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Updated: 04 जनवरी, 2018 04:03 PM
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दिल्ली से जब भी कोई अरुणाचल प्रदेश के दौरे पर पहुंचे उससे पहले ही चीन शोर मचाने लगता है. मगर, अरुणाचल में उसकी हरकतों को लेकर अगर सवाल पूछा जाये तो उसे सांप सूंघ जाता है. अरुणाचल प्रदेश में सियांग के तूतिंग इलाके में चीन असैन्य दल के कंस्ट्रक्शन के काम को लेकर जब मीडिया ने सवाल किया तो प्रवक्ता ने चुप्पी साध ली, बोले - कोई जानकारी नहीं है.

2009 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अरुणाचल के दौरे पर गये तब भी और 2015 जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गये तब भी चीन ने सख्त ऐतराज जताया. मोदी के दौरे के वक्त तो चीन के विदेश मंत्रालय ने भारतीय राजदूत को तलब कर आपत्ति जतायी.

प्रधानमंत्री मोदी के इस साल फिर से अरुणाचल जाने की खबर आयी है, हालांकि, अभी मोदी के दौरे की तारीख तय नहीं है. वैसे अब वो वक्त आ चुका है जब प्रधानमंत्री मोदी अरुणाचल की धरती से चीन को सख्त लहजे में उसे उचित जवाब दें.

चीन की हरकतें

करीब ढाई महीने की तीखी नोक झोंक के बाद डोकलाम विवाद खत्म होने की बात बतायी गयी. बाद में आई कुछ मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि चीन के कुछ सैनिक वहां जमे हुए हैं. इस बीच चीन की ओर से एक और घुसपैठ की बात सामने आयी है. बताते हैं कि चीन के सड़क निर्माण दल के लोग तूतिंग में करीब एक किलोमीटर तक अंदर आ गये थे.

modi, jinpingडिप्लोमेसी भी जरूरी है...

सेना के जवानों ने जब विरोध जताया तो पहले तो उन्होंने अपने इलाके में होने का दावा किया, मगर फौरन ही बगैर कोई विरोध जताये वापस चले गये. वे चले तो गये लेकिन अपनी दो मशीनें छोड़ दी. ये घटना 28 दिसंबर, 2017 की है. पता चला है कि सड़क बनाने वाली टीम के साथ चीनी सैनिक भी थे. सेना ने उनके सामान जब्त कर लिये. खबर ये भी है कि बाद में भारत की ओर से उन्हें अपने सामान ले जाने की सलाह के साथ संदेश भी भेजा गया है. सवाल ये है कि चीनी टीम की मशीनें हड़बड़ी में छूट गयीं या फिर उन्होंने जान बूझ कर छोड़ दिया?

चीन का विरोध

असल में चीन तवांग इलाके पर सबसे ज्यादा दावेदारी जताता है. वो उसे दक्षिण तिब्बत मानता है और उसका कहना है कि उसके साथ तिब्बतियों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं. हकीकत ये है कि दलाई लामा की अगुवाई में तिब्बती भारत में ही बरसों से शरण लिये हुए हैं.

बड़ी विचित्र बात है कि एक तरफ तो चीन तिब्बतियों की भावनाओं की बात करता है, तो दूसरी तरह दलाई लामा के अरुणाचल जाने पर भी वैसे ही विरोध जताता है जैसे किसी भी भारतीय नेता के दौरे पर.

दलाई लामा की ही तरह अमेरिकी राजदूत के अरुणाचल दौरे पर भी चीन ने आपत्ति जतायी थी. हाल ही में रक्षा मंत्री निर्मला सीता रमण और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अरुणाचल दौरे को लेकर भी चीन के विरोध का तरीका वही रहा. रक्षा मंत्री ने अरुणाचल से पहले सिक्किम के नाथू ला दौरे के वक्त चीनी सैनिकों को नमस्ते का मतलब समझाया तो उसकी चीन में भी खूब सराहना हुई थी.

निर्मला सीतारमण के नमस्ते भाव से पहले चीन को प्रधानमंत्री मोदी की एक बात भी खूब अच्छी लगी थी जो उन्होंने रूस में कही थी - 'एक भी गोली नहीं चली...'

जवाब देने का वक्त आ गया है...

पिछले साल जून में सेंट पीटर्सबर्ग इंटरनेशनल इकनॉमिक फोरम में प्रधानमंत्री मोदी से OBOR प्रोजेक्ट पर चीन से मतभेद को लेकर सवाल पूछा गया. तब एक पैनल डिस्कशन में मोदी रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सहित कुछ नेताओं के साथ मंच शेयर कर रहे थे.

सवाल के जवाब में मोदी बोले, ‘‘ये सच है कि चीन के साथ हमारा सीमा विवाद है. लेकिन पिछले 40 साल में सीमा विवाद में एक भी गोली नहीं चली है.’’

narendra modiजवाब देने का वक्त!

विदेशी मामलों के जानकार कंवल सिब्बल ने भारत की फॉरेन पॉलिसी को लेकर 2017 में प्रदर्शन को ठीक-ठाक माना है. इकनॉमिक टाइम्स में एक लेख में कंवल सिब्बल ने कहा है, "साल 2017 चीन से निबटने में भरोसा दिखाने के लिहाज से यादगार रहा. OBOR के विरोध और डोकलाम विवाद से निपटने में ये बात नजर आयी."

बाद में चीन ने प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान की काफी तारीफ की थी. ये सही है कि चाहे भारतीय नेता चीन जाते हों या फिर चीन राष्ट्रपति भारत दौरे पर आते हों - मुलाकातों का माहौल भी अच्छा होता है, बातचीत भी ठीक होती है - और समझौतों पर हस्ताक्षर भी होते हैं. बवाल सिर्फ तब होता है जब केंद्र से कोई नेता अरुणाचल प्रदेश के दौरे पर जाता है.

वैसे तो चीन को लेकर रक्षा मंत्री के प्रभार रहते अरुण जेटली और आर्मी चीफ बिपिन रावत ने चीन को सख्त लहजे में चेतावनी दी है. एक सवाल के जवाब में अरुण जेटली ने साफ करने की कोशिश की थी कि चीन भारत को पहले जैसा न समझे क्योंकि चीजें बहुत बदल चुकी हैं. इसी तरह आर्मी चीफ ने ढाई मोर्चों पर सेना के मुहंतोड़ जवाब देने की बात कही थी. स्वाभाविक तौर पर चीन ने इन दोनों ही बयानों पर कड़ा ऐतराज जताया था.

बाकी बातें अपनी जगह है लेकिन डोकलाम विवाद के बाद रक्षा मंत्री और राष्ट्रपति के अरुणाचल दौरे पर चीन के ऐतराज और अब तूतिंग में घुस कर सड़क बनाने की कोशिश स्थिति की गंभीरता के संकेत दे रही है. चीन की सड़क निर्माण टीम का रहस्यमय तरीके से मशीनें छोड़ जाना भी ऐसी ही गंभीरता दर्शा रहा है.

बेहतर होगा प्रधानमंत्री जब भी अरुणाचल के दौरे पर जायें तो अपने अंदाज में ही सही, चीन को माकूल जवाब देने की कोशिश करें - क्योंकि अब भारत की ओर से सही और सख्त जवाब देने का वक्त आ गया है.

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