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Updated: 12 जनवरी, 2021 03:23 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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यूपी का एक माफिया डॉन पंजाब की रोपड़ जेल में बंद है. हत्या और गैंगस्टर एक्ट से जुड़े करीब 10 मामलों में यूपी पुलिस मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) को कोर्ट में पेश करना चाहती है - लेकिन पंजाब सरकार और यूपी सरकार के असहयोगी रवैये के चलते ऐसा लगता है जैसे एक आपराधिक मामले में पॉलिटिकल स्टे ऑर्डर लगा हुआ है.

मुख्तार अंसारी के मामले में कृष्णानंद राय की पत्नी और बीजेपी विधायक अलका राय ने तो कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi) को पत्र लिख कर यहां तक पूछ डाला है कि आखिर वो एक अपराधी को बचाने की कोशिश क्यों कर रही हैं? बीजेपी नेता कृष्णानंद राय की हत्या में मुख्तार अंसारी भी एक आरोपी हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार और मुख्तार अंसारी को पेशी के लिए मुख्तार अंसारी की हिरासत यूपी को देने की अर्जी पर जवाब तलब किया है. जवाब दाखिल करने के लिए दो हफ्ते का समय दिया गया है. योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) सरकार की दलील है कि मुख्तार अंसारी के खिलाफ उत्तर प्रदेश में गंभीर आपराधिक केस हैं, जबकि मामूली केसों में दो साल से पंजाब में रखा गया है.

सुप्रीम कोर्ट का नोटिस लेकर मुख्तार अंसारी को उत्तर प्रदेश लाने के लिए रोपड़ पहुंची गाजीपुर पुलिस को रोपड़ जेल के अधीक्षक ने मेडिकल रिपोर्ट को आधार बनाकर हैंडओवर करने से इंकार कर दिया - और बैरंग लौटाते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल कर दिया जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट पहुंची यूपी पुलिस का कहना है कि जिन मामलों में मुख्तार अंसारी आरोपी हैं उनमें ट्रायल के लिए यूपी भेजा - और अगर चार्जशीट दायर हो चुकी है तो वो केस भी यूपी में ट्रांसफर कर दिया जाये. यूपी पुलिस का दावा है कि मुख्तार अंसारी के खिलाफ पंजाब में अब तक कोई चार्जशीट दायर नहीं की गयी है.

हाल फिलहाल ही यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने चेतावनी भरे लहजे में कहा था कि जब उनकी सरकार आएगी तो वो बीजेपी से जुड़े लोगों के खिलाफ बुलडोजर चलवाएंगे. योगी आदित्यनाथ सरकार यूपी में अपराधियों के खिलाफ बुलडोजर मुहिम चला रही है, जिसमें मुख्तार अंसारी और उनके करीबियों की भी कई इमारतों पर बुलडोजर चलाया गया है - सवाल ये है कि आखिर यूपी में अपराधियों को लेकर इतनी राजनीति होती क्यों है?

मुख्तार केस में क्या हो रहा है

फर्ज कीजिये बिकरू गांव में यूपी पुलिस ने 20 मार्च से पहले दबिश दी होती - और गोलीबारी के बाद हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे उज्जैन में ही पुलिस के सामने सरेंडर किया होता - तो भी क्या वैसे ही उसका एनकाउंटर हुआ होता जैसे हुआ?

20 मार्च से पहले से मतलब देश में लॉकडाउन लागू होने से नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस के सत्ता में होने से है - दरअसल, 20 मार्च को ही कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था और उसके बाद बीजेपी की सरकार बन गयी. शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने और नरोत्तम मिश्रा गृह मंत्री. नरोत्तम मिश्रा ने ही सबसे पहले विकास दुबे की गिरफ्तारी का दावा किया था.

मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश दोनों ही राज्यों में एक ही पार्टी बीजेपी की ही सरकार होने से विकास दुबे की कस्टडी यूपी पुलिस की एसटीएफ को लेने में कोई मुश्किल नहीं हुई - और पुलिस के दावे को मानें तो कानपुर के रास्ते में गाड़ी पलट जाने के बाद एक पुलिस वाले का हथियार छीन कर भागने की कोशिश में विकास दुबे एनकाउंटर में मारा गया.

सवाल ये भी है कि विकास दुबे ने मध्य प्रदेश की जगह अगर पंजाब या राजस्थान में सरेंडर किया होता तो? क्या तब भी यूपी एसटीएम को उतनी ही आसानी से कस्टडी मिल चुकी होती - मुख्तार अंसारी का मामला सामने आने के बाद ऐसा तो बिलकुल नहीं लगता.

alka rai, priyanka gandhi vadraबीजेपी विधायक अलका राय का कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा से सीधा सा सवाल है - आप मेरे पति के हत्या के आरोपी को बचा क्यों रही हैं?

अभी मुख्तार अंसारी के परिवार वालों को भी ऐसी ही आशंका हो रही है. मुख्तार अंसारी के परिवार को लग रहा है कि उत्तर प्रदेश पुलिस सड़क के रास्ते मुख्तार अंसारी को ला रही होगी तभी गाड़ी पलट सकती है - और फिर एनकाउंटर में कृष्णानंद राय हत्याकांड सहित कई मामलों के आरोपी मुख्तार अंसारी का एनकाउंटर किया जा सकता है.

बहरहाल, मुख्तार अंसारी की कस्टडी को लेकर पंजाब सरकार बनाम यूपी सरकार की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुकी है - और राजनीतिक जोर आजमाइश चालू है.

पंजाब के जेल मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा मुख्तार अंसारी को पॉलिटिकल शेल्टर देने के बीजेपी के आरोपों को खारिज कर रहे हैं. कहते हैं, कोई भी व्यक्ति रोपड़ जेल में जाकर चेक कर सकता है कि मुख्तार अंसारी को किसी भी तरह का कोई स्पेशल ट्रीटमेंट नहीं दिया जा रहा और वो एक आम कैदी की तरह ही जेल में रह रहा है. रंधावा का कहना रहा कि पंजाब सरकार का जेल मंत्रालय सिर्फ एक कस्टोडियन है जो राज्य सरकार के गृह मंत्रालय और अदालतों की ओर से मिले निर्देश के आधार पर काम करता है.

यूपी बीजेपी के प्रवक्ता और मुख्यमंत्री के सलाहकार शलभ मणि त्रिपाठी का आरोप है कि कांग्रेस पार्टी, राहुल गांधी और सोनिया गांधी, सब मिल कर सबसे खूंखार माफिया को बचाने में लगे हुए हैं. कहते हैं, यूपी में हर बात पर कानून व्यवस्था का हल्ला मचाने वाली कांग्रेस खुद कानून व्यवस्था के लिए सबसे बड़ा खतरा बने मुख्तार अंसारी को बचा रही है. लेकिन बीजेपी के आरोप को खारिज करते हुए यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू कह रहे हैं कि ये अदालती मामला है - और अदालत में जब बुलाया जाएगा, उन्हें आना पड़ेगा.

कुछ दिन पहले ही बीजेपी विधायक अलका राय ने प्रियंका गांधी वाड्रा को लिखे पत्र में कहा था, 'मैं विधवा हूं और विगत 14 वर्षों से मैं अपने पति व लोकप्रिय विधायक रहे स्व. श्री कृष्णानंद राय जी की नृशंस हत्या के विरुद्ध इंसाफ की लड़ाई लड़ रही हूं. उस जुल्मी के खिलाफ जिसे आज आपकी पार्टी और पंजाब राज्य में आपकी सरकार खुला संरक्षण दे रही है.'

अलका राय ने लिखा है, 'ये बेहद शर्मनाक है कि आपकी राजनीतिक पार्टी और उसके नेतृत्व की सरकार इतनी निर्लज्जता के साथ मुख्तार अंसारी जैसे दुर्दांत अपराधी के साथ खुल कर खड़ी है. कोई भी ये स्वीकार नहीं करेगा कि ये सब कुछ आपकी और राहुल जी की जानकारी के बगैर हो रहा है.'

बीजेपी विधायक अलका राय लिखती हैं, 'इंसाफ की आस में हमारा हर दिन व हर रात तिल-तिल कर गुजर रहा है. आप खुद भी एक महिला हैं. ऐसे में मेरा आपसे विनम्रता से सवाल है कि आप ऐसा क्यों कर रही हैं?'

अपराध पर हो रही राजनीति की फेहरिस्त लंबी है

सफेदपोश अपराध तो अपनी जगह हैं ही, हत्या, गिरोहबंद अपराध और बलात्कार जैसे संगीन मामलों में भी राजनीतिक रवैया तकरीबन एक जैसा देखने को मिल रहा है.

मुख्तार अंसारी को लेकर बीजेपी के कांग्रेस नेतृत्व पर हमले को समझने के लिए यूपी के डॉक्टर कफील अहमद के केस पर गौर किया जाये तो समझना थोड़ा आसान हो सकता है.

डॉक्टर कफील खान केस में इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गयी यूपी पुलिस को निराशा हाथ लगी है. यूपी पुलिस ने डॉक्टर कफील खान के जिस भाषण को आधार बना कर दंगा फैलाने की आशंका में NSA लगाया था, हाई कोर्ट ने पाया कि वो तो सामाजिक सद्भाव बढ़ाने वाला रहा. जब हाई कोर्ट से जमानत मंजूर होने के बाद कफील खान जेल से छूटे तो पहले से तैनात कांग्रेस नेताओं ने उनको और फिर उनके पूरे परिवार को राजस्थान पहुंचा दिया - ये आरोप लगाते हुए कि यूपी में रहने पर कफील खान को बीजेपी सरकार के इशारे पर पुलिस परेशान करने के तरीके खोज ही निकालेगी. डॉक्टर कफील खान गोरखपुर अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ के रूप में तैनात थे जब ऑक्सीजन की कमी के चलते बच्चों की मौत का मामला सामने आया था. तब स्थानीय मीडिया में कफील खान को एक हीरो की तरह पेश किया गया था जो बच्चों की जान बचाने के लिए अपने दोस्तों से ऑक्सीन सिलेंडर मांग कर अपनी गाड़ी से अस्पताल पहुंचा रहा था.

राजनीतिक लिहाज से देखें तो कांग्रेस ये मैसेज देने की कोशिश कर रही है कि मुख्तार अंसारी और कफील खान के मुस्लिम होने के चलते ही यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार परेशान कर रही है. अखिलेश यादव भी योगी सरकार के अपराधियों के खिलाफ मुहिम से भड़के हुए हैं उसमें भी मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद के खिलाफ बुलडोजर चलना ही है - लेकिन वो भूल जाते हैं कि बुलडोजर तो विजय मिश्रा जैसे विधायक और और भाटी गैंग के अपराधियों के खिलाफ भी चले हैं.

अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी वाड्रा ये भी भूल जाते हैं कि जैसी आशंका उनको मुख्तार अंसारी को लेकर हो रही होगी, बिलकुल वैसी ही परिस्थितियों में एसटीएफ विकास दुबे को ढेर कर चुकी है - क्या वास्तव में ये सिर्फ एक वोट बैंक का ही मामला हो सकता है?

मामला एक हो तब तो - हाथरस केस में तो सीबीआई जांच से साफ हो चुका है कि यूपी पुलिस और प्रशासन के आला अफसर अपराधियों को बचाने की कोशिश कर रहे थे. बचाने की चली कवायद में जातीय समीकरणों को उछाला जा रहा था.

प्रियंका गांधी वाड्रा और राहुल गांधी ने तो हाथरस तक मार्च भी किया था - और उसे दलित बनाम सवर्ण की राजनीति में उलझाने की भी कोशिशें खूब हुईं. क्या अपराध को महज अपराध की तरह नहीं लिया जा सकता? क्या आपराधिक मामलों में कानून के तहत कार्रवाई और पीड़ित को इंसाफ देने की कोशिश में राजनीतिक सहयोग की गुंजाइश नहीं बच पा रही है?

और किसे गुनहगार मानें? और किसे गुनहगार को बचाने वाला - हाल तो ऐसा हो रखा है जैसे हर गुनहगार को बचाने के लिए कोई न कोई राजनीतिक व्यक्ति खड़ा हो ही जा रहा है.

तब के बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर को सामने रख कर देखें तो यही लगता है कि गिरफ्तारी से पहले बचाने की कोशिशों में कोई कोताही नहीं बरती गयी. कुलदीप सेंगर की ही तरह स्वामी चिंमयानंद के साथ भी यूपी पुलिस हर संभव परहेज उनके राजनीतिक कनेक्शन के चलते ही कर रही होगी - क्योंकि अपराध के वक्त दोनों ही यूपी में सत्ताधारी बीजेपी से ही जुड़े हुए थे.

और तो और उन्नाव के बीजेपी सांसद तो अब भी सीतापुर जेल जाकर बलात्कार के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे कुलदीप सेंगर से पहले की तरह भी पूरी श्रद्धा के साथ मुलाकात करते रहते हैं. कुलदीप सेंगर को जेल पहुंच कर हैपी बर्थडे भी कहते हैं और लोक सभा का चुनाव जीतने के बाद शुकराने का आभार भी व्यक्त करने सीतापुर जेल पहुंच जाते हैं.

ऐसा क्यों लगता है जैसे साक्षी महाराज को अब तक यकीन नहीं हो पाया है कि कुलदीप सेंगर कोई और नहीं महज एक बलात्कारी है. अगर उनको लगता कि कुलदीप सेंगर बलात्कारी है तो क्या वो उससे बार बार मिलने जेल यूं ही बगैर किसी की परवाह किये पहुंच जाते? वो भी तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरह ही संन्यासी हैं - जैसे योगी आदित्यनाथ मंदिर के महंत हैं, वैसे ही साक्षी महाराज भी महामंडलेश्वर हैं.

क्या साक्षी महाराज को अदालत के फैसले पर भी यकीन नहीं होता होगा कि जैसे कानूनी ट्रायल के बाद उनको ब्रह्मदत्त द्विवेदी मर्डर केस में बरी कर दिया गया, वैसे ही कानूनी प्रक्रिया के बाद कुलदीप सेंगर को उम्रकैद की सजा हुई है?

बलिया गोलीकांड के बाद भी तो यही देखने को मिला कि किस तरह सत्ताधारी बीजेपी के विधायक सुरेंद्र सिंह आरोपी के बचाव में सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार नजर आ रहे थे - तब तक कि जब तक लखनऊ बुलाकर यूपी बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने तरीके से समझाया नहीं.

ऐसा क्यों लगता है जैसे उत्तर प्रदेश में अपराधियों को बचाने की होड़ मची हुई है - और ये मामला भी ऐसा है जिसमें हम्माम की तरह सभी राजनीतिक दलों के नेता एक जैसे ही नंगे नजर आते हैं!

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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