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Updated: 27 नवम्बर, 2019 10:02 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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आये रोज किसी न किसी वजह से सुर्ख़ियों में रहने वाला पाकिस्तान (Pakistan) फिर चर्चा में है. कारण बने हैं सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा (Pak army chief Qamar Javed Bajwa). ज्ञात हो कि एक आम पाकिस्तानी नागरिक ने पाकिस्तान के सबसे ताकतवर व्यक्ति के रूप में मशहूर बाजवा के साथ वो किया, जिसके बाद बाजवा कहीं के नहीं बचे. बाजवा को अर्श से फर्श पर पटकने वाले जिस व्यक्ति की बात हम कर रहे हैं उसका नाम है रियाज राही (Who is Riaz Rahi). रियाज ही बाजवा का मामला लेकर अदालत की क्षरण में गए थे और उसके बाद जो हुआ वो हमारे सामने है. नौबत कुछ यूं है कि पाकिस्तान में बाजवा तो संकट में हैं ही. इमरान खान (Imran Khan) की भी स्थिति आया राम गया राम जैसी हो रही है. आपको बताते चलें कि हाल के वर्षों में पाकिस्तान में एक पैटर्न उभरा है. जिसमें एक साधारण सा व्यक्ति ज्वलंत राजनीतिक या संवैधानिक मुद्दे पर शीर्ष अदालतों में याचिका दायर करता है, जिसके बाद मुद्दे को लेकर बहस शुरू होती है और फिर वो व्यक्ति न्यायिक सक्रियता के डर से गायब हो जाता है. ऐसा ही कुछ बीते दिन तब देखने को मिला जब बाजवा के कार्यकाल को विस्तार देने का मामला पाकिस्तान की शीर्ष अदालत में उठा.

क़मर जावेद बाजवा, पाकिस्तान, सेना, सुप्रीम कोर्ट, Qamar Javed Bajwaआर्मी चीफ जनरल बाजवा का कार्यकाल 3 साल बढ़वाकर इमरान खान ने अपनी भी मुश्किलें आसान की हैं

रियाज राही, वो याचिकाकर्ता जिसने ये पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट में उठाया था. या ये कहें कि जिसने बाजवा के कार्यकाल को कोर्ट में चुनौती दी थी. अपना प्रस्ताव वापस लेना चाहता था. हालांकि, शीर्ष न्यायाधीश, चीफ जस्टिस आसिफ सईद खोसा ने, संविधान के अनुच्छेद 184 (3) को आधार बनाकर याचिका को खारिज कर दिया. राही की याचिका को सू-मोटो में बदल दिया गया था, और सीओएएस के विस्तार की अधिसूचना को निलंबित कर दिया गया था.

जब ये पता चला कि ये याचिका रियाज़ राही ने डाली है, लोगों को हैरत नहीं हुई. रियाज का शुमार पाकिस्तान के उन लोगों में है जो आए रोज ही किसी बड़े मुद्दे को लेकर कोर्ट जाते हैं और याचिका डालते हैं. ध्यान रहे बीते कुछ वर्षों में रियाज़ ने टॉप कोर्ट में कई याचिकाएं डाली हैं. ये याचिकाएं या तो राजनीतिक या संवैधानिक मुद्दे पर डाली गई हैं और इनके जरिये तमाम तरह के जरूरी सवाल हुए हैं.बात भाजवा की चली है तो बताना जरूरी है कि सेना प्रमुख के खिलाफ याचिका का समय और आधार बहुत महत्वपूर्ण था. ऐसा इसलिए क्योंकि जनरल क़मर जावेद बाजवा को 28 नवंबर को सेवानिवृत्त होना है. इस मामले में अगर फैसला सही समय पर नहीं आता तो कर्याकला बाजवा मामले में अदालत के फैसले को प्रभावित करेगा.

रियाज़ पाकिस्तान के शीर्ष अधिकारियों के लिए कैसे एक बड़ी मुसीबत है? इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि अप्रैल 2018 में, रियाज़ राही ने न्यायमूर्ति काज़ी फ़ैज़ ईसा की पाकिस्तान सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्ति को भी चुनौती दी थी. याचिका एक न्यायविद की विश्वसनीयता को कम करने के प्रयास की तरह लग रही थी, जो पाकिस्तान के न्यायविदों के बीच एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं.

मार्च 2018 में, रियाज राही ने पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के खिलाफ दो अवमानना याचिका दायर की थी. बताया जाता है कि दिसंबर 2013 में, इस्लामाबाद उच्च न्यायालय ने पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ के मुकदमे के लिए विशेष अदालत के गठन को चुनौती देने वाली उनकी याचिका को खारिज कर दिया था.

जुलाई 2017 में, रियाज राही ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के निर्देश पर सभी लोक सेवकों के तबादलों और पोस्टिंग पर रोक लगाने के लिए एक याचिका दायर की थी, जब तक कि शीर्ष अदालत में शरीफ से संबंधित पनामा मामले की अंतिम फैसला नहीं सुनाया गया था. यूं तो रियाज की याचिकाओं के कई मामले हैं मगर हमें इस बात का भी ख्याल रखना होगा कि राही की ज्यादातर याचिकाओं को खारिज कर दिया गया. जस्टिस फैज़ ईसा मामले में 13 अगस्त 2015 को राही पर 10,000 रुपए का जुरमाना भी लगा.

बात रियाज राही पर चल रहे जुर्माने की चल रही है तो बता दें कि इस्लामाबाद हाई कोर्ट के जज शौकत सिद्दीकी ने रियाज राही पर 2014 में 1लाख रुपए का जुर्माना लगाया था. इस घटना के कुछ महीनों बाद जस्टि अतहर मिनल्लाह जो इस्लामाबाद हाई कोर्ट से ताल्लुख रखते थे उन्होंने भी राही पर 10,000 रुपए का जुर्माना लगाया था. राही ने पाकिस्तान में न्यायिक नीति और चुनावी प्रणाली को चुनौती देने वाली फ़र्ज़ी याचिका दायर की थी.

राही की याचिकाएं पाकिस्तानी हुक्मरानों को कितना बेचैन करती हैं इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि उन्हें पनी याचिकाओं के लिए जुर्माने के अलावा जेल तक जाना पड़ा है. लाहौर हाई कोर्ट के जज शेख हाकिम अली ने रियाज राही को अदालत की अवमानना के लिए एक महीने की जेल की सजा सुनाई थी और 2005 में उन पर 30,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया था. बताया जाता है कि तब उसने अपने मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीश के साथ दुर्व्यवहार किया था.

मार्च 2010 में, रियाज राही ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार मुहम्मद चौधरी और जस्टिस गुलाम रब्बानी और खलीलुर रहमान रामडे की बहाली और नियुक्ति को चुनौती दी थी, लेकिन बाद में एससी परिसर में उनके प्रवेश को अस्थायी रूप से रोक दिया गया था.

बाजवा का भविष्य क्या होगा? उनका कार्यकाल बढ़ता है या नहीं बढ़ता है? क्या उनको अदालत से राहत मिल पाएगी? इन सब सवालों के जवाब वक़्त देगा. लेकिन जो वर्तमान है उसने बता दिया है कि बाजवा की मुसीबत का कारण एक आम आदमी है जिसने अब बाजवा को कहीं का नहीं छोड़ा है. आम आदमी के रूप में बजवा मामले को कोर्ट तक ले जाने वाले रियाज राही ने बता दिया है कि यूं तो आम आदमी कमजोर है मगर जब वो अपनी पर आता है तो अपने मजबूत इरादों की बदौलत राजा को रंक बनाने की काबिलियत रखता है.  

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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