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Updated: 08 मार्च, 2021 06:22 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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मिथुन चक्रवर्ती (Mithun Chakraborty) और शुभेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari) दोनों ही मिलते जुलते मकसद और असाइनमेंट के साथ बीजेपी ज्वाइन किये हैं, लेकिन ऐसा क्यों लगता है कि दोनों को थोड़ा अलग अलग ट्रीटमेंट मिल रहा है. शुभेंदु अधिकारी को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की रैली में बीजेपी ज्वाइन कराया गया, जबकि मिथुन चक्रवर्ती को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की बिग्रेड ग्राउंड की सबसे बड़ी जन सभा में.

मिथुन चक्रवर्ती और शुभेंदु अधिकारी दोनों ही पश्चिम बंगाल में खासे लोकप्रिय हैं. मिथुन चक्रवर्ती की बंगाली समाज में अच्छी पैठ है तो कोलकाता से करीब 120 किलोमीटर दूर हल्दिया में हाल के दिनों में अलग ही नजारा देखने को मिला है. बड़े बड़े बैनर लगाये गये हैं जिन पर बांग्ला में लिखा है - अमरा दादार अनुगामी यानी हम दादा के अनुयायी हैं. इलाके में जगह जगह शुभेंदु अधिकारी की तस्वीर वाली टी-शर्ट पहन कर भी समर्थक सड़क पर घूमते फिर रहे हैं - और ये तब से हो रहा है जब शुभेंदु अधिकारी तृणमूल कांग्रेस छोड़े भी नहीं थे.

ऐसा क्यों लगता है कि शुभेंदु अधिकारी के मुकाबले मिथुन चक्रवर्ती को बीजेपी में कुछ ज्यादा ही भाव मिल रहा है - कहीं मिथुन चक्रवर्ती बीजेपी नेतृत्व के प्लान B का हिस्सा तो नहीं हैं?

एक ही नाव के दोनों हैं मुसाफिर

मिथुन चक्रवर्ती भी आखिरकार बीजेपी के हो गये. ठीक वैसे ही जैसे कभी ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के रहे शुभेंदु अधिकारी ने भगवा धारण कर लिया है. मिथुन चक्रवर्ती भी तृणमूल कांग्रेस की तरफ से राज्य सभा सांसद रह चुके हैं.

मिथुन चक्रवर्ती भी बीजेपी के लिए वैसे ही बड़े काम की चीज हैं, जैसे शुभेंदु अधिकारी - क्योंकि दोनों ही ममता बनर्जी को कमजोर करने के लिहाज से बीजेपी के लिए कारगर हथियार साबित हो सकते हैं.

ये समझना मुश्किल है कि मिथुन चक्रवर्ती और शुभेंदु को बीजेपी की जरूरत रही या फिर बीजेपी को इन दोनों की? क्योंकि दोनों ही घोटालों के साये में आगे पीछे जांच एजेंसियों के नेटवर्क में पाये जा चुके हैं. नोटिस पाने वालों में शुभेंदु अधिकारी भी शुमार रहे हैं तो मिथुन चक्रवर्ती की पूछताछ के लिए पेशी भी हो चुकी है.

ये भी मालूम ही है कि मिथुन चक्रवर्ती और शुभेंदु अधिकारी दोनों को ही खड़े होने के लिए एक सहारे की सख्त जरूरत तो थी ही. अपनी अपनी जरूरत के हिसाब से दोनों को एक एक ठिकाना चाहिये था - और वो मिल भी गया.

mithun chakraborty, narendra modiक्या वास्तव में मिथुन चक्रवर्ती बीजेपी में शामिल होने के बाद अब तक अधूरे रहे सपने को पूरा कर पाएंगे?

मिथुन चक्रवर्ती की तुलना में देखें तो शुभेंदु अधिकारी के पास अपनी नयी पार्टी बनाने का विकल्प भी खुला था, लेकिन उससे वो शोहरत तो नहीं ही मिलती जितनी अभी बीजेपी की बदौलत मिल रही है. शुभेंदु अपनी राजनीतिक पार्टी बना कर क्षेत्रीय स्तर पर ममता बनर्जी को अपने इलाके में चैलेंज कर सकते थे, लेकिन जो ताकत अभी बनी हुई है उसके लिए तो तरस कर ही रह जाते. तब तो शायद ममता बनर्जी से आमने सामने से सीधे सीधे दो-दो हाथ करने से भी परहेज किये होते. तब हो सकता है परहेज कर पाने का अधिकार भी होता, अभी तो चाह कर भी कुछ नहीं पाये होंगे. अब तो बीजेपी जैसे जैसे नचा रही होगी, नाचते रहने की मजबूरी हो चली है. अगर एक बार ममता के खिलाफ चुनाव लड़ने का मन नहीं भी रहा होगा तो भी मना कर पाने की स्थिति कहां रही.

मिथुन चक्रवर्ती के पास तो शुभेंदु अधिकारी जैसे विकल्प भी नहीं थे क्योंकि वो दोबारा तो ममता बनर्जी की मदद लेना भी नहीं चाह रहे होंगे, खास कर तब जब वो भी उस कतार में शामिल हो चुके हों जिसमें लोग तृणमूल कांग्रेस के डूबती जहाज समझ रहे होंगे.

मिथुन चक्रवर्ती के बीजेपी के हो जाने की चर्चा तो काफी दिनों से चल ही रही थी. उस दिन के बाद तो करीब करीब पक्का ही मान लिया गया था जब मिथुन चक्रवर्ती और RSS प्रमुख मोहन भागवत की मुंबई में मुलाकात हुई.

संघ प्रमुख मोहन भागवत का नागपुर से चल कर मिथुन चक्रवर्ती के घर मुंबई पहुंच कर मुलाकात करना कोई मामूली राजनीतिक घटना तो रही नहीं. आखिर ये उसी गैर राजनीतिक, निजी और पारिवारिक मुलाकात का नतीजा ही तो है.

मिथुन कहीं BJP के प्लान B का हिस्सा तो नहीं

ब्रिगेड ग्राउंड में बीजेपी का चोला अपनाते ही मिथुन चक्रवर्ती ने फिल्मी स्टाइल में राजनीतिक डायलॉग सुनाया - "मैं एक नंबर का कोबरा हूं... डसूंगा तो तुम फोटो बन जाओगे."

मान कर चलना होगा, मिथुन चक्रवर्ती का ये डायलॉग पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को ही समर्पित रहा होगा - वैसे भी मिथुन चक्रवर्ती के लिए भी ममता बनर्जी ने कोई कम नहीं किया है. शुभेंदु अधिकारी के मुकाबले सोचें तब भी.

मिथुन चक्रवर्ती ने कहा, 'अगर किसी का हक कोई छीनेगा तो मैं खड़ा हो जाऊंगा.'

मिथुन चक्रवर्ती ने ये भी कहा, 'मैं जब 18 साल का था तभी से गरीबों की मदद करना चाहता था... आज ये सपना पूरा होने जैसा लग रहा है.'

समझा जा सकता है. मिथुन चक्रवर्ती का नक्सली रूप और फिर ममता बनर्जी के भेजने पर राज्य सभा पहुंचना और चिट फंड घोटाले में फंसने के बाद संसद से इस्तीफा देकर चले जाना आखिर अधूरे सपने जैसा ही तो है.

शुभेंदु अधिकारी और मिथुन चक्रवर्ती के बाद अब सिर्फ सौरव गांगुली के बीजेपी ज्वाइन करने पर सस्पेंस बना हुआ है. सौरव गांगुली को लेकर शुरू से ही धारणा बन चुकी है कि वो ममता बनर्जी के खिलाफ बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा हो सकते हैं.

हो भी क्यों न. जिस तरीके से सौरव गांगुली ने कोलकाता में राज भवन जाकर गवर्नर जगदीप धनखड़ के बाद दिल्ली की फ्लाइट पकड़ कर अमित शाह से ताबड़तोड़ मुलाकातें कीं - राजनीति में जरा भी दिलचस्पी रखने वाला कोई भी मायने समझने की कोशिश तो करेगा ही. मान लेते हैं कि अमित शाह से सौरव गांगुली की मुलाकात एक ऐसे कार्यक्रम में हुई जो राजनीति और क्रिकेट दोनों के लिए कॉमन था, लेकिन ठीक पहले राज्यपाल से मिलने का कुछ तो मतलब होता ही है.

सौरव गांगुली पर सस्पेंस बढ़ाने में उनकी सेहत की भी भूमिका है. निश्चित तौर पर तबीयत खराब नहीं हुई होती और अस्पताल में भर्ती नहीं होना पड़ा होता तो क्या पता फिलहाल मिथुन चक्रवर्ती से ज्यादा बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली की चर्चा हो रही होती.

हाल फिलहाल सौरव गांगुली को लेकर कुछ मीडिया रिपोर्ट में उनके प्रधानमंत्री मोदी के सामने मंच पर बीजेपी ज्वाइन करने की रिपोर्ट आयी थी. लेकिन तभी पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने ऐसी खबरों को सिरे से खारिज कर दिया. उसके ठीक बाद पश्चिम बंगाल बीजेपीव प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय का भी बयान आ गया कि बीजेपी जिन राज्यों में सत्ता में नहीं होती, मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं किया जाता. हालांकि, ऐसे कई उदाहरण हैं जो कैलाश विजयवर्गीय के दावे को गलत ठहराते हैं - असम में सर्बानंद सोनवाल, हिमाचल प्रदेश मे प्रेम कुमार धूमल और कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा बतौर सीएम कैंडिडेट चुनाव लड़ चुके हैं.

मिथुन चक्रवर्ती को लेकर कैलाश विजयवर्गीय कह चुके हैं कि वो चुनाव नहीं लड़ेंगे बल्कि बीजेपी के हाथों को मजबूत करेंगे. कैलाश विजयवर्गीय का ये बयान उनकी मिथुन चक्रवर्ती से मुलाकात के बाद उनको मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाये जाने के कयासों के बाद आया है. कैलाश विजयवर्गीय जो भी कहें, जैसे ये साफ हो चुका है कि मिथुन चक्रवर्ती और मोहन भागवत की मुंबई वाली मुलाकात महज पारिवारिक नहीं थी - लग तो यही रहा है जैसे मिथुन चक्रवर्ती ही अब सौरव गांगुली की जगह लेने वाले हैं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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