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Updated: 01 अगस्त, 2021 07:23 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ एक मजबूत विपक्ष को अभी से तैयार करने की कवायद शुरू हो चुकी है. कहा जा सकता है कि आधिकारिक तौर पर पीएम मोदी के खिलाफ इस मुहिम का आगाज तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान ही कर दिया था. मिशन 2024 के मद्देनजर ही ममता बनर्जी दिल्ली दौर पर भी आई थीं. और, जाने से पहले वादा भी कर गई हैं कि हर दो महीने में दिल्ली आती रहेंगी. संयुक्त विपक्ष का गठजोड़ तैयार करने लिए ममता बनर्जी ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की.

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि पीएम मोदी और भाजपा के सामने गठबंधन के सहारे एक सशक्त विकल्प खड़ा करने की ये रणनीति काफी हद तक कामयाब हो सकती है. लेकिन, इस मजबूत विपक्ष में नरेंद्र मोदी के सामने गठबंधन का चेहरा कौन होगा, सबसे अहम सवाल यही है. संयुक्त विपक्ष का ये गठबंधन जब बनकर तैयार खड़ा होगा, उस समय कौन पीएम पद को लेकर दावेदारी जताएगा, इसे लेकर अभी से कयास लगाना मुश्किल है. लेकिन, विपक्ष के चेहरे के तौर पर तीन ऐसे नाम हैं, जो तय माने जा सकते हैं. आइए जानते हैं वो कौन से चेहरे हैं, जो मिशन 2024 में विपक्ष की ओर से चैलेंजर बनने का दम-खम रखते हैं.

अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी और राहुल गांधी 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष का चेहरा इन तीन नेताओं के बीच से ही निकलेगा.अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी और राहुल गांधी 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष का चेहरा इन तीन नेताओं के बीच से ही निकलेगा.

परंपरागत चैलेंजर के रूप में सामने हैं राहुल गांधी

केरल के वायनाड से सांसद राहुल गांधी कांग्रेस की ओर से भाजपा के खिलाफ एक परंपरागत चैलेंजर माने जा सकते हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी यूपीए गठबंधन में शामिल राजनीतिक दलों के अघोषित चेहरे के तौर पर विकल्प थे. वहीं, 2019 के आम चुनाव में राहुल गांधी ने खुद आगे बढ़कर कांग्रेस की कमान संभाली थी और पार्टी की ओर से उनका नाम पहले ही घोषित किया जा चुका था. 2018 में हुए मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज कर भाजपा को बुरी तरह से चौंका दिया था. वहीं, उससे एक साल पहले नरेंद्र मोदी के गढ़ गुजरात में कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी. कहा जा सकता है कि राहुल गांधी की जादू इन चुनावों में कांग्रेस के काफी काम आया था.

2021 में राहुल गांधी एक अलग अवतार में नजर आ रहे हैं.2021 में राहुल गांधी एक अलग अवतार में नजर आ रहे हैं.

राहुल गांधी इस समय कांग्रेस की अंदरुनी कलह से जूझ रहे हैं. उनकी ही पार्टी के कुछ नेताओं ने राहुल गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. लेकिन, 2021 में राहुल गांधी एक अलग अवतार में नजर आ रहे हैं. उन्होंने पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच चल रहे सियासी घमासान का अपने अलग अंदाज वाला हल निकाला. राजस्थान में खींचतान को शांत करने के लिए कदम बढ़ा दिए हैं. माना जा रहा है कि 2024 से पहले लोगों को एक नई कांग्रेस दिखाई देगी, जिसके सूत्रधार पूरी तरह से राहुल गांधी ही होंगे. राहुल गांधी खुद को साबित करने का कोई मौका छोड़ते नजर नहीं आ रहे हैं.

एक बात और है, जो पूरी तरह से राहुल गांधी के पक्ष में जाती है और वो ये है कि कांग्रेस का इकोसिस्टम बहुत मजबूत है. इसका अंदाजा इस बात से ही लग जाता है, जब एनसीपी चीफ शरद पवार तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट के कुछ दिन बाद ही कांग्रेस की बिना किसी भी विकल्प की संभावना को नकारते हुए नजर आने लगते हैं. वहीं, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का 'भाजपा को कोई तीसरा या चौथा मोर्चा चुनौती नहीं दे सकता' वाला बयान भी कहीं न कहीं कांग्रेस के इस इकोसिस्टम का ही मुजाहिरा करता है. वहीं, कांग्रेस के पाले में भाजपा-विरोधी बुद्धिजीवी वर्ग और सिविल सोसाइटी का एक बड़ा हिस्सा खड़ा नजर आता है. 

अरविंद केजरीवाल साबित हो सकते हैं डार्क हॉर्स

आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल विपक्ष के चेहरे के रूप में एक सबसे मुफीद नेता नजर आते हैं. नरेंद्र मोदी से सीधी टक्कर लेने का खिताब फिलहाल ममता बनर्जी को दिया जा रहा हो. लेकिन, अरविंद केजरीवाल ने खुद को सत्ता का केंद्र कही जाने वाली दिल्ली में दोबारा सीएम की कुर्सी हासिल कर साबित कर दिया है कि जनता के बीच सड़क, बिजली, पानी जैसे मूलभूत मुद्दे ही मायने रखते हैं. अगले साल होने वाले यूपी, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनावों में मणिपुर को छोड़ दिया जाए, तो हर चुनावी राज्य में केजरीवाल ने दस्तक दे दी है. यूपी में अरविंद केजरीवाल सपा के साथ गठबंधन करने की कोशिश में लगे हुए हैं. पंजाब में पिछले विधानसभा चुनाव में ही कांग्रेस के सामने मुख्य विपक्षी दल के तौर पर स्थापित हो गए थे. उत्तराखंड में भाजपा और कांग्रेस विरोधी वोटों के सहारे अपनी चुनावी राजनीति को धार दे रहे हैं. और, गोवा में भी कांग्रेस के विकल्प के तौर पर खुद को तैयार कर रहे हैं.

भाजपा के सामने विपक्ष के चैलेंजर के रूप में अरविंद केजरीवाल डार्क हॉर्स साबित हो सकते हैं.भाजपा के सामने विपक्ष के चैलेंजर के रूप में अरविंद केजरीवाल डार्क हॉर्स साबित हो सकते हैं.

भाजपा के सामने विपक्ष के चैलेंजर के रूप में अरविंद केजरीवाल डार्क हॉर्स साबित हो सकते हैं. उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में अरविंद केजरीवाल ने 2014 के बाद से ही धीरे-धीरे पकड़ बनानी शुरू कर दी है. पंजाब में अकाली दल और भाजपा के गठबंधन को तीसरे नंबर पर धकेलने में केजरीवाल के चेहरे ने बड़ी भूमिका निभाई थी. पीएम मोदी की ही तरह अरविंद केजरीवाल का राजनीतिक करियर भी बेदाग रहा है. उन पर किसी तरह का कोई व्यक्तिगत आक्षेप या आरोप नहीं है. ईमानदार नेता के तौर पर उनकी सर्वस्वीकार्यता को टक्कर देना किसी के लिए भी आसान नहीं होगा.

ममता बनर्जी विपक्ष का एक सशक्त चेहरा

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में जीत के बाद विपक्ष की राजनीति का पावर सेंटर बन चुकीं ममता बनर्जी प्रधानमंत्री पद के रेस में सबसे आगे नजर आती हैं. दरअसल, बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान 'दीदी' ने पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा के कद्दावर नेताओं की पूरी फौज से जिस तरह से अकेले दम पर चुनावी रण जीता, उसने देश के तमाम विपक्षी दलों में भाजपा के खिलाफ ममता बनर्जी की स्वीकार्यता को शिखर पर पहुंचा दिया. तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव, हेमंत सोरेन, उद्धव ठाकरे समेत विपक्ष के तकरीबन हर नेता ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस की मौजूदगी के बावजूद ममता बनर्जी पर भरोसा जताया. चुनाव के दौरान और जीत के बाद ममता बनर्जी ने पीएम मोदी के खिलाफ अपना हमला जारी रखा. ममता बनर्जी नंदीग्राम से चुनाव हारने के बाद भी भाजपा की नाक में दम कर रखा है. बंगाल में उपचुनाव कराने को लेकर मोदी सरकार और तृणमूल कांग्रेस के बीच खींचतान जारी है.

ममता बनर्जी की पहचान एक्शन में विश्वास रखने वाली नेता के तौर पर बनने लगी है.ममता बनर्जी की पहचान एक्शन में विश्वास रखने वाली नेता के तौर पर बनने लगी है.

ममता बनर्जी की पहचान एक्शन में विश्वास रखने वाली नेता के तौर पर बनने लगी है. मोदी और भाजपा के खिलाफ वो सिर्फ जुबानी जंग लड़ती नजर नहीं आती हैं. उन्हें तृणमूल कांग्रेस के संसदीय दल का नेता चुना गया है और ये तब है, जब वो सांसद नही हैं. ममता बनर्जी ने पेगासस मामले पर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के रिटायर जजों की दो सदस्यीय जांच समिति बना दी है. जो निश्चित तौर पर भविष्य में भाजपा के लिए समस्या खड़ी करेगी. वहीं, अब कांग्रेस पार्टी जिस तरह से ममत बनर्जी को साधने की कोशिश में लगी है, उससे ये साफ हो जाता है कि राजनीतिक तौर पर उनका कद कई गुना बढ़ चुका है. लगातार तीसरी बार बंगाल का विधानसभा चुनाव जीतकर उनकी छवि एक मजबूत धर्मनिरपेक्ष नेता के तौर पर भी बनी है. वो मंच से चंडी पाठ करने में हिचकिचाती नहीं हैं और मुस्लिम मतदाताओं में उनकी स्वीकार्यता चुनाव नतीजों से देखी जा सकती है.

शरद पवार निभाएंगे 'भीष्म पितामह' की भूमिका

प्रधानमंत्री पद के लिए संयुक्त विपक्ष के चेहरे के तौर पर एनसीपी चीफ शरद पवार को भी देखा जा रहा है. लेकिन, शरद पवार जिस तरह से महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी सरकार के सूत्रधार बने हैं. माना जा रहा है कि केंद्र में भी उनकी भूमिका राजनीतिक दलों को साथ लाने के लिए एक वरिष्ठ नेता के तौर पर होगी. इस बात की चर्चाओं ने भी जोर पकड़ा है कि अपनी खराब तबीयत का हवाला देकर सोनिया गांधी यूपीए अध्यक्ष का पद शरद पवार के लिए खाली कर सकती हैं. यूपीए के बैनर तले देश के अन्य भाजपा विरोधी दलों को लाना शरद पवार के लिए भी आसान हो जाएगा.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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