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Updated: 23 जनवरी, 2021 05:41 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) पहली बार छात्रों से मुखातिब थे. तीन महीने से कुछ ही ज्यादा हुए होंगे मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे हुए. तारीख थी - 5 सितंबर, 2014 और मौका शिक्षक दिवस का. पूर्व राष्ट्रपति एस. राधाकृष्णन का जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है.

शिक्षक दिवस के मौके पर मोदी की वर्चुअल पाठशाला लगी थी - प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनकी कैबिनेट साथी स्मृति ईरानी भी बैठी थीं. तब स्मृति ईरानी HRD मिस्टर हु्आ करती थीं. बाकी बातों के बाद प्रधानमंत्री मोदी और छात्रों के साथ संवाद शुरू हुआ. नॉर्थ ईस्ट के उस छात्र का सवाल ऐसा था कि सिर्फ मोदी ही नहीं, कार्यक्रम में शामिल कोई भी अपनी हंसी नहीं रोक पाया. कुछ देर तक ठहाके गूंजते रहे.

छात्र का सवाल था - "सर, मैं भारत का प्रधानमंत्री कैसे बन सकता हूं?"

हंसते हंसते... हंसी को थोड़ा रोक कर... प्रधानमंत्री मोदी बोले, "2024 के चुनाव की तैयारी करो."

मतलब, पहली बार चुनाव जीत कर प्रधानमंत्री बनने के साथ ही नरेंद्र मोदी ने अपनी दूसरी पारी का इरादा कर लिया था. 2019 के आम चुनाव से पहले भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में ऐसा आत्मविश्वास देखने को मिला था. सरकार की भी कई योजनाओं को देखें तो ऐसा लगा कि वे सब इसी हिसाब से तैयार की गयी थीं कि बचा हुआ काम अगली पारी में करना है. ऐसी कई योजनाएं थीं जिनके बारे में प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से उनके 2022 में पूरे होने या पूरा करने की बात बतायी गयी - और चुनाव के नतीजे तो उम्मीदों से भी ज्यादा रहे. यहां तक कि अविश्वास प्रस्ताव के दौरान भी राहुल गांधी का नाम लिए बगैर मोदी ने शुभकामनाएं व्यक्त की कि आप बने रहें और अगली बार भी ऐसे ही अविश्वास प्रस्ताव लायें.

छात्र के सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री ने हंसते हंसते ये भी कहा, "और इसका मतलब ये हुआ कि तब तक मुझे कोई खतरा नहीं है."

फिर बोले, "देखिये भारत एक लोकतांत्रिक देश है... और हमारे संविधान निर्माताओं ने हमें इतनी बड़ी सौगात दी है कि हिंदुस्तान की जनता का अगर विश्वास आप जीत लेते हैं... देश की जनता का प्रेम संपादन कर सकते हैं - तो हिंदुस्तान का कोई भी बालक इस जगह पर पहुंच सकता है."

लगे हाथ एक सलाहियत भी, "मेरी आपको बहुत शुभकामनाएं हैं... और जब आपके प्रधानमंत्री पद की शपथ हो तो मुझे शपथ समारोह में जरूर बुलाना!" [ये सवाल जवाब आप इस वीडियो में 15.39 पर सुन सकते हैं.]

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2024 तक के लिए मैंडेट हासिल कर चुके हैं - और, 'मूड ऑफ द नेशन' सर्वे के मुताबिक, आगे भी ज्यादातर लोग यही चाहते हैं कि मोदी ही देश के अगले प्रधानमंत्री बनें - और सर्वे में ऐसे 38 फीसदी लोग पाये गये जो मोदी के ही 2024 में भी प्रधानमंत्री बनने के पक्षधर दिखे.

ये प्रधानमंत्री की लोकप्रियता का ही आलम है कि ज्यादातर लोग आगे भी मोदी को ही देश का नेतृत्व करते देखना चाह रहे हैं, फिर भी ये सवाल तो बनता ही है कि मोदी के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए लोगों की पसंद के कौन कौन नेता हैं - मूड ऑफ द नेशन में लोगों ने इस मामले में दिल खोल कर अपने मन की बात बतायी है.

देश के अगले प्रधानमंत्री पद के पसंदीदा नेताओं की कट ऑफ लिस्ट

इंडिया टुडे और कार्वी इनसाइट्स के 'मूड ऑफ द नेशन' सर्वे के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता अब भी देश भर के नेताओं में सबसे ज्यादा है. यही वजह है कि आज की तारीख में चुनाव कराये जाने के सवाल पर भी लोग बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए के बहुमत के पक्ष में ही हैं, जबकि 2019 के बाद से तीन राजनीतिक दल एनडीए छोड़ भी चुके हैं - शिवसेना, अकाली दल और RLP.

3 जनवरी से 13 जनवरी के बीच हुए सर्वे में 67 फीसदी गांव के लोग और 33 फीसदी शहरी आबादी को शामिल किया गया था - और जब सवाल हुआ कि नरेंद्र मोदी के बाद लोग किसे प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं तो सबसे ज्यादा पसंदीदा दो नाम सामने आये - केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath).

सर्वे में मालूम हुआ है कि देश के 38 फीसदी लोग जहां अगले प्रधानमंत्री के रूप पर नरेंद्र मोदी को ही देखना चाहते हैं, वहीं, 10 फीसदी लोग योगी आदित्यनाथ और 8 फीसदी लोग अमित शाह को प्रधानमंत्री बनाये जाने के पक्ष में हैं.

yogi adityanath, narendra modi, amit shahनरेंद्र मोदी के बाद सबसे अच्छा काम अमित शाह करते हैं, लेकिनअगला प्रधानमंत्री योगी आदित्यनाथ को बनना चाहिये - ये है देश का मौजूदा मिजाज!

सर्वे में ऐसे लोग भी मिले हैं जो कांग्रेस नेता राहुल गांधी को भी भविष्य में देश के प्रधानमंत्री के तौर पर देखना पसंद करते हैं - लेकिन सिर्फ 7 फीसदी. प्रधानमंत्री मोदी के मुकाबले ये संख्या काफी कम है. राहुल गांधी के बाद विपक्षी नेताओं में 5 फीसदी लोग दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी प्रधानमंत्री पद के लायक मानते हैं. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को 4 फीसदी लोग देश का नेतृत्व करने लायक मानते हैं. और भी नेता हैं जिन्हें 2 फीसदी लोग प्रधानमंत्री बनते देखना चाहते हैं - ये हैं बीएसपी नेता मायावती, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, शिवसेना नेता और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार.

ये तो रहा देश के अगले प्रधानमंत्री को लेकर देश का मिजाज, इंडिया टुडे और कार्वी इनसाइट्स के ही एक और सर्वे में जब लोगों के सामने ये विकल्प रखा गया कि बीजेपी नेताओं के बीच में से ही अगर प्रधानमंत्री चुनना पड़े तो उनकी राय क्या होगी - लोगों ने बीजेपी के भीतर से प्रधानमंत्री चुनने की बात आयी तो अलग नजरिया पेश किया.

नरेंद्र मोदी के बाद किसी अगले बीजेपी नेता को प्रधानमंत्री बनाये जाने के सवाल पर 30 फीसदी लोग अमित शाह के पक्ष में दिखे और उनके बाद 21 फीसदी लोग योगी आदित्यनाथ को पीएम बनाये जाने के पक्ष में.

बीजेपी के बाकी नेताओं की बात करें तो 5 फीसदी लोग नितिन गडकरी और निर्मला सीतारमन के पक्ष में हैं, 3 फीसदी लोग स्मृति ईरानी, शिवराज सिंह चौहान, रविशंकर प्रसाद और धर्मेंद्र प्रधान के पक्ष में, जबकि महज 2 फीसदी लोग पीयूष गोयल, सुशील मोदी, प्रकाश जावड़ेकर, देवेंद्र फडणवीस और गिरिराज सिंह को भी प्रधानमंत्री पद के लिए ठीक मान रहे हैं.

आखिर योगी आदित्यनाथ शाह से बेहतर कैसे

सवाल ये है कि जब मोदी कैबिनेट के बेहतरीन मिनिस्टर अमित शाह हैं तो वो प्रधानमंत्री पद को लेकर लोगों के बीच नरेंद्र मोदी के बाद पहली पसंद क्यों नहीं बन पा रहे हैं?

धारा 370 और सीएए कानून बनाने से लेकर लॉकडाउन की गाइडलाइन तैयार करने और उसे लागू कराने की भी जिम्मेदारी अमित शाह की ही रही. लोगों का मानना है कि अमित शाह ने ये सारे काम सबसे अच्छे से किया, लेकिन फिर भी लोग प्रधानमंत्री के रूप में अमित शाह पर योगी आदित्यनाथ को तरजीह क्यों दे रहे हैं?

नरेंद्र मोदी भी मुख्यमंत्री के रूप में काम करने के बाद ही प्रधानमंत्री बने हैं जबकि योगी आदित्यनाथ अभी मुख्यमंत्री हैं - दोनों में एक कॉमन बात ये भी है कि दोनों पहली बार सीधे मुख्यमंत्री ही बने हैं. हालांकि, योगी आदित्यनाथ पहले पांच बार लोक सभा सांसद भी रह चुके हैं - और नरेंद्र मोदी सांसद बनने से पहले ही बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित कर दिये गये थे.

अगर योगी आदित्यनाथ और अमित शाह के राजनीतिक दायरे की बात करें तो अमित शाह 2014 के बाद राष्ट्रीय राजनीति में आये हैं और उस वक्त योगी आदित्यनाथ पांचवीं बार संसद पहुंचे थे. हालांकि, संसद में उनकी मौजूदगी के तौर पर उनका फूट फूट कर रोना ही लोगों को याद है.

2014 से पहले अमित शाह की राजनीति गुजरात तक ही सीमित रही और गुजरात से बाहर अगर उनकी चर्चा रही तो सिर्फ विवादों की वजह से. आम चुनाव से पहले अमित शाह यूपी पहुंचे और फिर चुनावी जीत के बाद बीजेपी के अध्यक्ष बने - बतौर अध्यक्ष बीजेपी को सबसे बड़ी पार्टी बनाने का क्रेडिट भी अमित शाह को हासिल है.

अमित शाह का ज्यादातर वक्त संगठन की मजबूती और चुनाव जीतने में बीता है, जबकि योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनने से पहले अपने कुछ विवादित कार्यक्रमों को लेकर चर्चित रहे हैं - लव जिहाद और घर वापसी. हिंदु युवा वाहिनी की स्थापना का मकसद भी यही रहा है और उसी की बदौलत योगी आदित्यनाथ ने अपना जनाधार बढ़ाने में कामयाबी हासिल की. माना तो यहां तक जाता है कि योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने में भी उसी का सबसे ज्यादा योगदान रहा है.

आखिर अमित शाह जब लोगों की नजर अच्छे पॉलिटिकल एडमिनिस्ट्रेटर माने जा रहे हैं तो प्रधानमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ क्यों चाहिये - जिनके शासन पर लगातार उंगलियां उठ रही हैं, कानून व्यवस्था का बुरा हाल है. यूपी पुलिस का अगर कोई काम अच्छा है तो वो है हर किसी के दिमाग में पहले नंबर पर एनकाउंटर ही आता है - भले ही गोली खत्म हो जाने पर पुलिस वाले मुंह से ही ठांय-ठांय आवाज लगायें या फिर आरोपियों को एक जगह से दूसरी जगह ले जा रही गाड़ी चलते चलते पलट जाये. जब भी सीबीआई यूपी के अपराध की जांच करती है तो पुलिस की कलई खुल जाती है - उन्नाव और हाथरस गैंगरेप के दोनों मामलों में ऐसा ही देखने को मिला है.

क्या कट्टर हिंदुत्व की राजनीति में योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता अमित शाह पर भारी पड़ रही है? नाथ संप्रदाय के अनुयायियों के बीच गोरक्षपीठ का महंत होना योगी आदित्यनाथ का एक अलग जनाधार है और उसी के चलते वो देश भर में जगह जगह बीजेपी के स्टार प्रचारक बने हुए हैं - तभी तो उम्र में 20 साल छोटे और बीजेपी के सबसे जूनियर मुख्यमंत्री होने के बावजूद छत्तीसगढ़ चुनाव में प्रचार के लिए पहुंचे तो तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह को योगी आदित्यनाथ के पैर छुते देखा - क्या देश प्रधानमंत्री पद के लिए अपना नजरिया लगातार बदल रहा है?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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