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Updated: 29 सितम्बर, 2018 03:41 PM
संतोष चौबे
संतोष चौबे
  @SantoshChaubeyy
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राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की गौरव यात्रा का क्या मतलब है? क्या वो जनता जो उनसे उदास हो चली है उसे दिखाना चाहती हैं के मैंने अभी तक तुम लोगों के लिए क्या-क्या नहीं किया है? या ये उनकी अंतिम कोशिश है कि किसी तरह जनता जो उनसे विमुख हो रही है उससे जुड़ा जाए? वसुंधरा राजे की विभिन्न चरणों में चलने वाली ये गौरव यात्रा 4 अगस्त को शुरू हुई थी और इसका समापन जो 30 सितम्बर को होना था, उसके आगे बढ़ने की उम्मीद की जा रही है. अभी यात्रा अजमेर डिवीज़न में है.

vasundhara raje30 सितम्बर तक चलने वाली गौरव यात्रा अभी और चलेगी

अगर हम वसुंधरा राजे की पिछली राजस्थान यात्राओं को देखें तो इस यात्रा पर संदेह करना वाजिब ही है. वसुंधरा राजे ने इससे पहले राजस्थान में इसी तरह की दो यात्राएं की हैं - 2003 में और 2013 में - और दोनों बार वो विपक्ष में थीं और दोनों ही बार उनकी यात्राएं सफल भी रही थीं. और इस बार वो सत्ता पक्ष में हैं.

2003 में उन्होंने राजस्थान परिवर्तन यात्रा की थी और भाजपा 200 में से 120 सीटें जीतने में सफल रही थी. 2013 में भी अपनी राजस्थान यात्रा के बाद दो तिहाई के भारी बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की थी.

2008 में उन्हें कांग्रेस ने हराया क्योंकि जनता को उनका काम पसंद नहीं आया होगा. उस समय वसुंधरा राजे ने कोई यात्रा नहीं की थी. 2013 में कांग्रेस को हराकर वो सत्ता में वापस आईं. अब फिर चुनाव का समय है. और हर कोई यही कह रहा है कि वसुंधरा के चुनाव हारने के आसार हैं. उनके खिलाफ विरोधी लहर है. 100 से ज्यादा किसान बीजेपी राज में ख़ुदकुशी कर चुके हैं. गुज्जर लोग फिर से अपने 5% आरक्षण की मांग के लिए आंदोलन शुरू करने के लिए कह रहे हैं.

vasundhara rajeजनता विमुख हो रही है फिर भी डटी हुई हैं वसुंधरा राजे

बीजेपी राजस्थान में ओबीसी को लुभाना चाहती है और मदनलाल सैनी, जो माली हैं, को राज्य अध्यक्ष बनाया है जिससे ऊंची जातियां नाराज हैं. क्योंकि इससे पहले राज्य में ऊंची जाति या तटस्थ जाति का नेता राज्य अध्यक्ष होता था. कहा जाता है कि राजपूत गैंगस्टर आनंदपाल के पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने के बाद कई राजपूत उनके खिलाफ हैं. राजपूत बीजेपी के परंपरागत वोटर रहें हैं पर कई लोगों ने 'कमल का फूल हमारी भूल' नाम से अभियान भी शुरू कर दिया है. मतलब ये है कि बीजेपी अपने अब तक के वोटबैंक से दूर जा रही है.

सितम्बर की एक इंडिया टुडे सर्वे रिपोर्ट के अनुसार 48 प्रतिशत जवाब देने वाले लोग राजस्थान में नया नेतृत्व चाहते हैं. इसके अलावा राजस्थान में ये भी इतिहास रहा है कि 1993 के बाद से सत्ता पार्टी हमेशा पांच साल में बदलती रही है तो उस लिहाज से भी इस बार कांग्रेस का पलड़ा भारी दिखता है. और वसुंधरा की ये गौरव यात्रा सिर्फ एक अंतिम प्रयास जैसी है.

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लेखक

संतोष चौबे संतोष चौबे @santoshchaubeyy

लेखक इंडिया टुडे टीवी में पत्रकार हैं।

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