New

होम -> सियासत

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 29 नवम्बर, 2016 09:30 PM
डीपी पुंज
डीपी पुंज
  @dharmprakashpunj
  • Total Shares

केजरीवाल की तरह नितीश भी शातिर राजनीतिज्ञ हैं या ये कहें कि केजरीवाल से भी ज्यादा सयाने राजनेता हैं. सभी जानते हैं कि भ्रष्टाचार और जंगल राज के खात्मे के लिए ही नितीश जी का उदय हुआ था. ठीक जैसे केजरीवाल का भ्रष्टाचार विरोध और राजनीति शुद्धिकरण के लिए जन्म हुआ था. वैसे तो आज के दौर के लगभग सारे नेता मौकापरस्त राजनीति के सौदागर हैं, या ये कहो कि वो बाजीगर हैं और हारी बाजी भी जीतना चाहते हैं.

nitish-kr650_112916073639.jpg
 नीतीश कुमार के लिए नोटबंदी एक लाइफ लाइन बन कर आई

पिछले आम सभा के चुनाव में प्रधानमंत्री के कुर्सी के लालच के लिए बीजेपी से अलग हुए नीतीश जी की दुर्गति हुई तो उनको दिन में तारे दिखने लगे. उन्होंने एक दलित को मुख्यमंत्री बनाकर बिहार को धोखा देने की कोशिश की और कामयाब भी रहे. फिर भी उसके बाद राज्य के विधानसभा चुनाव में नितीश को अपनी हार साफ दिखाई दे रही थी. तब नीतीश जी के चालाक और शातिर दिमाग ने ऐतिहासिक फैसला करते हुए अपने धुर विरोधी चारा घोटाला के दोषी को गले लगा लिया और अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहे.

ये भी पढ़ें- नोटबंदी पर नीतीश का स्टैंड बीजेपी से नजदीकियां नहीं, कुछ और कहता है...

चुनाव जीतने के बाद जब लालू के बेटे मंत्रिमंडल में शामिल हुए और उनकी गैर योग्यता से नितीश की खूब किरकिरी हुई और राज्य का विकास ठप होने के बाद कानून व्यवस्था भी लचर हुई तो नीतीश के धूर्त दिमाग ने शराब बंदी का खेल खेला. फिर भी उनकी छवि धूमिल होती जा रही थी कोई खास सुधार नहीं हो रहा था.

जंगल राज की वापसी के आरोप से घिरी नीतीश सरकार के माथे पर चारा घोटाला दोषी लालू के साथ का कलंक भी लगा हुआ था. नितीश इस कलंक से तिलमिलाए हुए थे और उनको अपनी छवि की चिंता सता रही थी. क्योंकि उनके महत्वाकांक्षी मन में प्रधानमंत्री की कुर्सी अभी भी हिलोरें मार रही थी. और इसलिए उनको लगता था कि अगर व्यापक रूप से स्वीकार्य होना है तो दागदार दामन को धोना ही होगा.

निराश नीतीश के लिए नोटबंदी एक लाइफ लाइन बन कर आई. लालू यादव के साथ आने से जो दामन में दाग लगा था नीतीश ने नोटबंदी का समर्थन करके नोटबंदी की गंगा में उसको धोने की कोशिश की है.

पर लालू यादव के साथ लेने का दाग उनको प्रधानमंत्री पद तक नहीं पंहुचा पाएगा क्योंकि बिहार वाले तो जाति समीकरण में उनको माफ भी कर दें पर देश उनको कभी दूध का धुला नहीं मानेगा. जैसे केजरीवाल के दागी पार्टियों से हाथ मिलाने के बाद देश स्तर पर लोगों ने उनको नकार दिया है.

हम सभी जानते हैं कि देश की कोई भी पार्टी जो किसी खास संप्रदाय और खास जाति के समर्थन में आ जाती है वो सिमट के ही रह जाती है देश के स्तर पे लोग उसको स्वीकार नहीं करते.  

ये भी पढ़ें- नोटबंदी: नीतीश का समर्थन एक खतरनाक सियासी दांव है

कुछ लोगों की गलतफहमी है कि नीतीश बीजेपी से नजदीकी बढ़ा रहे हैं पर इसमें कोई सच्चाई नहीं दिखती. सिर्फ और सिर्फ अपने पाप धोने के लिए नीतीश का मास्टर माइंड नोटबंदी का समर्थन कर रहा है पर वो इसमें असफल रहे और ऊपर से साथी पार्टी वाले गालीगुप्ता कर रहे हैं. इसको कहते हैं "जरुरत से ज्यादा होशियारी सौ रोगों से भारी है.."

लेखक

डीपी पुंज डीपी पुंज @dharmprakashpunj

स्वतंत्र लेखक

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय