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Updated: 22 जून, 2016 03:42 PM
पीयूष द्विवेदी
पीयूष द्विवेदी
  @piyush.dwiwedi
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गत 21 जून को जब पूरा विश्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर पिछले वर्ष शुरू किया गया विश्व योग दिवस मना रहा था, तो वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार योग दिवस का बहिष्कार कर, 'संगीत दिवस' मनाने में मशगुल थे. योग दिवस नहीं मनाने के लिए नीतीश कुमार साहब ने ये तर्क दिया है कि जब तक देश में पूरी तरह से शराबबंदी नहीं हो जाती तब तक योग का कोई लाभ नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि शराब की लत रखने वाले योग नहीं कर सकते.

गौर करें तो एक तरफ तो नीतीश बाबू कह रहे हैं कि जो शराब पीते हैं वे योग कर ही नहीं सकते और दूसरी तरफ खुद योग दिवस का बहिष्कार कर योग नहीं कर रहे. अब इससे क्या ये समझा जाए कि वे योग को छोड़ शराब का समर्थन कर रहे हैं? कहने की आवश्यकता नहीं कि नीतीश कुमार के उक्त सभी तर्क पूरी तरह से अमान्य और निराधार हैं. अब सवाल ये उठता है कि नीतीश कुमार जैसा गंभीर और विवेकशील नेता आखिर किस कारण योग जैसे स्वास्थ्यवर्द्धक और रचनात्मक कार्य का विरोध कर रहा है? इस सवाल की तह में जाने पर स्पष्ट होता है कि नीतीश कुमार का यह विरोध पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित है. इसका कारण बताने की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है, क्योंकि नीतीश बाबू के मोदी विरोध का इतिहास बहुत पुराना नहीं है.

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नीतीश कुमार का कहना है कि शराब की लत रखने वाले योग नहीं कर सकते

हम देख चुके हैं कि कैसे जब विगत लोकसभा चुनाव भाजपा ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़ना निर्धारित किया था तो बिहार में भाजपा के सहयोग से सरकार चला रहे नीतीश कुमार ने पहले तो इसका खुलकर विरोध किया और जब किसी ने उनकी बात नहीं सुनी, तो मोदी विरोध में हठयोगी हुए नीतीश ने भाजपा से गठबंधन ही ख़त्म कर दिया. इसके बाद तरह-तरह से प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधने से लेकर हर तरह से उन्हें नीचा दिखाने की फिजूल कोशिशें नीतीश कुमार की तरफ से की जाती रहीं.

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आज उनके मोदी विरोध का आलम ये है कि भाजपा और नरेंद्र मोदी का कोई भी विरोधी स्वतः ही उनका परममित्र हो जाता है. आलम ये है कि गत बिहार विधानसभा चुनाव में मोदी की लोकप्रियता के रथ पर सवार भाजपा को रोकने के लिए उन्होंने अपने कट्टर विरोधी लालू प्रसाद यादव के दल राजद तक से गठबंधन कर लिया. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, जिन्होंने गत दिल्ली चुनाव में भाजपा का विजयरथ रोका था और जो अपने मोदी विरोध के लिए भी प्रसिद्ध हैं, नीतीश कुमार के इतने प्रिय हो गए कि बिहार चुनाव में उनका प्रचार करने का ऐलान कर दिए. इन बातों से स्पष्ट होता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति नीतीश कुमार का रवैया एकदम कट्टर विरोधी का रहा है और ये विरोध अक्सर अपने पूरे मुखर रूप में देखने को भी मिलता रहता है.

अब ऐसे में समझना मुश्किल नहीं है कि वर्तमान में विश्व योग दिवस का जो विरोध नीतीश कर रहे हैं, वो भी उनके मोदी विरोध का ही एक हिस्सा है. कारण ये कि विश्व योग दिवस विगत वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा यूएन में की गई पहल के फलस्वरूप आरम्भ हुआ है, जिसके लिए देश से लेकर विदेशों तक से नरेंद्र मोदी को उचित सराहना भी मिल रही है. अब नीतीश कुमार को निश्चित तौर पर यही बात नहीं पच रही और वे अपनी खीझ योग दिवस की जगह संगीत दिवस मनाकर जाहिर कर रहे हैं.

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योग दिवस पर योग करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

मोदी की पहल से आरम्भ होने के कारण हमारे पूर्वजों की उत्कृष्ट धरोहर योग भी उनके लिए 'अछूत' सा हो गया है. लेकिन नीतीश कुमार को कौन समझाए कि अपनी महत्वाकांक्षा से उपजे मोदी विरोध के अन्धोत्साह में वे जिस योग के दिवस को नहीं मना रहे, वह योग किसी व्यक्ति विशेष की नहीं समग्र राष्ट्र की धरोहर है. शरीर को आंतरिक व बाह्य रूप से स्वस्थ, सुदृढ़ तथा तेजयुक्त रखने में सहायक योग की यह पद्धति हमारे पूर्वजों की एक अमूल्य रचना है, जिसको विश्व योग दिवस के रूप में मान्यता दिलवाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाकई में महत्वपूर्ण कार्य किया है और इसके लिए निश्चित रूप से वे प्रशंसा के पात्र हैं.

ऐसे में, नीतीश कुमार को समझना चाहिए कि मोदी से उनका राजनीतिक विरोध अपनी जगह है, लेकिन वर्तमान में मोदी इस देश के प्रधानमंत्री हैं और बतौर प्रधानमंत्री उनके कार्यों का पूर्वाग्रहों से रहित होकर स्वागत किया जाना चाहिए. और नीतीश कुमार जो एक राज्य के मुख्यमंत्री हैं, के लिए तो ये दायित्व और भी बढ़ जाता है.

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मगर, इससे इतर मोदी विरोध के कारण योग दिवस न मनाने का जो हठयोग नीतीश बाबू कर रहे हैं, वो और कुछ नहीं केवल और केवल उनकी संकीर्ण मानसिकता को ही दिखाता है. इससे न केवल देश के प्रति दुनिया में गलत संदेश जा सकता है, बल्कि व्यक्तिगत रूप से नीतीश बाबू की विवेकपूर्ण और सुलझे हुए नेता की छवि के भी और धूमिल होने का खतरा है. अच्छा होगा कि नीतीश अब भी संभल जाएं और मोदी विरोध के हठयोग को छोड़कर परमशान्ति दायक योग को अपना लें.

लेखक

पीयूष द्विवेदी पीयूष द्विवेदी @piyush.dwiwedi

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं

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