New

होम -> सियासत

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 30 अगस्त, 2021 09:35 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
  • Total Shares

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपानीत एनडीए में शामिल होने के बावजूद इन दिनों विपक्षी दलों के नेता बनते जा रहे हैं. अब वो पेगासस जासूसी कांड के मुद्दे पर जांच की मांग हो या जाति जनगणना की, नीतीश कुमार की ओर से भाजपा को झटका देने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं दिया जा रहा है. हाल ही में नीतीश कुमार ने आरजेडी के तेजस्वी यादव समेत बिहार की विपक्षी पार्टियों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर जातीय जनगणना की मांग को पुरजोर तरीके से उठाया. इससे इतर जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नीतीश कुमार को 'पीएम मेटेरियल' बता दिया गया. जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने एक प्रस्ताव में कहा कि नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं और एनडीए में पीएम पद के प्रत्याशी भी वही हैं. इस लिहाज से नीतीश कुमार इस पद के दावेदार नहीं हैं. लेकिन, पीएम पद के लिए जिन योग्यताओं और जिस आला दर्जे के समर्पण तथा दक्षताओं की जरूरत होती है, वे सभी नीतीश कुमार में हैं. कुल-मिलाकर ललन सिंह ने नीतीश कुमार को 'पीएम मेटेरियल' साबित कर भाजपा का एक सख्त संदेश देने की कोशिश की. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या पीएम मेटेरियल नीतीश कुमार भाजपा का सिरदर्द बढ़ा पाएंगे?

सपने देखना अच्छी बात, लेकिन...

हाल के दिनों में मिशन 2024 के मद्देनजर साझा विपक्ष तैयार करने की कोशिशों में तेजी आई है. कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कुछ समय पहले ही विपक्ष के दलों के साथ मीटिंग कर भाजपा के खिलाफ एकजुट होने की अपील की थी. सोनिया गांधी ने तमाम दलों को उनकी मजबूरियों और बाध्यताओं से ऊपर उठकर मिलकर काम करने की बात की. उन्होंने ये भी कहा था कि एकजुटता राष्ट्रहित की मांग है और इसके लिए कांग्रेस अपनी ओर से कोई कमी नहीं छोड़ेगी. खैर, पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव की जीत से उत्साहित ममता बनर्जी की संभावित उम्मीद पहले ही कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के सामने दम तोड़ चुकी है. ममता बनर्जी साझा विपक्ष में खुद कार्यकर्ता के तौर पर घोषित कर चुकी हैं. लेकिन, कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे, इस पर भी संशय बरकरार है. दरअसल, 2024 से पहले राहुल गांधी को कई राज्यों में खुद को साबित करना होगा, तभी वो इस पद की दावेदारी की रेस में आ पाएंगे.

राज्यों के लिहाज से देखा जाए, तो उत्तर भारत में साझा विपक्ष के सामने मुश्किलों का पहाड़ खड़ा हुआ है. उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की तैयारियां जोरों पर हैं. लेकिन, इस तैयारी में कांग्रेस के लिए कोई जगह फिलहाल नजर नहीं आ रही है. सोनिया गांधी की मीटिंग से भी अखिलेश यादव 'गायब' रहे थे. साझा विपक्ष के पूरे फॉर्मूले पर करीब से नजर डालें, तो दिखाई पड़ता है कि देश के हर राज्य में फैली कांग्रेस को साझा विपक्ष के नाम पर कमजोर करने की तैयारी चल रही है. अगर कांग्रेस कई राज्यों में खुद का सिकोड़ने के लिए तैयार हो जाती है, तो ही ये साझा विपक्ष का फॉर्मूला कारगर हो सकता है. लेकिन, कांग्रेस अपना जनाधार खुद से खत्म करने का फैसला शायद ही लेगी.

वहीं, 'पीएम मेटेरियल' जेडीयू नेता नीतीश कुमार की बात करें, तो उनका सारा खेल 'भाग्य' पर निर्भर करता है. अगर राहुल गांधी या ममता बनर्जी या शरद पवार जैसे नेताओं के नाम पर विपक्षी दल एकमत नहीं हो पाए, तो ही नीतीश कुमार के लिए संभावना बनेगी. अव्वल तो उससे पहले साझा विपक्ष के एकजुट होने की राह में ही कई रोड़े हैं. वहीं, इस संभावना में भी उनके सामने तेजस्वी यादव चट्टान की तरह खड़े दिखाई देंगे. कहना गलत नही होगा कि जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में नीतीश कुमार के पीएम मेटेरियल घोषित हो जाने भर से वो पीएम पद की रेस में शामिल नही हो जाएंगे.

बिहार में आरजेडी का मुकाबला कैसे करेंगे?

बिहार विधानसभा चुनाव के बाद सबसे बड़े राजनीतिक दल के तौर पर उभरे आरजेडी की ताकत को नीतीश कुमार शायद ही कमतर आंकने की कोशिश करेंगे. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव भले ही जाति जनगणना के मामले पर नीतीश कुमार को साथ लेकर पीएम मोदी से मिलने पहुंचे थे. लेकिन, जाति जनगणना की मांग तेजस्वी के पिता और आरजेडी के मुखिया लालू यादव ने ही उठाई थी. ललन सिंह को जेडीयू का अध्यक्ष बनाकर और लव-कुश समीकरण साधने के लिए उपेंद्र कुशवाहा को साथ लाए नीतीश कुमार को राजनीति का माहिर खिलाड़ी कहा जाता है. लेकिन, बिहार में आरजेडी के साथ संबंध सुधरना इतना आसान नहीं है. पिछली बार आरजेडी का हाथ बीच रास्ते में छोड़ने वाले नीतीश कुमार पर तेजस्वी यादव आसानी से भरोसा नहीं करेंगे. अगर ऐसा हो भी जाता है, तो नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलेगी, इसकी संभावना बहुत ज्यादा नहीं है. अगर 2024 में विपक्ष केंद्र में सरकार बना भी ले, तो तेजस्वी बिहार को आसानी से नहीं छोड़ेंगे.

वहीं, एनडीए गठबंधन में रहते हुए बिहार में सरकार चला रहे नीतीश कुमार के पास पीएम पद की रेस में जगह बनाने के लिए केवल एक ही रास्ता है. बिहार में सरकार चलाने का मोह छोड़कर उन्हें आरजेडी के साथ आना होगा. ये असंभव सा नजर आता है. इसे उत्तर प्रदेश में चल रही हालिया रस्सकशी से समझा जा सकता है. अखिलेश यादव छोटे दलों के साथ गठबंधन की बात कर रहे हैं. लेकिन, कांग्रेस की ओर से मिले गठबंधन के खुले विकल्प को स्वीकार करने से कतरा रहे हैं. सबसे बड़ा और मुख्य विपक्षी दल शायद ही किसी ऐसी सियासी पार्टी को सत्ता में अपना साझीदार बनाएगा, जो उसकी राजनीति को कमजोर करे. वैसे, पीएम नरेंद्र मोदी की ओर से जाति जनगणना पर भले ही कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया न आई हो. लेकिन, भाजपा ने मोदी से मिलने आए प्रतिनिधिमंडल में अपने नेताओं को शामिल कराकर 'चेक एंड बैलेंस' बना रखा है. कुल-मिलाकर नीतीश कुमार खुद को 'पीएम मेटेरियल' घोषित करवा कर भाजपा को जो सिरदर्द देना चाहते हैं, वो उसमें कामयाब होते नहीं दिख रहे हैं. और, एनडीए से बाहर उनकी राजनीति को ही खतरा पैदा हो जाएगा.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय