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Updated: 05 जनवरी, 2016 04:21 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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यूपी में कितने मुख्यमंत्री हैं? अब तक विपक्षी दलों का जवाब होता था - साढ़े चार सीएम. अब उन्हें अपना जवाब बदलना पड़ेगा. विपक्ष जिसे आधा सीएम बताता रहा उसके एक्शन बताते हैं कि अब वही पूरा सीएम है - और बाकी हाशिये पर चले गए हैं.

यहां तक कि मुलायम सिंह को भी बैकफुट पर जाकर अपना फैसला वापस लेना पड़ा है. ऐसा कभी कभार होता रहा होगा, लेकिन इस तरह खुलेआम तो बिलकुल नहीं. कैबिनेट में हाल के फेरबदल में भी अखिलेश की ही चलती देखी गई. मुलायम और आजम के कई करीबियों के पर कतर दिए गए.

मिशन 2017 के लिए चल रही कवायद में ये चेंज ऑफ गार्ड का संकेत नहीं तो और क्या है?

सैफई में अखिलेश

सैफई महोत्सव शुरू होने के छह दिन बाद जब अखिलेश यादव पहुंचे तो एक सवाल उनका पहले से ही इंतजार कर रहा था. हर कोई उनसे यही जानना चाहता था, "हुजूर आते आते इतनी देर क्यों लगा दी?"

अखिलेश को भी ये बात बखूबी मालूम थी. अपने जवाब में अखिलेश ने ऐसा पूछने वालों से ही सवाल कर दिया.

"सैफई तो हमारा घर है. हम यहां जब चाहें तब आएं और जाएं. इसमें किसी को आपत्ति क्यों है?"

सही बात है. अखिलेश का जवाब बिलकुल तथ्यों पर आधारित रहा. और इस तथ्य से न तो किसी की छेड़छाड़ करने की मंशा थी, न गुंजाइश.

लेकिन उसके बाद जो हुआ, क्या अखिलेश उससे नावाकिफ थे? या पिता की ओर से संकेत मिलने के बाद ही उन्होंने सैफई के लिए वक्त निकाला. व्यस्तता तो तब भी कम नहीं हुई होगी.

लखनऊ में मुलायम

जिस दिन अखिलेश सैफई पहुंचे उस दिन मुलायम सिंह लखनऊ में थे. समाजवादी पार्टी के नेताओं के साथ मुलायम की बैठक चल रही थी.

अगले दिन समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव ने बताया कि मुलायम सिंह ने सुनील यादव और आनंद भदौरिया का निष्कासन खत्म कर दिया है. यादव और भदौरिया को 25 दिसंबर को पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल पाए जाने पर मुलायम सिंह ने ही निकाल दिया था.

मुलायम ने समाजवादी पार्टी के तीन नेताओं के खिलाफ एक्शन लिया था और वे सभी अखिलेश के करीबी माने जाते रहे हैं. आनंद भदौरिया, सुनील यादव (सजान) और सुबोध यादव - ये तीनों सत्ता में आने से पहले 'टीम अखिलेश' का हिस्सा थे. 2012 के विधानसभा चुनावों के प्रचार के दौरान तीनों ही ने अखिलेश के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी.

अखिलेश का एक्शन

पार्टी विरोधी गतिविधियों के नाम पर मुलायम के बाद अब अखिलेश यादव धड़ाधड़ एक्शन ले रहे हैं. अखिलेश यादव ने सीतापुर के विधायक रामपाल यादव को पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में विधानमंडल से निलंबित कर दिया है. इसके साथ ही रामपाल के बेटे जितेन्द्र यादव को पार्टी से निकाल दिया गया है.

इससे पहले अखिलेश ने गोरखपुर के तीन नेताओं राममिलन यादव, कुंअर प्रताप सिंह और मुख्तार अहमद खां को पार्टी से निष्कासित कर दिया था. मुलायम के निलंबन वापस लेने और अखिलेश के नेताओं को सस्पेंड करने की टाइमिंग भी क्या कोई संकेत दे रही है?

सवाल ये उठ रहा है कि अखिलेश ने ये कार्रवाई मुलायम के फैसला वापस लेने के फौरन बाद क्यों किया?

सवाल ये भी है कि जिन नेताओं पर एक्शन हो रहा है वो कहीं मुलायम के करीबी तो नहीं हैं, जिनसे अखिलेश निजात पाना चाह रहे थे? सुनील यादव और आनंद भदौरिया के खिलाफ एक्शन वापस लेने के साथ ही क्या मुलायम ने अखिलेश को खुली छूट दे दी है कि जैसे चाहो पार्टी चलाओ. और ये आश्वासन मिलने के बाद ही अखिलेश सैफई गए.

वैसे जो एक्शन रामपाल यादव के खिलाफ लिए गए वैसी ही कार्रवाई बिजनौर में हुई थी. रामपाल पर भी जिला पंचायत अध्यक्ष के अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ काम करने के लिए कार्रवाई हुई है. रामपाल को निलंबित और उनके बेटे जितेंद्र को निष्कासित किया गया है. बिजनौर में भी विधायक रुचि वीरा को सस्पेंड और उनके पति उदयन वीरा को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था.

पार्टी का सिग्नेचर ट्यून तो पहले से ही बदल गया है. उसमें भी मुलायम की जगह अखिलेश को फिट कर दिया गया है. चुनावी गीत के रूप में 'मन से हैं मुलायम... इरादे लोहा...' की जगह अब ‘तरक्की का शुभारंभ...प्रगति का श्रीगणेश... अखिलेश... अखिलेश’ ने ले ली है.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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