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Updated: 22 जून, 2016 02:40 PM
अभिरंजन कुमार
अभिरंजन कुमार
  @abhiranjan.kumar.161
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हम ईद की ख़ुशियों और मोहर्रम के मातम में शरीक होकर मुस्लिम नहीं बन गए. हमारे मुसलमान भाई हमारी होली और दिवाली में शरीक होकर हिन्दू नहीं बन गए. लेकिन देश के सियासतदान हमें पढ़ा रहे हैं कि अगर मुसलमान योग कर लेंगे, तो उनका धर्म भ्रष्ट हो जाएगा और इस्लाम ख़तरे में पड़ जाएगा.

दरअसल योग का विरोध आज सिर्फ़ वही कर रहे हैं, जो मुस्लिम वोटों के सौदागर हैं. इसीलिए योग को लेकर हमेशा से वे मुसलमान भाइयों-बहनों को बरगलाने में लगे रहे हैं, जबकि योग न हिन्दू का है, न मुसलमान का है. योग तो हिन्दुस्तान का है. जिन मनीषियों ने हमें योग की विरासत सौंपी है, वे हम दोनों के ही पूर्वज थे.

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अफ्रीका में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाते लोग

एक हिन्दू स्वामी और मोदी-समर्थक कारोबारी होने के चलते बाबा रामदेव हममें से बहुतों को भले न सुहाएं, लेकिन उनकी यह समझदारी तर्कपू्र्ण है कि जिन्हें "ऊँ" से दिक्कत है, वे "आमीन" बोल लें. मैं तो कहता हूं कि ज़्यादा परेशानी है, तो आप सिर्फ़ वही आसन और प्राणायाम करें, जिनमें किसी मंत्रोच्चार की ज़रूरत ही नहीं.

ज्ञान को मजहब से जोड़ना मूर्खता है. दस वर्षों तक बिहार में शराब को बेतहाशा बढ़ावा देने वाले और शराब-बंदी की मांग करने वाले लोगों को बर्बरता से पिटवाते रहे हमारे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज अगर शराब-बंदी की आड़ लेकर योग का बहिष्कार करते हैं, तो इसके पीछे वोट-बैंक की उनकी सियासत स्पष्ट है.

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पेरिस में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाते लोग

वह सियासत, जो अपने स्वार्थ के लिए हर अच्छी चीज़ हमसे छीन लेना चाहती है, और लगातार हमें एक नफ़रत और नकारात्मकता में ढकेले रखना चाहती है, उसे जवाब देने की ज़रूरत है. सरकार चाहे किसी की भी हो, अगर दुनिया के 190 से अधिक देशों ने योग की ताकत को स्वीकारा है, तो यह तो हमारे देश के लिए गौरव की बात है. इसमें हिन्दू और मुसलमान कहां से आ गये?

भारत की कोई विद्या दुनिया भर में सराही और स्वीकारी जाए, तो देश का कौन-सा मुसलमान ऐसा होगा, जिसे यह अच्छा नहीं लगेगा? इसलिए जो भी लोग अपनी सियासत चमकाने के लिए किसी भी रूप में इस तरह का संदेश देना चाहते हैं, वे न सिर्फ़ मुसलमानों के दुश्मन हैं, बल्कि उन्हें बदनाम भी कर रहे हैं.

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अमेरिका में यूएन बिल्डिंग पर योग दिवस छाया

देश का आम और ग़रीब मुसलमान तो रोटी-पानी की समस्या में इस कदर उलझा हुआ है कि उसे इन संकीर्णताओं में उलझने का न वक्त है, न ज़रूरत है. लेकिन माफ़ कीजिएगा, ज़्यादातर पढ़े-लिखे संपन्न मुसलमानों के बारे में भी मैं ऐसा ही नहीं कह पाऊंगा. वे तो विभिन्न सियासी गुटों से नफ़रत और ध्रुवीकरण की पॉलीटिक्स का ठेका लेकर बैठे हैं और अपने ही लोगों को गुमराह कर रहे हैं.

हमारे मुसलमान भाई-बहन अपने दिल पर हाथ रखकर पूछें कि उनके सबसे बड़े दुश्मन कौन हैं- उनके बीच के ही ये सफेदपोश, या फिर इस देश के आम हिन्दू? योग तो रोग भगाता है, लेकिन उनके बीच के ये सफेदपोश ध्रुवीकरण पॉलीटिक्स करने वालों के साथ मिलकर उल्टे उन्हें मनोरोगी बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

न कैंसर, न कोढ़. मनुष्य की सबसे बड़ी बीमारी है जड़ता और कट्टरता. हमें सबसे पहले इनके इलाज की ज़रूरत है. मैं योग के भी साथ हूं और अपने मुसलमान भाइयों-बहनों के भी साथ हूं. मुझे दोनों में कोई विरोध नज़र नहीं आता!

लेखक

अभिरंजन कुमार अभिरंजन कुमार @abhiranjan.kumar.161

लेखक टीवी पत्रकार हैं.

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