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Updated: 18 नवम्बर, 2016 12:42 PM
आर.के.सिन्हा
आर.के.सिन्हा
  @RKSinha.Official
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यकीन नहीं हो रहा कि नोटबंदी ने बीते कई महीनों से देश विरोधी ताकतों के कारण झुलसते कश्मीर पर एक तरह से मरहम लगाने का काम किया है. घाटी में जिंदगी पटरी पर लौट आई है. नोटबंदी के चलते कर्फ्यू से पंगु हो गई कश्मीर घाटी के बाशिंदे 500 और 1000 रुपये के नोटों को बैंकों में जाम करवाने के लिए अपने घरों से निकले और 100 रूपये के कुछ नोट बदलने के लिए नोटबंदी के पहले दो दिनों में करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपये की करंसी जमा करवाई. यह कोई छोटी राशि नहीं मानी जा सकती. तीन दिन बाद यह जमा राशि तीन लाख से भी ज्यादा जा पहुंची है.

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नोटबंदी के कश्मीर में अमन

भूले आंदोलन

मेरी जानकारी के मुताबिक, कश्मीर के पृथकतावादी नेता आतंकवादी संगठन, नक्सली, भ्रष्ट अफसर और कालेधंधे में शरीक लोग, सब के सब अपने घरों में जमा 500 तथा 1000 रुपये के नोटों को ठिकाने लगाने में ही जुटे हुए हैं. यानी अभी वे फिलहाल अपना सारा आंदोलन भूल गए हैं. उनकी हवा गुम हो चुकी है. और नोटबंदी के बाद अब कश्मीर में पत्थरबाजी भी बंद हो गई है. नक्सली भी आंदोलन भूलकर गावों में लोगों में पैसे बांटते फिर रहे हैं. मिन्नतें करते फिर रहे हैं कि अभी 500-1000 के नोट ले लो और जब पैसे चेंज करवा लेना तब वापस कर देना. पहले कश्मीर में शायद ही कोई दिन गुजरता हो जब छोटे बच्चे और किशोर सुरक्षाकर्मियों पर पत्थर नहीं बरसाते हों. सवाल ये है, अब ये पत्थरबाजी कैसे और क्यों करेंगे, जब इन्हें एक पत्थर फेंकने पर 500 देने वालों की पेशानी से पसीना निकल रहा है. अब इन्हें अपने कालेधन को ठिकाने लगाने की ही चिंता लगी है. किसे नहीं पता कि घाटी में पाकिस्तान परस्त ताकतें पत्थर फेंकने वालों को नोटों का लालच देती थीं. 500 और 1000 के नोट खत्म हो गए तब पत्थरबाजी के दौर का भी अंत हो गया.

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साथ कालेधन का

और जब नोटबंदी के चलते कश्मीर में अमन की बयार बहने लगी तो कुछ विपक्षी नेता विधवा विलाप करने लगे. इनमें ममता बैनर्जी, मायावती से लेकर अरविंद केजरीवाल भी शामिल हैं. इनसे देश सवाल पूछ रहा है कि वे कालेधन के खात्मे को लेकर मोदी सरकार की तरफ से चलाए जा रहे सघन अभियान का विरोध क्यों कर रहे हैं. क्या नोट बंदी ने उनके अकूत जमा की हुई सम्पत्ति पर चोट तो नहीं की है? क्या इन्हें मालूम नहीं कि इसी काले धन का कश्मीर के अलगाववादियों से लेकर माओवादी कालाबाजारी, स्मगलर, आतंकवादी इस्तेमाल करते हैं? भारत के बाहर बाकी देशों में विपक्ष सरकार से मांग करता है कि कालेधन पर रोक लगे, आंदोलन तक चलाता है. पर हमारे देश का विपक्ष उल्टी गंगा बहाने पर आमादा है.

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 विपक्ष में बैठे नेता कर रहे हैं इस मुहिम का विरोध

कांग्रेस, टीएमसी, सपा, बसपा सहित अन्य को लगे हाथ मुद्दा मिल गया है सरकार का विरोध करने का. यानी वे प्रत्यक्ष रूप से कालेधन की समाप्ति के खिलाफ हैं. जरा देख लीजिए कि नोटबंदी के फैसले के विरोध में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी विपक्षी राजनीतिक दलों को एकजुट करने में जुट गई हैं. ममता ने इसके लिए अपनी जानी दुश्मन वामदलों तक से समर्थन मांगा है. हालांकि, माकपा ने उनके प्रस्ताव को तत्काल खारिज कर दिया है. सबसे अफसोस की बात ये है कि इन विपक्षी दलों के पास कालेधन को समाप्त करने के लिए कोई कार्यक्रम या विकल्प नहीं है. ये सरकार के प्रयासों की आलोचना कर रहे हैं, पर ये नहीं बता रहे कि सरकार किस तरह से अपने अभियान को आगे बढ़ाए.

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भ्रष्टाचार के आरोपों में आकंठ डूबी हुई बसपा अध्यक्ष मायावती ने कहा, “मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार और कालेधन पर अंकुश लगाने के नाम पर देश की जनता को ही खुले आसमान के नीचे लाकर खड़ा कर दिया है. इस भयावह स्थिति की कल्पना किसी ने नहीं की थी.’’ मतलब मायावती जी अनाप-शनाप बोल रही हैं. वैसे भी आप उनसे कोई सार्थक बहस या आलोचना की उम्मीद नहीं कर सकते. यह आम आरोप है कि मायावती देश की भ्रष्टतम राजनेता हैं और उन्होंने अपने शासनकाल में बाकायदा सभी गैर कानूनी कामों के लिए खुलेआम रेट फिक्स कर रखा था. एक अनुमान है कि उनके पास एक लाख करोड़ से ज्यादा कालाधन है.     

कश्मीर के स्कूल भी नहीं जलाए जा रहे

अब नोट बंदी का विरोध कर रहे विपक्ष को कौन बताए कि इसके असर के चलते अब कश्मीर में स्कूल भी नहीं जलाए जा रहे हैं. वर्ना वहां पर बीते तीन महीनों के दौरान 27 स्कूल फूंक दिए गए थे, लगभग हर तीसरे दिन एक स्कूल स्वाहा.

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 3 महीनों में कश्मीर में 27 स्कूलों को जला दिया गया

क्या ममता-माया-केजरीवाल को पता है कि नोटबंदी के दूरगामी असर के चलते कश्मीर में 14 नवंबर से वार्षिक बोर्ड परीक्षाएं चालू हो गई. इसमें हजारों छात्र-छात्राएं परीक्षा देने विभिन्न केंद्रों पर पहुंचे. बोर्ड परीक्षाएं शुरू होने के साथ ही पूरी घाटी में लोगों और वाहनों की आवाजाही में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. कश्मीर में छात्रों का इस तरह बढ़ चढ़ कर परीक्षाओं में भाग लेना उन अलगाववादियों के मुंह पर तमाचा है जिनके मंसूबे कश्मीर के युवाओं को गुमराह कर घाटी में हमेशा अशांति बनाए रखने के हैं.

कौन-कौन साथ

महत्वपूर्ण है कि सरकार के 500 और 1000 रूपये के नोटों को चलन से बाहर किये जाने के फैसले को चीनी मीडिया ने भी सराहा है. चीन के सरकारी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने इसे ‘एक साहसिक’ और ‘हैरतअंगेज’ कदम करार दिया. चीन के सरकारी अखबार ने पीएम मोदी को भ्रष्टाचार से निपटने के लिए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की ओर से चलाए गए अभियान से सीख लेने की भी सलाह दी है. इसी क्रम में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भ्रष्टाचार से लड़ने के लिये भारत सरकार द्वारा उठाये गये कदमों का समर्थन किया है. आईएमएफ प्रवक्ता गैरी राइस ने कहा है कि ‘मेरा मानना है कि जब कोई देश इस तरह (नोटबंदी) के कदम उठाता है तो उसे लागू करने में कई तरह की परेशानियां उभरकर सामने आती ही हैं.’

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सुविधा के साथ असुविधा भी

बेशक काले धन के विरूद्ध लड़ाई बड़े ही व्यापक पैमाने पर लड़ी जा रही है. इसलिए, इसके चलते आम जन को कुछ असुविधा तो जरूर ही हुई है. इससे इंकार नहीं किया जा सकता है. पर सरकार ने तुरंत ही जनता को असुविधा से निकालने के लिए तमाम नए कदम भी उठा लिए. यानी जनता के हितों को भी देखा जा रहा है. दरअसल मोदी सरकार देश के बैंकिंग क्षेत्र में लगी दीमक को समूल नष्ट कर देना चाहती है. बैंकिंग क्षेत्र से देश के अंतिम जन को जोड़ रही है. इसमें फैले भ्रष्टाचार को करारी चोट पहुंचा रही है.

पिछले तीन दिनों में मैं उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और झारखण्ड में था. सैकड़ों लोगों से बात हुई. यह स्वीकारने वाले तो कई मिले कि लम्बी लाइनों की वजह से असुविधा हो रही है, पर मोदी जी के निर्णय को गलत कहने वाला एक भी नहीं मिला. इसी क्रम में सरकार ने प्रधानमंत्री जन-धन योजना का श्रीगणेश करके लाखों दीन-हीन हिन्दुस्तानियों को बैंकिंग नेटवर्क से जोड़ा. प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत बैंक खाता खुलवाने पर एक लाख रुपये के दुर्घटना बीमा की सुविधा दी गयी है. क्या पहले कभी इतनी व्यापक बैंकिंग क्षेत्र की योजना कभी लागू हुई? मृतप्राय: डाक सेवाओं में नई जान फूंकी गई.

याद रखिए, कि कोई भी योजना कोई एक दिन या एक महीने में तैयार नहीं होती. उसके लिए कई स्तरों पर अध्ययन होता है. उसके बाद उसे लागू किया जाता है. जिस तरह से देश के करोड़ों गरीबों और साधारण लोगों को प्रधानमंत्री जन धन योजना से जोड़ा गया उसी तरह से नोटबंदी करके सरकार ने कालेधन पर बड़ा हमला किया है. इसकी तैयारी मोदी सरकार के सत्तासीन होने के बाद से ही चालू हो गई थी. मोदी पिछले लोकसभा चुनाव की कैंपेन के दौरान कालेधन के मुद्दे को बार-बार उठा रहे थे. वादा कर रहे थे कि वे इसका खात्मा करके ही रहेंगे. नोटबंदी को इसी रूप में देखने की जरूरत है. इससे अंतत: देश को लाभ होगा. उसके संकेत मिलने भी लगे हैं. अब यह समझ लेना चाहिए कि कालेधन के दिन अब जा चुके हैं.

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 सुविधा के साथ-साथ लोगों को परेशानियों से भी जूझना पड़ रहा है

एटीएम पर लम्बी कतारों के पीछे भी कालाबाजारियों का ही बड़ा हाथ है. एटीएम की कतारों में आधे लोग तो वास्तविक ग्राहक हैं जो आपनी जरूरतों के लिए खड़े हैं, लेकिन लगभग आधे कालाबाजारियों के दलाल हैं जो बड़े-बड़े नोट देकर 100 के नोटों में या नये नोटों में बदलवाने का धंधा कर रहें है और इसके लिए बीस से तीस प्रतिशत का कमीशन उन्हें प्राप्त हो रहा है. यानि कि हजार रूपये के पुराने नोट बदलवाओ और 200 से 300 रूपये कमीशन पाओ. अब एक व्यक्ति दिन भर में अलग-अलग चार बैंकों में लाइन लगकर 2000-2000 रूपये भी बदलवा लेता है तो आठ हजार में 1600 से 2400 रूपये का कमीशन बना लेता है. अब इससे अच्छी दिहाड़ी क्या हो सकती है. जब खुफिया एजेंसियों ने यह सूचना ऊपर तक पहुंचाई तब जाकर कहीं सरकार ने लाइन में लगनेवालों की उंगलियों पर काली स्याही लगाने का प्रावधान किया है जिससे निश्चित रूप से एटीएम पर लगनेवाली लम्बी कतारें कम होगीं और आम जनता की कठिनाइयां भी दूर होंगी.       

परेशानियों का जिम्मेदार कौन

यह तो अचानक होना ही था, नहीं तो कालाबाजारी को मौका मिल जाता. लेकिन अभी जो समस्या उत्पन्न हो रही है उसके लिए रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम की अदूरदर्शिता या गैरजिम्मेदाराना नीतियों को मैं दोषी मानता हूं. यह योजना मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही उनके दिमाग में थी और धीरे-धीरे उसकी भूमिका भी तैयार हो रही थी. पहले उन्होंने जनधन योजना के मार्फ़त गरीबों के 20 करोड़ अकाउंट खुलवाये. उनके ध्यान में यह बात थी कि ऐसी योजना लागू की जाएगी तो पहले गरीबों को कष्ट होगा. जितने जनधन अकाउंट मोदी जी ने एक साल में खुलवाए, उतने तो कांग्रेस ने 70 साल में भी नहीं खुलवाये. जनधन योजना लागू करने के बाद सभी बैंकों का आपस में इंटरनेट से लिंक करके कोर बैंकिंग की व्यवस्था शुरू की गयी ताकि किसी का भी खाता कहीं भी हो तो हर प्रकार के लेनदेन की खबर रिज़र्व बैंक को और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को रहे.

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इसके बाद शुरू हुआ डाकघरों को कोर-बैंकिंग से लिंक करने का काम. क्योंकि मोदी जी को पता था कि ग्रामीण क्षेत्रों में सभी स्थानों पर बैंक की सुविधा नहीं है, लेकिन डाकघर तो सभी जगह गांव-गांव में फैले हुए हैं. कांग्रेसी पिठ्ठू और मनमोहन सिंह तथा चिदम्बरम के खास चेले रघुराम राजन को लाया ही इसलिए गया था कि वे अमरीकी लाबी के खासमखास हैं. भारतीय मूल के होने के बावजूद उन्होंने अमरीकी नागरिकता ले रखी है और जब तक रिज़र्व बैंक के गवर्नर रहे गरीबों के हित के फैसले का पुरजोर विरोध करते रहे. 500 और 1000 के नोटों को बदलने और 2000 के नोटों को मुद्रित करने की योजना उन्हीं के कल में बन गई थी और कार्यान्वित भी हो गई थी. नोट छपकर तैयार भी थे. रघुराम राजन जी ने तो 2000, 5000 और 10,000 के नोट छापने का प्रस्ताव दिया था जिसमें से प्रधानमंत्री जी ने 2000 के नोट छापने के प्रस्ताव को मान लिया और 5000 तथा 10,000 के नोट छापने की स्वीकृति नहीं दी.

अब मेरा प्रश्न यह है कि जब 5000 और 10,000 के नोट छपकर तैयार थे तो देशभर के 2 लाख एटीएम में उसके लिए नए नोटों के साइज से कैसेट बनकर तैयार रहने चाहिए ताकि जिस दिन यह तय हो उसी दिन से 500 और 2000 के नए नोट एटीएम से मिलने लगें. यदि आज यह करके रखा गया होता तो समस्या कहां होती. क्या रघुराम राजन जी को जनता की तकलीफों का अंदाजा नहीं था या वे इस बात से अनभिज्ञ थे कि उन्होंने यह काम अपने उत्तराधिकारी उर्जित पटेल पर छोडकार जाना क्यों उचित समझा. भारी अव्यवस्था फैलाने के लिए उन्हें अपने कांग्रेसी आकाओं से निर्देश मिला था?  इसका जवाब तो आम जनता चाहेगी.

लेखक

आर.के.सिन्हा आर.के.सिन्हा @rksinha.official

लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं.

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