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Updated: 22 मई, 2016 01:55 PM
आर.के.सिन्हा
आर.के.सिन्हा
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पहले पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान और फिर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की ईरान यात्राओं के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 22 और 23 मई की ईरान की दो दिवसीय यात्रा के लिए जा रहे हैं. बेशक, मोदी की यात्रा की जमीन प्रधान और सुषमा स्वराज ने तैयार कर दी थी.

ईरान के राष्ट्रपति डॉ. हसन रूहानी के निमंत्रण पर हो रही इस यात्रा में मोदी ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अल खुमैनी से भी भेंट करेंगे. खुमैनी आमतौर पर किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष से मिलते नहीं हैं. लेकिन वे मोदी से मिलेंगे. साफ है कि ईरान मोदी की यात्रा को खासी तरजीह दे रहा है. भारत के लिए ईरान एक बहुत महत्वपूर्ण देश है. ईरान न केवल तेल का बड़ा व्यापारिक केन्द्र है, बल्कि मध्य-एशिया, रूस तथा पूर्वी यूरोप जाने का एक अहम मार्ग भी है.

मोदी ईरान के राष्ट्रपति रुहानी के साथ पारस्परिक हितों से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर विचार विमर्श करेंगे. इस से दोनों देशों के बीच क्षेत्रीय संपर्क एवं ढांचागत विकास, ऊर्जा साझेदारी द्विपक्षीय कारोबार के क्षेत्र में विशिष्ट सहयोग को गति मिलेगी.

आपको याद होगा कि नरेन्द्र मोदी के सऊदी अरब की यात्रा के बाद ही केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान बीते अप्रैल माह में ईरान के उच्च नेतृत्व से मिलने तेहरान गए थे. तभी मोदी की यात्रा की तैयारी शुरू हो गई थी. मोदी की ईरान यात्रा इस लिहाज से भी अहम है कि कुछ समय पहले ही अमेरिका समेत छह विश्व शक्तियों ने ईरान से प्रतिबंधों को हटाया है. जहां तक तेल और गैस का मामला है, भारत इस नई स्थिति को अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता है. जाहिर है भारत ऊर्जा से लबरेज ईरान के साथ अपने संबंधों में नई इबारत लिखने का मन बना चुका है.

वर्तमान में भारत मुख्य रूप से कच्चे तेल को सऊदी अरब और नाइजीरिया से आयात करता है. मोदी की यात्रा से ईरान को ये संदेश मिलेगा कि भारत उसके साथ आर्थिक और सामरिक संबंधों को मजबूती देना चाहता है.

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 भारत के लिए खास है ईरान..(फाइल फोटो)

भारत और अमेरिका के बीच 2008 में हुए असैन्य परमाणु करार के बाद ईरान के साथ बहुत सारी परियोजनाओं को या तो रद्द कर दिया गया था या टाल दिया गया था. लगभग जिस समय रूहानी पाकिस्तान की यात्रा पर गए थे, तब मोदी सऊदी अरब का दौरा कर रहे थे. ईरान- सऊदी अरब के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहा है. लेकिन भारत के दोनों देशों से मधुर संबंध रहे हैं. भारत दोनों के साथ संबंध ठोस बनाना चाहता है.

ईरान से प्रतिबंध हटने के बाद माना जा रहा है कि अब तेल की कीमतों में और कमी आएगी. भारत को इसका सीधा लाभ मिलेगा. ये भी सच है कि भारत और ईरान के बीच मतभेद और गलतफमियां हैं. भारत को कुछ कड़वी सच्चाईयों का सामना करना पड़ सकता है. मोदी की यात्रा के समय ईरान पूछ सकता है कि भारत ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) में ईरान के परमाणु रिकॉर्ड के खिलाफ नाकारात्मक वोट क्यों दिया था? भारत ने अमेरिका के दबाव में ईरान के खिलाफ वोट किया था. मोदी के जेहन में ये सारी बातें होंगी जब वे ईरानी नेतृत्व से बात कर रहे होंगे.

नाराजगी ईरान की

साऊथ ब्लाक के दिग्गजों को ईरान को समझाना होगा कि आखिर उसने उसके खिलाफ IAEA में वोट क्यों दिया था. आपको ये भी याद होगा कि ईरान पर लगे प्रतिबंध के कारण भारतीय कंपनियों ने ईरान में निवेश करने से परहेज करना चालू कर दिया था. लेकिन प्रतिबंध हटने के बाद अब भारतीय कंपनियां वहां पर निवेश करने के मूड में हैं.

संबंधों की बुनियाद चाबहार पोर्ट

भारत की ईरान में महत्वाकांक्षी परियोजना चाबहार बंदरगाह परियोजना है जो अफगानिस्तान सहित मध्य एशिया और यूरोप तक संपर्क के लिये बहुत ही अहम साबित होगी. मुझे लगता है कि मोदी की ईरान यात्रा के समय चाबहार बंदरगाह के निर्माण और उससे तेल के आयात पर मुख्य रूप से बातें होंगी. ईरान ने भारत को चाबहार शहर में बंदरगाह बनाने का काम सौंपा है. भारत इसका प्रबंधन भी देखेगा. इसे बनाने में भारत लगभग 8.5 करोड़ डॉलर खर्च करेगा. यह विदेश में स्थित भारत का पहला बंदरगाह होगा जो भारत के मुन्द्रा पोर्ट से केवल 940 किमी की दूरी पर है.

चाबहार पोर्ट ईरान के दक्षिण-पूर्व प्रांत सिस्तान-बलूचिस्तान में है जो चीन द्वारा बनाए जाने वाले ग्वादर पोर्ट से काफी नजदीक है. बेशक, चाबहार पोर्ट को बनाने में भारत तथा ईरान के निजी स्वार्थ शामिल हैं. इसके निर्माण के बाद भारत के माल को मध्य-एशिया, ईरान की खाड़ी तथा पूर्वी-यूरोप तक एक तिहाई समय में पहुंचाया जा सकेगा और किराए में भी कटौती होगी.

चाबहार पोर्ट रेल तथा रोड के माध्यम से ईरान द्वारा बनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर से भी जुड़ेगा. इसे भारत-ईरान संबंधों का मील का पत्थर माना जा सकता है. मुझे कई विदेश मामलों के विशेषज्ञों ने बताया कि इस बंदरगांह से भारत अपना सामान मध्य एशिया तथा रूस तक आराम से पहुंचा सकेगा. इन सब जगहों में तेल, प्राकृतिक गैस तथा अन्य खनिज-पदार्थों के अकूत भंडार हैं. ये भी सच है कि मोदी ईरान से प्रतिस्पर्धी मूल्य पर गैस एवं तेल इंपोर्ट बढाना चाहते हैं. भारत तेल एवं गैस का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है और वह ईरान से अधिकतम तेल एवं गैस खरीदना चाहता है.

भारत के पारसी और ईरान

भारत की पारसी आबादी के कारण भी दोनों के संबंध पुरातन माने जा सकते हैं. पारसी समुदाय ईरान से ही भारत आया था. पारसी ईरान से भावनात्मक रूप से जुड़े हैं. दरअसल, भारत-ईरान दोनों प्राचीन सभ्यताओं वाले देश हैं. इनका इतिहास बेहद समृद्ध है. अगर इतिहास के पन्नों को खंगाले तो पता चल जाएगा कि साल 1947 से पहले ईरान भारत का पड़ोसी था.

ईरान हर कठिन मौके पर भारत के साथ रहा है. अब भारत को ईरान के साथ अपने संबंध को लेकर बहुत समझदारी से कदम उठाने होंगे. उसके गिले-शिकवे दूर करने होंगे. भारत किसी भी हालत में ईरान की अनदेखी नहीं कर सकता.

लेखक

आर.के.सिन्हा आर.के.सिन्हा @rksinha.official

लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं.

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