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Updated: 26 जुलाई, 2018 09:59 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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इमरान खान, बिलावल अली जरदारी, नवाज शरीफ, मरियम नवाज, हाफ़िज़ सईद, मौलाना खादिम हुसैन रिज़वी ये वो नाम हैं जो आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है. पाकिस्तान चुनाव के अंतर्गत इन लोगों ने खूब सुर्खियां बटोरी. जिस वक़्त ये सभी लोग पाकिस्तान की सियासत में सियासी घमासान मचा रहे थे. एक और नाम था जो पाकिस्तान के सियासी गलियारों में लोगों की जुबान पर था और लगातार चर्चा का विषय बना हुआ था. हम बात कर रहे हैं मोहम्मद जिब्रान नासिर की. जिब्रान ने पाकिस्तान के कराची से दो महत्वपूर्ण जीतों NA-247 और PS-11 से बतौर निर्दलीय उम्मीदवार नामांकन किया था. जिब्रान चुनाव जीते हैं या नहीं इसकी ठीक ठीक जानकारी नहीं है मगर जिस तरह और जिस विचारधारा पर रहकर इन्होंने चुनाव लड़ा कहना गलत नहीं है कि जिब्रान पाकिस्तान के लोगों के लिए उमस भरी गर्मी में बारिश की ठंडी बूंद हैं.

मोहम्मद जिब्रान नासिर, पाकिस्तान, पाकिस्तान चुनाव, कट्टरपंथ   जिब्रान पाकिस्तान के उन गिने चुने उम्मीदवारों में हैं जिन्होंने कट्टरपंथ से मोर्चा लिया

कौन हैं जिब्रान नासिर

पाकिस्तान चुनाव के अंतर्गत सोशल मीडिया पर लगातार लोकप्रिय हो रहे जिब्रान नासिर पेशे से मानवाधिकार कार्यकर्ता और एक वकील हैं. अपने चाहने वालों के बीच जिब्रान प्रोग्रेसिव छवि रखते हैं. जिब्रान के बारे में ये भी  माना जाता है कि ये सेक्युलर विचारधारा के हैं जिनका उद्देश्य पाकिस्तान को कट्टरपंथ और मुल्ले मोलवियों से मुक्त कराना है.

आसान नहीं रहा है जिब्रान के लिए ये चुनावी सफर

जिब्रान पाकिस्तान से चुनाव लड़ रहे थे और जैसा कि लाजमी था जिब्रान के लिए भी ये चुनाव आसान नहीं था. जिब्रान के इलेक्शन कैम्प को तहरीक-ए-लब्बैक के समर्थकों के गुस्से का शिकार होना पड़ा. आपको बताते चलें कि जिब्रान ने दिल्ली कॉलोनी,चंदियो गांव, डिफेन्स और हिजरत कॉलोनी में अपने प्रचार प्रसार के लिए कैम्प लगाए थे जिसे तहरीक-ए-लब्बैक के समर्थकों द्वारा नष्ट कर दिया गया. इस सम्बन्ध में नासिर ने अपने फेसबुक पेज पर घटना से जुड़े कुछ वीडियो भी डाले थे और इस विषय पर पाकिस्तान के इलेक्शन कमीशन से शिकायत भी की थी.

मोहम्मद जिब्रान नासिर, पाकिस्तान, पाकिस्तान चुनाव, कट्टरपंथ   पाकिस्तान एक मुश्किल दौर से गुजर रहा है और उसे जिब्रान जैसे लोग ही आगे ले जा सकते हैं

आखिर क्यों हुआ जिब्रान के साथ ये सुलूक

जैसा कि हम पता चुके हैं जिब्रान पेशे से मानवाधिकार कार्यकर्ता और एक वकील हैं. पाकिस्तान के इस चुनाव में उनकी छवि और उनका सेक्युलर होना इनके लिए एक बड़ी मुसीबत साबित हुआ है. ध्यान रहे कि जिब्रान जिस जगह से चुनाव लड़ रहे थे उसे तहरीक ए लब्बैक का गढ़ माना जाता है. तहरीक ए लब्बैक के लोगों को जिब्रान की ये बात भी बहुत बुरी लगी कि अपनी रैलियों में इन्होंने अपने "धर्म" का वर्णन नहीं किया है. जिस वक़्त जिब्रान अपना प्रचार कर रहे थे उनसे पूछा गया था कि इनका धर्म क्या है.

इसके अलावा जिब्रान के साथ ये सुलूक इस लिए भी हुआ क्योंकि उन्होंने अपनी रैलियों में कट्टरपंथियों पर ये आरोप लगाया था कि इन्हीं लोगों के चलते पाकिस्तान लगातार पिछड़ रहा है और गर्त के अंधेरों में जा रहा है. ज्ञात हो कि अपनी रैलियों के दौरान कई मौके ऐसे आए थे कि जब जिब्रान ने ये कहा था कि उनकी लड़ाई चुनाव में जीत हार से कहीं ऊपर है. वो एक ऐसा पाकिस्तान देखना चाहते हैं जहां आवाम शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य जैसी चीजों पर बात करे.

जिब्रान से हुआ बर्ताव पाकिस्तान का असली चेहरा है

अपनी रैलियों में जिब्रान ने उन मुद्दों को उठाया जो किसी राष्ट्र को बेहतर बनाते हैं और उसे आगे ले जाते हैं. इसके विपरीत जिन्होंने जिब्रान के प्रोग्रेसिव विचारों का विरोध किया वो ये चाहते हैं कि पाकिस्तान यूं ही इस्लाम के नाम पर कट्टरपंथ की जलता रहे और लगातार पीछे होता जाए. विकसित और विस्तृत सोच रखने वाले एक उम्मीदवार पर कट्टरपंथियों के हमले ये साफ कर देते हैं कि वो लोग जिब्रान के मुकाबले पाकिस्तान को कहां ले जाने की इच्छा रखते हैं.

आपको बताते चलें कि शायद ये जिब्रान के प्रोग्रेसिव और सेक्युलर विचारों का विरोध ही है जिसके चलते इनपर ईशनिंदा के आरोप लगे हैं और इनपर कादियानी और अहमदी होने का आरोप लगाया गया है. जिब्रान के बारे में ये भी दिलचस्प है कि तहरीक के लोग इनकी फांसी की मांग कर रहे हैं. पूरे चुनाव में जिब्रान के साथ जिस तरह का व्यवहार किया गया कहना गलत नहीं है कि यही पाकिस्तान जैसे देश का असली चेहरा है जो उसके विश्व पटल पर लगातार पिछड़ने की एक बड़ी वजह है.

पाकिस्तान में कब से लोकप्रिय हुए हैं जिब्रान

जिस तरह पाकिस्तान में एक ठीक ठाक संख्या द्वारा जिब्रान को हाथों हाथ लिया जा रहा है एक सवाल उठता है कि आखिर ये शख्स कब से पाकिस्तान की सियासत में लोकप्रिय हुआ तो आपको बता दें कि 2014 में जिब्रान उस वक्त आम पाकिस्तानी आवाम और कट्टरपंथियों की नजरों में चढ़े थे जब इन्होंने इस्लामाबाद की लाल मस्जिद के खिलाफ प्रोटेस्ट किया था. जिब्रान ने मुद्दा उठाया था कि इसी जगह से आतंकवादियों का नेटवर्क चलता है और इस पूरे  नेटवर्क के तार अफगानिस्तान के उन हिस्सों से जुड़े हैं जो आतंकवाद के गढ़ के रूप में मशहूर हैं. जिस समय लाल मस्जिद के खिलाफ जिब्रान ने अपनी मुहीम छेड़ रखी थी उस वक़्त उनके पास धमकी भरे फोन कॉल आना एक आम बात थी जिसमें कई बार उन्हें "देख लेने" और जान से मारने तक की धमकी मिली थी.

बहरहाल, हम में से एक के नारे के साथ पाकिस्तान के चुनावी रण में उतरे जिब्रान को देखकर एक बात तो साफ है कि ये अंधेरे में डूबते पाकिस्तान जैसे देश के लिए उम्मीद की वो किरण हैं जिसपर अगर पाकिस्तान की आवाम ने भरोसा कर लिया और अपना समर्थन दे दिया तो निश्चित तौर पर ये पाकिस्तान को बहुत ऊंचे मुकाम पर ले जा सकते हैं. जिब्रान और इनके जैसे और मुट्ठी भर लोग पाकिस्तान जैसे देश में एक ऐसी राजनीति कर रहे हैं जो न सिर्फ मुश्किल है बल्कि नामुमकिन है.

जिब्रान के साथ जिस तरह लोग आए हैं और अपनी रैलियों में उन्हें जिस तरह का प्यार मिल रहा है वो अपने आप इस बात को बता देता है कि पाकिस्तान के आम लोग अमन, शांति, सुकून की चाह रखते हैं. वो पाकिस्तान को उस मुकाम पर देखना चाहते हैं जहां आतंकवाद, अशिक्षा, हिंसा जैसी चीजों का नामोनिशान न रहे और ये देश शांति के साथ आगे बढ़ता रहे.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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