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Updated: 20 जून, 2021 02:06 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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असम में चार बार के कांग्रेस विधायक रूपज्‍योति कुर्मी ने इस्‍तीफा देकर पार्टी से अपना नाता तोड़ लिया. रूपज्योति कुर्मी ने कांग्रेस छोड़ने का कारण शीर्ष नेतृत्व का बुजुर्ग नेताओं को प्राथमिकता देना बताया. कुछ ही दिन पहले यूपीए सरकार के दौरान केंद्रीय मंत्री रहे जितिन प्रसाद भी कांग्रेस का साथ छोड़ भाजपा की 'वैतरणी' में डुबकी लगा चुके हैं. राजस्थान और पंजाब में भी कांग्रेस के लिहाज से सियासी हालात कुछ ठीक नहीं कहे जा सकते हैं.

सचिन पायलट और नवजोत सिंह सिद्धू जैसे नेताओं ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों के खिलाफ ही बगावत कर दी है. कांग्रेस के युवा नेताओं में बढ़ रही नाराजगी और पलायन सीधे तौर पर शीर्ष नेतृत्व की इन्हें साधने में नाकामयाबी को दर्शाता है. इन सबके बीच हरियाणा में कांग्रेस के पूर्व सांसद और उद्योगपति नवीन जिंदल के भाजपा में शामिल होने की खबरें सामने आ रही हैं. अटकलें लगाई जा रही हैं कि बहुत जल्द ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद की राह पर चलते हुए नवीन जिंदल भी भाजपा का दामन थाम सकते हैं. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर नवीन जिंदल के भाजपा में शामिल होने की अटकलों में कितना दम है?

अटकले हैं कि बहुत जल्द ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद की राह पर चलते हुए नवीन जिंदल भी भाजपा का दामन थाम सकते हैं.अटकले हैं कि सिंधिया और जितिन की राह पर चलते हुए नवीन जिंदल भी भाजपा का दामन थाम सकते हैं. (फोटो साभार : naveenjindal.com)

कांग्रेस और राहुल गांधी से क्यों बढ़ी नाराजगी

यूपीए-2 के दौरान कांग्रेसनीत सरकार पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे थे. इनमें से एक था कोलगेट यानी कोयला घोटाला. सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने कई कोल ब्लॉक बिना नीलामी के ही आवंटित कर दिए थे. जिसकी वजह से सरकारी खजाने को 1.86 लाख करोड़ का नुकसान हुआ था. इस कोयला घोटाले में सरकारी और प्राइवेट दोनों तरह की कंपनियां शामिल थीं. जिसमें जेएसपीएल का भी नाम सामने आया था. नवीन जिंदल जेएसपीएल कंपनी के चेयरमैन हैं. इसी दौरान कोयला घोटाले से जुड़े कुछ दस्तावेजों को लेकर उन्होंने जी मीडिया के पत्रकारों का 100 करोड़ की मांग करने का स्टिंग वीडियो बना लिया. इसके चलते सुभाष चंद्रा और नवीन जिंदल के बीच ठन गई थी. सुभाष चंद्रा भी हिसार से ही हैं और क्षेत्र में व्यापक प्रभाव रखते हैं. कहा जाता है कि 2014 में जिंदल परिवार को चुनाव हरवाने में सुभाष चंद्रा ने बड़ी भूमिका निभाई थी. इस तमाम खींचतान और आरोपों से घिरे नवीन जिंदल को राहुल गांधी और कांग्रेस की ओर से समर्थन के नाम पर कुछ खास हासिल नहीं हुआ.

जिंदल परिवार का हरियाणा की राजनीति में प्रभाव

जिंदल समूह के संस्थापक ओम प्रकाश जिंदल 1991 से 2005 तक राजनीति में सक्रिय रहे. हिसार विधानसभा सीट कांग्रेस के करीबी माने जाने वाले ओम प्रकाश जिंदल का गढ़ कही जाती थी. वह 1996 में कुरुक्षेत्र से लोकसभा सांसद भी बने. 2005 में एक हवाई दुर्घटना में निधन के बाद उनकी पत्नी सावित्री जिंदल ने हिसार उपचुनाव में जीत हासिल की. 2009 में दोबारा विधायक बनीं. हरियाणा की भूपेंद्र हुड्डा सरकार में जिंदल परिवार ने कई मंत्रालय संभाले. इस दौरान 2004 और 2009 में राहुल गांधी के करीबियों में शुमार नवीन जिंदल कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट से सांसद रहे. हालांकि, 2014 में मोदी लहर के सामने नवीन जिंदल लोकसभा चुनाव हार गए. इसी साल हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में सावित्री जिंदल को भी हार का मुंह देखना पड़ा. जिसके बाद जिंदल परिवार ने चुनाव लड़ने से परहेज कर लिया.

नवीन जिंदल का भाजपा की ओर झुकाव

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से प्रेरणा लेने वाले नवीन जिंदल अपने पिता ओम प्रकाश जिंदल के कहने पर 2004 में कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़े थे. हालांकि, वह कुरक्षेत्र से अपना पहला लोकसभा चुनाव भाजपा के टिकट पर लड़ना चाहते थे. लेकिन, उस समय ओम प्रकाश जिंदल कांग्रेस के स्थापित नेता बन चुके थे और वे चाहते थे कि उनका बेटा भी कांग्रेस पार्टी से ही जुड़े. पिता के दबाव में उन्होंने कांग्रेस में एंट्री ली. जिसके बाद लगातार दो लोकसभा चुनाव कांग्रेस की टिकट पर जीते. 2014 में आई मोदी लहर में वह कुरुक्षेत्र की लोकसभा सीट नहीं बचा सके. इस दौरान वह कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के काफी करीबी बन गए थे. कहा जाता है कि 2019 में नवीन जिंदल लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन पारिवारिक दबाव के चलते उन्होंने चुनाव लड़ने से मना कर दिया. दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी और उनके बड़े भाई ने नवीन को कांग्रेस के टिकट पर चुनाव न लड़ने की सलाह दी थी. यही वजह रही कि उन्होंने चुनाव में न जाने का फैसला लिया.

भाजपा का सियासी पैंतरा

माना जाता है कि 2018 में चंद्रा और जिंदल के बीच में आई कटुता को खत्म करने के लिए भाजपा के एक केंद्रीय मंत्री ने प्रयास किए और सफलता भी पाई. छह साल तक चले कथित धन उगाही के मामले को नवीन जिंदल ने वापस ले लिया. इस सुलह के बाद से ही कहा जा रहा था कि नवीन जिंदल भाजपा में शामिल हो सकते हैं. दरअसल, 2019 के आम चुनाव से पहले हुई सुलह से कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट पर नवीन की दावेदारी बढ़ गई थी. दरअसल, 2014 में जिंदल को चुनाव में शिकस्त देने वाले भाजपा सांसद राजकुमार सैनी चुनाव जीतने के बाद बागी हो गए थे. सैनी को 2019 में सबक सिखाने के लिए भाजपा में नवीन जिंदल को टिकट देने की बात उठी. जिसे जिंदल ने विनम्रतापूर्वक मना कर दिया. हालांकि, अप्रत्यक्ष रूप से जिंदल के समर्थन के साथ भाजपा प्रत्याशी नायब सिंह सैनी ने कुरुक्षेत्र सीट से बड़ी जीत हासिल की.

हाल ही में जितिन प्रसाद के भाजपा में शामिल होने के बाद एक बार फिर से नवीन जिंदल के भाजपा में शामिल होने की खबरों ने जोर पकड़ा है. नवीन जिंदल के भाजपा में शामिल होने से कुरुक्षेत्र सीट के अंतर्गत आने वाली विधानसभा सीटों पर पार्टी का वर्चस्व बढ़ सकता है. इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा बहुमत से दूर रह गई थी. जिसके चलते वहां जजेपी के साथ गठबंधन की सरकार चल रही है. 2014 और 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनावों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि यहां की 9 विधानसभा सीटों में से भाजपा को पिछले चुनाव नतीजों के अनुसार एक सीट का नुकसान हुआ था. अगर नवीन जिंदल भाजपा में शामिल होते हैं, तो अगले विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र में उसकी सीटें बढ़ सकती हैं. जो विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए मददगार हो सकतै है. लेकिन, हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में होने हैं, वो भी लोकसभा चुनाव के बाद.

नवीन जिंदल एक उद्योगपति होने के साथ ही मंझे हुए राजनेता भी हैं. कहा जा सकता है कि 2024 के आम चुनाव से पहले भाजपा को लेकर देश में माहौल को भांपने के बाद ही उनके लोकसभा चुनाव से पहले ही पार्टी में शामिल होने की संभावना है. वहीं, भाजपा चाहेगी कि जिंदल हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके अशोक तंवर को भी पार्टी के साथ लाने की कोशिश करें. अशोक तंवर ने इसी साल फरवरी में नई पार्टी लॉन्च की है. तंवर को साधने में भी समय लगने की पूरी संभावना है. कोरोना महामारी के दौरान जिंदल की औद्योगिक इकाइयों ने भाजपा शासित राज्यों को भी बढ़-चढ़ कर ऑक्सीजन सप्लाई की थी. भाजपा से उन्होंने संबंध मधुर बनाए हुए हैं, लेकिन कांग्रेस को अभी तक छोड़ा नहीं है. हालांकि, 2019 के बाद से ही वह हाशिये पर हैं. इस स्थिति में कहा जा सकता है कि शायद नवीन जिंदल भाजपा में शामिल होने के लिए इतनी जल्दबाजी नहीं दिखाएंगे. भाजपा को जिंदल के लिए इंतजार करना पड़ेगा.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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