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Updated: 19 अगस्त, 2018 06:45 PM
अभिनव राजवंश
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  @abhinaw.rajwansh
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पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान पूर्व क्रिकेटर और कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू के पाक आर्मी चीफ से गले मिलने और साथ ही पीओके के राष्ट्रपति के बगल में बैठने को लेकर सिद्धू की जम कर खिंचाई हो रही है. देशभक्ति का सर्टिफिकेट पाने का नया अड्डा बन चुके सोशल मीडिया पर तो सिद्धू को देशद्रोही तक करार दिया जा चुका है और देशभक्ति के नए पाठ भी सोशल मीडिया ही सिद्धू को पढ़ा रहा है. इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी समेत कुछ दलों ने भी सिद्धू के इस कदम की आलोचना की है.

नवजोत सिंह सिद्धू, पाकिस्तान, इमरान खान, सोशल मीडियासिद्धू के पाक आर्मी चीफ से गले मिलने को लेकर विवाद खड़ा हो गया है.

सिद्धू की आलोचना इस बात के लिए भी हो रही है कि उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को श्रंद्धांजलि देने के बजाय पाकिस्तान जाने को तव्वजो दी. जबकि उनके दो साथी क्रिकेटर सुनील गावस्कर और कपिल देव ने इमरान खान का निमंत्रण मिलने के बावजूद भी उनके शपथ ग्रहण समारोह में नहीं जाने का फैसला किया. हालांकि, यह सही है कि सिद्धू अपने साथी क्रिकेटरों से प्रेरणा लेकर पाकिस्तान जाने से बच सकते थे. ऐसा कर सिद्धू भारत पाकिस्तान के तल्ख़ रिश्तों के बीच खुद को किसी विवाद में पड़ने से बचा सकते थे.

हालांकि, सिद्धू का पाकिस्तान जाने का फैसला भी कुछ ऐसा नहीं था, जिसको लेकर इतना हो हल्ला मचाने की जरूरत है. सिद्धू कोई पहले भारतीय राजनेता नहीं जो पाकिस्तान गए हैं, बल्कि समय समय भारत से लोग पाकिस्तान और पाकिस्तान से लोग भारत आते रहे हैं. वैसे सिद्धू की इस यात्रा का विरोध कर रहे आलोचक यह तर्क जरूर दे सकते हैं कि अभी दोनों देशों के रिश्ते अच्छे नहीं हैं, तो यह याद कर पाना भी संभव नहीं लगता कि पिछले 70 सालों के दौरान कब भारत-पाकिस्तान का रिश्ता ऐसा रहा है जब पाकिस्तान जाया जा सकता है.

और रही बात पाकिस्तान आर्मी चीफ से गले मिलने का तो जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को दोस्त माना जा सकता है तो क्या आर्मी चीफ को गले लगाना इतना बड़ा गुनाह हो गया है. यह जरूर है कि पाकिस्तान आर्मी चीफ का ओहदा अप्रत्यक्ष रूप से प्रधानमंत्री से बड़ा रहा है, मगर प्रत्यक्ष रूप से तो प्रधानमंत्री ही देश कि कमान संभालते हैं. ऐसे में जब प्रधानमंत्री से गले लगना गुनाह नहीं तो आर्मी चीफ को गले लगाने पर इतनी हाय तौबा क्यों? और फिर सिद्धू को इस बात का लाभ भी दिया जा सकता है कि सिद्धू जानबूझ कर उनसे गले मिलने नहीं गए थे, बल्कि यह अचानक टकराने जैसी मुलाक़ात ही ज्यादा लगती है.

इतिहास गवाह है कि समय-समय पर भारतीय राजनेता पाकिस्तान से बेहतर सम्बन्ध बनाने को लेकर प्रयास करते रहे हैं, इसके उदाहरण के लिए नरेंद्र मोदी द्वारा पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ के जन्मदिन पर पाकिस्तान दौरा हो या पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की बस द्वारा लाहौर की यात्रा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो भारत पाकिस्तान के संबंधों की मधुरता के लिए अपने शपथ ग्रहण समारोह में बाकायदा पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को भी आमंत्रित किया था, जिसे नवाज़ शरीफ ने स्वीकार भी किया था.

ऐसे में सिद्धू के पाकिस्तान दौरे को कोई गहरा मतलब न निकालते हुए, इसे भारत पाकिस्तान के संबंधों की मधुरता की दिशा में लिए गया एक कदम के रूप में भी लिया जा सकता है. और जो लोग सिद्धू के पाकिस्तान जाने से खुश मगर आर्मी चीफ के गले लगाने का विरोध कर रहे हैं वो 'गुड़ खा कर गुलगुले से परहेज' वाली कहावत को चरितार्थ करते नजर आ रहे हैं.

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अभिनव राजवंश अभिनव राजवंश @abhinaw.rajwansh

लेखक आज तक में पत्रकार है.

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