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Updated: 05 फरवरी, 2020 06:42 PM
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दिल्‍ली हाईकोर्ट (Delhi High court) ने साफ कर दिया है कि निर्भया केस (Nirbhaya case) के दोषियों को अलग-अलग फांसी नहीं दी जा सकती है. लेकिन, साथ ही कोर्ट ने सभी दोषियों को एक हफ्ते का वक्‍त दिया है, जिसमें वे सभी बचे हुए कानूनी प्रावधानों का इस्‍तेमाल इंसाफ पाने के लिए कर लें. यह मामला केंद्र सरकार के द्वारा दाखिल उसी याचिका पर कोर्ट के सामने आया था, जो निचली अदालत के उस फैसले के खिलाफ थी जिसमें निर्भया केस के दोषियों के डेथ वारंट (Death warrant) को स्‍थगित करने का आदेश दिया गया था. यानी इन दोषियों की फांसी कब होगी, इसका सस्‍पेंस दूर हुआ भी है, और नहीं भी.

निर्भया कांड के दोषियों की फांसी कानूनी पेंच में फंसकर भले टलती गई हो, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Election) में ये मुद्दा किसी की भी सियासी गुड्डी काट सकता है. यानी इस मुद्दे पर सियासी पेंच लड़ सकते हैं. मुद्दा कानूनी है, लेकिन सोशल मीडिया (Social Media) पर बीजेपी और आम आदमी पार्टी (AAP) के साथ कांग्रेस के ट्वीट वार से इसके सियासी होने के आसार और असर लगातार बढ़त पर है.

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के ट्वीट से साफ हो गया था कि अब सरकार निर्भया केस (Nirbhaya Case) में अलग नजरिया अपना रही है. केजरीवाल ने फांसी की सजा पर अमल टलने के बाद ट्वीट किया था- 'मुझे दुख है कि निर्भया के अपराधी कानूनी दांव पेंच ढूंढ कर फांसी को टाल रहे हैं. उनको फांसी तुरंत होनी चाहिए. हमें हमारे कानून में संशोधन करने की सख्त जरूरत है, ताकि रेप के मामलों में फांसी छह महीने के अंदर हो.'

बीजेपी (BJP) और कांग्रेस (Congress) का आरोप है कि दिल्ली सरकार (Delhi Government) सांप निकल जाने के बाद लकीर पीट रही है. क्योंकि जब इनको एक्शन में होना चाहिए था, तब किसी ने कोई सुध नहीं ली, लेकिन अब जब सब कुछ लुट चुका है तो सियासी फायदे के लिए घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं. आम आदमी पार्टी पुलिस के कंधे पर बंदूक रखकर केंद्र सरकार पर निशाना साध रही है.

Nirbhaya Case convicts execution politicisedनिर्भया केस में दोषियों की फांसी लगातार टलती जा रही है और दिल्ली चुनाव के मद्देनजर इस पर अब राजनीति भी शुरू हो गई है.

अब इस मामले में जब हमने कानून और प्रशासनिक विशेषज्ञों से बात की तो उनकी राय ये है कि पुलिस भले केंद्र सरकार के पास है, लेकिन जेल विभाग और प्रोसिक्यूशन यानी अभियोजन तो दिल्ली सरकार के पास ही है. दिल्ली सरकार को दो साल से किसने रोका था पटियाला हाउस कोर्ट जाकर ये बताने से कि इन दोषियों ने मृत्युदंड के फैसले को चुनौती देने के लिए कहीं कोई याचिका नहीं लगाई है. लिहाजा इनको जल्द फांसी दे दी जाए. सुप्रीम कोर्ट से दोषियों की विशेष अनुमति याचिका यानी एसएलपी खारिज होने के करीब ढाई साल बाद तिहाड़ जेल प्रशासन ने जब इनको दी गई सजा पर अमल करने वाली याचिका दायर की तब जाकर दोषियों ने अदालत में याचिकाएं लगाकर फांसी के आदेश को टालने की कवायद शुरू की.

इसके बाद भी मामले को कानूनी नजरिये से ही देखा जाता रहा, लेकिन इसी दौरान जब दिल्ली के चुनाव सिर पर आ गये तो चुपके से सियासी लोगों ने इस कानूनी आंच को तेज कर दिया. बीजेपी ने इस मामले में दिल्ली सरकार को लपेटना शुरू किया. यानी चुनावी भट्ठी पर सियासत की रोटियां सेकी जानी शुरू हो गईं. जब दिल्ली सरकार को भी लगा - देर ना हो जाए, कहीं देर ना हो जाए.

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मौका भांपते हुए ट्वीट किया. इसके बाद तो लाइक रिट्वीट करने का सिलसिला शुरू हो गया. सियासत के जानकारों को ये भी पता है कि मुफ्तखोरी के इस जमाने में ऐसे निर्भया कांड जैसे मुद्दे चुनावी नहीं बनते. लेकिन जनता का क्या ठिकाना कब कौन सा मुद्दा हावी हो जाए. ना जाने किस रूप में नारायण मिल जाएं. चुनावी वैतरणी में ना जाने कौन सा मगरमच्छ कब कहां खींच ले जाए.. क्या ठिकाना..

दूसरी ओर केंद्र सरकार भी आनन-फानन में दिल्ली हाईकोर्ट पहुंच गई थी. शनिवार को अर्जी लगाई कि जिन तीन दोषियों के पास अब अपने बचाव का कोई विकल्प नहीं बचा कम से कम इन तीनों को तो फांसी पर लटकाने का हुक्म दे दे अदालत. सरकार बोली- इसमें कोई कानूनी अड़चन भी नहीं होनी चाहिए. फिलहाल हाईकोर्ट ने अपने आदेश में केंद्र सरकार की बात तो नहीं मानी है, लेकिन निर्भया के दोषियों को एक हफ्ते की मोहलत और दी है. निर्भया मामले में जुड़े दाव-पेंच का उम्‍मीद करें कि यह आखिरी अध्‍याय हो.

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लेखक

संजय शर्मा संजय शर्मा @sanjaysharmaa.aajtak

लेखक आज तक में सीनियर स्पेशल कॉरस्पोंडेंट हैं.

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