एक हत्या, जिसके लिए पूरा पाकिस्तान दोषी है!
एक सप्ताह बाद भी आज मैं मानसिक रूप से उसकी जघन्य हत्या के कारणों को समझने की कोशिश कर रही हूँ.
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मैं सबीन महमूद को नहीं जानती थी. पहली बार मैंने उसका नाम उसकी मौत के बाद किसी ट्वीट में देखा. 24 अप्रैल, 2015, को वो मारी गई. 5 गोलियां उसके चेहरे गर्दन और सीने में धंसा दी गईं. एक सप्ताह बाद भी आज मैं मानसिक रूप से उसकी जघन्य हत्या के कारणों को समझने की कोशिश कर रही हूँ. दो गोलियां उसकी माँ को भी लगीं. वो बच गईं लेकिन उन्होंने अपनी दुलारी और बहुत ही बहादुर बेटी को खो दिया.
हत्या की निंदा
यह एक सदमा है. शब्दहीन शोक, हत्या की निर्ममता से उपजा क्षोभ; और एक असहाय सी स्थिति है ये जानकार कि एक महिला सिर्फ इसलिए मार दी गई क्योंकि उसने उस डर को मानने के बजाय चुनौती दी थी जो डर उसकी दुनिया में व्याप्त है. सबीन महमूद उन लोगों की आवाज बन कुर्बान हो गईं जिनकी कोई आवाज नहीं थी.
सबीन की हत्या ने प्रतिक्रियाओं की झड़ी लगा दी है. पाकिस्तान समेत पूरी दुनिया में. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की हत्या से उस सीमा रेखा को रक्तरंजित करता है जो संवाद और उपद्रव, विवेक और अराजकता, बहस और विवाद को अलग करती है. हम जैसे कितने ही जो सबीन को नहीं जानते थे, पूरे पाकिस्तान में सब उसकी हत्या की स्पष्ट रूप से निंदा कर रहे हैं. और इस तरह के ज्यादातर मामलों में, जैसे अगर और मगर लाजिमी है. यही मानव स्वभाव है. और इस मामले में भी इस देश में ऐसे ही चलता है जहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और बेख़ौफ़ जीने पर इतना कुछ कहने को है. सबीन के शब्दों में, 'डर आपके मस्तिस्क में बस एक लाइन है'. मैं इस सुबह यह लिखते हुए चकित हूँ कि कैसे डर ही जबरदस्त कारण है, उनके लिए जिनका सबीन ने प्रतिनिधित्व किया, जिन्हे कि खामोश कर देना था. धमकियों ने उन पर असर नहीं किया. उन्हें खामोश कर दिया गया जब वो बोलीं. जब कहीं कोई कुछ बोल नहीं रहा था.
सबीन को किसने मारा? मेरे पास इसका जवाब नहीं है. क्या अपराधी किसी कट्टर संगठन के हैं जिनके अस्तित्व का मकसद ही धार्मिक शिक्षाओं को तोडना मरोड़ना है, 'अज़ाब' की 'अवज्ञा' का खतरा, या उनके खिलाफ फ़तवा जो 'पाप' की कल्पना करते हैं, या उन लोगों के लिए गोलियां जो बिना किसी मुल्ला मौलवी की हिदायतों के खुलकर साँस लेने की वकालत करते हैं. क्या अपराधी कोई सत्ता का भूखा चालबाज है जो अपराध के भय और शोषण की एक विकृत कथा के माध्यम से अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहता है, या अपराधी वो एजेंसियां हैं जिनका अधिकार असीमित है और जवाबदेही नगण्य, या अपराधी पाकिस्तान है जो अपने नागरिकों को मूलभूत अधिकार देने में विफल रहा है: जीवन की सुरक्षा.
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यहाँ कोई एक जवाब नहीं हो सकता है न ही सबीन के लिए कोई इंसाफ है, और जो भी उसकी ही तरह अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल करते हैं, और बाकियों की आवाज सुनते हैं. सबीन का 'सेकंड फ्लोर-T2F'- उसके अपने शब्दों में वह इनोवशंस पत्रिका, ऐसे लोगों का मंच था जिनके पास कहने को कुछ अलग है: 'मुझे आश्चर्य होगा अगर मैं भी एक छोटी सी पोस्ट मॉर्डन हिप्पी चौकी रच सकती, कलाकारों, गायकों, लेखकों, कवियों कार्यकर्ताओं और विचारकों के लिए- एक सुरक्षित जन्नत- खासकर जो भी शहर की निर्मम क्रूरता से भागकर थोड़ी देर के लिए आ सके'. इस तरह से T2F रहा, एक मंच. इस मंच को खत्म करना उन लोगों के लिए तो जैसे बेहद जरूरी हो गया, जो सोचते थे कि जोर से बोलना ही विद्रोह होता है. समाज की कुरीतियों की ओर इशारा करना ही हद पार करना मान लिया जाता है. और किसी भी 'उत्पीड़न' के खिलाफ खड़े होना अपराध बन जाता है. सवाल ढेरों हैं, लेकिन जवाब यह बताने में विफल हैं कि पाकिस्तान सिरका 2015 पर एक बहस या तर्क-वितर्क कितना खौफनाक हो सकता है.
सबीन का काम मुझे निजीतौर पर बेहद पसंद आया. उसने जो भी किया, मैं खुद को उससे जुड़ा हुआ महसूस करती हूं. ऐसी किसी लड़ाई में वो आगे नहीं बढ़ी जिससे मैं भाग जाती. ऐसी कोई वजह नहीं जिसके लिए उसने आवाज उठाई और मैं न उठाती.
लेकिन सबीन और उसके काम को बिना जाने हुए, एक यह अंतर उसे मुझसे और मेरे जैसे दुसरे लोगों, जो किसी की पीड़ा समझ सकते हैं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विरोध करने वालों वालों से अलग करता है कि सबीन ने वो किया जो वह कहती रही. सबीन उठ खड़ी हुई उन आन्दोलनों के लिए, जिसमें वह यकीन करती थी और उसने उन लोगो को मंच मुहैया करवाया जो अपनी ही धरती पर अलग थलग पड़ गए थे. सबीन मेरे लिए आदर्श हैं. सबीन ने विचारों, भावनाओं, और नजरियों को शब्दों नारों और लड़ाई में बदल दिया.
चरमपंथ
अपनी मौत से सबीन ने भानुमति का पिटारा खोल दिया है. पिटारा असहज वास्तविकताओं के असहज सत्य का. यह समय है गहरे आत्मनिरीक्षण का. आप वेलेंटाइन डे पर प्यार का जश्न मनाने के लिए लोगों के अधिकार के लिए लड़ते हैं, तो आप अपने समाज की परंपराओं के लिए नफरत नहीं फैला रहे होते.
जब आप मुल्लों के एक वर्ग के अतिवादी आख्यान के खिलाफ प्रदर्शन करते हैं तो आप धर्म के प्रति विश्वास और उसके ताकत के खिलाफ नहीं जा रहे होते. जब आप तथाकथिक बलूचिस्तान के 'असंतुष्टों' के खिलाफ हुए सुरक्षा एजेंसियों की अति के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे होते हैं तो आप पाकिस्तान विरोधी या पाकिस्तान विभाजन के विचार को समर्थन नहीं देते. और जब आप T2F में डिबेट करवा मामा क़दीर जैसे लंबे समय से पीड़ित पाकिस्तानियों के लिए एक मंच देने का काम करते हैं तो आप पाकिस्तान के खिलाफ देशद्रोह को बढ़ावा नहीं दे रहे होते.
आप बस लोगों को अपनी बात रखने का मौका दे रहे हैं. आप बस यही कर रहे हैं कि लोग सुने जाएँ. जिस देश को आप घर कहते हैं उसके खिलाफ कोई दोषारोपण नहीं है. किसी युद्ध की कोई घोषणा नहीं है. वहाँ अपनी और दूसरों के दुविधाओं, अपने दर्द की अभिव्यक्ति के लिए एक मंच है बस, और उन दुविधाओं को ख़त्म करने की कोशिश है जिसकी परिणति दर्द के रूप में होती है.

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