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Updated: 16 अक्टूबर, 2020 02:10 PM
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नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के खिलाफ चिराग पासवान (Chirag Paswan) अपने मिशन में शिद्दत से लगे हुए हैं - और अब तो बार बार दोहराने लगे हैं कि नीतीश कुमार को तो वो किसी भी हाल में फिर से मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे - वो भी तब जबकि बीजेपी (BJP) सार्वजनिक तौर पर चिराग पासवान से दूरी बनाने लगी है.

बीजेपी के चिराग पासवान से दूरी बनाने के पीछे बाकी जो भी कारण हों, लेकिन सबसे बड़ी वजह तो नीतीश कुमार दबाव ही समझ में आ रहा है - ये नीतीश कुमार का ही दबाव है जो बीजेपी धीरे धीरे चिराग पासवान से दूरी बनाने लगी है. हालांकि, चिराग पासवान के तेवर कम नहीं पड़ रहे हैं.

चिराग के तेवर तेज ही हैं

चिराग पासवान की बातों से तो यही लगता है कि वो भी उद्धव ठाकरे की तरह ही अपने पिता का सपना और उनसे किये गये वादे पूरे करने में जुट गये हैं. महाराष्ट्र में गठबंधन की सरकार बनने से पहले उद्धव ठाकरे ने कई बार बताया था कि वो शिवसेना संस्थापक बाला साहेब ठाकरे से एक शिवसैनिक को मुख्यमंत्री बनाने का वादा कर चुके हैं - और काफी उठापटक के बाद उद्धव ठाकरे वादा पूरा करने में कामयाब भी हुए - खुद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ कर.

चिराग पासवान भी अब मीडिया से बातचीत में ऐसी ही कहानी सुनाने लगे हैं. चिराग पासवान के मुताबकि, रामविलास पासवान ने ही उनको अकेले चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया था. चिराग पासवान का कहना है कि ये उनके पिता का सपना है और वो हर हाल में इसे पूरा करने की कोशिश करेंगे.

एनडीटीवी से बातचीत में चिराग पासवान ने अपने पिता की वो बात भी बतायी. चिराग पासवान के अनुसार, रामविलास पासवान ने उनसे कहा था - जब वो खुद 2005 में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला कर सकते हैं तो चिराग क्यों नहीं! रामविलास पासवान ने भरोसा दिलाने के लिए कहा था - 'तुम तो अभी युवा हो!'

रामविलास पासवान ने 2000 में लोक जनशक्ति पार्टी बनायी थी और 2005 में चुनाव मैदान में उतरे थे. तब लालू यादव की आरजेडी सत्ता में थी और नीतीश कुमार चैलेंज कर रहे थे. 2005 में दो बार चुनाव हुए थे. पहली बार फरवरी में और दूसरी बार अक्टूबर में. फरवरी वाले चुनाव में पासवान की पार्टी को अब तक की सबसे ज्यादा सीटें मिली थीं - 29 लेकिन बाद में चुनाव हुए तो पार्टी 10 सीटों पर ही सिमट गयी - और उसके बाद तो दहाई का आंकड़ा छूना भी मुश्किल हो गया.

nitish kumar, narendra modi, chirag paswanनीतीश के दबाव में बीजेपी के हाथ पीछे खींच लेने से चिराग को भी इरादा बदलना पड़ा है

चिराग पासवान ने लगे हाथ ये भी साफ कर दिया है कि एलजेपी के अकेले चुनाव मैदान में उतरने के पीछे असली मकसद क्या है. चिराग पासवान के मुताबिक, अकेले चुनाव लड़ने के पीछे पार्टी का जनाधार बढ़ाना और उसका प्रसार तो है ही, लेकिन पहला मकसद है - नीतीश कुमार को सत्ता से बेदखल करना.

आज तक से बातचीत में चिराग पासवान ने खुद के मुख्यमंत्री बनने को लेकर भी तस्वीर साफ कर दी है. चिराग पासवान का कहते हैं - 'मैं 2020 में सीएम नहीं बनना चाहता. मैं 2020 में बीजेपी का सीएम चाहता हूं.'

चिराग पासवान ने नीतीश कुमार पर अपने पिता के अपमान का भी आरोप लगाया है - साथ ही ये भी दावा कर रहे हैं कि 2019 के आम चुनाव में नीतीश कुमार ने एलजेपी के उम्मीदवारों को हराने की भी कोशिश की थी. चिराग पासवान की मानें तो नीतीश कुमार ने कभी एलजेपी उम्मीदवारों को सपोर्ट नहीं किया.

एलजेपी नेता ये भी बता रहे हैं कि बिहार चुनाव में 143 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला भी रामविलास पासवान का ही है - और वो उसी रास्ते पर बस आगे बढ़ते चले जा रहे हैं.

न्यूज एजेंसी के साथ एक इंटरव्यू में चिराग पासवान ने ये भी बताया, 'नीतीश कुमार ने मेरे पिता के लिए चिढ़ाने वाला बयान दिया था कि लोजपा के पास केवल दो विधायक हैं - और ऐसे में राज्यसभा जाने के लिए रामविलास के लिए जदयू का समर्थन जरूरी है... अमित शाह ने खुद मेरे पिता को एक राज्य सभा सीट देने का वादा किया था... उस वक्त मैंने काफी छोटा महसूस किया था, जब राज्यसभा नॉमिनेशन के दौरान नीतीश ने मेरे पिता के साथ घमंड भरा व्यवहार किया था... नीतीश नॉमिनेशन के लिए तय किया गया मुहूर्त निकल जाने के बाद पहुंचे थे... कोई भी बेटा इस तरह का नीचा दिखाने वाला व्यवहार स्वीकार नहीं कर सकता.'

BJP पर दबाव बनाने लगे हैं नीतीश कुमार

जब तक एनडीए की विधानसभा सीटों के बंटवारे की घोषणा नहीं हुई थी, बीजेपी चिराग पासवान की सक्रियता को लेकर खामोश बनी हुई थी. बीजेपी की तरफ से बस इतना ही कहा जाता रहा कि एलजेपी और जेडीयू सभी मिल कर एनडीए के साथी नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगे. यहां तक कि जब दिल्ली में एलजेपी की संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद ऐलान कर दिया गया कि पार्टी बिहार चुनाव में अकेले मैदान में उतरेगी और जेडीयू के खिलाफ प्रत्याशी भी खड़े करेगी, लेकिन बीजेपी के खिलाफ नहीं. तब एलजेपी की तरफ से बताया गया था कि पार्टी का बीजेपी के साथ गठबंधन बना रहेगा और दिल्ली में वो एनडीए का हिस्सा भी बनी रहेगी.

लेकिन अब वो सब बदल चुका है. धीरे धीरे चिराग पासवान भी पीछे हटने लगे हैं - लगता है बीजेपी पर नीतीश कुमार का दबाव असर दिखाने लगा है. ऐसा चिराग पासवान के ताजा बयान से लग रहा है.

नीतीश कुमार ने चिराग पासवान के आक्रामक रुख पर ब्रेक लगाने के लिए ही जहर का घूंट पीकर पुराने साथी जीतनराम मांझी को एनडीए में शामिल कराया. चिराग पासवान ने इस पर भी आपत्ति जतायी थी कि उचित फोरम पर इसे लेकर कोई बात नहीं हुई, लेकिन बीजेपी पूरी तरह खामोश रही.

एलजेपी ने एक स्लोगन शुरू किया था - मोदी से कोई बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं.' सूत्रों के हवाले से आयी मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि बीजेपी ने एलजेपी के इस नारे को भी खारिज कर दिया है.

नीतीश कुमार के साथ प्रेस कांफ्रेंस में डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने साफ साफ कह दिया था कि एनडीए के पार्टनर दलों के अलावा बाकी कोई भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर का इस्तेमाल नहीं कर सकेगा और अगर ऐसी कोई कोशिश हुई तो बीजेपी चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराएगी. समझने में बहुत मुश्किल नहीं हुई कि ये सब नीतीश कुमार के दबाव में ही हुआ था क्योंकि खबर थी कि नीतीश कुमार प्रेस कांफ्रेंस में बैठने के लिए राजी ही नहीं हो रहे थे और जैसे तैसे भरोसा दिला कर उनको मनाया जा सका.

फिर मुकेश साहनी के एनडीए ज्वाइन करने के मौके पर भी बिहार बीजेपी अध्यक्ष संजय जासवाल ने सुशील मोदी की बातें तो दोहरायी हीं, ये भी साफ कर दिया कि एनडीए के चार दलों के अलावा अगर किसी ने भी प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीरों का चुनावी इस्तेमाल किया तो पार्टी एफआईआर दर्ज कराएगी.

तब भी, हालांकि, एलजेपी प्रवक्ता की तरफ से दावा किया जा रहा था कि पार्टी ऐसा हर हाल में करेगी क्योंकि प्रधानमंत्री सभी के हैं - क्योंकि बीजेपी की तरफ से ये भी कहा गया था कि बेशक प्रधानमंत्री सभी के हैं लेकिन चुनावों के दौरान वो बीजेपी के ही नेता हैं.

नीतीश कुमार के दबाव में बीजेपी के कुछ नेताओं की तरफ से प्रशांत किशोर के मदद की थ्योरी भी समझाने की कोशिश हुई. दावा किया गया कि चिराग पासवान की रणनीति के पीछे पूर्व जेडीयू उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर का ही दिमाग काम कर रहा है. हालांकि, प्रशांत किशोर ऐसी बातों को नीतीश कुमार को मूर्ख बनाने की बीजेपी नेताओं की कोशिश करार दिया. बीजेपी ने बागियों को डेडलाइन के साथ अल्टीमेटम दिया था कि अगर वे नहीं लौटे तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी - और अब तक बीजेपी नौ नेताओं के खिलाफ एक्शन भी ले चुकी है.

एलजेपी की तरफ से जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार खड़े तो किये ही जा रहे थे, जब चिराग पासवान ने रोसड़ा विधानसभा से बीजेपी के खिलाफ उम्मीदवार घोषित कर डाला तो भी यही समझा गया कि ये भी नीतीश कुमार को ही झांसा देने की एक और कवायद है. रोसड़ा विधानसभा सीट से चिराग पासवान ने अपने चचेरे भाई कृष्ण राज को उम्मीदवार बनाया है.

चिराग पासवान एक दावा तो अब भी कर रहे हैं कि नीतीश कुमार इतनी सीटें नहीं जीत पाएंगे कि वो मुख्यमंत्री बन सकें, लेकिन अब तो ऐसा लगता है कि चिराग पासवान की तरफ बढ़ा हाथ बीजेपी ने खींच लिया है - और ये सब नीतीश कुमार के दबाव में हुआ है. चिराग पासवान का कहना है कि बीजेपी ने नीतीश कुमार के इसारे पर स्टैंड बदल लिया है.

चिराग पासवान का ताजातरीन बयान है - "मुझे चुनावों में प्रधानमंत्री की तस्वीरों का इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं है. वो तो मेरे दिल में हैं." आसानी से समझा जा सकता है कि नीतीश कुमार ने अपनी अहमियत समझाते हुए बीजेपी को अपनी मनमानियों पर अंकुश लगाने के लिए मजबूर कर दिया है.

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