New

होम -> सियासत

 |  6-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 08 अप्रिल, 2016 07:54 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
  @rmisra
  • Total Shares

सीमापार से आंतकी गतिविधियों की जांच के लिए हाल में भारत आई पाकिस्तान की ज्वाइंट इंवेस्टीगेशन टीम से एक उम्मीद जगी थी कि दोनों देशों के बीच अच्छे रिश्तों की शुरुआत हो रही है. यह कदम पठानकोट एयरबेस पर हुए आतंकी हमले के बाद उठाया गया और माना जा रहा था कि यह सीमापार से आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए साहसिक और अहम है.

हालांकि एक बार फिर सारी कोशिशें धरी की धरी रह गई. जैसे ही पाकिस्तान की इंवेस्टीगेशन टीम भारत से सुबूत लेकर अपने देश पहुंची वहां सरकार, सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई ने अलग-अलग स्टैंड ले लिया है. इन सबके बीच सबसे अहम यही है कि पठानकोट हमले की जांच अधर में लटक गई और तमाम सबूत होते हुए भी भारत का हाथ पाकिस्तान में पनाह पाए आतंकियों तक नहीं पहुंच पाया.

गौरतलब है कि भारत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सत्ता की कमान संभालने के बाद अंतरराष्ट्रीय मंच पर कई बार साफ किया कि वह पाकिस्तान से अच्छे संबंधों को कायम करने के लिए किसी भी स्तर तक जाने के लिए तैयार हैं, बशर्ते पाकिस्तान सीमापार से आतंकी वारदातों को अंजाम देने से बाज आए. अपने इसी बयान पर कायम रहते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से कई मुलाकात की और बातचीत की प्रक्रिया को शुरू करने के लिए लगातार इस बात पर अड़े रहे कि पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ कदम उठाने की पहल करे.

pak_650_040816073356.jpg
पाकिस्तान और आतंकवाद

इस दिशा में दबाव बनाने के लिए मोदी ने लाहौर का अघोषित दौरा कर नवाज शरीफ से मुलाकात की और दुनियाभर में उनकी इस पहल को खूब सराहा भी गया. इसके बाद पाकिस्तान में नवाज शरीफ सरकार पर भी दबाव पड़ा और दोनों देशों में कूटनीतिक स्तर पर वार्ता शुरू हो गई. विदेश मंत्री और विदेश सचिव स्तर से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर पर कई दौर की बैठकें हुई और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों की भारत के इस पहल पर भरोसा होने लगा कि जल्द दोनों देश आपसी रिश्तों को पटरी पर लाने में सफल होंगे.

हालांकि मोदी और शरीफ के बीच जारी वार्ता ने पाकिस्तान में सत्ता के दूसरे केन्द्रों को असहज कर दिया और नतीजा सीमापार से घुसपैठ की कोशिशें बढ़ने लगीं. इन्हीं कोशिशों के चलते पठानकोट स्थित भारतीय एयरफोर्स बेस पर एक बड़े आतंकी हमले को अंजाम दे दिया गया जिसमें आठ सैनिकों की मौत हो गई. इस हमले के बाद भी भारत ने उम्मीद नहीं छोड़ी और वहां सत्ता पर काबिज लोकतांत्रिक सरकार से लगातार संपर्क में रही. बीते दो साल की कोशिशों के चलते दोनों ही सरकारें पठानकोट हमले की ज्वाइंट इंवेस्टीगेशन के लिए तैयार हो गई.

इस ज्वाइंट इंवेस्टीगेशन समझौते के तहत सबसे पहले पाकिस्तान की नैशनल इंवेस्टीगेशन टीम को घटनास्थल का दौरा करना था और भारत से साक्ष्यों को बटोरना था. जिसके बाद वह पाकिस्तान में गुनहगारों तक पहुंचने का पूरा खाका तैयार करती और फिर भारतीय इंवेस्टीगेशन एजेंसी को पाकिस्तान के उन क्षेत्रों का दौरा करने के लिए बुलाती जहां से आतंकी वारदातों को संचालित किया गया था.

पाकिस्तानी इंवेस्टीगेशन टीम भारत पहुंची. घटनास्थल के साथ-साथ उन इलाकों का दौरा किया जहां से आतंकी भारत की सरहद में दाखिल हुए थे. भारत की तरफ से उन्हें जांच का पूरा ब्यौरा जिसमें पाकिस्तान से आतंकियों के भेजे जाने का सबूत था सौंपा गया. लेकिन यह जांच टीम जैसे पाकिस्तान पहुंची वहां पूरे मामले को खारिज करने के लिए अलग-अलग बयान जारी होने लगे.

ज्वाइंट एजेंसी की रिपोर्ट पर सबसे पहले सोमवार को पाकिस्तानी मीडिया के हवाले से रिपोर्ट लीक होने की खबरें आई. इसमें दावा किया गया कि पठानकोट पर हमला पाकिस्तान को बदनाम करने के लिए भारत ने खुद कराया था. हालांकि बुधवार को पाकिस्तान विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान टुडे अखबार में छपी इस खबर का खंडन करते हुए कहा कि हमले की जांच को आगे बढ़ाने पर काम किया जा रहा है.

वहीं गुरुवार को भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने प्रेस कांफ्रेस करके दोनों देशों के बीच हुए उस करार को नकार दिया जिसमें पाकिस्तानी जांच दल के भारत दौरे के बाद भारतीय जांच दल का पाकिस्तान दौरा होना था. हालांकि बासित ने यह माना कि इस करार को हमले की तह तक जाने के लिए किया गया था. उच्चायुक्त अब्दुल बासित के इस दावे को भारतीय विदेश मंत्रालय की तरफ से बयान जारी कर झुटला दिया गया है और साफ कर दिया गया है कि 27 मार्च को पाकिस्तानी टीम के भारत आने से एक दिन पहले 26 मार्च को पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय को समझौते की लिखित सूचना दे दी गई थी कि भारतीय जांच दल बदले में पाकिस्तान की यात्रा करेगा.

गौरतलब है कि पाकिस्तानी उच्चायुक्त ने अपने प्रेस कांफ्रेस के दौरान यह भी कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच जारी शांती वार्ता को सस्पेंड कर दिया गया है. हालांकि शुक्रवार को उनके इस बयान को खारिज करते हुए पाकिस्तान उच्चायुक्त से नया बयान जारी किया गया कि दोनों देशों के बीच वार्ता जारी है. दरअसल पाकिस्तान से आई ज्वाइंट इंवेस्टिगेशन टीम में वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई के सदस्य भी शामिल किए गए थे. जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान में सत्ता के कई केन्द्र होने के कारण भारत आई जांच टीम और यहां से दी गई रिपोर्ट पर मतभेद स्वाभाविक था.

माना जा रहा है कि यदि इस जांच की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाता तो भारतीय जांच एजेंसी को पाकिस्तान दौरे का निमंत्रण दिया जाना था. इस स्थिति में भारतीय जांच दल आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी मसूद अजहर से मुलाकात करने की पेशकश करता और पाकिस्तान को यह मुलाकात करानी पड़ती. गौरतलब है कि 2 जनवरी को हुए पठानकोट हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते पाकिस्तान ने मसूद अजहर को नजरबंद कर दिया था और उसके ऑफिस पर छापा मारकर दस्तावेज बटोरने की कोशिश की थी. लिहाजा पाकिस्तान में नवाज शरीफ का नरेन्द्र मोदी के साथ ज्वाइंट इंवेस्टिगेशन कराने का फैसला न तो पाकिस्तान में सेना को पसंद आया और न ही खुफिया एजेंसी आईएसआई को. लेकिन द्विपक्षीय वार्ता के तहत हुए इस फैसले पर आगे बढ़ना पाकिस्तान की मजबूरी थी इसलिए वहां से आई टीम को आईएसआई से लैस करके भेजा गया था.

ऐसे में अब भले पाकिस्तान कुछ भी कहे, लेकिन इतना साफ है कि वह एक बार फिर भारत की तरफ से की गई ईमानदार कोशिश को विफल करने का कारण बन चुका है. अब इसे भले यह कहा जाए कि भारत सरकार ने पाकिस्तान की फितरत को जानते हुए भी उसपर भरोसा किया और मौका मिलते ही वह पीठ पर छूरा घोंप कर चला गया. लेकिन पाकिस्तान के इस रवैये से एक बात पूरी दुनिया के सामने फिर साफ हो चुकी है कि आतंकवाद के सफाए के लिए उसपर भरोसा नहीं किया जा सकता. जो देश ओसामा बिन लादेन को छिपाकर दुनिया के सबसे ताकतवर देश को धोखा दे सकता है वह भला भारत के खिलाफ आतंक के सरगना मसूद अजहर को कैसे बाहर आने देगा.

लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय