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Updated: 30 सितम्बर, 2020 12:55 PM
रवीश पाल सिंह
रवीश पाल सिंह
 
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आखिरकार मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में विधानसभा उपचुनाव (Assembly Elections) की तारीखों का ऐलान हो ही गया. 3 नवंबर को मध्यप्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होगा और 10 नवंबर को काउंटिंग होगी. इसके साथ ही अब मध्यप्रदेश के बड़े नेताओं की साख का काउंटडाउन भी शुरू हो गया है क्योंकि ये मामूली उपचुनाव (Bypoll Elections) ना होकर एक तरह से 'मिनी विधानसभा चुनाव' (Mini Assembly Elections )ही हैं जो ये बताएंगे कि भाजपा सरकार (BJP) रहेगी या मार्च में सत्ता गंवाने वाली कांग्रेस (Congress) वापसी करेगी.

दरअसल, मध्यप्रदेश की राजनीति भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के कुछ बड़े चेहरों के इर्द गिर्द ही घूमती है और इस उपचुनाव के नतीजों पर ही उनका भविष्य काफी हद तक निर्भर करेगा.

शिवराज सिंह चौहान

इसमे सबसे ऊपर नाम आता है मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का. शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश के सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री पद पर रहने वाले नेता तो है ही वहीं जनता के बीच काफी लोकप्रिय भी हैं. मुख्यमंत्री से ज्यादा वो 'मामा' नाम से जाने जाते हैं. उपचुनाव में भी प्रचार के दौरान भाजपा का सबसे बड़ा चेहरा शिवराज सिंह चौहान ही रहेंगे.

आचार संहिता लगने से पहले करोड़ों रुपये की योजनाओं की शुरुआत कर शिवराज ने बड़ा दांव तो चला है लेकिन ये कितना सफल हुआ ये उपचुनाव के नतीजे तय करेंगे. अगर उपचुनाव में भाजपा ज्यादा सीटें जीत जाती है तो शिवराज की मुख्यमंत्री की कुर्सी तो सुरक्षित रहेगी ही वहीं राजनीतिक कद भी बढ़ जाएगा.

वहीं भाजपा यदि उपचुनाव हारी तो मुख्यमंत्री पद के साथ साथ शिवराज का राजनीतिक कद घटना तय है क्योंकि 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद लगातार दूसरे चुनाव में वो असफल माने जाएंगे.

Madhya Pradesh, Bypoll Election, Chief Minister, Shivraj Singh Chouhanमाना जा रहा है कि मध्य प्रदेश में होने वाला उपचुनाव सूबे के तमाम बड़े नेताओं की किस्मत का फैसला करेगा

 

कमलनाथ

2018 में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने और महज़ 15 महीनों बाद पूर्व मुख्यमंत्री होने वाले कमलनाथ का राजनीतिक कद भी इस उपचुनाव से तय हो जाएगा. कमलनाथ राजनीति के पुराने और माहिर नेता माने जाते हैं. पार्टी उनके चेहरे पर ही ये पूरा उपचुनाव लड़ने जा रही है.

पूर्व मुख्यमंत्री होने के साथ ही कमलनाथ मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी है ऐसे में उनपर दोहरी ज़िम्मेदारी है. अगर कांग्रेस ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब होती है और सरकार बनाती है तो कमलनाथ दोबारा मुख्यमंत्री बनेंगे और उनका कद भी बढ़ जाएगा.

लेकिन कांग्रेस यहां सरकार बनाने में नाकाम रहती है या भाजपा से कम सीटें लाती है तो अगले विधानसभा चुनाव में कमलनाथ के लिए ज्यादा गुंजाइश नहीं बचेगी.

ज्योतिरादित्य सिंधिया

हाल ही कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया का राजनीतिक भविष्य तो पूरी तरह से इस उपचुनाव के नतीजों पर टिका है. सिंधिया की वजह से ही कमलनाथ सरकार गिरी थी और मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी थी.

भाजपा में आने के बाद सिंधिया अब राज्यसभा सांसद हैं. कांग्रेस पूरे चुनाव प्रचार में उन्हें गद्दार बुला रही है. उपचुनाव में सबसे ज्यादा 16 सीट ग्वालियर-चंबल संभाग में है जहां सिंधिया का दबदबा माना जाता है. अगर यहां भाजपा ज्यादा सीट जीती तो माना जायेगा कि जनता सिंधिया के साथ है.

इससे केंद्र और राज्य में सिंधिया का कद बढ़ेगा. लेकिन भाजपा अगर यहां कम सीट जीतती है तो माना जायेगा कि कांग्रेस छोड़ने के उनके फैसले से उनकी इलाके की जनता ही सहमत नहीं है और कम से कम मध्यप्रदेश में फिर सिंधिया का जादू कम होना माना जाएगा.

दिग्विजय सिंह

10 सालों तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के लिए अगर इस उपचुनाव में देखा जाए तो ज्यादा कुछ है नहीं. राज्यसभा के लिए वो पहले ही चुने जा चुके हैं और हाल ही में उन्हें कांग्रेस में भी शामिल किया गया है जो बता रहा है कि अभी भी कांग्रेस में उनका कद घटा नही है.

लेकिन उपचुनाव में कांग्रेस की जीत या हार दिग्विजय के लिए उनके बेटे जयवर्धन सिंह को देखते हुए ज़्यादा मायने रखती है. अगर कांग्रेस जीती तो दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह दोबारा मंत्री बनेंगे और अगर भाजपा जीती तो बेटे को मंत्री बनाने का इंतज़ार थोड़ा लंबा हो जाएगा.

वीडी शर्मा

बतौर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष, वीडी शर्मा के लिए ये पहला चुनाव होने जा रहा है जिसमे उन्हें साबित करना है कि संगठन चलाने और उन्हें साथ रखने में वो कितना कामयाब होते हैं. उनके प्रदेश अध्यक्ष रहते कमलनाथ सरकार का तख्तापलट तो हुआ लेकिन सरकार गिरने और चुनाव में संगठन के काम करने में अंतर होता है.

चुनाव में नेताओं, कार्यकर्ताओं, प्रत्याशियों, नाराज़ नेताओं और भीतरघात से निपटने में संगठन की भूमिका अहम होती है ऐसे में भाजपा सांसद और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के लिए भी ये उपचुनाव पहली बड़ी चुनौती साबित होने जा रहा है.

सपा-बसपा-निर्दलीय

2018 में कमलनाथ सरकार बनने में एक बड़ा योगदान सपा, बसपा और निर्दलीय विधायकों का रहा था. कुल 7 ऐसे विधायकों ने कांग्रेस को समर्थन दिया था लेकिन जैसे ही सत्ता पलटी ये सभी भाजपा के साथ खड़े दिखे. जाहिर है कांग्रेस हो या बीजेपी, दोनों ही राजनीतिक दलों के लिए ये सात विधायक बेहद अहम हैं क्योंकि यदि सीटें बहुमत नहीं दे पाएगी तो देखना अहम होगा कि ये सात विधायक किसका साथ देते हैं.

इतना ज़रूर तय है कि जिस भी राजनीतिक दलों को इन सात विधायकों का साथ मिलेगा उसकी स्थिति विधानसभा में मजबूत ही रहेगी.

दलबदलू नेता

इन सब के अलावा उन दलबदलू नेताओं का भविष्य भी इस उपचुनाव से ही तय होगा. कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाने वाले नेता हों या भाजपा से कांग्रेस में शामिल होने वाले नेता हों, अगर ये चुनाव हारते हैं तो इनका राजनितिक भविष्य खत्म हो जाएगा लेकिन ये चुनाव जीते तो इनका कद पार्टी में बढ़ना तय है.

क्यों हो रहे हैं उपचुनाव

मार्च में कमलनाथ सरकार की रवानगी के साथ ही कांग्रेस छोड़ भाजपा में गए विधायको की सदस्यता खत्म हो गयी थी क्योंकि उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से पहले इस्तीफा दिया था. ऐसा करने वाले विधायकों की संख्या 22 है. इसके बाद 3 और विधायकों ने विधायकी से इस्तीफ़ा दिया और कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया.

इसके अलावा तीन विधायकों के निधन से 3 सीटें खाली हुई जिनपर भी उपचुनाव होने जा रहा है. इस तरह मध्यप्रदेश में कुल 28 सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं.

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लेखक

रवीश पाल सिंह रवीश पाल सिंह

लेखक आज तक में पत्रकार हैं

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