New

होम -> सियासत

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 14 अक्टूबर, 2022 07:08 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

महाराष्ट्र में अंधेरी पूर्व विधानसभा सीट पर 3 नवंबर, 2022 को उपचुनाव (Andheri By Election) होने जा रहा है. वोटों की गिनती 6 नवंबर को होगी और नतीजे भी उसी दिन आ जाएंगे, ऐसी अपेक्षा है. अंधेरी सहित देश भर की सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं.

महाराष्ट्र और बिहार में सत्ता परिवर्तन के बाद होने जा रहे ये उपचुनाव वैसे तो सभी राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी के लिए खास मायने रखते हैं - खासकर महाराष्ट्र और बिहार दोनों ही जगह. महाराष्ट्र में जहां बीजेपी सत्ता में हिस्सेदार हो गयी है, वहीं बिहार में सत्ता उसके हाथ से फिसल कर फिर से लालू यादव के हिस्से में चली गयी है. मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नीतीश कुमार बने हुए हैं.

महाराष्ट्र का मामला तो और भी दिलचस्प है. उद्धव ठाकरे के सत्ता से बेदखल होने के बाद शिवसेना में भी दो टुकड़े हो गये हैं - और चुनाव आयोग की तरफ से दोनों गुटों के लिए अलग अलग नाम और चुनाव निशान तक आवंटित कर दिये गये हैं.

अब उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) का उम्मीदवार तीर और धनुष की जगह मशाल सिंबल के साथ चुनाव मैदान में उतरने वाला है और पार्टी के नाम वाले कॉलम में लिखना होगा - शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे).

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) को भी इस्तेमाल के लिए एक चुनाव निशान मिल गया है. शिवसेना से बगावत करने के बाद बीजेपी के साथ सरकार बना लेने वाले एकनाथ शिंदे के गुट को चुनाव निशान के साथ नया नाम भी मिल चुका है - बालासाहेबांची शिवसेना. चुनाव निशान है दो तलवारें और ढाल.

कहने को तो चुनाव आयोग ने झगड़ा खत्म करने के लिए दोनों को अलग अलग नाम और निशान दे दिया है, लेकिन लगता तो ऐसा ही कि नयी चीजों के साथ झगड़ा और बढ़ने वाला है. अब तो शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे की विरासत पर दावेदारी का दोनों ही गुटों को नया लाइसेंस मिल गया है. चुनाव निशान छोड़ दें तो एकनाथ शिंदे की पार्टी का नाम बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना है - और एकनाथ शिंदे तो जोर शोर से दावा भी यही करते रहे हैं कि बाल ठाकरे की शिवसेना के असली वारिस वही हैं.

उद्धव ठाकरे अपने नाम में पिता के नाम के साथ खुद को बाल ठाकरे की राजनीतिक विरासत के असली दावेदार पेश कर रहे हैं - और चुनाव आयोग ने उनकी बात भी मान ली है. शिवसेना के साथ उद्धव बालासाहेब ठाकरे जोड़ कर दे दिया है - अभी शिवाजी पार्क में हुई अपनी शिवसेना की रैली में भी उद्धव ठाकरे अपना पूरा नाम लेकर वही कहानी समझाने की कोशिश कर रहे थे.

नगर निगमों के चुनाव तो अभी बाद में होंगे अंधेरी ईस्ट सीट पर होने जा रहे उपचुनाव का नतीजा महाराष्ट्र के सभी राजनीतिक दलों के लिए संदेश लेकर आने वाला है. ये नतीजा ही बताएगा कि उद्धव ठाकरे अपने साथ जिस धोखेबाजी का रोना रो रहे हैं, उसे महाराष्ट्र के लोग कैसे ले रहे हैं? अंधेरी का रिजल्ट एकनाथ शिंदे के लिए ही नहीं, बीजेपी के लिए भी मैसेज लेकर आने वाला है - और उसके लिए उसे तैयार रहना चाहिये.

चुनाव से पहले ही बवाल

चुनाव प्रचार और लोगों के बीच जाकर वोट मांगने का मौका तो बाद में आएगा, उद्धव ठाकरे की शिवसेना के उम्मीदवार के केस में तो पहले ही कोर्ट कचहरी सब कुछ हो गया. हाई कोर्ट में बीएमसी को पार्टी भी बनना पड़ा और उसके वकील की दलीलें खारिज करते हुए अदालत ने उद्धव ठाकरे के पक्ष में फैसला सुनाया है - और बीएमसी को 24 घंटे के भीतर फैसले पर अमल की हिदायत भी दी है.

uddhav thackeray, eknath shindeअंधेरी के चुनावी मैदान से मालूम होगा कि महाराष्ट्र की राजनीति में लोग किसे धोखेबाज मानते हैं?

अंधेरी ईस्ट सीट पर शिवसेना विधायक रहे रमेश लटके के निधन के कारण उपचुनाव हो रहा है. रमेश लटके का मई, 2022 में निधन हो गया था - और उद्धव ठाकरे की शिवसेना की तरफ से उनकी पत्नी ऋजुता लटके को उम्मीदवार बनाया गया है.

ऋजुता लटके बीएमसी में क्लर्क के रूप में 2006 से ही सेवारत हैं. जब उद्धव ठाकरे की तरफ से चुनाव लड़ने को कहा गया तो ऋजुता लटके ने बीएमसी को अपना इस्तीफा सौंप दिया. नियमों के तहत सरकारी कर्मचारी चुनाव नहीं लड़ सकता, इसलिए ऐसा करना जरूरी रहा - लेकिन बीएमसी के अधिकारियों ने तकनीकी वजहों से ऋजुता लटके का इस्तीफा मंजूर नहीं किया. ऋजुता लटके को ये बात तब मालूम हुई जब वो अपने केस का स्टेटस जानने पहुंचीं.

सही फॉर्मैट में इस्तीफा न होने की बात जानने के बाद ऋजुता लटने ने फिर से नया इस्तीफा भी जमा कर दिया, लेकिन फिर भी इस्तीफा मंजूर नहीं हुआ. उसके बाद शिवसेना के नेताओं ने अधिकारियों से संपर्क कर इस्तीफा मंजूर न किये जाने की वजह जाननी चाही, तो आरोप है कि अधिकारी इधर से उधर मामला टरकाने लगे थे - और तब जाकर अदालत की शरण में जाने का फैसला किया गया.

उद्ध‌व ठाकरे की शिवसेना के नेताओं अनिल परब और विनायक राउत ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाया कि एकनाथ शिंदे गुट की तरफ से ऋजुता लटके को मंत्री पद का प्रलोभन दिया जा रहा है. आरोप ये भी लगाया गया कि बीएमसी में जानबूझ कर ऋतुजा लटके का इस्तीफा मंजूर नहीं कर ताकि उन पर एकनाथ शिंदे गुट की तरफ से चुनाव लड़ने का दबाव डाला जा सके. बवाल मचने पर डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस को भी सरकार के बचाव में सामने आना पड़ा. देवेंद्र फडणवीस का कहना रहा कि बीएमसी एक ऑटोनामस बॉडी है और वो मामले को अपने स्तर पर देख रहे होंगे, सरकार की तरफ से न तो कोई दखल दी गयी है, न किसी तरह का दबाव दिया गया है.

बीएमसी पर आरोप कोई नया तो है नहीं: बीएमसी पर उद्धव ठाकरे के साथी नेता वैसे ही आरोप लगा रहे हैं, जैसे महाविकास आघाड़ी सरकार के वक्त लगाये जाते रहे - देवेंद्र फडणवीस भले ही बीएमसी की स्वायत्तता का दावा करें, लेकिन ये सब तो पिछली सरकार में भी होता रहा है.

ये तो उद्धव ठाकरे और उनकी टीम अच्छी तरह जानती होगी कि बीएमसी में कैसे और क्या होता है. ऐसे तमाम उदाहरण हैं जो बीएमसी की कार्यशैली पर सवाल खड़े करते रहे हैं. जैसे सुशांत सिंह राजपूत केस में जांच के लिए मुंबई पहुंचे बिहार के पुलिस अधिकारी को क्वारंटीन में भेज दिया गया था - और फिल्म स्टार कंगना रनौत के दफ्तर में तोड़ फोड़ की कार्रवाई को तो सबने लाइव टीवी पर देखा ही है.

अब ये समझना मुश्किल हो सकता है कि बीएमसी का कामकाज भी सीबीआई और ईडी जैसा ही होता है या थोड़ा अलग. आरोप तो सभी पर सत्ता प्रतिष्ठान के इशाने पर एक्शन लेने के ही लगाये जाते रहे हैं, लेकिन कई बार तो ऐसा लगता है जैसे राजनीतिक नेतृत्व को खुश करने के लिए अधिकारी अपनी श्रद्धा से ही हरकत में आ जाते रहे हों.

वैसे मचे बवाल के बीच ऋजुता लटके ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से मुलाकात की खबरों को बेबुनियाद बताया है.

अदालती चक्कर बढ़ गया है: शिवसेना के चुनाव निशान तीर धनुष को लेकर उद्धव ठाकरे को सुप्रीम कोर्ट में भले ही झटका लगा हो, लेकिन बॉम्बे हाई कोर्ट लगातार दूसरी बार उद्धव ठाकरे के लिए मददगार बना है. चुनाव निशान के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया था कि फैसला तो चुनाव आयोग को ही लेना होगा.

ऋजुता लटके के मामले से पहले बीएमसी के खिलाफ उद्धव ठाकरे गुट ने शिवाजी पार्क में दशहरा रैली के लिए हाई कोर्ट का रुख किया था, और कामयाबी भी मिली. तब भी बीएमसी ने उद्धव ठाकरे को शिवाजी पार्क में रैली की अनुमति नहीं दी थी. हालांकि, बीएमसी ने तब एकनाथ शिंदे गुट को भी रैली की इजाजत नहीं दी.

हाई कोर्ट से अनुमति मिलने के बाद उद्धव ठाकरे ने तो शिवाजी पार्क में ही रैली की, लेकिन एकनाथ शिंदे को अलग जगह लेनी पड़ी. रैलियां दोनों गुटों की हुई और दोनों ही नेता एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करते रहे.

हाल ही में उद्धव ठाकरे ने शिवसेना की एक बैठक में बीजेपी पर निशाना भी साधा, वैसे तो उनके निशाने पर अमित शाह ही नजर आ रहे थे. उद्धव ठाकरे का कहना रहा, 'हर काम के लिए हमें कोर्ट में जाना पड़ता है... वार करने वाले... हिम्मत है तो मैदान में आओ... मैं तो यही हूं... एक मंच पर आओ और हो जाने दो...'

उद्धव ठाकरे ने मुश्किल घड़ी में साथ देने के लिए कांग्रेस और एनसीपी, खासकर उसके नेता शरद पवार की दिल खोल कर तारीफ भी की है. उद्धव ठाकरे का कहना है, 'संकट के कई बादल आये... लेकिन यहां शरद पवार जैसे लोग कई बादल निर्माण करने वाले हैं... हर संकट में हम साथ रहने वाले हैं.'

और समझा जाता है कि शिवसेना उम्मीदवार ऋजुता लटके को कांग्रेस और एनसीपी का भी समर्थन हासिल होगा. मतलब, ऋजुता लटके महाविकास आघाड़ी के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में उतरने वाली हैं.

उपचुनाव का नतीजा सभी के लिए संदेश होगा

महाराष्ट्र में नगर निगमों के चुनाव भी जल्दी ही होने वाले हैं - और बीजेपी की सत्ता हासिल करने की बेसब्री के पीछे भी वही सबसे बड़ी वजह मानी गयी है. देखें तो अंधेरी ईस्ट विधानसभा सीट पर होने जा रहा उपचुनाव सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही के लिए पहला इम्तिहान जैसा है. जैसे कोई मंथली टेस्ट या छमाही इम्तिहान होने वाला हो.

उद्धव ठाकरे के लिए उपचुनाव की अहमियत: शिवाजी पार्क में दशहरा रैली करने का मौका मिलने के साथ ही, उद्धव ठाकरे पक्ष को ऋजुता लटके के मामले में भी हाई कोर्ट से बड़ी मदद मिली है. वैसे हाई कोर्ट से मदद न मिल पाने की स्थिति में उद्धव ठाकरे की टीम अंधेरी सीट को लेकर प्लान बी पर भी काम करने लगी थी.

ऐसे मामलों में ये देखने को ही मिलता रहा है कि जनप्रतिनिधि के परिवार के उम्मीदवार को लोगों की सहानुभूति मिल जाती है - और अंधेरी उपचुनाव में यही बात उद्धव ठाकरे के पक्ष में जा रही है.

ऐसे में अंधेरी उपचुनाव का नतीजा उद्धव ठाकरे के लिए लोगों की तरफ से सबसे बड़ा संदेश होगा - ऋजुता लटके की जीत भले ही सहानुभूति का नतीजा हो, लेकिन उद्धव ठाकरे के लिए बहुत बड़ी राहत होगी, वरना ये समझ लेना होगा कि लोग ये मानने को तैयार नहीं हैं कि उद्धव ठाकरे के साथ कोई धोखा हुआ है.

एकनाथ शिंदे के लिए उपचुनाव की अहमियत: उपचुनावों के मामले भी आम धारणा ऐसी ही रही है कि सत्ता पक्ष का उम्मीदवार ही चुनाव जीतता है, लेकिन अभी पिछले ही उपचुनावों में कई नतीजे कर्नाटक जैसे राज्यों में भी बीजेपी के खिलाफ गये हैं जहां वो सत्ता में है.

महाराष्ट्र में सरकार बदलने के बाद पहली बार हो रहा अंधेरी उपचुनाव शिंदे सेना और बीजेपी दोनों के लिए ही आजमाने का बेहतरीन मौका है. एकनाथ शिंदे की सरकार ने 7 अक्टूबर को सत्ता के 100 दिन पूरे कर लिये - देखना है अंधेरी सीट का रिजल्ट एकनाथ शिंदे के लिए तोहफा साबित होता है या कोई नया सबक?

बीजेपी के लिए उपचुनाव की अहमियत: अंधेरी उप चुनाव के लिए बीजेपी से मूरजी पटेल चुनाव लड़ने वाले हैं. 2019 में ये सीट शिवसेना के हिस्से की रही और तब मूरजी पटेल भी चुनाव लड़े थे, लेकिन निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में.

मूरजी पटेल के चुनाव कार्यालय का उद्‌घाटन करने मुंबई बीजेपी के अध्यक्ष आशीष शेलार पहुंचे थे - और दावा किया कि वो बीजेपी और शिंदे गुट के गठबंधन के उम्मीदवार हैं. हालांकि, सुनने में ये भी आ रहा है कि एकनाथ शिंदे गुट अंधेरी सीट पर अपना उम्मीदवार उतारना चाहता है ताकि उद्धव ठाकरे से सीधे सीधे दो-दो हाथ किया जा सके.

सवाल है कि क्या बीजेपी अब एकनाथ शिंदे के साथियों के लिए पीछे हटेगी - और ये भी सुना जा रहा है कि एमएनएस नेता राज ठाकरे भी चुनाव में अकेले उतरने की तैयारी कर रहे हैं.

इन्हें भी पढ़ें :

उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे की जोर आजमाइश का नतीजा तो चुनावों से ही आएगा

फडणवीस के सीएम न बन पाने का बीजेपी को मलाल शिंदे के लिए ये शुभ संकेत नहीं है

मराठी अस्मिता जैसे नाजुक मुद्दे पर महामहिम ने तो बीजेपी को फंसा ही दिया है

#उपचुनाव, #महाराष्ट्र, #एकनाथ शिंदे, Eknath Shinde, Andheri By Election, Uddhav Thackeray

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय