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Updated: 12 फरवरी, 2022 10:50 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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ओमप्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) कहने को तो माफिया डॉन मुख्तार अंसारी को भी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का टिकट देकर चुनाव लड़ा रहे हैं, लेकिन नौबत ये आ चुकी है कि उनकी खुद की जहूराबाद विधानसभा सीट (Zahoorabad Assembly Seat) पर मामला फंसा हुआ नजर आने लगा है.

जहूराबाद सीट से, दरअसल, सैयदा शादाब फातिमा समाजवादी पार्टी में टिकट की दावेदार थीं, लेकिन मौजूदा विधायक होने के नाते गठबंधन में ये सीट ओमप्रकाश राजभर के हिस्से में आ गयी थी - लिहाजा शादाब फातिमा के पास निर्दलीय चुनाव लड़ने के अलावा कोई चारा न बचा था.

2012 में अखिलेश यादव सरकार में मंत्री रहीं शादाब फातिमा (Syeda Shadab Fatima) ने ऐलान भी कर दिया था कि वो निर्दलीय ही चुनाव लड़ेंगी - स्थानीय स्तर पर लोगों का सपोर्ट भी काफी मिल रहा था. असल में, गाजीपुर सांसद मनोज सिन्हा की तरह ही शादाब फातिमा को भी लोग मानते हैं कि उन्होंने इलाके में काफी काम कराया है - लेकिन गाजीपुर में काम बोलता हो, जरूरी भी नहीं क्योंकि मनोज सिन्हा बीएसपी के अफजाल अंसारी से चुनाव हार गये थे.

और शादाब फातिमा के लिए मदद के हाथ बीएसपी की तरफ से ही बढ़ाये गये हैं. समाजवादी पार्टी पर पहले से ही हमलावर मायावती, निश्चित तौर पर ओमप्रकाश राजभर से भी नाराज होंगी ही - और शादाब फातिमा को टिकट देने के पीछे वो नाराजगी भी वजह जरूर रही होगी.

बीएसपी के टिकट पर ही मऊ से विधायक बने मुख्तार अंसारी का टिकट मायावती ने ये कहते हुए पहले ही काट दिया था कि बीएसपी आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को उम्मीदवार नहीं बनाएगी. मायावती की तरफ से फिर से मूर्तियां न बनवाने जैसे भूल सुधार के उपायों में से ये भी एक बताया गया था. हालांकि, ये नियम भगवान परशुराम की मूर्ति पर लागू नहीं होगा क्योंकि 2007 की तरह ही मायावती फिर से ब्राह्मण-दलित गठजोड़ के साथ सत्ता में वापसी का दावा कर रही हैं.

चुनाव के पहले से ही शादाब फातिमा को के पक्ष में बने माहौल और ओमप्रकाश राजभर से नाराजगी चुनाव में उन पर भारी पड़ सकती है - क्योंकि निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर भी शादाब फातिमा के प्रति लोगों का समर्थन महसूस किया जा रहा था, अब तो वो बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं.

जहूराबाद की जंग और राजभर की मुश्किल

जहूराबाद विधानसभा सीट पर ज्यादातर समाजवादी पार्टी और बीएसपी की टक्‍कर होती आई है, लेकिन 2017 में ओमप्रकाश राजभर ने बाजी मार ली थी - ये तब की बात है जब शादाब फातिमा मैदान में नहीं थीं.

om prakash rajbhar, syeda shadab fatimaओमप्रकाश राजभर खुद तो फंसे ही, अखिलेश यादव को भी बुरी तरह फंसा दिये

ओमप्रकाश राजभर 2017 के चुनाव में जहूराबाद सीट से विधानसभा पहुंचे थे - और एक बार फिर वहीं से चुनाव मैदान में उतरे हैं. जहूराबाद क्षेत्र का ज्यादातर इलाका गाजीपुर जिले में है, लेकिन वो बलिया संसदीय सीट का हिस्सा है. ओप्रकाश राजभर ने अपने बेटे अरविंद राजभर को वाराणसी के शिवपुर विधानसभा क्षेत्र से अपनी पार्टी का उम्मीदवार बनाया है.

शादाब फातिमा फिर मैदान में: 2007 में गाजीपुर सदर से विधायक बन कर चुनावी राजनीति में आयीं सैयदा शादाब फातिमा को शिवपाल सिंह यादव का करीबी माना जाता है - और 2017 के चुनाव में उनको इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी थी.

2012 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरीं शादाब फातिमा के सामने मुकाबले में ओम प्रकाश राजभर भी थे, लेकिन नतीजे आये तो मालूम हुआ वो तीसरे स्थान पर पहुंच गये थे.

तब शादाब फातिमा ने बीएसपी उम्मीदवार कालीचरण राजभर को शिकस्त दी थी. शादाब फातिमा को 67, 012 वोट मिले थे, जबकि कालीचरण राजभर को 56, 534 वोट - अपनी पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के उम्मीदवार के रूप में ओमप्रकाश राजभर 48, 865 ही वोट जुटा सके थे.

जब यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी तो अखिलेश यादव ने शादाब फातिमा को बाल स्वास्थ्य और महिला कल्याण मंत्री बनाया था, लेकिन अगला चुनाव आते आते समाजवादी पार्टी में हुए झगड़े का वो भी शिकार हो गयीं.

शिवपाल यादव से झगड़े के चलते अखिलेश यादव ने शादाब फातिमा का भी टिकट काट दिया था. 2017 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर महेंद्र चौहान चुनाव लड़े लेकिन मोदी लहर में बीजेपी गठबंधन के उम्मीदवार ओमप्रकाश राजभर से वो हार गये. इस बीच जहूराबाद से दो बार बीएसपी विधायक रहे कालीचरण राजभर बीजेपी ज्वाइन कर चुके हैं.

शादाब फातिमा को समाजवादी पार्टी का टिकट न मिल पाने इस बार दो वजह बन गयीं. एक तो अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल यादव को 100 सीटों की डिमांड के बावजूद एक ही सीट दी है, जिस पर वो खुद उम्मीदवार हैं. दूसरी वजह ये रही कि मौजूदा विधायक होने के चलते ओमप्रकाश राजभर ने दावेदारी नहीं छोड़ी. पहले सुना गया था कि वो अपने बेटे को उतार सकते हैं, लेकिन फिर खुद ही चुनाव लड़ने का फैसला किया.

ओमप्रकाश राजभर से गहरी नाराजगी: ओमप्रकाश राजभर की मुश्किल ये है कि उनके खिलाफ इलाके में जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर है - और लोग शादाब फातिमा को उनकी तुलना में बेहतर मान कर चल रहे हैं.

मंत्री तो योगी सरकार में ओमप्रकाश राजभर भी बने थे, लेकिन 2019 का आम चुनाव आते आते बीजेपी से उनके रिश्ते काफी खराब हो गये थे. आपको याद होगा आम चुनाव से पहले बीजेपी नेता अमित शाह संपर्क फॉर समर्थन अभियान पर निकले थे - वो अनुप्रिया पटेल से मिलने उनके घर मिर्जापुर तक गये, लेकिन ओमप्रकाश राजभर को घास तक नहीं डाली.

बीजेपी और योगी आदित्यनाथ ने के खिलाफ ओमप्रकाश राजभर बयानबाजी तो करते ही रहे, करीब तीन दर्जन सीटों पर बीजेपी के खिलाफ अपने उम्मीदवार भी खड़े कर दिये थे - लेकिन जैसे ही चुनाव के आखिरी दौर की वोटिंग खत्म हुई, नतीजे आने से पहले ही योगी आदित्यनाथ ने 20 मई, 2019 को ओमप्रकाश राजभर को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया.

इलाके के लोगों में नाराजगी इसी बात को लेकर है कि राजभर ने पूरे पांच साल बयानबाजी और बीजेपी से लड़ाई में ही गुजार दिये, लेकिन इलाके की तरफ मुड़ कर देखा तक नहीं. ऐसे में वे लोग शादाब फातिमा की तरफ उम्मीदों भरी नजर से देख रहे हैं.

आलम तो ये है कि इलाके में ऐसा लग रहा है जैसे राजभर के समर्थक रहे कुछ लोग उनको इस बार हराने की ही मुहिम चला रहे हों - और वे ही लोग शादाब फातिमा के साथ निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर भी खड़े नजर आ रहे हैं - लेकिन ऐसा भी नहीं बीजेपी सबको वॉकओवर देने के मूड में है.

बीजेपी ये तो चाहती है कि जैसे भी संभव हो ओमप्रकाश राजभर की जहूराबाद से विदाई सुनिश्चित की जा सके, लेकिन जहूराबाद सीट तो वो अपनी झोली में भरना चाहेगी.

मायावती ने दोहरी चाल चली है: शादाब फातिमा को लग रहा होगा कि मायावती उनके लिए मसीहा बन कर आयी हैं, लेकिन परदे के पीछे तो वो असल में बीजेपी की मदद में खड़ी लग रही हैं. जैसे गोरखपुर सदर सीट पर मायावती ने मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर योगी आदित्यनाथ की जीत पक्की कर दी है, जहूराबाद में भी मायावती ने वही चाल चली है.

बेशक शादाब फातिमा बीएसपी का टिकट लेकर ओम प्रकाश राजभर की राह का रोड़ा बन सकती हैं, लेकिन मुमकिन है ऐसा करके वो बीजेपी उम्मीदवार के लिए रास्ता साफ कर रही हों.

और जैसी संभावना लग रही थी, बीजेपी ने दो बार बीएसपी विधायक रहे कालीचरण राजभर को उम्मीदवार बनाया है. जहूराबाद में छठवें दौर में 3 मार्च को वोटिंग होने वाली है.

अब तो मान कर चलना होगा कि शादाब फातिमा सपा गठबंधन के हिस्से के मुस्लिम मुस्लिम वोट से ओमप्रकाश राजभर को महरूम कर देंगी - और राजभर बिरादरी से ही आने वाले बीजेपी उम्मीदवार कालीचरण की मुश्किलें भी कम हो जाएंगी.

राजभर के दिलचस्प चुनावी वादे

ओम प्रकाश राजभर समाजवादी पार्टी गठबंधन में दूसरे बड़े पार्टनर हैं, लेकिन दावे उनके अखिलेश यादव से भी बढ़ चढ़ कर होते हैं - मसलन, '2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जमीन में दफन कर दूंगा और अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनवाऊंगा.'.

राजभर के बड़े बड़े दावे: भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर आजाद रावण से लेकर माफिया डॉन मुख्तार अंसारी तक, ओमप्रकाश राजभर ऐसे ही आगे बढ़ कर बयान देते रहे हैं. चंद्रशेखर के गोरखपुर सदर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा से पहले राजभर कह रहे थे कि वो अपने कोटे से उनको गठबंधन में सीटें दे देंगे, लेकिन साथ नहीं छोड़ेंगे.

उत्तर प्रदेश की 403 में से 347 विधानसभा सीटों पर खुद चुनाव लड़ रहे अखिलेश यादव ने जयंत चौधरी के साथ 33 और ओमप्रकाश राजभर के साथ 16 सीटें शेयर किया है, लेकिन लगता तो ऐसा है जैसे गठबंधन का सारा दारोमदार ओमप्रकाश राजभर पर ही है. ओमप्रकाश राजभर 5 साल पहले बीजेपी के साथ गठबंधन करके 8 सीटों पर चुनाव लड़े थे और 4 पर जीत हासिल हुई थी. जहूराबाद की सीट भी चार में से एक थी, जहां से वो खुद पहली बार विधानसभा पहुंचे और मंत्री भी बने थे.

कुछ दिन पहले ओमप्रकाश राजभर और यूपी बीजेपी उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह की मुलाकात की खबर आयी थी. माना गया कि दयाशंकर सिंह की कोशिश ओम प्रकाश राजभर को बीजेपी के साथ वापस लाने की है, लेकिन तभी राजभर का बयान आया कि दया शंकर सिंह उनसे टिकट मांग रहे थे.

लगे हाथ ओमप्रकाश राजभर ने ये भी दावा किया था कि बीजेपी के डेढ़ दर्जन मंत्री उनके संपर्क में हैं और टिकट के लिए सैकड़ों विधायक घूम रहे हैं. दयाशंकर सिंह को बीजेपी ने बलिया सदर से उम्मीदवार बनाया है.

मुख्तार अंसारी की उम्मीदवारी: मुख्तार अंसारी को तो ओमप्रकाश राजभर चुनाव भी लड़ा रहे हैं - और कहते हैं कि 10 मार्च को यूपी में बाजा बजेगा - 'चल संन्यासी मंदिर में!'

ये भी राजभर ही बताते हैं कि मऊ सदर सीट से मुख्तार अंसारी और उनका बेटा अब्बास अंसारी दोनों ही नामांकन करेंगे. राजभर के मुताबिक, बाद में ये तय होगा कि चुनाव कौन लड़ेगा और कौन पर्चा वापस लेगा.

सवाल तो पूछे ही जाएंगे: मुख्तार अंसारी को ओमप्रकाश राजभर का टिकट देना तो यही समझा जाएगा कि वो गठबंधन के उम्मीदवार हैं, भले ही अखिलेश यादव वोट मांगने के लिए मऊ न जायें - लेकिन मैसेज तो यही जाएगा.

कभी अतीक अहमद को मंच पर धक्का देने के लिए तो कभी डीपी यादव की समाजवादी पार्टी में एंट्री पर बैन लगा देने वाले अखिलेश यादव के सामने मुख्तार अंसारी को लेकर सवाल तो पूछे ही जाएंगे - बीजेपी तो बीजेपी, बीएसपी नेता मायावती भी चुनावों में खूब सवाल पूछेंगी.

अपनी तरफ से ओमप्रकाश राजभर ने बीजेपी को पहले से ही खामोश करने की कोशिश की है, 'बीजेपी के सहयोग से बाहुबली बृजेश सिंह एमएलसी बन सकते हैं तो हम बाहुबली मुख्तार अंसारी का क्यों टिकट नहीं दे सकते?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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