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Updated: 24 जुलाई, 2021 02:31 PM
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पहले न्यूज अपडेट: पंजाब में कांग्रेस की सर्जरी करने के बाद कांग्रेस आलाकमान का पूरा ध्यान राजस्थान पर है. अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच विवादों के निपटारे के लिए बनी सुलह कमेटी की रिपोर्ट कांग्रेस आलाकमान को भेजने के बाद अब राजस्थान मंत्रिमंडल में फेरबदल कर सचिन पायलट की नाराज़गी दूर करने की कोशिश की जा रही है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत डॉक्टरों की सलाह की वजह से दिल्ली नहीं जा सके. तो शनिवार रात नौ बजे कांग्रेस के संगठन महासचिव KC वेणुगोपाल और प्रदेश के प्रभारी अजय माकन जयपुर आ रहे हैं. इस बीच प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का भी अजमेर दौरा रद्द कर जयपुर बुला लिया गया है. सचिन पायलट भी पिछले चार दिनों से जयपुर में जमे हुए हैं.

...इस पूरी कवायद से हांसिल क्या होगा?

पंजाब में कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर नवजोत सिंह सिद्धू की ताज़पोशी के बाद भी कांग्रेस का झगड़ा भले ही ख़त्म न हुआ हो, मगर फ़ौरी तौर पर ख़त्म मान लिया गया है. गांधी परिवार ने राजस्थान में ऐसे ही झगड़े के बीज राज्य के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बोए थे. अब वो उसी समस्या के बीज पंजाब चुनाव से पहले पंजाब में बो रही है. कीटनाशक डालकर फ़सल उपजाना आसान होता है मगर सेहत के लिए यह फ़ायदेमंद नहीं होता है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राजस्थान में क़द्दावर नेता थे. तब राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष के पद पर सचिन पायलट को बैठा दिया गया. यह फ़ैसला किए बिना कि अगर पार्टी जीतती है तो मुख्यमंत्री कौन बनेगा? राहुल गांधी का यूनाईटेड कलर ऑफ राजस्थान कांग्रेस की राजनीति का रंग-रंगीलो राजस्थान बन चुका है. आकांक्षाओं और महत्वाकांक्षाओं की लहरों पर सवार मिली जीत ने इतनी कड़वाहट पैदा कर दी कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बस चल रही है. बड़े-बड़े वादे कर चुनाव जिता गए राहुल गांधी की दुबारा लौटने की भी इच्छा नहीं होती. जिस तरह का झगड़ा राजस्थान सरकार में है. उसे देखकर लोग यही कहते हैं कि कांग्रेस के लिए अच्छा होता पांच साल और विपक्ष में बैठ जाती. मगर इस तरह की छीछालेदर तो पार्टी की नहीं होती. कांग्रेस पंजाब में अगर यह साफ़ नहीं करती है कि मुख्यमंत्री का उम्मीदवार कौन होगा तो राजस्थान जैसे हालात पंजाब में भी बनेंगे.

Punjab, Assembly Elections, Navjot Singh Sidhu, Amrinder Singh, Chief Minister, Rajasthan, Congressकैप्टन और सिद्धू के बीच जैसे हालात हैं माना जा रहा है कि राजस्थान जैसे हालात पंजाब के भी होने वाले हैं

दूसरी तरफ़ पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर नवजोत सिंह सिद्धू की ताज़पोशी के बाद अब बहुत सारे लोगों में यह उम्मीद भी जगी है कि राजस्थान पर भी कांग्रेस आलाकमान ध्यान देगा. पिछले एक साल से हाशिये पर पड़े सचिन पायलट के गुट की भी उम्मीद जगी है कि शायद कांग्रेस आलाकमान सचिन पायलट के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पार वैसे ही दबाव डालें जैसे पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह पर दबाव डाल कर सिद्धू को उनका हक़ दिलाया है.

यह इतना आसान नहीं है. क्योंकि जिद्दी सरदार पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और राजनैतिक चतुर सुजान राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के राजनीति करने के तौर तरीक़ों में ज़मीन आसमान का अंतर है. यह बात किसी से छुपी नहीं है कि अमरिंदर सिंह ने कभी भी कांग्रेस आलाकमान को वह भाव नहीं दिया जिसकी उम्मीद पंजाब में सरकार बनने के बाद गांधी परिवार कर रहा था.

मगर यह भी सच है कि शिकस्त खाने के डर की वजह से गांधी परिवार ने भी कभी अमरिंदर सिंह के साथ ज़ोर ज़बरदस्ती करने की कोशिश नहीं की. यहीं से अमरिंदर सिंह के मन में ग़लतफहमियां पैदा होती चली गई और जिस तरह की राजनीति अमरिंदर सिंह करते हैं उनके अपने काम करने के तरीक़े हैं. वह अपने फ़ार्महाउस में पड़े रहे, उन्हें पता ही नहीं चला कि कब उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गई.

नवजोत सिंह सिद्धू को सब बातों के शेर समझते थे. वह शेर-ए-पंजाब निकले. अमरिंदर के ज़्यादातर विधायक सिद्धू के साथ चले गए और अमरिंदर सिंह को कानों कान ख़बर नहीं लगी. उसी तरह से जैसे कमलनाथ के विधायक ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ चले गए और कमलनाथ को ख़बर तक नहीं लगी. लोग कहते हैं कि कांग्रेस आलाकमान ने अमरिंदर सिंह के साथ ज़बरदस्ती की है.

लेकिन यह सच है कि कांग्रेस आला कमान ने फूंक-फूंक कर क़दम रखा है और हर क़दम पर उन्हें रिपोर्ट मिली कि सिद्धू के पास विधायकों का बड़ा जनाधार है. मगर इससे उलट राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमितशाह की तरह 24 घंटे की राजनीति करते हैं. वह पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तब से यह समझ गए थे कि जिसके पास विधायक है कांग्रेस आलाकमान चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता है.

लिहाज़ा वह शुरू से विधायकों को सेट रखने में अपना पूरा ध्यान लगाते हैं. अपनी सरकार बचाने के बाद वह और भी चौकन्ने हो गए हैं. अभी तो लोग यह कहने लगे हैं कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की हालात ऐसी हो गई है कि गहलोत का विधायक बचाव का अचूक फ़ॉर्मूला है इफ न बट जो विधायक कहे वह झट.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांग्रेस के हर विधायक को अपने इलाक़े का मुख्यमंत्री बना रखा है.चपरासी से लेकर पुलिस कप्तान तक, नर्स से लेकर कलेक्टर तक विधायक अपनी मर्ज़ी से अपने इलाक़े में लगाते हैं.सचिन पायलेट की वजह से विधायकों की ऐसी मौज आयी है कि हर विधायक दिल में सचिन पायलट का गुणगान गाते नज़र आता है और ज़ुबान पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कानाम गुनगुनाता रहता है.

पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के साथ दूसरी बड़ी समस्या थी कि वह साढ़े चार सालों तक कांग्रेस आलाकमान को आंखें दिखाते रहे मगर यह भूल गए कि आख़िर में टिकट पाने के लिए उन्हें गांधी परिवार के पास आना पड़ेगा. चुनाव में उम्मीदवारों को पार्टी का पंजा छाप सिंबल गांधी परिवार ही बांटेगा. और जो सिंबल बांटेगा वह विधायक जितवाएगा और जो विधायक जितवाएगावह मुख्यमंत्री बनेगा.

अमरिंदर सिंह की हालत ऐसी हो गई है कि अब झक मारकर गांधी परिवार के दर पर जाना ही पड़ेगा क्योंकि वह कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी बनाकर चुनाव जीतने और जितवाने की स्थिति में नहीं है. पंजाब कांग्रेस के पूरे विवाद में सबसे ज़्यादा स्थिति कमज़ोर अमरिंदर सिंह की हुई है. बुद्धिमान लोग कहते हैं कि महान वह नहीं बनता जो केवल अपनी गलतियों से सीखता है बल्कि महान वह बनता है जो दूसरों की गलतियों से भी सीखता है.

यहीं पर अमरिंदर सिंह से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दूर दूर तक आगे हैं. ऐसी बात नहीं है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गांधी परिवार के सामने अपनी ताक़त नहीं दिखा रहे थे अगर ऐसा नहीं होता तो अजय माकन दिल्ली के एक पत्रकार के ट्वीट को रिट्वीट नहीं करते हैं जिसमें लिखा हुआ था कि अमरिंदर सिंह अशोक गहलोत और शीला दीक्षित जैसे नेता गांधी परिवार के नाम पर चुनाव जीतकर ख़ुद को लोकप्रिय और ताक़तवर समझने लगते हैं.

सूत्रों के अनुसार गांधी परिवार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की हठधर्मिता से काफ़ी परेशान हैं. मगर अशोक गहलोत अमरिंदर सिंह की स्थिति को देखकर अब दिल्ली दरबार में हाज़िरी के लिए तैयार हो गए हैं. जिस तरह से अमरिंदर सिंह फ़ार्म हाउस में पड़े रहते थे. ठीक उसी तरह से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पिछले डेढ़ साल से मुख्यमंत्री निवास में पड़े हैं.

जैसे ही जतिन प्रसाद के BJP में शामिल होने के बाद सचिन पायलट ने आवाज़ उठायी तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री निवास से विज्ञप्ति आयी कि उनकी तबियत नासाज़ है और डॉक्टरों ने 2 महीने तक घर से बाहर नहीं निकलने की हिदायत दी है. मगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जानते हैं कि झुक जाना ही उठ जाने की कला है.

लिहाजा डाक्टरों की सलाह दरकिनार करने के लिए तैयार हैं. अशोक गहलोत के साथ गांधी परिवार का पुराना रिश्ता है लिहाज़ा उन्हें उम्मीद है कि उसे वो ठीक कर लेंगे. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास अभी ढाई साल का वक़्त है लिहाज़ा दबाव में आने के लिए मजबूर नहीं है. इसलिए वह गांधी परिवार के पास जाएंगे और मोलभाव करेंगे.

फिर सचिन पायलट के हालात नवजोत सिंह सिद्धू से अलग हैं. उन परआरोप है कि वह सरकार गिराने में लगे हुए थे. मुख्यमंत्री अशोक ग़हलोत कुछ बोले न बोलें अपने साथ के निर्दलीय विधायकों से इस आरोप पर जब चाहें सचिन पायलट पर हमला करवा देते हैं. हालांकि कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अब पहले जैसी धमक 10 जनपथ में नहीं है.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपना पहला कार्यकाल पूरा होते ही अपने निजी सचिव के तौर पर काम करने वाले राज्य प्रशासनिक सेवा के अपने ख़ास अधिकारी धीरज श्रीवास्तव को सोनिया गांधी के यहां लगवा दिया था. उसके बाद धीरज श्रीवास्तव नौकरी छोड़कर प्रियंका गांधी के निजी सचिव बन गए थे. प्रियंका गांधी के निजी सचिव के पद से धीरज श्रीवास्तव के हटाए जाने के बाद अशोक गहलोत की पकड़ गांधी परिवार में कमज़ोर हुई है.

गहलोत के मित्र और गांधी परिवार के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल की मृत्यु के बाद अब उनका संदेश दायें- बाएं और किनारे से गांधी परिवार तक पहुंचाने वाला कोई बचा नहीं है. गांधी परिवार के नज़दीक फ़िलहाल KC वेणुगोपाल और अजय माकन जैसे नई पीढ़ी के नेता है जहां पर गहलोत की पकड़ पहले की तरह मज़बूत नहीं है.

कांग्रेस आलाकमान और ख़ास करके प्रियंका गांधी की यह सोच है कि कांग्रेस को आगे ले जाने के लिए नई पीढ़ी के नेताओं की ज़रूरत है. गांधी परिवार के बाद सचिन पायलट एकमात्र ऐसे नौजवान नेता हैं जिनके पास भीड़ को खींचने का चुंबक है. जिसकी कमी कांग्रेस में महसूस की जा रही है. राजस्थान के बाहर भी सचिन पायलट का सजातीय जनाधार और युवाओं के साथ जुड़ाव है.

फिर गांधी परिवार अतीत के साथ बैठकर वक़्त ज़ाया नहीं करना चाहता है. जो बीत गई सो बात गई के तर्ज पर आगे बढ़ना चाहता है. इसलिए गहलोत पहले की तरह मज़बूत नहीं दिखते हैं मगर फिर भी राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं.

अब तक वह जिस तरह की राजनीति करते आए हैं उसमें कहा जाता है कि अशोक गहलोत का काटा पानी नहीं मांगता मगर इस बार एक नौजवान राजनेता सचिन पायलट शिकस्त खाने के बावजूद उनसे पूरा समंदर मांग रहा है.

अशोक गहलोत के गांधी परिवार की नाराजगी की सबसे बड़ी वजह बतायी जाती है कि जब जैसलमेर में बैठकर वह जीत का जश्न मना रहे थे और समझ रहे थे कि सचिन पायलट नाम का कांटा उनके पैरों से हमेशा हमेशा के लिए निकल गया तब प्रियंका गांधी ने मिठाई खिलाकर पायलट के वापस जयपुर भेज दिया और अब वह अपना हक़ मांगने के लिए पैर पटक रहे हैं.

गांधी परिवार ने तब उनसे कोई बातचीत नहीं की थी. माना जाता है कि तभी से उनकी दूरियां गांधी परिवार से बढ़ती चली गई थी. मगर वक़्त की नजाकत को देखते हुए अशोक गहलोत के बारे में कहा जाता है कि राजनीति के इस पुराने जादूगर के पास कई सारे नए खेल अभी बचे हुए हैं.  कटी हुए गर्दनों को जोड़ना दुनिया के किसी डाक्टर के बस में नहीं यहतो बस जादू के खेल में जादूगर हीं दिखता है.

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