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Updated: 17 नवम्बर, 2021 06:27 PM
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ब्राह्मण समुदाय (BJP Brahmin Card) का खफा होना बीजेपी की फिक्र बढ़ाने लगा है - और ये संकेत कहीं और नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Modi and Yogi) के भाषणों में ही मिल जा रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बार बार ब्राह्मणों को रिझाने की कोशिश करना, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का तारीफ में कसीदे पढ़ना - और लखीमपुर खीरी वाले ब्राह्मण केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र टेनी को लेकर अमित शाह का कन्फ्यूजन भी बीजेपी की चिंता की गहराई ही जाहिर कर रहा है.

विडंबना ये है कि यूपी में ब्राह्मण समुदाय की फिक्र भी एक गैंगस्टर के एनकाउंटर के बाद ही देखने को मिली है. कानपुर वाले विकास दुबे के पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने के बाद ही यूपी में विपक्षी दलों को ब्राह्मणों की चिंता सताने लगी थी - और सिर्फ यूपी के विपक्षी दल (UP Opposition Parties) ही नहीं, बल्कि, बिहार में बैठे पप्पू यादव भी यूपी के ब्राह्मणों के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ने की बात करने लगे थे.

सबसे बड़ी मुश्किल तो ब्राह्मण वोट की ये है कि वो जाएगा कहां - सपा-बसपा के साथ जा नहीं सकता, कांग्रेस ने परिवर्तन का कोई सपना मजबूती से दिखाया नहीं, फिर तो थक हार कर बीजेपी ही बचती है. हो सकता है लोकल लेवल पर ब्राह्मण वोट उम्मीदवारों में बिरादरी का चेहरा देखें और तलाश पूरी होती ही उसके नाम पर बटन दबा दें - फिर तो पार्टी कोई भी हो, फर्क क्या पड़ता है.

पांच साल बाद याद आ रहे ब्राह्मण

अभी सितंबर, 2021 में ही जितिन प्रसाद को कांग्रेस से लाकर बीजेपी में यूपी सरकार में मंत्री बनाया गया, ताकि वो स्टार प्रचारकों में ब्राह्मण चेहरा बने रहें. ऐसी उम्मीद मोदी कैबिनेट पुनर्गठन के वक्त अजय मिश्रा टेनी को लेकर भी बीजेपी नेतृत्व के दिमाग में रही - लेकिन लखीमपुर खीरी में उनके बेटे आशीष मिश्रा मोनू ने केंद्रीय मंत्री की फजीहत तो करायी ही, मोदी सरकार को घेरे में लेकर बीजेपी को निशाने पर ला दिया है. लखीमपुर खीरी को लेकर विपक्षी खेमे में प्रियंका गांधी वाड्रा सबसे ज्यादा हमलावर हैं और लोगों को न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ रही हैं. स्लोगन भी दिया है - लड़की हूं... लड़ सकती हूं.

ब्राह्मण वोट को लेकर कांग्रेस नहीं बल्कि सपा-बसपा ने बीजेपी की ज्यादा चिंता बढ़ायी है. अपने शासन में बेहतरीन कानून-व्यवस्था के दावे करने वाली मायावती के सहयोगी सतीश चंद्र मिश्रा ने अयोध्या से ब्राह्मण सम्मेलन शुरू करने से पहले ही यूपी में ब्राह्मणों के खिलाफ होने वाले अपराध की दुहाई देने लगे. कहने लगे कि योगी सरकार में सबसे ज्यादा ब्राह्मणों के ही एनकाउंटर हुए हैं, मेरी सरकार आई तो उनको उनका हक मिल कर रहेगा.

बीजेपी से चुनावी मुकाबले में फिलहाल सबसे आगे माने जा रहे अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने लखनऊ के जनेश्वर पार्क में परशुराम की 108 फीट ऊंची प्रतिमा लगाने का एलान तो किया ही है... बताते हैं कि मूर्ति जयपुर में तैयार की जा रही है और कोशिश है कि 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले ये काम पूरा भी हो जाये. परशुराम के साथ साथ अखिलेश यादव स्वतंत्रता आंदोलन में शहादत देने वाले बलिया के मंगल पांडेय की मूर्ति लगवाने की बात भी कर चुके हैं.

12 फीसदी ब्राह्मण वोट वाले उत्तर प्रदेश में अब तक 6 मुख्यमंत्री इसी वर्ग से बने हैं - और कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी यही मिसाल देते हुए सपा-बसपा और बीजेपी को चैलेंज करते हैं कि कोई एक भी सीएम तो बना कर दिखा दे. यूपी के आखिरी ब्राह्मण मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी रहे हैं और 1989 के बाद से ये सिलसिला थम सा गया है.

2017 में चुन कर आये बीजेपी के 312 विधायकों में 58 ब्राह्मण रहे - और 56 मंत्रियों वाली योगी सरकार में डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा, जितिन प्रसाद, श्रीकांत शर्मा और ब्रजेश पाठक सहित 9 ब्राह्मण मंत्री हैं - फिर भी अगर मोदी और योगी की बातों से लगता है कि बीजेपी को ब्राह्मणों की चिंता सताने लगी है, तब तो ऐसा ही लगता है कि बीजेपी को ब्राह्मणों की फिक्र से ज्यादा चिंता विपक्षी दलों को लेकर हो रही है.

मोदी ब्राह्मणों को इतना जो रिझा रहे हैं

योगी आदित्यनाथ पर ठाकुरवाद की राजनीति के आरोप के बीच बीजेपी को लगने लगा है कि पूर्वांचल में ब्राह्मण वर्ग वैसे ही नाराज हो चला है जैसे पश्चिम यूपी में किसान आंदोलन को लेकर जाट समुदाय. माधव प्रसाद त्रिपाठी से लेकर श्रीपति मिश्र तक के नाम ले ले कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक ही मैसेज दे रहे हैं - ब्राह्मण समुदाय को बीजेपी से निराश होने की जरूरत नहीं होनी चाहिये. हम हैं ना!

narendra modi, yogi adityanathअगर बीजेपी को ब्राह्मण वोटों की ऐसी फिक्र सताने लगी है तो बाकियों को लेकर क्या समझा जाये?

प्रधानमंत्री मोदी जिस श्रीपति मिश्र का अभी नाम लेकर जिक्र कर रहे हैं वो भी कांग्रेस कोटे से ही यूपी के मुख्यमंत्री रहे हैं. दो साल कुर्सी पर रहने के बाद कांग्रेस नेतृत्व ने नारायण दत्त तिवारी को तीसरी बार लाकर उनको चलता कर दिया था - पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के उद्घाटन के बाद सुल्तानपुर में प्रधानमंत्री श्रीपति मिश्र के बहाने कांग्रेस को ही कोस रहे थे.

1. ब्राह्मण वोट पर निगाहें, कांग्रेस पर निशाना: कांग्रेस पर श्रीपति मिश्र को उचित सम्मान न देने का आरोप लगा कर यही तो जताने का प्रयास कर रहे थे कि कांग्रेस ब्राह्मणों का सम्मान नहीं करती. भले ही कांग्रेस ने छह-छह ब्राह्मण मुख्यमंत्री बनाये और तीन बार नारायण दत्त तिवारी पर भरोसा किया, लेकिन श्रीपति मिश्र की कहानी थोड़ी अलग तो है ही.

1982 में विश्वनाथ प्रताप सिंह के इस्तीफे के बाद श्रीपति मिश्र यूपी के सीएम बने, लेकिन दो साल और 14 दिन ही कुर्सी पर रह पाये. माना जाता है कि श्रीपति मिश्र को राजीव गांधी की नाराजगी की कीमत चुकानी पड़ी थी और 1984 में उनको हटा दिया गया - हालांकि, ये तब की बात है जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ही थीं.

ब्राह्मणों के साथ कांग्रेस के व्यवहार की याद दिलाते हुए रैली में प्रधानमंत्री मोदी का कहना रहा, 'सुल्तानपुर के सपूत श्रीपति मिश्र के साथ भी तो यही हुआ था... परिवारवादी लोगों ने उनका अपमान किया था... यूपी के लोग इसे कभी नहीं भुला सकते.'

2. ब्राह्मणों का बीजेपी से पुराना नाता है: कुशीनगर में एयरपोर्ट के उद्घाटन के पांच दिन बाद ही यूपी दौरे में प्रधानमंत्री मोदी ने नौ मेडिकल कॉलेजों की सौगात दी थी और इनमें से एक सिद्धार्थनगर का मेडिकल कॉलेज भी रहा. योगी आदित्यनाथ ने दिसंबर, 2018 में इस मेडिकल कॉलेज का शिलान्यास किया था और अब मोदी ने लोकार्पण किया है.

संघ की पृष्ठभूमि से आने वाले माधव प्रसाद त्रिपाठी यूपी बीजेपी के पहले अध्यक्ष विधायक और सांसद भी रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने त्रिपाठी को कर्मयोगी बताया और कहा कि सिद्धार्थनगर मेडिकल कॉलेज का नाम उनके नाम पर रखना सच्ची श्रद्धांजलि है.

करीब आधे घंटे के अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने कई बार माधव प्रसाद त्रिपाठी का नाम लेकर जिक्र किया और योगी आदित्यनाथ को बधाई देते हुए प्रधानमंत्री ने समझाया कि जो युवा एमबीबीएस की पढ़ाई करने आएंगे वो चिकित्सा और स्वास्थ्य के साथ साथ माधव बाबू की जनसेवा से भी प्रेरणा लेंगे.

2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी ब्राह्मण वोटों को लेकर बीजेपी खासी चिंतित रही - प्रधानमंत्री मोदी की चुनावी रैलियों में मंच से बैलेंस बनाये रखने की कोशिशें देखने को मिली थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कई रैलियों में उनकी एक तरफ योगी आदित्यनाथ और दूसरी तरफ शिव प्रताप शुक्ला देखने को मिलते थे - चुनावों से ठीक पहले उनको राज्य सभा भेजा गया और बाद में वित्त राज्य मंत्री बनाया गया था. ये सब योगी आदित्यनाथ के ठाकुरवाद के खिलाफ ब्राह्मण वर्ग में बढ़ते गुस्से को काउंटर करने की कवायद रही.

लेकिन 2019 का चुनाव पहले के मुकाबले ज्यादा बहुमत से जीतने के बाद प्रधानमंत्री मोदी की कैबिनेट में शिव प्रताप शुक्ला को जगह नहीं दी गयी - और जितिन प्रसाद को योगी कैबिनेट में शामिल किये जाने के बाद भी बीजेपी के लिए ब्राह्मणों को जुटाये रखने की जिम्मेदारी यूपी के मंत्री ब्रजेश पाठक को मिली है. बीजेपी से पहले ब्रजेश पाठक बीएसपी के ब्राह्मण फेस हुआ करते थे, लेकिन सतीश चंत्र मिश्र को फूटी आंख नहीं सुहाते - और फिर छोड़ आये वो गलियां.

योगी तो चाणक्य ही बताने लगे हैं

बीजेपी की ब्राह्मण वंदना की ऐसी ही झलक लखनऊ में आयोजित 'ब्राह्मण परिवार' के स्थापना दिवस उत्सव में भी देखा गया - खास बात ये रही कि इसमें योगी आदित्यनाथ के साथ साथ यूपी के ही ठाकुरों के दिग्गज नेता माने जाने वाले राजनाथ सिंह भी शामिल हुए.

ब्राह्मण सम्मेलन में बीजेपी नेताओं की जमघट: आयोजन में ब्रजेश पाठक की महत्वपूर्ण भूमिका को देख कर तो यही लगा कि कर्ताधर्ता वही हैं. ब्राह्मणों की इस जमघट में योगी आदित्यनाथ और राजनाथ सिंह को छोड़ दें तो बाकी बीजेपी के ब्राह्मण चेहरे ही नजर आये - डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा, लोक सभा सांसद रीता बहुगुणा जोशी और राज्य सभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी. सभी नेताओं ने अपने अपने तरीके से ब्राह्मणों के बखान में कोई कसर बाकी नहीं रखी.

1. सनातन धर्म को बचाये रखने वाले: गोरखपुर से लेकर लखनऊ पहुंचने तक ठाकुरवादी होने का ठप्पा झेल रहे योगी आदित्यनाथ तो जैसे भारत के महान बनने में ब्राह्मणों की गाथा ही सुना रहे थे - 'भारत तब महान बना था... जब चाणक्य देश को नई दिशा दे रहे थे - आप सब आचार्य चाणक्य के वंशज हैं.'

योगी आदित्यनाथ ने तो यहां तक कह डाला कि अगर सनातन धर्म को अब तक कोई बचाये हुए है तो वो ब्राह्मण ही है, 'जो आत्मा में सदैव विराजमान रह कर स्वयं कष्ट सहते हुए भी धर्म पर आंच नहीं आने देता.

2. ऋषि परंपरा के वाहक: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ब्राह्मणों को ऋषि परंपरा से जोड़ते हुए वसुधैव कुटुंबकम के मंत्र का क्रेडिट भी ब्राह्मण समुदाय के ही नाम कर दिया - 'जब भी हमारे ब्राह्मण समाज की बात चलती है तो हमारे सामने इस देश की ऋषि परंपरा सामने आती है, जिन्होंने वसुधैव कुटुम्बकम का मंत्र देकर पूरे विश्व को परिवार मानने का संदेश दिया था.

3. शीर्ष स्थानों पर कब्जा: यूपी के डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा ने ये भी बता डाला कि शीर्ष स्थानों पर आज भी इस वर्ग का कब्जा है. दिनेश शर्मा को मालूम होना चाहिये कि ऐसे बयान के बाद जब बीजेपी नेता दलितों और पिछड़ों के इलाके में वोट मांगने जाएंगे तो जवाब मांगा जाएगा.

ऐसे में जबकि विपक्षी दल देश में जातीय जनगणना की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं और दलित एक्टिविस्ट ब्राह्मण विरोध की आवाज तेज करने की कोशिश कर रहे हैं, दिनेश शर्मा भी समझा रहे हैं कि ब्राह्मण कोई जाति नहीं बल्कि विचारधारा है.

क्या संघ प्रमुख मोहन भागवत के हिंदुत्व की परिभाषा की तरह ब्राह्मणों को भी विचारधारा के तौर पर स्थापित करने की कोई मुहिम चलने वाली है - या ये सब सिर्फ चुनावी चोचले हैं जो 2022 में वोटिंग और गिनती के बाद नतीजे आने के साथ ही फिर से भुला दिये जाएंगे.

24 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वोट करीब 12 फीसदी हैं. ब्राह्मण वोटों की तरफ बाकी राजनीतिक दलों की तत्परता तो समझ में आती है, लेकिन अपने परंपरागत वोट बैंक को लेकर बीजेपी और मोदी-योगी की चिंता समझ में नहीं आती - अगर ये चिंता समझने की कोशिश करें तो ब्राह्मण वोटों से ज्यादा बीजेपी को विपक्षी दलों के प्रभाव की आशंका ज्यादा समझ आती है.

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