुजारनी पड़ी.

नजीबुल्लाह से तालिबान को थी नफरत

दरअसल, नजीबुल्लाह युवाकाल में ही कम्युनिस्ट विचारधारा वाली पार्टी पीपल्स डेमोक्रैटिक पार्टी ऑफ अफगानिस्तान से जुड़ गए थे. अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति नजीबुल्लाह सोवियत संघ की मदद से ही सत्ता में आए थे. तालिबान की नजर में नजीबुल्लाह एक ऐसा कम्युनिस्ट मुसलमान था, जो अल्लाह में विश्वास नहीं करता था. अल्लाह में विश्वास न करने वाले के साथ तालिबान की नफरत का अंदाजा लगाना कोई बड़ी बात नहीं है. लंबे समय तक अफगानिस्तान में इस्लामिक कानूनों और शरियत के नाम पर लोगों के मानवाधिकारों को खत्म करने वाले आतंकी संगठन तालिबान की बर्बरता के किस्से किसी से छिपे नही हैं. नजीबुल्लाह की मौत से पहले संयुक्त राष्ट्र की ओर से उनको अफगानिस्तान से बाहर निकालने की कोशिशें की गईं. लेकिन, तालिबान से सीधे तौर पर दुश्मनी मोल लेने से बचने के लिए किसी भी देश ने उन्हें अपने यहां शरण देने से इनकार कर दिया. इस दौरान नजीबुल्लाह को अपने ही कई करीबियों के विश्वासघात का सामना भी करना पड़ा. हालांकि, भारत ने उस मुश्किल दौर में भी नजीबुल्लाह की पत्नी और बेटियों को शरण दी थी.

नजीबुल्लाह की लाश को काबुल के आरियाना चौक पर एक लैंप पोस्ट पर टांग दिया गया.नजीबुल्लाह की लाश को काबुल के आरियाना चौक पर एक लैंप पोस्ट पर टांग दिया गया. (Source:Twitter)

लैंप पोस्ट पर लटकाई नजीबुल्लाह की लाश

सितंबर, 1996 में काबुल पर तालिबान की जीत के साथ ही तय हो गया था कि नजीबुल्लाह का बचना अब नामुमकिन है. तालिबानी लड़ाके धड़धड़ाते हुए संयुक्त राष्ट्र के उस कंपाउंड में घुस गए और नजीबुल्लाह को उनके भाई समेत घसीटकर बाहर लाया गया. इस दौरान नजीबुल्लाह और उनके भाई को बुरी तरह से पीटा गया. तालिबानी आतंकियों ने उन्हें पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया. उनके शवों के साथ निर्ममता का स्तर पार करने की हद तक बदसलूकियां की गईं. बताया जाता है कि इतने पर भी तालिबानी आतंकियों का मन नहीं भरा, तो उन्होंने नजीबुल्लाह की लाश को एक ट्रक के पीछे बांध कर सड़कों पर घसीटा. आखिर में उनकी लाश को काबुल के आरियाना चौक पर एक लैंप पोस्ट पर टांग दिया गया. उसी लैंप पोस्ट पर नजीबुल्लाह के भाई की भी लाश लटकाई गई थी. तालिबान ने नजीबुल्लाह की लाश के साथ बर्बरता कर अपनी ताकत का खौफ लोगों के दिलों में भर दिया था.

अशरफ गनी ने आखिरी समय तक लड़ने की कोशिश की

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति ने देश को बचाने के लिए कोई कोशिश नहीं की. ये बात तमाम जगहों पर सामने आई कि तालिबान के तेजी से काबुल की ओर बढ़ने के समय उन्होंने पड़ोसी प्रांतों का दौरा किया. मजार-ए-शरीफ के 'बूढ़ा शेर' कहे जाने वाले मार्शल अब्दुल रशीद दोस्तम से भी मुलाकात की. अशरफ गनी ने अपगानिस्तान की मिलिशिया को भी हथियार उपलब्ध कराए थे. लेकिन, इन सभी लोगों ने तालिबान के आगे घुटने टेक दिए. एक बात और चौंकाने वाली है कि मार्शल अब्दुल रशीद दोस्तम वही शख्स हैं, जिनके मिलिशिया यानी मुजाहिदीन संगठन ने नजीबुल्लाह के देश छोड़ने के समय एयरपोर्ट पर कब्जा कर लिया था. वैसे, तालिबान के डर से अब्दुल रशीद दोस्तम भी अफगानिस्तान छोड़कर भाग चुके हैं.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय