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Updated: 17 जनवरी, 2020 02:57 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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निर्भया केस (Nirbhaya case) के दोषियों को फांसी (Capital Punishment) देने का रास्ता अब साफ हो चुका है. पटियाला हाउस कोर्ट ने निर्भया के दोषियों के खिलाफ डेथ वारंट जारी करते हुए फांसी देने की तारीख पर मुहर लगा दी थी. 22 जनवरी को निर्भया को दोषियों को उनके किए की सजा मिल जाएगी और वह फांसी के तख्ते पर लटकते नजर आएंगे. अक्षय की पुर्नविचार याचिका (Review Petition) को पहले ही सुप्रीम कोर्ट खारिज कर चुका है. इस मामले के प्रमुख अपराधी मुकेश सिंह ने दया याचिका (Mukesh Singh Mercy Petition or daya yachika) राष्ट्रपति के समझ दायर की थी. जिसे अस्‍वीकार कर दिया गया है. वैसे देखा जाए तो इन दोषियों की दया याचिकाएं खारिज होना लगभग तय ही हैं, क्योंकि इन्होंने जैसा घिनौना अपराध किया है. राष्‍ट्रपति कोविंद इससे पहले भी एक गुनहगार की दया याचिका को खारिज कर चुके हैं. लेकिन इसका ये भी मतलब नहीं है कि राष्ट्रपति किसी की दया याचिका को नहीं मानते हैं. रामनाथ कोविंद से पहले ऐसे भी राष्ट्रपति हो चुके हैं जिन्होंने काफी दया दिखाई. तो चलिए एक नजर डालते हैं सभी राष्ट्रपतियों पर और जानते हैं कौन सबसे दयावान रहा और किसने सबसे अधिक सख्त रवैया अपनाया...

Nirbhaya Case Mercy Pleaप्रतिभा पाटिल सबसे दयावान राष्ट्रपति रहीं, जबकि प्रणब मुखर्जी ने सबसे अधिक सख्ती दिखाई.

'सख्त' प्रणब मुखर्जी

अगर सिर्फ पिछले कुछ राष्ट्रपतियों को देखें तो प्रणब मुखर्जी ने फांसी की सजा पाने वालों के प्रति सख्त रवैया अपनाया. उन्होंने 34 दया याचिकाओं का निपटारा किया, जिनमें से 4 को स्वीकार किया और उनकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदला, जबकि बाकी 30 की दया याचिकाएं खारिज कर दीं. बता दें कि याकूब मेमन ने दो बार याचिका डाली थी तो अगर दोनों याचिकाओं को अलग-अलग देखें तो प्रणब मुखर्जी ने 31 याचिकाएं खारिज कीं.

'दयावान' प्रतिभा पाटिल

सबसे दयावान राष्ट्रपतियों में रहीं प्रतिभा पाटिल, जिन्होंने 39 में से 34 याचिकाओं को स्वीकार कर लिया था, जबकि सिर्फ 5 को ही खारिज किया था. हालांकि, गुनहगारों पर इतनी दया दिखाने के लिए भी उनकी आलोचना हुई थी. उन्होंने तो 2012 में एक ऐसे शख्स की फांसी की सजा को भी उम्रकैद में बदल दिया था, जो 5 साल पहले ही 2007 में मर चुका था, जिसने नाबालिग लड़की का बलात्कार कर उसकी हत्या की थी. प्रतिभा पाटिल की जब खूब आलोचना हुई तो राष्ट्रपति कार्याकल ने स्पष्टीकरण भी जारी किया था, जिसमें लिखा था कि पाटिल ने हर दया याचिका पर फैसला सिर्फ गृह मंत्रालय की संतुति के आधार पर ही लिया था. हालांकि, प्रणब मुखर्जी ने बहुत से फैसले गृह मंत्रालय के विरुद्ध जाकर भी लिए, जो प्रतिभा पाटिल के राष्ट्रपति रहने के दौरान नहीं हुआ.

आइए एक नजर डालते हैं अब तक रहे सारे राष्ट्रपतियों पर और जानते हैं किस राष्ट्रपति ने कितनी दया दिखाई या कितनी सख्ती बरती.

- राजेंद्र प्रसाद ने सिर्फ एक दया याचिका खारिज की, जबकि 180 स्वीकार कीं.

- सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 57 दया याचिकाओं को स्वीकार कर लिया था. उन्होंने एक भी याचिका को खारिज नहीं किया था.

- जाकिर हुसैन ने 22 दया याचिकाओं को स्वीकार किया था. उनके कार्यकाल में किसी को भी फांसी के फंदे तक नहीं पहुंचाया गया.

- वीवी गिरि के पास कुल 3 याचिकाएं आई थीं, जिनमें से उन्होंने कोई भी दया याचिका अस्वीकार नहीं की थी और सभी को स्वीकार कर लिया था.

- फकरूद्दीन अली अहमद और एन संजीव रेड्डी के सामने एक भी दया याचिका नहीं आई थी.

- ज्ञानी जैल सिंह ने 30 दया याचिकाओं को अस्वीकार कर दिया था और केवल दो को ही स्वीकार किया था.

- आर वेंकटरामन ने 45 दया याचिकाओं को खारिज किया था, जबकि 5 याचिकाओं को स्वीकार किया था.

- एसडी शर्मा के पास कुल 18 दया याचिकाएं आई थीं और उन्होंने सभी 18 याचिकाओं को खारिज कर दिया था.

- के. आर. नारायणन के पास कोई भी दया याचिका नहीं आई थी.

- एपीजे कलाम ने सिर्फ दो याचिकाओं पर ही निर्णय दिया था, एक को खारिज कर दिया और दूसरे को स्वीकार किया.

- प्रतिभा पाटिल ने 34 दया याचिकाओं को स्वीकार किया था और पांच को खारिज कर दिया था.

- प्रणब मुखर्जी ने 31 दया याचिकाओं को अस्वीकार कर दिया था, जबकि चार को स्वीकार किया था.

- रामनाथ कोविंद के पास अब तक सिर्फ दो बार दया याचिका आई है. एक केस तो काफी पहले का है और दूसरा निर्भया के दोषी विनय शर्मा का है. विनय शर्मा की दया याचिका पहले भी राष्ट्रपति खारिज कर चुके हैं और उसने फिर से अक्षय और पवन के साथ मिलकर दया याचिका दायर कर दी है. हालांकि, ये दया याचिका भी खारिज होना लगभग तय ही समझिए.

दया याचिकाओं के साथ कोई तय समय नहीं है, जिसमें उसे स्वीकार या खारिज करना ही होता है. ये राष्ट्रपति पर निर्भर करता है कि वह जल्दी से जल्दी इस पर फैसला लेते हैं या फिर किसी भी वजह से फैसला लेने में देरी करते हैं. राष्ट्रपति से दया याचिका की गुहार लगाने वाले अपराधियों के वकील ये सारे कानूनी दावपेंच खूब समझते हैं, इसलिए वह तमाम तरीकों से फांसी की सजा टालने में लगे रहते हैं.

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