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Updated: 06 जून, 2018 11:27 AM
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सेना का एक ऐसा ऑपरेशन था जिसने देश के सियासी मिजाज को भी बदल कर रखा दिया. इस ऑपरेशन का खामियाजा भारत की ताकतवर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अपनी जान देकर भुगतना पड़ा. खालिस्तान का सपना देखने वाले सिख समुदाय के लोग आज भी इस ऑपरेशन को भूले नहीं हैं. सेना की कार्रवाई के वो चार दिन लोगों के रोंगटे खड़े कर देते हैं. कुछ चश्मदीद उस घटना के बारे में तारीख दर तारीख बताते हैं. अकाल तख्त के पूर्व ग्रंथी जोगिंदर सिंह वेदांती उनमें से एक हैं. उनका घर स्वर्ण मंदिर परिसर के भीतर ही था. वे और उनके जैसे कई लोग सेना की कार्रवाई और उग्रवादियों के जवाबी हमले का गवाह बने. जानिए आप भी इतिहास के खौफनाक पलों को-

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 तीन जून की दोपहर सेवादारों ने सेना पर पथराव किया और तनाव बढ़ गया

3 जून 1984: झड़प के बाद कर्फ्यू लगाया

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर को खालिस्तान समर्थकों से मुक्त कराने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार के आदेश दिए थे. इसी दिन स्वर्ण मंदिर के आसपास तैनात केंद्रीय रिजर्व फोर्स के जवानों से शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के कुछ सेवादारों की झड़प हुई थी. इसके बाद तनाव काफी बढ़ गया था. पूरा दिन सेवादारों और अर्धसैनिक बलों के बीच तना-तनी चलती रही. शाम तक पूरे इलाके में कर्फ्यू लगा दिया गया था. पैरा-मिलिट्री फोर्स ने हालात काबू में रखने के लिए फ्लैग मार्च भी किया था.

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 आस-पास के घरो की छत से सेना स्वर्ण मंदिर परिसर में उग्रवादियों पर फायरिंग शुरू की

04 जून 1984: पहले गोला तड़के चार बजे गिरा

मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की भीड़ जमा होने लगी थी. 5 जून को गुरु अर्जुन देव का शहीदी दिवस मनाया जाना था. लेकिन सेना स्वर्ण मंदिर को मुक्त कराना चाहती थी. इसके लिए व्यापक योजना पर काम शुरू हो चुका था. मंदिर परिसर में श्रृद्धालुओं समेत तकरीबन पांच हजार लोग जमा हो चुके थे. भाई अमरीक सिंह कीर्तन कर रहे थे. सुबह लगभग चार बजे अकाल तख़्त के पास सिंधियों की धर्मशाला पर बम से हमला किया गया. वहां मौजूद श्रद्धालु सहम गए. अफरा-तफरी के बीच लोग बाहर निकलने लगे. शाम होते-होते दोनो तरफ से गोलियां चलने लगीं. परिसर में सिख लड़ाकों ने मोर्चाबंदी कर ली थी. उस वक्त मंदिर परिसर के साथ कई इमारतें जुड़ी हुई थीं और आसपास के सभी मकानों पर सेना के जवानों ने पोज़िशन ले रखी थी. इन मकानों की छतों पर मशीनगनें लगाई गई थीं.

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 भीषण गोलाबारी के बीच सेना के कमांडो स्वर्ण मंदिर परिसर में दाखिल हुए

05 जून 1984: बीस जवान शहीद, स्वर्ण मंदिर में टैंक घुसे

पांच तारीख को दिन भर दोनों ओर से गोलीबारी होती रही. शाम होते ही कमांडिंग ऑफिसर मेजर जनरल कुलदीप सिंह बरार ने कमांडो दस्ते को स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करने का आदेश दिया. लेकिन सिख आतंकियों ने उन पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी. इस जवाबी हमले में सेना के 20 से अधिक जवान शहीद हो गए. मजबूरी में सेना को टैंक और बख़्तरबंद गाड़ियों का इस्तेमाल करना पड़ा. परिसर के बीच टैंक आ गए. चश्मदीदों ने चार टैंक वहां देखे. सिख लड़ाकों ने एक टैंक पर रॉकेट से हमला किया. रातभर भीषण गोलाबारी हुई.  

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 भिंडरावाले सहित प्रमुख उग्रवादियों के मारे जाने की खबर जैसे ही फैली परिसर में मौजूद उनके समर्थकों ने सेना के समक्ष समर्पण किया

06 जून 1984: पूरे परिसर में सिर्फ खून ही खून

सुबह हुए जोरदार धमाके में अकाल तख्त को काफी नुकसान हुआ. सुबह आठ बजे तक सेना पूरी तरह स्वर्ण मंदिर परिसर में दाख़िल हो गई थी. सेना ने एक-एक कमरे में बम फेंके और वहां मौजूद लोगों को बाहर निकालने की कोशिश की, कई लोग इस कार्रवाई में मारे गए और कई जगह आग लग गई. अकाल तख़्त में जरनैल सिंह के साथ सेवादार, हेड ग्रंथी प्रीतम सिंह समेत लगभग 40 लोग थे. बाक़ी सभी लोग अकाल तख़्त से मौका मिलते ही बाहर चले गए थे. वहां मौजूद इन लोगों का सेना के साथ सीधा टकराव हुआ. इस टकराव में जरनैल सिंह भिंडरांवाले, उसका सहयोगी जनरल शाहबेग सिंह और उसके लगभग सभी साथी मारे गए. शाम पांच बजे तक गोलाबारी पूरी तरह बंद हो गई थी.

इसके बाद करीब 200 सिख आतंकियों ने समर्पण किया था. इस दौरान 492 लोगों की जान गई. जिसमें सेना के चार अफसरों सहित 83 जवान शहीद हुए थे. यह आधिकारिक आंकड़ा है. हालांकि बताया जाता है कि ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान 5000 से अधिक लोग मारे गए थे.

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