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Updated: 26 मार्च, 2015 10:18 AM
सुधांशु मित्तल
सुधांशु मित्तल
  @sudhanshu.mittal.14
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सप्ताह के दौरान हमने दिल्ली विधानसभा चुनाव के ओपीनियन पोल की शक्ल में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. जो लोग चुनावी राजनीति समझते हैं वो अच्छी तरह जानते हैं कि अरविंद केजरीवाल को सर्वे में सिर्फ इसलिए फायदा मिला, क्योंकि लोगों को सबसे ताजा पिछली सरकार याद रहती है. इसीलिए अधिकतर पिछली सरकार का मुख्यमंत्री सर्वे में एक पंसदीदा चेहरे के रूप में उभर के आता है.

ज़रूरी नहीं कि उस नेता के लिए समर्थन बहुत बढ़ गया है. यह भ्रामक भी हो सकता है. कांग्रेस की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित इसका उदाहरण हैं. जो दिल्ली के पिछले विधानसभा चुनाव में लोकप्रियता की रेस में सबसे आगे चल रहीं थी. पर हम सभी जानते हैं कि उनकी पार्टी को किस तरह से ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा और वो खुद भी बुरी तरह से चुनाव हार गईं. इससे यह साबित होता है कि केजरीवाल को अन्य नेताओं की तुलना में मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे आगे बताया जा रहा है. वह पूरा सच नहीं है. पिछले कुछ दिनों में हमने ओपीनियन पोल के चुनाव नतीजों में उतार-चढ़ाव होते भी देखे हैं. कई ओपीनियन पोल के नतीजों ने बीजेपी को आगे बताया है और पार्टी की सरकार बनने की बात भी कही है.

दिल्ली में चुनावी सर्वे की कोई भी चर्चा AAP के अजीब सर्वे का उल्लेख किए बिना पूरी नहीं हो सकती. यह पार्टी खुद अपना मजाक उड़ा रही है और हर ऐसे चुनावी सर्वे के साथ यह अपनी कुछ विश्वसनीयता खो देती है. पिछले चुनाव में AAP ने दावा किया था कि उसे 47 सीटें मिलेंगी लेकिन मिली केवल 28. लोकसभा चुनाव में भी इस पार्टी ने बड़ी संख्या का ऐलान किया था. जब नतीजे आए तो आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों ने जमानत जब्त हो जाने का नया वर्ल्ड रिकार्ड बनाया.

ज़बरदस्त झूठ का ढोंग करते हुए AAP इस चुनाव में भी अपने हिसाब से अपनी जीत की भविष्यवाणी कर रही है. नतीजे चाहें जो भी हों लेकिन ये साफ है कि इनका सर्वे विश्वास करने के लायक नहीं हैं.दुखद यह है कि AAP चुनावी राजनीति के विज्ञान को खराब कर रही है, जो कि आम लोगों, खास लोगों और सरकारी तंत्र के लिए बहुत उपयोगी है. केजरीवाल और उनका 'बेवजह बागियों का बैण्ड' दिल्ली में सत्ता पाने के लिए हर संस्था, परंपरा, और जानकारी का (दुर)उपयोग करने पर तुला है.

जिस तरह आप ने राजनीतिक विज्ञान का (दुर)उपयोग इसे अपने चुनाव अभियान में टूल की तरह किया है, इसका असर लंबे समय तक होगा. AAP के इस घालमेल से इलेक्ट्रानिक मीडिया का एक बड़ा वर्ग भी प्रभावित हुआ है, जिसे इसका एहसास बाद में होगा. कल्पना कीजिए जब भारत के राजनीतिक दल खुद अपने चुनावी सर्वे छापेंगे और खुद को विजयी बता देंगे. और ये सब इसलिए होगा क्योंकि कोई 'आम आदमी' की आड़ में सत्ता हासिल करना चाहता है.

लेखक

सुधांशु मित्तल सुधांशु मित्तल @sudhanshu.mittal.14

लेखक बीजेपी के वरिष्ठ नेता हैं.

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