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Updated: 12 अगस्त, 2018 12:21 PM
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संसद के हर सत्र के शुरू होने से पहले बुलाई जाने वाली ऑल पार्टी मीट का मकसद एक ही होता - जैसे भी मुमकिन हो संसद में कामकाज ज्यादा से ज्यादा हो सके. ऐसी हर मीटिंग में स्पीकर और प्रधानमंत्री सदस्यों से हर सूरत में संसद चलने देने की अपील करते हैं. सरकार के संकटमोचक पर्दे के पीछे हंगामे रोकने के जुगाड़ में जुटे होते हैं और हर बार होता वही है - सिर्फ और सिर्फ हंगामा.

असली वैद्य वो होता है जो वक्त पर नब्ज पहचान ले और पेशेवर राजनीतिज्ञ वो होता है जो वक्त से पहले वक्त की नब्ज पहचान ले. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी टीम ने मॉनसून सत्र में करीब करीब वैसा ही कौशल दिखाया है - अब नौकरियों और स्किल डेवलपमेंट के क्षेत्र में जो भी हो रहा हो वो तो होनी है. जब सब 'हरि भरोसे' होने जा रहा हो तो होनी को टाल कौन सकता है? वैसे होनी कौन रंग दिखाएगी किसे मालूम?

बारिश का मौसम देश के लिए जैसा भी रहा हो, दिल्ली में बारिश के चलते लोगों को जितनी भी मुश्किलें झेलनी पड़ी हों - लेकिन संसद के लिए मॉनसून सत्र खुशखबरी देकर खत्म हुआ है. मॉनसून सत्र न सिर्फ मोदी सरकार का अब तक का सबसे सफल सत्र साबित हुआ है, बल्कि साल 2000 के बाद ऐसा पहला मौका है जब मॉनसून सेशन में सबसे ज्यादा काम हुआ है.

18 साल बाद

अंक ज्योतिष जाननेवाले या दिलचस्पी रखनेवाले चाहें तो अपने हिसाब से विश्लेषण कर सकते हैं - क्योंकि 2018 में जुलाई की 18 तारीख को जो सत्र शुरू हुआ उसमें 18 साल बाद सबसे ज्यादा काम हुआ.

narendra modiआंखों का वो खेल तो काम कर गया...

एक अविश्वास प्रस्ताव से छप्परफाड़ फायदा हो सकता है शायद ही कभी किसी ने सोचा हो. जो काम पिछले अठारह साल में सर्वदलीय बैठकों से नहीं हो पाया. जो काम मोदी सरकार के चार साल में तमाम बातचीत, बीचबचाव के तरीकों और अपीलों से नहीं हो पाया - वो सब सिर्फ एक अविश्वास प्रस्ताव से हो गया. गजब है. तो क्या इसीलिए प्रधानमंत्री ने कह दिया कि विपक्ष को भगवान शिव शक्ति दें कि वो 2024 में भी वैसे ही अविश्वास प्रस्ताव लाये. सच में प्रधानमंत्री मोदी किस्मतवाले हैं. कम से कम इस मामले में तो माने ही जाएंगे. इन 18 साल में सरकार तो अटल बिहारी वाजपेयी की भी रही. दो बार मनमोहन सिंह की भी रही - और चाल साल से मोदी सरकार है ही, लेकिन उपलब्धि तो मोदी सरकार की किस्मत में लिखी थी.

अविश्वास प्रस्ताव को चाहे जिस रूप में लिया जाये, लेकिन लोकतंत्र के हिसाब से ये स्वस्थ परंपरा तो है ही. मजबूरी में ही सही मोदी सरकार ने अपने खिलाफ इस मुसीबत का डट कर सामना करने का फैसला किया, लेकिन बात तो अच्छी ही रही. विपक्ष को देश के सामने संसद में अपनी बात रखने का मौका मिला - और सरकार को भी अपना पक्ष रखने का अवसर.

अब मौके उपलब्ध होंगे तो फायदा तो हर कोई उठाना चाहेगा. फायदा तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी उठाया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी. राहुल गांधी ने जिसे फायदेमंद समझा उन्हें उसका लाभ मिला और मोदी को उनके मन माफिक.

rahul gandhi, narendra modiआओ गले मिल कर देखें!

राहुल गांधी ने एक बार और नये सिरे से चुनावी भाषण का रिहर्सल कर लिया और मोदी ने हर बार की तरह फिर से रिपोर्ट कार्ड पेश कर दिया. ऊपर से राहुल गांधी नफरत पर प्यार की जीत का नमूना पेश करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी से घात लगाकर गले भी मिल लिये - और कुछ हो न हो कुछ पल के लिए ही सही प्रधानमंत्री मोदी और उनके सभी साथी सकपका तो गये ही थे. अब और क्या चाहिये भला?

हंगामा भी इतना तो हुआ ही कि सब सूना न लगे

कहीं जग सूना सूना न लगे, और आगे से किसी की नजर न लगे इसलिए हंगामे भी तो जरूरी ही थे - और हुए भी.

सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच अविश्वास प्रस्ताव पर तो सहमति बन गयी, लेकिन कुछ मुद्दे ऐसे भी रहे जिन पर टकराव होकर ही रहा - असम में NRC का मसौदा, मुजफ्फपुर और देवरिया के शेल्टर होम में बलात्कार का मामला जैसे मुद्दों पर भी हंगामा न हो तो संसद गुलजार कैसे रहेगी. फिर तो किसी के भी मुहं से बरबस निकल सकता है - इतना सन्नाटा क्यों है भाई?

18 जुलाई से 10 अगस्त तक चले मॉनसून सत्र में सरकार ने 20 विधेयक पेश किये जिनमें 12 पास भी हो गये. पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के विश्लेषण अनुसार, लोकसभा में काम के तय घंटों के मुकाबले 110 फीसदी और राज्यसभा में 66 फीसदी काम हुआ. गौर करने वाली बात ये है कि 2000 में लोकसभा में 91 फीसदी ही काम हो पाये थे.

16वीं लोकसभा में दोनों सदनों में अब तक का सबसे ज्यादा और 2004 के बाद से दूसरा सबसे ज्यादा काम हुआ है. इस बार 26 फीसदी विधेयक संसदीय समिति को भेजे गए, जबकि 15वीं लोकसभा में 71 फीसदी और 14वीं में 60 फीसदी भेजने पड़े थे.

लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के अनुसार मॉनसून सत्र में 17 बैठकें हुईं जो 112 घंटे चलीं. इसी सत्र में एससी-एसटी अत्याचार निवारण संशोधन बिल 2018 भी पास हुआ जिसको लेकर पूरे देश में बवाल हुआ और हिंसा में लोग मारे भी गये.

...और हरि ने भरोसा कायम रखा

हरिवंश नारायण सिंह के राज्य सभा का उपसभापति चुने जाने पर प्रधानमंत्री मोदी की मजाकिया टिप्पणी रही कि अब सब हरि भरोसे है. मोदी ने ये बात कही तो सत्र के आखिर में लेकिन लगता है ये पहले से ही चल रहा था. अगर हरि भरोसे नहीं होता तो क्या इतना सारा काम हो पाया होता. उपसभापति हरिवंश ने रूल बुक दिखा कर भरोसा कायम रखा - लेकिन विपक्ष का, सरकार की तो किरकिरी ही करा दी. कुर्सी संभालते ही, पहले ही दिन उपसभापित हरिवंश ने रूल बुक का इस्तेमाल किया और प्राइवेट मेंबर के बिल पर वोटिंग करा डाली.

harivansh अब सब 'हरि भरोसे'...

दरअसल, समाजवादी पार्टी सांसद विश्वंभर प्रसाद का एक प्राइवेट बिल रिजेक्ट कर दिया गया. इस पर मंत्री के जवाब से विपक्ष संतुष्ट नहीं हुआ और बिल पर वोटिंग की मांग हुई. कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने ये कहते हुए दखल देने की कोशिश की कि नियम इस पर वोटिंग की इजाजत नहीं देते. प्रधानमंत्री मोदी की तारीफों से लैस हरिवंश कहां मानने वाले, रूल बुक देख कर बोले, 'एक बार प्रक्रिया शुरू होने के बाद इसे रोका नहीं जा सकता.' विपक्ष ने इस वाकये का मेजें थपथपाकर स्वागत किया. वोटिंग हुई भी लेकिन पक्ष में 32 के मुकाबले विपक्ष को 60 वोट हो जाने से ये बिल भी अविश्वास प्रस्ताव की गति को प्राप्त हो गया.

अब तो मोदी सरकार को मान लेना चाहिये कि आगे से सर्व दलीय बैठक बुलाने की जगह विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को ही स्पीकर से मंजूरी दिलवा दे - हींग लगे न फिटकरी और रंग बिलकुल चोखा! वैसे भी मोदी सरकार ने बैकफुट पर जा कर अविश्वास प्रस्ताव के बॉल को सीधे बाउंड्री के बाहर भेज दिया. राजनीति का एक चटख रंग ये भी है, लेकिन कम ही मौकों पर नजर आता है.

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