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Updated: 20 दिसम्बर, 2021 09:39 PM
अनुज शुक्ला
अनुज शुक्ला
  @anuj4media
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उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं और इस वक्त सबसे बड़ा सवाल है- मुसलमान किसके साथ हैं? कोई एकमुश्त सपा के साथ बता रहा और कई बसपा कांग्रेस के साथ. कुछ का दावा यह भी है कि असदुद्दीन ओवैसी साथ भी मुसलमान जा रहे हैं. वैसे कांग्रेस मुसलमानों के सहारे यूपी चुनाव को चौकोन रूप देने की भरसक कोशिश में है. पिछले तीस सालों में यह पहली बार है जब यूपी में कांग्रेस के सभी मोर्चे जमीन पर दिख रहे हैं. खूब सक्रिय भी हैं. इनमें उनकी अल्पसंख्यक ईकाई भी है. सालों बाद पहली बार कांग्रेस में टिकट पाने के लिए लॉबिंग दिख रही है. वर्ना पहले तो कांग्रेस को खुद तमाम जगहों के लिए प्रत्याशी तलाशने पड़ते थे.

स्वाभाविक रूप से कांग्रेस की सुधरी सेहत का पूरा श्रेय पिछले दो साल से यूपी में मेहनत कर रही प्रियंका गांधी वाड्रा को दिया जाना चाहिए. प्रियंका की कोशिश है कि यूपी में कांग्रेस के पुराने वोटबैंक को फिर से संगठित किया जाए और यही वजह है कि एजेंडा में मुसलमान सबसे ऊपर हैं. यूपी कमान संभालते ही नागरिकता क़ानून से लेकर तमाम मुद्दों पर प्रियंका बेहद आक्रामक हैं. उनके नेतृत्व में अब तक कई कैम्पेन ड्राइव हो चुके हैं. कांग्रेस की अल्पसंख्यक इकाई अभी भी मुस्लिम बहुल इलाकों में साधारण मुसलमानों को "पॉलिटिकली एडुकेट" करने की मुहिम चला रही है.

मुस्लिम लीडरशिप की ट्रेनिंग के लिए वर्कशॉप हो रहे हैं. रोजाना तीन से चार छोटी-छोटी सभाएं और दर्जनों बैठकें प्रदेश स्तर के अल्पसंख्यक नेता कर रहे हैं. ऐसा भी नहीं है कि यह ड्राइव अभी चुनाव से पहले शुरू हुई है. अब तक कई चरणों में ऐसे कैम्पेन पूरे किए जा चुके हैं. हालांकि ऐसा बहुत साफ नहीं दिखा है कि मुसलमान कांग्रेस के पक्ष में ही हैं. लेकिन ऐसी हवा भी नहीं दिखी है कि मुसलमान थोक के भाव सपा के पीछे खड़े हैं.

अभी कुछ दिनों तक सवाल बना रहेगा कि मुसलमान किसके साथ जा रहे हैं? कितना सपा के साथ और कितना अलग-अलग पार्टियों के साथ. लेकिन जो साफ़ है वह यह कि इस बार मुसलमान सवाल कर रहे हैं. कांग्रेस, मुस्लिम सियासत, मुस्लिमों के सवाल, अखिलेश राज में मुसलमानों की स्थिति आदि कई मुद्दों पर यूपी कांग्रेस अल्पसंख्यक सेल के चेयरमैन शाहनवाज आलम ने जो कहा उसे नीचे पढ़ सकते हैं.

congressप्रियंका गांधी वाड्रा की मेहनत को यूपी में खारिज नहीं किया जा सकता.

यूपी ने पिछले कई चुनावों में स्थापित धारणाएं तोड़ी हैं, अब मुसलमान अपनी सियासत के लिए वोट करेगा

"पिछले दस सालों में यूपी से कई स्थापित धारणाएं टूटी हैं. पिछली कई सरकारें पूर्ण बहुमत से बनीं जिसके बारे में एक समय तक सोचा भी नहीं जा सकता था. मुसलमान किसी का वोटबैंक नहीं है. जिन्होंने यह धारणा बनाकर, भाजपा का डर दिखाकर मुसलमानों का इस्तेमाल किया वो निराश होंगे. सपा-बसपा जैसी पार्टियों ने कभी भी मुसलमानों को उनके अधिकारों पर सोचने का वक्त ही नहीं दिया. कभी भाजपा का डर दिखाया. कभी मोदी का. कभी लिंचिंग से डराया. कभी फर्जी मुकदमों से डराया. अखिलेश के ही शासन में आतंक के नाम पर मुस्लिम जेल गए और उनका उत्पीडन हुआ. मुजफ्फरनगर भी तो अखिलेश राज में हुआ. क्यों और क्या हुआ था वहां."

5% वाला नहीं, 20% आबादी वाला मुसलमान भी लीडर बनेगा और फोर्च्यूनर से चलेगा  

"सपा के चेहरे का नकाब काफी पहले उतर चुका है. 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा ने मुस्लिम युवकों को ई-रिक्शा देने का वादा किया था. यानि जिसकी आबादी 20% है वो ई-रिक्शा खींचे और 5% वाला (यादव) फोर्च्यूनर और स्कोर्पियो में घूमे. कांग्रेस इसे होने नहीं देगी. सभी जिलों, यहां तक कि बूथ तक हमने संगठन तैयार किए हैं. लोगों के साथ कई दौर की बातचीत की है. अब मुसलमान किसी से डरने वाला नहीं है. हमारे बच्चों को भी इंजीनियरिंग-मेडिकल कॉलेजों में सीटें चाहिए. सरकारी नौकरियों में हिस्सेदारी चाहिए. अगर वोट ही ताकत है तो हम उसे यूं ही देकर ई-रिक्शा नहीं खींचेगे. फोर्च्यूनर से चलने की बारी अब हमारी है. सरकार कैसे बनाई जाती है मुसलमान जानता है."

सपा अगर मुसलमानों की हितैषी है तो पसमांदा से चिढ़ क्यों है?  

"सपा का चरित्र मुस्लिम विरोधी है. लोगों ने खुली आंख कई कई मर्तबा देखा है. रंगनाथ कमीशन को कांग्रेस की सरकार लागू करना चाहती थी. इसमें ओबीसी को मिलने वाले 27% कोटे में से 10% पसमांदा तबके (मुस्लिम OBC) को देने की बात थी. इसका सबसे ज़्यादा विरोध मुलायम सिंह यादव ने किया था. क्यों? उन्हें लगा कि अगर ऐसा हो जाएगा तो 27% आरक्षण पर यादवों का जो एकछत्र राज है वो खत्म हो जाएगा."

"उन्हें लगा कि अगर क़ुरैशी, अंसारी, मंसूरी, मुस्लिम नाई, धोबी भी अफसर बनने लगेंगे तो उनमें भी एक पॉलिटिकल मिडिल क्लास पैदा हो जाएगा. चूंकि ऐसा कांग्रेस की वजह से होगा इसलिए मुसलमान कांग्रेस की तरफ जा सकता है. वो कांग्रेस की तरफ न जाए, सपा में ही रहे. यानि सपा को वजूद बचाए रखने के लिए आर्थिक तौर पर कमज़ोर मुसलमान चाहिए. भाजपा से डरा हुआ मुसलमान चाहिए. सपा को वही मुसलमान चाहिए जिसे भाजपाई पंचर बनाने वाला और अंडा बेचने वाला कहते हैं."

मुसलमानों को अपनी आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी चाहिए

"सपा ने मुसलमानों को भाजपा का डर दिखाते हुए वोट लिया. हिस्सेदारी तो दूर की बात- कभी भी मुसलमानों को उनकी आबादी का आंकड़ा तक नहीं बताया. ऐसी चर्चा भी नहीं होने दी गई. जबकि इसके उलट सपा जातिवार गड़ना कराने के मुद्दे उठाती रहती है. हकीकत में सपा जाति जनगड़ना भी नहीं चाहती. मगर अन्य पिछड़ी जातियों को अपने साथ बनाए रखने के लिए वह ऐसा ढोंग रचती है. यह रणनीति है. अगर जातिवार जनगड़ना हुई तो पोल खुल जाएगा कि यूपी में यादव समुदाय अपनी आबादी से ज़्यादा सरकारी नौकरियों में है."

"पिछले तीस साल में यूपी में ओबीसी के नाम पर सपा की वजह से यादव समुदाय ने सबसे ज्यादा मलाई काटी है. इस समुदाय में आर्थिक प्रगति सरकारी नौकरियों और अपनी सरकार होने की वजह से आई- यह छुपी बात नहीं है. मुसलमान भी देख रहा है. पसमांदा मुसलमानों का विरोध करने वाले सपा ने कितने मुसलमानों को सरकारी नौकरियां दी? मैं कई चरणों में समूचे यूपी का दौरा कर चुका हूं. मुसलमानों को अपने अधिकार तक नहीं मालूम. पिछले तीस साल में ज्यादातर सपा-बसपा की सरकारें रहीं. मुसलमानों के वोट से सत्ता की मलाई बहुत खा चुके. अब यह सिलसिला बंद होगा."

congress_650_122021120311.jpgशाहनवाज आलम. चेयरमैन, अल्पसंख्यक कांग्रेस, यूपी. (फोटो- फेसबुक से साभार)

सपा ने मुस्लिम लीडरशिप तैयार ही नहीं होने दी, खुद मुलायम-अखिलेश हमारे नेता बने रहे

"सपा ने कोई मुस्लिम नेतृत्व नहीं खड़ा होने दिया. जबकि एक समय यूपी में सबसे बेहतर मुस्लिम लीडरशिप थी. हैरानी की बात है कि यूपी में 20 प्रतिशत मुसलमानों के पास अपना कोई नेता नहीं है. उनका नेता मुलायम या अखिलेश बने नजर आते हैं. आज़म खान सियासी आदमी हैं. वे सपा के मंच पर भी मुसलमानों के मसले उठाते रहे हैं. उन्हें भी हमेशा पश्चिम के एक दायरे में फंसाए रखा गया. सपा को आजम जैसे सियासी मुसलमानों से डर भी लगता है. उन्हें जेल भिजवाया गया. उनकी जगह अहमद हसन जैसे ब्यूरोक्रेट को जबरदस्ती नेता बनाया जा रहा है."

"अबू आसिम आज़मी जो सालों से यूपी में रहते भी नहीं, ऐसे गैर राजनीतिक कारोबारी को मुस्लिम चेहरा बनाने की कोशिश हो रही है. जो यह सोचता है कि मुसलमान को मुख्यमंत्री बनने के लिए पाकिस्तान जाना होगा. कोई उन्हें बताए इसी हिंदुस्तान में कांग्रेस ने कई मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाए."

"अबू आसिम अखिलेश के एजेंडा पर काम कर रहे. मुसलमान वोट तो दें मगर उन्हें राजनीतिक रूप से मजबूत नहीं होने देना है. यूपी के किसी भी मुस्लिम बहुल क्षेत्र में चले जाइए. आज की तारीख में कांग्रेस ने युवा मुस्लिम नेताओं की फ़ौज खड़ी कर दी है. नागरिकता क़ानून के समय कांग्रेस मोदी-योगी के साथ घर के अंदर अंदरूनी समझौता नहीं कर रही थी. हमारे नेता सड़कों पर लाठियां खा रहे थे. हम जेलों में बंद थे. बताइए- सपा में मुसलमानों का नेता कौन है. क्या अबू आसिम आजमी को यूपी में मुसलमानों का नेता मान लिया जाए?"

muslim-congress-650_122021065211.jpgअखिलेश यादव की पिछली सरकार को लेकर मुसलमानों में कई सवाल हैं.

मुसलमानों के वोट के बदले सपा सरकारों ने दंगे, लिंचिंग और गरीबी दी  

"समाजवादी पार्टी ने हमेशा मुसलमानों का वोट लिया, लेकिन बदले में क्या दिया? अखिलेश की ही सरकार में मुसलमान युवाओं को आतंक के नाम पर परेशान किया गया. मुसलमानों के खिलाफ लिंचिंग की घटनाएं पहली बार कब और किसके शासन में हुआ. मुजफ्फरनगर में भयावह दंगे कब हुए. किसके राज में मुसलमान अपना घरबार छोड़कर कैम्पों में भागा. अखिलेश की पूर्ण बहुमत सरकार में हुआ."

"मुसलमान कैसे फिर अखिलेश की सरकार पर भरोसा कर लेगा. एक बहुमत की सरकार चुप बैठी रही. मुसलमानों पर हमला करने वाले लोग कौन थे? क्या सपा ने यादवों को कभी सेकुलराइज किया. नहीं. उसने ऐसे यादव वोटबैंक को तैयार किया जिसका चरित्र मुस्लिम विरोधी है. यह रणनीतिक दबाव भी है कि मुसलमानों ने सपा को वोट नहीं दिया तो यादव भाजपा के साथ चला जाएगा. धर्म की अंधी राजनीति के लिए सपा-भाजपा की अंदरूनी मिलीभगत है."

"अखलाक की लिंचिंग कहां हुई? अखिलेश ने क्या किया. मामले में संयुक्त राष्ट्रसंघ जाने का बयान देने वाले आजम खान ने सार्वजनिक रूप से बेबसी जताई थी. राजस्थान में ऐसी ही घटना होने पर हमारी सरकार ने क़ानून बनाने की कोशिश की. विधानसभा से प्रस्ताव पास कर राष्ट्रपति के पास भेजा. सपा की बहुमत वाली सरकार क्या कर रही थी. लिंचिंग-दंगे सब अखिलेश के ही राज में क्यों हो रहे थे."

यूपी के यादव बहुल क्षेत्रों में भाजपा की मौजूदगी क्या है?

"यूपी का वोट पैटर्न देखिए. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में यादव वोटर भाजपा के साथ गए. सपा उन्हीं चुनिंदा सीटों को जीत पाई जो मुस्लिम बहुल थीं. लोकसभा चुनाव छोडिए, हालिया पंचायत चुनाव देख लीजिए. जिन क्षेत्रों पर सपा का स्ट्रांगहोल्ड है वहां से जीतने वाले यादव चेहरे कौन हैं? वे भाजपा के साथ क्यों गए? सपा अगर ईमानदार थी तो पिछले पांच साल में मुसलमानों का मुद्दा उठाने की कोशिश करते क्यों नहीं दिखी."

"आप सपा के मूल वोट बेस से बात करिए. वो 2022 के लिए तो अखिलेश की बात कर रहा है मगर 2024 में मोदी के खिलाफ नहीं है. ऐसा क्यों है? वो बहुत शातिर तरीके से या तो राहुल गांधी को खारिज करता दिखेगा या किसी काल्पनिक तीसरे मोर्चे की बात करता दिखेगा. जबकि हकीकत यह है कि केंद्र में भाजपा के खिलाफ खड़ा होने की ताकत सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस के पास है. हम एक दर्जन राज्यों में सीधे भाजपा से लड़ाई में हैं. यूपी को छोड़कर समूचे उत्तर-पश्चिम में या तो कांग्रेस की सरकार है या हम मुख्य विपक्ष में बैठे हैं और सवाल कर रहे हैं."

लेखक

अनुज शुक्ला अनुज शुक्ला @anuj4media

ना कनिष्ठ ना वरिष्ठ. अवस्थाएं ज्ञान का भ्रम हैं और पत्रकार ज्ञानी नहीं होता. केवल पत्रकार हूं और कहानियां लिखता हूं. ट्विटर हैंडल ये रहा- @AnujKIdunia

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