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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 07 दिसम्बर, 2022 06:18 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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दिल्ली नगर निगम चुनाव ( MCD Election Results) के नतीजों ने साफ कर दिया है कि आम आदमी पार्टी अब दिल्ली में बीजेपी पर भारी पड़ने लगी है. बीजेपी नेतृत्व ने लगातार दो विधानसभा चुनावों में एड़ी चोटी का जोर लगाया था, लेकिन अरविंद केजरीवाल के आगे किसी की एक न चली.

और ये पहला मौका है जब अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को चैलेंज करते हुए बीजेपी को डैमेज किया है - अब तक कांग्रेस ही केजरीवाल की शिकार बनती आ रही थी. दिल्ली और पंजाब, दोनों ही जगह अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस सत्ता से बेदखल कर अपनी जगह बनायी है.

कहने को तो आम आदमी पार्टी सांसद संजय सिंह दावा कर रहे हैं कि दिल्ली में आप का ही मेयर होगा, लेकिन वो भूल जाते हैं कि पंजाब में भगवंत मान सरकार बनने से पहले चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में AAP के ही सबसे ज्यादा पार्षद चुनाव जीत कर आये थे - लेकिन मेयर तो बीजेपी का ही बना.

चुनावों में बढ़त हासिल कर लेने भर से या ज्यादा सीटें जीत लेने मात्र से ही सब कुछ नहीं होता, राजनीति उसके काफी आगे तक होती है - और आखिर तक जिसकी राजनीतिक चालें कामयाब होती रहती हैं, बाजी भी उसी के हाथ लगती है.

निश्चित तौर पर दिल्ली नगर निगम चुनाव के नतीजे अरविंद केजरीवाल के लिए हौसला बढ़ाने वाले हैं, लेकिन ये भी याद रखना चाहिये कि चुनावी राजनीति में दिल्ली वालों ने सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया को माफी नहीं दी है. ये ठीक है कि पूरी दिल्ली पर सत्येंद्र जैन के मसाज वाले वीडियो का खास असर नहीं हुआ है, लेकिन ये भी है कि सिर्फ जैन ही नहीं, सीबीआई की छापेमारी के बाद मोदी-शाह को खुलेआम चुनौती देने वाले मनीष सिसोदिया के इलाके में आप पूरी तरह साफ हो गयी है.

सत्येंद्र जैन और सिसोदिया के साइड इफेक्ट

अरविंद केजरीवाल अभी गुजरात विधानसभा के चुनावों में ही जोर लगाये हुए थे कि एमसीडी चुनाव की तारीखें भी आ गयीं. दिल्ली में कूड़े के ढेर में अरविंद केजरीवाल को चुनावी मुद्दा दिखायी जरूर पड़ा - और सदल बल मौके पर पहुंच कर पूरी ताकत से शोर मचाने की कोशिश की. कुछ हद तक कामयाब भी हो रहे थे, लेकिन तभी जेल में बंद दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन के मसाज वाले सीसीटीवी फुटेज मार्केट में आ गये.

पहले मनीष सिसोदिया और फिर अरविंद केजरीवाल ने जोर शोर से जैन के वीडियो को डाउनप्ले करने की कोशिश की और जीभर बीजेपी नेताओं को कोसते रहे. मुश्किल ये थी कि वीडियो को फर्जी नहीं बताया जा सकता था, लिहाजा बहस इस बात पर कराने की कोशिश हुई कि ये सब भी बीजेपी करा रही है. आप नेता गोपाल राय ने अमित शाह का नाम लेकर दुहाई देना शुरू किया कि जब वो जेल गये थे तब भी ऐसा ही होता था.

arvind kejriwal, narendra modiबनारस में मोदी से मात खाने के बाद पहली बार अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी को शह दी है.

बहस चल ही रही थी कि जैन के और भी वीडियो एक एक करके आने लगे. हर वीडियो अलग ही कहानी कह रहे थे. एक से बढ़ कर एक. अरविंद केजरीवाल ने बहस को मोड़ने की कोशिश की कि जैन ने तो छह महीने से अन्न ही नहीं ग्रहण किया. मामला कोर्ट में भी उठा, लेकिन अदालत ने साफ साफ बोल दिया कि जेल में सत्येंद्र जैन को कोई स्पेशल फूड नहीं मिलेगा.

अरविंद केजरीवाल और उनकी पूरी टीम ने तरह तरह से सत्येंद्र जैन को बीजेपी की राजनीतिक साजिश का शिकार और पीड़ित के रूप में पेश करने की कोशिश की - दिल्ली के ज्यादातर हिस्सों में अरविंद केजरीवाल लोगों को अपनी बात समझा भी ले गये, लेकिन सत्येंद्र जैन के इलाके के लोग उनकी बातों में नहीं आये.

सत्येंद्र जैन के इलाके शकूरबस्ती की तीन सीटों में से कोई भी आम आदमी पार्टी के हिस्से में नहीं आ सकी है. तीनों ही सीटों पर बीजेपी काबिज हो गयी है - और ये सत्येंद्र जैन को लेकर अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों के दावों पर दिल्ली वालों का सख्त लहजे में दिया गया स्पष्ट संदेश माना जाना चाहिये.

दिल्लीवालों ने अरविंद केजरीवाल के लिए मनीष सिसोदिया के मामले में भी अपना फैसला सुना दिया है. हालांकि, मनीष सिसोदिया अपने पटपड़गंज इलाके में एक सीट बचाने में कामयाब रहे हैं, लेकिन वहां भी तीन सीटें बीजेपी के ही खाते में गयी हैं.

ये मनीष सिसोदिया ही हैं जिन्होंने सीबीआई के छापे के बाद अपने लिए और साथियों के लिए भी 'कट्टर ईमानदार' शब्द का इस्तेमाल किया था. और उसके बाद तो आप के सारे नेता घूम घूम कर कहने लगे - हम लोग कट्टर ईमानदार लोग हैं.

बाद में अरविंद केजरीवाल भी दावा करने लगे कि मनीष सिसोदिया की कट्टर इमानदारी साबित हो चुकी है - क्योंकि सीबीआई को न तो उनके घर में कुछ मिल पाया, न ही उनके लॉकर में ही. बताने की कोशिश तो ये भी लगी कि मनीष सिसोदिया को सीबीआई गिरफ्तार भी नहीं कर सकी. और फिर ये भी समझाने की कोशिश हुई कि आखिर ये सब क्लीन चिट नहीं है तो क्या है?

केजरीवाल को टारगेट करना बीजेपी को महंगा पड़ रहा है

अब तो बीजेपी नेतृत्व को भी अच्छी तरह समझ लेना चाहिये कि जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निजी हमलों की कीमत कांग्रेस को चुकानी पड़ती है, अरविंद केजरीवाल को टारगेट करने का सीधा नुकसान बीजेपी को हो रहा है - और ऐसा लगातार हो रहा है.

दिल्ली और पंजाब विधानसभा चुनावों में अरविंद केजरीवाल को आतंकवाद और आतंकवादी मंसूबों वालों से सहानुभूति रखनेवाला साबित करने की कोशिश हुई. और वैसे ही एमसीडी चुनाव से पहले अरविंद केजरीवाल को भ्रष्टाचार में डूबा हुआ साबित करने की कोशिश हुई - AAP नेता ने दोनों ही दफे अपने राजनीतिक तौर तरीकों से ही बीजेपी के हमलों का काउंटर करने की कोशिश की.

और फिर अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में अपना दबदबा और दावेदारी मजबूत करने के लिए गुजरात चुनाव का मैदान चुना. गुजरात का मैदान चुनने की एक वजह दिल्ली, पंजाब और गोवा में क्षेत्रीय पार्टीका दर्जा हासिल कर आप को राष्ट्रीय पार्टी बनाने का मकसद भी रहा - और एग्जिट पोल से जो संकेत मिले हैं, उसे हासिल करना भी बहुत मुश्किल नहीं लग रहा है.

ध्यान देने वाली बात है कि ये लगातार चौथा मौका है जब अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी की तरफ से पर्सनल अटैक किये गये. पहली बार 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के गोत्र को निशाना बनाया गया, जब बीजेपी ने अखबारों में विज्ञापन तक दे डाले थे.

दूसरी बार 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में CAA-NRC के खिलाफ चल रहे शाहीन बाग धरना का हवाला देकर अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा जैसे बीजेपी नेताओं ने अरविंद केजरीवाल को आतंकवादी ही साबित करने की कोशिश की, और बुरी तरह फेल भी हुए. तीसरी बार 2022 के ही पंजाब विधानसभा चुनाव में हिंदी कवि कुमार विश्वास के बयानों के बूते आतंकवादियों से अरविंद केजरीवाल के रिश्ते जोड़ने की बीजेपी की कोशिश रही - और मोर्चा तो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही संभाले हुए थे.

और ये लगातार चौथा मौका है जब अरविंद केजरीवाल की ईमानदारी पर सवाल खड़े किये गये. दिल्ली की केजरीवाल सरकार को भ्रष्टाचार में डूबी होने के दावे किये गये. दिल्ली के उपराज्यपाल ने सरकार की शराब नीति के खिलाफ सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी.

अरविंद केजरीवाल के बेहद करीबी और भरोसेमंद साथी दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को महाभ्रष्ट साबित करने की भी पूरी कोशिश हुई. सीबीआई के छापे के बाद तो बीजेपी ज्यादा ही हमलावर हो गयी थी.

दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन को जेल भेज दिये जाने के बाद मनीष सिसोदिया के खिलाफ सीबीआई की छापेमारी - ये सारी ही चीजें अरविंद केजरीवाल की कट्टर ईमानदार छवि के खिलाफ जा रही थीं.

लेकिन एमसीडी चुनाव के नतीजे तो यही बता रहे हैं कि हर बार की तरह अरविंद केजरीवाल इस बार भी अपनी काउंटर स्ट्रैटेजी के साथ धीरे धीरे आगे बढ़ते हुए गाड़ी निकाल ली है. हालांकि, सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया के इलाके के कुछ मोड़ ऐसे जरूर लगते हैं जहां के लोगों तक अरविंद केजरीवाल की बातें नहीं पहुंच सकी है. या फिर ये कहें कि वहां बीजेपी केजरीवाल के खिलाफ अपनी बातें समझाने में सफल रही है.

MCD में चुनावी जीत से AAP के फायदे

अरविंद केजरीवाल के लिए एमसीडी की लड़ाई तभी खत्म समझी जाएगी जब वो दिल्ली में अपना मेयर बना पाने में कामयाब हो जाते हैं - और तभी डबल इंजन की सरकार वाले बीजेपी के स्लोगन में थोड़ी हिस्सेदारी हासिल कर पाएंगे.

अब तक सबसे बड़ा सवाल यही रहा है कि दिल्ली में दो दो बार अपार बहुमत वाली सरकार बनाने के बावजूद अरविंद केजरीवाल एमसीडी और लोक सभा चुनाव में कैसे चूक जाते हैं, लेकिन एमसीडी चुनाव नतीजों ने अरविंद केजरीवाल के प्रति ये धारणा बदलने की कोशिश की है - और इसके साथ ही 2024 के आम चुनाव में अरविंद केजरीवाल के लिए संभावना बढ़ती हुई लगती है. आपको याद होगा, 2019 के आम चुनाव में केजरीवाल के उम्मीदवार कांग्रेस के बाद तीसरे स्थान पर पहुंच गये थे.

1. बीजेपी के खिलाफ सबसे मजबूत आवाज बनेंगे केजरीवाल: स्पष्ट तस्वीर के लिए तो 2018 के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे आने तक इंतजार करना होगा, लेकिन एमसीडी चुनाव के नतीजे अरविंद केजरीवाल को रोशनी की एक किरण तो दिखा ही दिये हैं.

अब तो ऐसा लगने लगा है कि अगले आम चुनाव तक अरविंद केजरीवाल विपक्षी खेमे की सबसे मजबूत आवाज भी हो सकते हैं - बशर्ते आगे भी मनीष सिसोदिया की कट्टर-ईमानदारी पर आंच न आये और सत्येंद्र जैन खुद पर इतना कंट्रोल रख सकें की उनको और वीडियो मार्केट में न आयें.

2. कांग्रेस के लिए सबसे खतरनाक साबित होंगे केजरीवाल: बेशक अरविंद केजरीवाल की राजनीति की ताजा शिकार बीजेपी हुई है, लेकिन ये भी साफ साफ लग रहा है कि कांग्रेस तो साफ ही होती जा रही है.

निश्चित तौर पर बीजेपी को बिच्छू के डंक जैसा असर हुआ है, लेकिन ये भी साफ हो चुका है कि कांग्रेस पर सांप के जहर जैसा असर होने लगा है - बीजेपी चाहे तो राजनीतिक विरोधियों की हालत देख कर कुछ देर के लिए खुश जरूर हो सकती है.

3. कट्टर ईमानदारी के दावे पर दिल्लीवालों ने लगायी मुहर: अगर सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया के इलाके के लोगों की नाराजगी को थोड़ी देर के लिए अपवाद मान कर छोड़ दें तो बाकी दिल्लीवालों ने अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों की कट्टर ईमानदारी पर मुहर तो लगा ही दी है.

और हां, एक्शन तो बोलता ही है. मनमाने तरीके से फीस बढ़ाने को लेकर दिल्ली सरकार ने डीपीएस रोहिणी के खिलाफ जो एक्शन लिया है, उसका आने वाले चुनावों में असर जरूर दिखायी देगा. दिल्ली में मुफ्त बिजली-पानी या दिल्ली के सरकारी स्कूलों को लेकर किये जाने वाले दावे ही नहीं, ऐसे बहुत सारे वोटर रहे जो निजी स्कूलों में फीस पर लगाम कसने की वजह से अरविंद केजरीवाल को 2020 के विधानसभा चुनाव में वोट दिया था.

एमसीडी और हालिया चुनाव तो बीत गये, लेकिन डीपीएस के खिलाफ केजरीवाल सरकार ने जो कार्रवाई की है, वो उनको वोटर के बीच अच्छा संदेश देने वाला है - हालांकि, आम आदमी पार्टी अपनी राजनीतिक विरोधी बीजेपी को अलग ही मैसेज देने की कोशिश कर रही है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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