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Updated: 28 अक्टूबर, 2018 06:25 PM
बिजय कुमार
बिजय कुमार
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बिहार में एनडीए के दो बड़े दलों बीजेपी और जेडीयू के बीच आगामी लोकसभा के लिए सीटों के बंटवारे का फॉर्मूला तय होते ही वहां के राजनीतिक घटनाक्रम में तेजी देखी जा रही है. राज्य में एनडीए के दूसरे सहयोगियों के साथ-साथ विपक्षी खेमे में भी इसका असर देखने को मिल रहा है. वैसे 2019 लोकसभा चुनाव से पहले हर किसी की नजर कुछ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों पर टिकी थी जिसमें देश की दोनों बड़ी पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस अपना दम दिखाने में जुटी हैं. लेकिन बिहार में लोकसभा चुनाव की तैयारियों से जुड़ा यह घटनाक्रम चर्चा का केंद्र बन गया है. ऐसा माना जा रहा था कि नीतीश के नेतृत्व वाले जेडीयू के दोबारा एनडीए में आने से वहां सीटों को लेकर बंटवारे में खासा दिक्क़तें आएगी. इसका उदाहरण हमें कुछ समय पहले तक देखने को मिल रहा था जब जेडीयू की ओर से लगातार बयान आ रहे थे.

नीतीश कुमार, बिहार, अमित शाह, भाजपा, राजनीतिनीतीश कुमार और अमित शाह ने बराबरी का फैसला कर लिया है

इसके बाद से ही राज्य में कौन बड़ा भाई है इसको लेकर चर्चा होती रही लेकिन बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बैठक करने के बाद अब, जब ये घोषणा कर दी है कि दोनों दलों में 50-50 (बराबरी) की डील हो गयी है तो इससे ऐसा माना जा रहा है कि दोनों दलों के बीच सीटों को लेकर मन मुटाव खत्म हो गया है और दोनों दल समान सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगे. बावजूद इसके प्रदेश में एनडीए के लिए अभी समस्या का पूरा हल नहीं हुआ है क्योंकि इसमें शामिल दो अन्य दल एलजेपी और आरएलएसपी को लेकर कुछ फाइनल नहीं हुआ है. हां बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ने उनकी सीटें भी कम होने के संकेत जरूर दिए थे. तभी तो इस घोषणा के बाद आरएलएसपी के मुखिया उपेंद्र कुशवाहा ने प्रदेश में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के साथ चाय पर बैठक की.

तेजस्वी और उप्रेंद्र कुशवाहा की बैठक से ये संदेश गया कि वो मनमाफिक सीटें ना मिलने से पाला बदल भी सकते हैं. वैसे कुशवाहा ने बाद में सफाई में इसे महज एक मुलाकत करार दिया उन्होंने कहा है कि उनकी बात अमित शाह जी से हुई है और अभी सीटों को लेकर कोई फैसला नहीं हुआ है. इस विषय में बातचीत चल रही है. उधर प्रदेश में एनडीए के दूसरे घटक दल एलजेपी के सांसद और रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने भी तेजस्वी के साथ फोन पर बातचीत की है और उन्होंने भी बाद में सफाई में कहा कि एलजेपी एनडीए के साथ ही रहेगी.

कह सकते हैं कि नीतीश के नेतृत्व वाले जेडीयू के दोबारा एनडीए में आने से प्रदेश में एनडीए के लिए सीटों का बंटवारा बड़ा सिरदर्द बन गया था और घटक दल अपना-अपना दम दिखाने में जुटे हैं जिसमें फ़िलहाल जेडीयू तो कामयाब नजर आ रहा है लेकिन आरएलएसपी और एलजेपी अभी भी इसमें लगे हुए हैं तभी तो वो विपक्षी खेमें में जाने की ओर भी इशारा कर रहे हैं. जिससे उनके रास्ते भी खुले रहें साथ ही बीजेपी पर दबाव भी बनाया जा सके. तो वहीं बीजेपी दोबारा सत्ता में आने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती इसीलिए वो समय रहते सहयोगियों से चर्चा कर उनको अपने पाले में रखने की पूरी कोशिश कर रही है. इसके लिए भले ही उसे खुद की सीटों में कटौती क्यों ना करनी पड़ रही हो. विपक्षी कांग्रेस पार्टी के लिए ये सीख की तरह है जो आगामी लोकसभा में सभी विपक्षी दलों को साथ तो लाना चाहती है लेकिन उससे पहले हाल में होने वाले विधानसभा चुनावों में वो एसपी और बीएसपी जैसी पार्टियों के साथ कोई समझौता कर पाने में कामयाब नहीं हो पायी है. बिहार में अगर एनडीए का कोई सहयोगी पाला बदलकर तेजस्वी के नेतृत्व वाले महागठबंधन में आता है तो सीटों को लेकर इसी तरह की खींचतान इस गठबंधन में भी देखने को मिल सकती है.

बता दें कि बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं जिसमें से बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में 22 सीटें जीती थीं तो वहीं इसकी सहयोगी एलजेपी ने 6 और आरएलएसपी ने 3 सीटें अपने नाम की थीं. तब जेडीयू एनडीए से अलग चुनाव लड़ी थी और मात्र 2 सीटें ही अपने नाम कर पायी थी. इसके अलावां पिछले लोकसभा चुनाव में आरजेडी ने 4 तो कांग्रेस के खाते में 2 सीटें जबकि एक सीट पर एनसीपी ने जीत दर्ज की थी. जहां तक ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की बात है तो बता दें कि पिछले लोकसभा चुनाव में जेडीयू सर्वाधिक 38 सीटों पर चुना लड़ी थी इसके बाद बीजेपी 29 सीटों पर आरजेडी 27 सीटों पर, कांग्रेस 12 सीटों पर, एलजेपी 7 सीटों पर, आरएलएसपी 4 सीटों पर तो वहीं एनसीपी ने 1 सीट पर चुनाव लड़ा था. इस बार देखने वाली बात ये होगी कि ज्यादा उम्मीदवार किस पार्टी कि ओर से उतारे जा रहे. ये वो जल्द ही सामने आ जायेगा.

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लेखक

बिजय कुमार बिजय कुमार @bijaykumar80

लेखक आजतक में प्रोड्यूसर हैं.

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