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Updated: 14 अप्रिल, 2022 10:56 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी ने एक रिपोर्ट जारी कर दावा किया है कि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से अब तक 44 लाख से ज्यादा यूक्रेनी नागरिक देश छोड़ कर भाग चुके हैं. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के अनुसार, दूसरे विश्व युद्ध के बाद से यूरोप ने कभी इतने शरणार्थियों की संख्या नहीं देखी थी. यूक्रेनी शरणार्थी पोलैंड, मोल्दोवा, रोमानिया जैसे पड़ोसी देशों के साथ ही ब्रिटेन में भी शरण लेने के लिए पहुंच रहे हैं. वैसे, बीते दिनों ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन (Boris Johnson) यूक्रेन की राजधानी कीव की सड़कों पर यूक्रेनी राष्ट्रपति वलाडिमीर जेलेंस्की (Volodymyr Zelenskyy) के साथ टहलते नजर आए थे. वलाडिमीर जेलेंस्की के साथ मुलाकात के बाद जॉनसन ने यूक्रेन को सैन्य साजो-सामान मुहैया कराने की बात कही थी. लेकिन, जॉनसन ने ब्रिटेन सरकार की शरणार्थी नीति पर कुछ नहीं बोला था.

Britain policy for Ukrainian refugees ब्रिटेन की पॉलिसी में अवैध तरीके से ब्रिटेन आने वाले यूक्रेन और अन्य शरणार्थियों को जेल भेजे जाने तक का प्रावधान है.

दरअसल, रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद बोरिस जॉनसन ने ब्रिटेन को शरणार्थियों के लिए 'बहुत उदार' होने का दावा किया था. लेकिन, ब्रिटेन सरकार ने ये भी साफ कर दिया था कि बिना जांच के शरणार्थियों को देश के अंदर जगह नहीं दी जाएगी. वहीं, कुछ दिनों पहले ही ब्रिटेन की गृह मंत्री प्रीति पटेल ने यूक्रेन के शरणार्थियों के पुनर्वास की धीमी प्रक्रिया पर 'निराशा' जताई थी. वैसे, प्रीति पटेल का इस तरह से निराशा जताना चौंकाने वाला कहा जा सकता है. क्योंकि, ब्रिटेन की शरणार्थी नीति को कड़ा बनाने के लिए उन्होंने ही एक बिल पेश किया है. जिसमें अवैध तरीके से ब्रिटेन आने वाले यूक्रेन और अन्य शरणार्थियों को जेल भेजे जाने तक का प्रावधान है. हालांकि, ब्रिटेन का दावा है कि उसने यूक्रेनी नागरिकों को 41,000 वीजा दिए हैं, लेकिन उनमें से केवल एक चौथाई 12,500 ही ब्रिटेन पहुंचे हैं.

ब्रिटेन पहुंचने वाले ये 12,500 लोग कौन होंगे? इसका अंदाजा लगाना बहुत ज्यादा मुश्किल नहीं है. निश्चित तौर पर ये शरणार्थी उन 44 लाख से ज्यादा लोगों से हर मामले में बेहतर ही होंगे, जो अन्य देशों में बदहाल स्थितियों में रहने को मजबूर हैं. वैसे, ब्रिटेन ने नेशनैलिटी एंड बॉर्डर्स बिल में संशोधन के जरिये शरणार्थियों की संख्या पर लगाम लगाने की पूरी तैयारी कर ली है. और, इसके चलते यूक्रेन के आम शरणार्थियों को ब्रिटेन में शरण मिलना आसान नहीं रह जाएगा. हालांकि, ये अभी भी उतना आसान नहीं है. वैसे, भारत में नागरिकता संशोधन कानून यानी CAA पर छाती पीटने वाले तमाम लोगों को एक बार ब्रिटेन की शरणार्थी नीति पर भी एक नजर डाल लेनी चाहिए. बहुत हद तक संभव है कि ब्रिटेन की यूक्रेनी शरणार्थियों के लिए पॉलिसी के आगे CAA इन्हें बहुत 'दयावान' लगे. आइए जानते हैं ब्रिटेन की शरणार्थी नीति के बारे में...

ब्रिटेन के नागरिकता बिल की कुछ विशेष बातें

- बीते महीने नेशनैलिटी एंड बॉर्डर्स बिल पर चर्चा के दौरान ब्रिटेन के गृह विभाग ने उन रिपोर्ट्स का खंडन किया गया. जिनमें दावा किया गया था कि ब्रिटेन में शरण चाहने वाले लोगों को 4500 मील दूर साउथ अटलांटिक सागर में स्थित असेंशन द्वीप पर भेजा जा सकता है. हाल ही में बोरिस जॉनसन ने ऐलान किया है कि अवैध शरणार्थियों को रोकने के लिए सरकार ने ब्रिटेन में शरण लेने वालों को पहले 4500 मील दूर स्थित पूर्वी अफ्रीका के देश रवांडा जाना होगा. कायदे से देखा जाए, तो साउथ अटलांटिक सागर में स्थित असेंशन द्वीप और पूर्वी अफ्रीकी देश रवांडा में कोई खास अंतर नहीं है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो ब्रिटेन ने यूक्रेन के शरणार्थियों को अपने देश में शरण देने की जगह एक अन्य तीसरे देश के साथ आर्थिक समझौता किया है.

- मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अफ्रीका के गरीब देशों में शामिल रवांडा को ब्रिटेन सरकार शरणार्थियों को लेकर किए गए एक समझौते के तहत 120 मिलियन पाउंड देगा. बीते दिनों ब्रिटेन की गृह मंत्री प्रीति पटेल ने रवांडा की यात्रा की थी. और, इससे पहले प्रीति पटेल ने अल्बानिया और घाना को इस समझौते पर तैयार करना चाहा था. लेकिन, इन देशों ने मना कर दिया था. यूक्रेन के शरणार्थियों को ब्रिटेन एक ऐसे अफ्रीकी देश रवांडा में भेजने जा रहा है. जहां दो दशक पहले एक भयानक नरसंहार में 8 लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था. हालांकि, अब वहां ऐसे हालात नहीं हैं. लेकिन, यूक्रेन के शरणार्थी अफ्रीकी देश के हालातों में कैसे खुद को ढालेंगे, ये देखना दिलचस्प होगा. वैसे, रवांडा में ब्रिटेन सरकार यूक्रेन के शरणार्थियों को कैसे मदद मुहैया कराएगी, इसके बारे में भी उसने कोई जानकारी नहीं दी है.

- संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी यानी यूएनएचसीआर ने भी ब्रिटेन के इस समझौते पर सवाल उठाए हैं. यूएनएचसीआर ने चिंता जताते हुए सवाल किया है कि शरण लेने वालों को किसी अन्य देश कैसे भेजा जा सकता है? शरणार्थियों को उनके अधिकारों की सुरक्षा के बिना किसी दूसरे देश में कैसे भेजा जा सकता है? ये शरणार्थियों के प्रति जिम्मेदारियां निभाना नहीं है. ब्रिटेन के नेशनैलिटी एंड बॉर्डर्स बिल में अवैध अप्रवासियों को जेल भेजे जाने तक की बात की गई है. रूस-यूक्रेन युद्ध की भयावहता से बचने के लिए काफी संख्या में शरणार्थी इंग्लिश चैनल को छोटी-छोटी नावों के जरिये पार कर ब्रिटेन पहुंच रहे हैं. यूएनएचसीआर का कहना है कि ब्रिटेन सरकार इन शरणार्थियों की मदद की बजाय उन पर नियंत्रण और सजा को चुन रही है.

- कहा जा रहा है कि ब्रिटेन की सरकार यूरोपीय संघ से निकलने के दिए गए जनादेश यानी ब्रेग्जिट को ढाल बनाकर शरणार्थियों को देश में लेने से इनकार कर देगा. हालांकि, ब्रिटेन की बोरिस जॉनसन सरकार कहना नहीं भूलेगी कि हमारी करुणा अनंत हो सकती है, लेकिन लोगों की मदद करने की हमारी क्षमता नहीं है. ब्रेग्जिट को जरिया बनाकर बोरिस जॉनसन ब्रिटेन की सीमाओं पर नियंत्रण बनाए रखना चाहेंगे.

- ब्रिटेन की बोरिस जॉनसन सरकार यूक्रेन के शरणार्थियों को देश के बाहर से ही शरण देने का प्रोसेस पूरा करने के बाद ही एंट्री दे रही है. यूक्रेन से बड़ी संख्या में निकले बच्चे और महिलाएं इस प्रोसेस को कैसे पूरा कर पाएंगी, ये सवाल वहां के स्थानीय नेता लगातार उठा रहे हैं. वहीं, यूक्रेन के शरणार्थियों के पास ब्रिटेन पहुंचने के लिए आधिकारिक चैनलों के ही इस्तेमाल को मान्य माना जाएगा. आसान शब्दों में कहा जाए, तो रूस-यूक्रेन युद्ध से भाग रहे शरणार्थियों को हवाई जहाज या शिप के जरिये ही ब्रिटेन आना होगा. सवाल ये है कि आखिर देश छोड़कर भाग रहे लोग क्या इतने पैसों का इंतजाम कर सकेंगे?

वैसे, भारत में लाए गए नागरिकता संशोधन कानून यानी CAA में 31 दिसंबर, 2014 से पहले देश में आ चुके अवैध प्रवासियों को नागरिकता दिए जाने की बात की गई थी. बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में सताए जा रहे अल्पसंख्यकों यानी हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के शरणार्थियों को नागरिकता देने का संशोधन किया था. क्योंकि, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान मुस्लिम बहुल देश हैं. और, यहां पर अन्य धर्म के लोगों के साथ अमानवीय अत्याचारों में लगातार बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. हालांकि, भारत में बुद्धिजीवी वर्ग के एक धड़े और विपक्षी राजनीतिक दलों ने CAA के खिलाफ भ्रामक प्रचार करते हुए इसे मुस्लिम विरोधी साबित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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