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Updated: 14 अगस्त, 2018 04:59 PM
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राज्य सभा के उपसभापति चुनाव में ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने निर्णायक भूमिका निभायी. आखिरी दौर में नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी यानी बीजू जनता दल किंग मेकर की भूमिका में आ चुकी थी. हालांकि, ये बात नवीन पटनायक को पहले से मालूम थी.

आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फोन पहुंचा और नवीन पटनायक ने हां कर दी. प्रधानमंत्री मोदी पर 'हरि कृपा' के बदले अब नवीन पटनायक मोदी सरकार से रिटर्न गिफ्ट चाहते हैं.

बतौर रिटर्न गिफ्ट नवीन पटनायक केंद्र सरकार से ओडिशा में विधान परिषद की मंजूरी चाहते हैं. नवीन पटनायक सरकार ने अपने स्तर पर इसकी तैयारी पूरी कर ली है.

ओडिशा में विधान परिषद की जरूरत क्यों?

मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने 2015 में अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगी नृसिंह चरण साहू की अध्यक्षता में एक कमेटी बनायी. इस कमेटी में बीजेपी के साथ साथ बीजेपी और कांग्रेस के भी विधायक शामिल किये गये. कमेटी के सदस्यों ने बिहार, तेलंगाना, महाराष्ट्र और कर्नाटक का दौरा करने के बाद अपनी रिपोर्ट तैयार की और मुख्यमंत्री को सौंप दी है. इस रिपोर्ट पर ओडिशा विधानसभा के मॉनसूत्र सत्र में चर्चा होनी है. विधानसभा में पास होने के बाद इसे केंद्र को भेजा जाएगा. पहले लोक सभा और फिर राज्य सभा की मंजूरी के बाद मसौदे पर राष्ट्रपति दस्तखत करेंगे और तब कहीं जाकर विधान परिषद के गठन की प्रक्रिया शुरू होगी. इसका ढांचा तेलंगाना विधान परिषद की तर्ज पर होगा.

nitish, naveen patnaikएक हिसाब बराबर, दूसरे में रिटर्न गिफ्ट चाहिये...

पहला सवाल तो यही उठ रहा है कि आखिर ओडिशा में होने जा रहे विधानसभा चुनावों से पहले विधान परिषद की जरूरत क्यों आ पड़ी है?

नवीन पटनायक को ओडिशा में सत्ता विरोधी लहर का डर सताने लगा है. साथ ही, सूबे में बीजेपी के एक्टिव होने से बीजेडी विधायकों के पार्टी छोड़ने का अंदेशा भी नवीन पटनायक को है. विधान परिषद के गठन से नवीन पटनायक को डबल बेनिफिट की उम्मीद जगी है.

असल में बीजेडी के कई विधायकों का दो या दो से ज्यादा टर्म लगातार हो चुका है. सत्ता विरोधी लहर से बचने के लिए नवीन पटनायक को फ्रेश चेहरों की जरूरत लग रही है. लेकिन नये चेहरों को मौका देने का मतलब पुराने विधायकों का टिकट काट कर उनकी नाराजगी मोल लेना होगा. टिकट कटने की स्थिति में विधायकों के बीजेपी का दामन थाम लेने की भी आशंका बन रही है. विधान परिषद का गठन हो जाये तो ये सारी समस्याएं सुलझ जाएंगीं. विधान परिषद बन जाने पर नवीन पटनायक संभावित बागी विधायकों को पहले ही ऐडजस्ट कर लेंगे - और नये उम्मीदवारों के साथ एक बार फिर सत्ता में वापसी की कोशिश करेंगे.

कहां कहां विधान परिषद

फिलहाल देश के छह राज्यों - आंध्र प्रदेश, बिहार, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में विधान परिषद है. संविधान के अनुच्छेद 169, 171 (2) में विधानपरिषद के गठन का प्रावधान है. राज्य सभा की तरह विधान परिषद राज्यों में उच्च सदन होता है जिसके सदस्यों का अप्रत्यक्ष तरीके से चुनाव होता है. जिस तरह राज्य सभा के लिए राष्ट्रपति कुछ सदस्यों को मनोनीत करते हैं, विधानपरिषद में ये दायित्व राज्यपाल के पास होता है. इनके अलावा संसद ने राजस्थान और असम को विधान परिषद के गठन की मंजूरी दे दी है. ओडिशा में 48 सदस्यों वाली विधान परिषद प्रस्तावित है.

ओडिशा में विधान परिषद के लिए सदस्यों की कम से कम संख्या 40 होनी चाहिये. दरअसल, विधानपरिषद में विधानसभा के कुल सदस्यों की संख्या का 33 फीसदी सदस्य होने चाहिये. ओडिशा विधानसभा में 147 सदस्य हैं. इनमें 118 सत्ताधारी बीजेडी के हैं.

हिसाब बराबर करना चाहेंगे नवीन पटनायक

नीतीश कुमार और नवीन पटनायक में एक विशेष फर्क है. नीतीश कुमार दो राष्ट्रीय दलों बीजेपी और कांग्रेस ने बराबर नजदीकी रिश्ता बना कर रखते हैं. नवीन पटनायक दोनों ही दलों से एक खास दूरी बनाये रखते हैं. यहीं वजह है कि कर्नाटक जैसे विपक्ष के सबसे बड़े जमावड़े से नवीन पटनायक दूर भी रहते हैं - और जरूरत की राजनीति के हिसाब से बीजेपी को मौके बे मौके सपोर्ट भी करते रहते हैं.

जब नीतीश कुमार ने नवीन पटनायक से जेडीयू नेता हरिवंश के लिए उपसभापति चुनाव में समर्थन मांगा तो बेहिचक उन्होंने हामी भर दी. हालांकि, ये करके नवीन पटनायक ने एहसान का बदला चुका था. नवीन पटनायक के ही कहने पर नीतीश कुमार ने 2012 के राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी उम्मीदवार पीए संगमा को वोट दिया था.

नीतीश कुमार के साथ तो नवीन पटनायक ने हिसाब बराबर कर लिया, अब बीजेपी के सामने भी ऐसा ही मौका है. देखना है बीजेपी हंसते हंसते रिटर्न गिफ्ट थमा देती है या फिर किसी तरह की सौदेबाजी की कोई शर्त रखती है.

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