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Updated: 18 फरवरी, 2022 08:11 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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हैरत है तुम को देख के मस्जिद में ऐ 'ख़ुमार'

क्या बात हो गई जो ख़ुदा याद आ गया. 

शेर मशहूर शायर ख़ुमार बाराबंकवी का है और याद नहीं आता लेकिन जैसी बातें और जो एटीट्यूड कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में शुमार मनीष तिवारी का है, यादों की डायरी में छिपा ये शेर आज याद आ गया. अब ज्यादा भूमिका क्या ही बनाना यूपीए के दौर में केंद्रीय मंत्री रहकर सत्ता की मलाई खा चुके मनीष तिवारी पंजाब, गोवा, उत्तर प्रदेष वाले इस चुनावी रण में आहत हैं. उनकी नाराजगी भी जायज हैं और ये पार्टी के प्रति उनकी नाराजगी ही है जिसके चलते उन्होंने बड़ी बात की है और अपनी पार्टी को खुली चेतावनी दी है. नीतियों के चलते पार्टी छोड़ने के कयासों के बीच मनीष तिवारी ने कहा है कि वो कांग्रेस में हिस्सेदार हैं. न कि किराएदार.

असल में समाचार एजेंसी एएनआई ने मनीष तिवारी से पार्टी छोड़ने की अफवाहों को ध्यान में रखकर कुछ जरूरीर सवाल जवाब किए थे. समाचार एजेंसी द्वारा तिवारी से पूछा गाया था कि आपके बारे में भी काफी अफवाहें उड़ रही हैं. आप इतने पुराने कांग्रेसी हैं, आप क्या कहना है?

Congress, Manish Tewari, Resignation, BJP, Rahul Gandhi, Priyanka Gandhi Vadra, Sonia Gandhi, Jyotiraditya Scindiaसवाल ये है कि कहीं कांग्रेस पार्टी को लेकर गलत सोच तो नहीं पाल बैठे हैं पार्टी के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी

मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में ये सवाल माकूल था. तिवारी ने भी बिना वक्त गंवाए फौरन ही जवाब दिए कि क्या अफवाहें उड़ रही हैं? मैंने पहले भी यह बात कही है कि हम कांग्रेस में कोई किराएदार थोड़ी ही हैं. हम हिस्सेदार हैं.” हालांकि, वह यह भी बोले कि अगर कोई उन्हें बाहर का रास्ता दिखाता है तब यह दूसरा मसला होगा.

मनीष तिवारी के मुताबिक,' उन्होंने इस पार्टी (कांग्रेस) को अपने जीवन के 40 साल दिए हैं. तिवारी के अनुसार, 'हमारे परिवार ने इस देश की अखंडता और एकता के लिए खून बहाया है. हम एक विचारात्मक सियासत में विश्वास रखते हैं, पर कोई धक्के देकर निकालना चाहे, वह अलग बात है.'

ध्यान रहे मनीष तिवारी का शुमार जी-23 के उन आहत नेताओं में है जो कांग्रेस और सोनिया गांधी की नीतियों से आहत हैं. जो चाहते हैं कि पार्टी में मर्जी सिर्फ राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की न चले. और साथ ही जब कोई अहम मौका (चुनाव इत्यादि) हो तो निर्णय न केवल कलेक्टिव हो बल्कि उसे अमली जामा भी पहनाया जाए.

पूरा विषय तिवारी के कांग्रेस छोड़ने से जुड़ा है इसलिए ये बता देना भी वक्त की जरूरत है कि हमारे सहयोगी आजतक के एक प्रोग्राम में भी तिवारी ने इस बात पर बल दिया था कि वह कांग्रेस नहीं छोड़ रहे, पर अपने दल के भीतर लोकतांत्रिक सुधारों के लिए जरूर कह रहे हैं. वहीं जब उनसे ये बात हुई कि क्या वो भी तमाम कांग्रेसी नेताओं की तरह कांग्रेस को अलविदा कहेंगे?

इस सवाल पर तिवारी का जवाब था कि, मैं पुल को तब पार करूंगा, जब मैं वहां पहुंचूंगा. तब पार्टी में अपना महत्व बताते हुए मनीष तिवारी ने ये भी कहा था कि,'अगर पार्टी का एक छोटा कार्यकर्ता कांग्रेस छोड़ देता है तो भी कांग्रेस को नुकसान होगा. वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी छोड़ी तो भारी नुकसान होगा.'

तिवारी पार्टी छोड़ते हैं या उसमें रहते हैं ये एक बाद की बात है लेकिन अभी जिस बिंदू पर बात होनी चाहिए वो ये कि तिवारी का अपने को कांग्रेस पार्टी में किराएदार नहीं बल्कि हिस्सेदार बताना. अच्छी बात है मनीष तिवारी अपने को किराएदार नहीं हिस्सेदार समझते हैं. ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि क्या सोनिया ऐसा समझती हैं? क्या पंजाब, उत्तर प्रदेश और गोवा में कांग्रेस के नाम पर मोर्चा संभालने वाले राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा भी ऐसा समझते हैं?

यूं तो ये सवाल सामने नहीं आते मगर इनपर बात होनी और इन्हें मुद्दा बनाना इसलिए भी जरूरी है क्यों कि हालिया दौर में हम ऐसा बहुत कुछ देख चुके हैं जिसने खुद -ब-खुद इस बात को साबित कर दिया है कि कांग्रेस पार्टी मतलब सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी पार्टी के नाम पर जो कुछ हैं यही लोग हैं यही हिस्सेदार हैं और पार्टी में बाकी जो बचता है वो शायद किराएदार भी नहीं है.

हो सकता है ये बातें अतिशयोक्ति लगें मगर 2014 के बाद से राहुल गांधी की बदौलत जो हाल कांग्रेस पार्टी का हुआ है उसे पूरे देश ने देख लिया है. कहना गलत नहीं है कि आज कॉन्ग्रेस पार्टी के सामने अस्तित्व को बचाए रखने की लड़ाई है. खोया हुआ विश्वास और जनाधार वापस हासिल करने को लड़ाई है.

चाहे वो बेरोजगारी, महंगाई, हिंदुत्व, जीएसटी, नोटबंदी जैसे मुद्दे हों. या फिर देश में बढ़ता नफरत का माहौल और धर्म आधारित राजनीति पूरी कांग्रेस पार्टी में ये सिर्फ राहुल और प्रियंका ही हैं जो खुलकर इन मुद्दों पर बैटिंग कर रहे हैं. वहीं बात पार्टी के अन्य नेताओं की हो तो ऐसे मुद्दों पर वो लोग अपनी बात कहते तो हैं. लेकिन जिस तरह उनकी आवाज को राहुल और प्रियंका के आगे दबा दिया जाता है उसे भी पूरे देश ने देख लिया है.

अपने कांग्रेसी टैग पर एक लॉयल कांग्रेसी के रूप में मनीष तिवारी जितना चाहे इतना उड़ लें लेकिन कहीं न कहीं सच्चाई से वो खुद वाकिफ हैं. असल में जैसा इतिहास रहा है चाहे वो ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद रहे हों या यूपी की राजनीति में बड़ा ओबीसी चेहरा आर पी एन सिंह शायद ये लोग भी अपने समय में कांग्रेस को लेकर वही सोचते थे जो मनीष तिवारी आज सोच रहे हैं. लेकिन जो सुलूक पार्टी ने इन सभी के साथ किया उसे भी पूरे देश ने देख लिया है.

जिक्र क्योंकि सिंधीया और आरपीएन सिंह जैसे लोगों का हो ही गया है तो यदि इतिहास पर नजर डालें तो जिस तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मध्य प्रदेष में मेहनत की साफ था कि यदि वहां कांग्रेस पार्टी ने इतिहास रचा तो इसके जिम्मेदार राहुल गांधी न होकर सिंधिया थे. पार्टी ने तब कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया और सिंधिया को मायूस किया.

तब हुए मध्य प्रदेश विधान सभा चुनावों पर गौर करें तो जैसी रणनीति वहां सिंधिया ने बनाई थी वो किरायेदार की न होकर हिस्सेदार की थी. ऐसा ही मिलता जुलता हाल राजस्थान में सचिन पायलट का हुआ. पायलट की भी भूमिका हिस्सेदार की थी लेकीन आज उनकी हालत किराएदार से भी बदतर है.

उपरोक्त चर्चा आरपीएन सिंह की हुई है तो जिस तरह पार्टी ने पडरौना से हालिया उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में उनका टिकट काटा कहना गलत नहीं है कि पार्टी को अपने स्तंभों की कोई परवाह ही नहीं है. कांग्रेस में सोनिया गांधी के बाद सीधी दखलंदाजी राहुल गांधी की चल रही है. प्रियंका गांधी वाड्रा की चल रही है. 

बहरहाल मनीष तिवारी कितना भी ऊंचा उड़ लें लेकिन सच्चाई यही है कि अपनी उड़ान के मालिक वो नहीं हैं. उनकी उड़ान राहुल गांधी की अंगुलियों पर निर्भर करती है. मौजूदा वक़्त में भी राहुल ने अपनी अंगुलियों को रोक लिया है जिससे मनीष तिवारी फड़फड़ा रहे हैं. विषय क्योंकि किराएदार और हिस्सेदार हैं और बात क्योंकि ख़ुमार के शेर से शुरू हुई थी तो शेर की शुरुआत कुछ यूं है और इसपर मनीष तिवारी को ध्यान देने की जरूरत है.

मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया

तुम क्यों उदास हो गए क्या याद आ गया

कहने को ज़िंदगी थी बहुत मुख़्तसर मगर

कुछ यूं बसर हुई कि ख़ुदा याद आ गया

वाइ'ज़ सलाम ले कि चला मय-कदे को मैं

फ़िरदौस-ए-गुमशुदा का पता याद आ गया

बरसे बग़ैर ही जो घटा घिर के खुल गई

इक बेवफ़ा का अहद-ए-वफ़ा याद आ गया

मांगेंगे अब दुआ कि उसे भूल जाएं हम

लेकिन जो वो ब-वक़्त-ए-दुआ याद आ गया.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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