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Updated: 02 अगस्त, 2020 03:39 PM
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मायावती (Mayawati) भी राजस्थान की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने लगी हैं. राजस्थान में कांग्रेस के खिलाफ यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की पार्टी बीएसपी भी बीजेपी के साथ यथाशक्ति कदम से कदम मिलाकर चलती नजर आ रही है.

मायावती जता तो यही रही हैं राजस्थान में वो कांग्रेस के खिलाफ हैं, लेकिन परिस्थितियां ऐसी हैं कि वो एक ही कदम से बीजेपी के सपोर्ट में भी खड़ी हो जाती हैं. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) को सबक सिखाने की बात करते हुए मायावती ये भी संकेत दे चुकी हैं कि राजस्थान हाई कोर्ट से बात नहीं बनी तो कांग्रेस ज्वाइन कर चुके बीएसपी विधायकों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी जा सकती है.

2018 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में संदीप यादव, वाजिब अली, दीपचंद खेरिया, लखन मीणा, जोगेन्द्र अवाना और राजेन्द्र गुढ़ा बीएसपी के टिकट पर जीते थे, लेकिन सितंबर, 2019 में सब के सब बीएसपी छोडकर कांग्रेस में शामिल हो गये थे. अब हाई कोर्ट ने सभी विधायकों को स्पीकर को नोटिस देकर 11 अगस्त तक अपना पक्ष रखने को कहा है.

सवाल है कि यूपी की राजनीति में हाशिये के करीब पहुंच चुकी मायावती के राजस्थान पॉलिटिक्स में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने के पीछे असल वजह क्या हो सकती है? प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) से राजनीतिक दुश्मनी या अशोक गहलोत से हिसाब बराबर करना भर?

मायावती की राजस्थान पॉलिटिक्स

मायावती चाहे जो भी दावा करें, असलियत तो यही है कि बीएसपी विधायकों को कांग्रेस में शामिल मान लेने के स्पीकर के 18 सितंबर 2019 के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट पहले बीजेपी पहुंची है. बीजेपी नेता मदन दिलावर ने ही बीएसपी विधायकों के मुद्दे पर राजस्थान हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी जो खारिज हो गयी क्योंकि कई सवालों के साथ साथ वो कोर्ट को ये भी नहीं समझा पाये कि इतनी देर से उनकी नींद क्यों खुली. फिर दोबारा नये सिरे से याचिका दायर की और उसी में बीएसपी की याचिका भी अटैच हुई. हाई कोर्ट में मदन दिलावर की तरफ से हरीश साल्वे और सतपाल जैन ने पैरवी की जबकि बीएसपी के लिए लखनऊ से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये बीएसपी महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा पेश हुए.

अब मायावती की तरफ से सफाई दी जा रही है कि बीएसपी पहले ही कोर्ट जा सकती थी, लेकिन उसे उस सही वक्त का इंतजार रहा जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस को सबक सिखाया जा सके. अब तो मायावती ये भी कह रही हैं कि ये मुद्दा वो हाथ से जाने नहीं देंगी और इसके लिए सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगी.

निश्चित तौर पर जिस तरीके से कांग्रेस ने बीएसपी विधायकों को मायावती से छीन लिया था, गुस्सा आना तो स्वाभाविक है, लेकिन देर से आया गुस्सा भी सवाल तो खड़ा करता ही है. कांग्रेस तो इस मामले में बीजेपी से भी दो कदम आगे निकल गयी. बीजेपी जहां जहां दूसरे दलों के जनप्रतिनिधियों को पार्टी में मिलाया ज्यादातर मामलों में वे दो तिहाई रहे, कांग्रेस ने तो पूरे माल पर ही हाथ साफ कर लिया था.

mayawati, ashok gehlotअशोक गहलोत का आरोप है कि मायावती बीजेपी के डर से राजस्थान में एक्टिव हैं

राजस्थान के हालात ऐसे हैं कि कोई कुछ भी करता है तो वो एक पक्ष के साथ नजर आएगा. मायावती का कांग्रेस के खिलाफ जाना साफ तौर पर बीजेपी के सपोर्ट में नजर आता है, लेकिन क्या ये महज संयोग है? या इसमें भी राजनीति है?

मायावती को लेकर सीधे सीधे टिप्पणी से बचने वाली कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा अब मायावती को बीजेपी का अघोषित प्रवक्ता बताने लगी हैं. प्रियंका गांधी वाड्रा ने मायावती के लिए ऐसा दूसरी बार कहा है.

जब राजस्थान विधानसभा का सत्र बुलाये जाने की बात आयी तो बीएसपी की तरफ से विधायकों के लिए व्हिप जारी किया गया था - और प्रियंका गांधी की तरफ से ये ट्वीट उसी के रिएक्शन में हुआ था. वैसे भी प्रियंका गांधी पर मायावती के हमले CAA के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के समय से ही जारी हैं. उस दौर में भी प्रियंका गांधी को मायावती कोटा अस्पताल में जान गंवाने वाले बच्चों के परिवारों से मिलने की सलाह देती रहीं.

मायावती को तो ये भी बुरा लगा ही होगा कि डॉक्टर कफील खान की रिहाई के लिए प्रियंका गांधी ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र क्यों लिखा है. मायावती भी पिछले चुनावों में मुस्लिम वोटों के लिए जूझती रही हैं और अब उस पर कांग्रेस की कड़ी नजर है.

मायावती का कांग्रेस से राजस्थान को लेकर क्रोध अपनेआप डबल हो जाता है. बीएसपी विधायकों को झपट लेने के कारण अशोक गहलोत से और यूपी की राजनीति में प्रियंका गांधी के अति सक्रिय और आक्रामक रूख से. मायावती को लग रहा होगा कि कांग्रेस की सक्रियता बीएसपी के ही वोट बैंक में सेंध लगाने जैसा होगी - और महिला होने के चलते प्रियंका गांधी को काउंटर करना मायावती के लिए थोड़ा मुश्किल भी हो सकता है.

राजस्थान तो अस्थाई मामला है, मायावती के लिए स्थायी भाव तो कांग्रेस की उत्तर प्रदेश में पैर जमाने की कोशिश है. यही वजह है कि जब भी कांग्रेस की तरफ से कोई हरकत हो रही है, मायावती आगे बढ़ कर विरोध जताने मैदान में आ जाती हैं. मायावती को प्रियंका गांधी का प्रवासी मजदूरों के लिए बसें भेजना तो बुरा लगता ही है, अगर राहुल गांधी उन मजदूरों से मिलने पहुंचते हैं तो वो बर्दाश्त नहीं होता?

ऐसा कई बार हुआ है जब यूपी में पहला रिएक्शन योगी आदित्यनाथ या बीजेपी नेताओं की ओर से आने से पहले मायावती की तरफ से आ जाता है - ऐसे ही वाकये शक पैदा करते हैं कि मायावती का स्टैंड सिर्फ कांग्रेस के ही खिलाफ है या फिर बीजेपी के सपोर्ट में?

क्या मायावती किसी दबाव में हैं?

मायावती अपनी तरफ से बीजेपी और कांग्रेस को दलित राजनीति के लिए बराबर बताती हैं - एक नागनाथ है तो दूसरा सांपनाथ. मायावती के इसी नजरिये को थोड़ा अलग हटकर देखें तो काफी हद तक सही ही लगता है. यूपीए सरकार के दौरान भी मायावती ही नहीं बल्कि मुलायम सिंह यादव को भी केंद्र की तरफ से दबाव का एहसास कराया जाता रहा. ये दबाव केंद्रीय जांच एजेंसियों को लेकर रहा क्योंकि दोनों ही पूर्व मुख्यमंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे - और मायावती को तो सीबीआई ने एनडीए सरकार में भी नोटिस भेजा ही था. सीबीआई ने 2015 में यूपी के एनआरएचएम घोटाले को लेकर पूछताछ भी की थी.

राजस्थान के बीएसपी विधायकों को लेकर बीएसपी नेता की सक्रियता को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी यही आरोप लगा रहे हैं. कांग्रेस में शामिल हो चुके बीएसपी विधायक लखन मीणा का भी आरोप है कि बीजेपी के कहने पर ही बीजेपी ये सब कर रही है. लखन मीणा का कहना है कि विलय के लिए तो दो तिहाई ही चाहिये होते हैं, लेकिन राजस्थान में तो सारे के सारे ही कांग्रेस में चले गये थे. लखन मीणा का ये भी कहना है कि ये बात मायावती को उसी वक्त बता भी दी गयी थी, लेकिन अब साल भर बाद वो सब बीएसपी को अचानक याद क्यों आने लगा है? राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तो सीधे सीधे कह रहे हैं कि मायावती भी बीजेपी से डर रही हैं और मजबूरी में बयान दे रही हैं.

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