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Updated: 04 जनवरी, 2020 06:49 PM
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हाल फिलहाल ऐसे कई मौके आये हैं जब एक ही साथ और एक ही मुद्दे पर मायावती (Mayawati) और प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) दोनों ही सत्ताधारी बीजेपी (BJP) के खिलाफ एक छोर पर खड़ी नजर आयीं - लेकिन बीएसपी नेता के विरोध का एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस नेता के खिलाफ दिखायी दिया. मायावती ने कोटा के अस्पताल में बच्चों की मौत को लेकर प्रियंका गांधी वाड्रा को निशाना बनाया है.

क्या मायावती यूपी और केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ विरोध में कांग्रेस को निशाना बनाकर विपक्ष को कमजोर नहीं कर रही हैं? आखिर मायावती की राजनीति किस रास्ते पर बढ़ रही है?

मायावती की राजनीतिक राह किस दिशा में जा रही है

मायावती कांग्रेस की 'महिला महासचिव' से हद से ज्यादा खफा हैं - दरअसल, मायावती ने प्रियंका गांधी वाड्रा को 'महिला महासचिव' कहते हुए ही हमला बोला है. एक के बाद एक ट्वीट कर मायावती ने लोगों को ये समझाने की कोशिश की है कि अगर प्रियंका गांधी कोटा के अस्पताल में जान गंवाने वाले बच्चों की माताओं से जाकर नहीं मिलती तो साफ साफ समझ लो वो यूपी भी महज राजनीतिक फायदे के लिए आती हैं.

वक्त गुजरता है. साल बीतते रहते हैं और मायावती की आक्रामकता में फर्क 19-20 का ही रहता है. खुद को मुख्य विपक्षी दल की नेता साबित करने के लिए मायावती के निशाने पर स्वाभाविक रूप से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रहा करते हैं. मुद्दों के आधार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह भी हुआ करते हैं. धारा 370 पर तो मायावती मोदी सरकार को सपोर्ट करती हैं, लेकिन CAA-NRC पर टारगेट भी करती हैं.

मायावती भले ही खुद CAA-NRC के खिलाफ हों, लेकिन कांग्रेस का का विरोध बीएसपी नेता को बहुत बुरा लगता है. कांग्रेस के 'भारत बचाओ, संविधान बचाओ’ कार्यक्रम को लेकर भी मायावती ने हमला बोला था - और बोलते बोलते यहां तक बोल गयीं कि कांग्रेस को अगर दलितों, पिछड़ों और मुस्लिमों की फिक्र रहती तो न बीजेपी सत्ता में आ पाती और न ही BSP को ही बनाने की जरूरत पड़ती.

उन्नाव की रेप पीड़िता को जला दिये जाने के बाद अस्पताल में मौत के अगले ही दिन यूपी में पूरा विपक्ष सड़क पर नजर आया था. सपा, बसपा और कांग्रेस सभी सूबे की योगी सरकार के खिलाफ कानून-व्यवस्था और महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध पर एक साथ हमला बोले हुए थे. प्रियंका गांधी उन्नाव पहुंच चुकी थीं तो अखिलेश यादव विधानसभा के सामने धरने पर बैठ गये थे और मायावती राज्यपाल आनंदी बेन पटेल से मुलाकात कर महिला होने के नाते वस्तुस्थिति को समझने की दुहाई दे रही थीं.

योगी आदित्यनाथ के लिए सड़क पर उतरा विपक्ष तनाव तो पैदा कर रहा होगा, लेकिन लगे हाथ राहत भी दे रहा होगा क्योंकि सभी अलग अलग अपनी अपनी राजनीति कर रहे थे. आपस में कोई संपर्क नहीं था. शायद बिखरे विपक्ष की यही कहानी पूरे देश में है.

नागरिकता कानून का विरोध करने वालों के परिवारों से मुलाकात से पहले और प्रियंका गांधी के पुलिस से सीधे भिड़ने से पहले उन्नाव को लेकर सड़क पर उतरने का दूसरा वाकया रहा. पहला वाकया प्रियंका गांधी का सोनभद्र दौरा और नरसंहार पीड़ित परिवारों से मुलाकात होने तक धरना रहा.

मायावती ने कोटा अस्पताल में बच्चों की मौत को लेकर प्रियंका गांधी को घेरने की कोशिश तो की ही है, कांग्रेस नेतृत्व से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को बर्खास्त करने की मांग की है.

mayawati tweetsमायावती कांग्रेस नेताओं को निशाना बनाकर ट्विटर पर खूब बरस रही हैं.

अव्वल तो ये मांग योगी आदित्यनाथ या बीजेपी की तरफ से पहले होनी चाहिये थी, लेकिन मायावती कहीं ज्यादा मुखर नजर आ रही हैं. वैसे बीजेपी के हिस्से की लड़ाई भी लड़ने के पीछे मायावती की राजनीतिक सोच क्या हो सकती है?

मायावती की नाराजगी की असली वजह क्या है

ये तो समझ में आ रहा है कि कांग्रेस लड़ाई को बीजेपी के खिलाफ रखना चाहती है - लेकिन मायावती क्यों इतनी आक्रामक हो रही हैं सीधे सीधे समझ में नहीं आ रहा है.

मायावती और कांग्रेस की तकरार को अब एक साल से ज्यादा वक्त होने जा रहा है. शुरुआत हुई थी 2018 के तीन राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों से.

1. विधानसभा चुनाव में गठबंधन नहीं हुआ: मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में 2018 के आखिर में विधानसभा चुनाव हुए थे. काफी दिनों तक इस बात की चर्चा रही कि मायावती की पार्टी बीएसपी और कांग्रेस में गठबंधन हो सकता है. मायावती ने पहले तो छत्तीसगढ़ में अजित जोगी की पार्टी के साथ गठबंधन कर के कांग्रेस को झटका दिया - बाद में मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ चुनाव लड़ीं और राजस्थान में मना ही कर दिया.

2. लोक सभा चुनाव में दूरी बनायी: लोक सभा चुनाव 2019 में मायावती ने अखिलेश यादव के साथ तो गठबंधन कर लिया, लेकिन कांग्रेस को दूर रहने को कह दिया. मायावती लगातार समझाती भी रहीं कि बीएसपी के लिए कांग्रेस और बीजेपी में सिर्फ नाम का ही फर्क है.

3. चंद्रशेखर आजाद आंखों की किरकिरी: मायावती को उस दिन सबसे बुरा लगा था जब प्रियंका गांधी भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर आजाद से मिलने मेरठ के अस्पताल पहुंच गयी थीं. तब ये भी खबर आयी कि मायावती ने अमेठी और रायबरेली में भी राहुल गांधी और सोनिया गांधी के खिलाफ सपा-बसपा गठबंधन का उम्मीदवार खड़ा करने का फैसला कर लिया था - और फैसला भी तभी बदला जब अखिलेश यादव ने स्थिति की गंभीरता के बारे में बैठकर बीएसपी नेता से बात की.

4. राजस्थान में बड़ा झटका: 2018 में कांग्रेस से पूरी दूरी बनाते हुए अपने दम पर चुनाव लड़ कर बीएसपी ने विधानसभा की 6 सीटें जीती थीं - लेकिन सितंबर, 2019 आते आते सभी छह विधायकों ने मायावती से नाता तोड़ लिया था. नये साल पर सोनिया गांधी की मंजूरी मिलते ही दिल्ली में सभी ने कांग्रेस की सदस्यता ले ली. फिर तो मायावती का गुस्सा होना स्वाभाविक ही है.

5. प्रियंका की 2022 की तैयारी: प्रियंका गांधी वाड्रा की यूपी में सक्रियता 2022 के विधानसभा चुनावों को लेकर ही है - और वो इसमें कोई भी राजनीतिक मौका नहीं चूक रही हैं. ये बात अखिलेश यादव को भी अच्छी नहीं लग रही होगी, लेकिन खुला विरोध सिर्फ मायावती की ओर से ही हो रहा है. लोक सभा चुनाव के दौरान प्रियंका गांधी की तरफ से यूपी के कांग्रेस नेताओं को भी निर्देश मिला था कि वो मायावती और अखिलेश यादव को बिलकुल भी टारगेट न करें - और न ही कभी प्रियंका या राहुल गांधी ने ऐसा कोई बयान दिया था.

मायावती के हद से ज्यादा आक्रामक हो जाने के बावजूद प्रियंका गांधी ने कोई रिएक्शन नहीं दिया है. क्या प्रियंका गांधी अब भी मायावती पर हमले से परहेज कर रही हैं?

ऐसा लगता है ये बीजेपी विरोध को लेकर आगे बढ़ने की होड़ है. मायावती बीएसपी की लगातार हार से परेशान हो चुकी हैं. मायावती के आजमाये हुए सारे नुस्खे नाकाम हो चुके हैं. नये प्रयोग भी काम नहीं आ रहे हैं. समाजवादी पार्टी से सियासी रिश्ता जोड़ कर भी मायावती तोड़ चुकी हैं.

मायावती बार बार अपने वोट बैंक को मैसेज देने की कोशिश कर रही हैं कि वे गुमराह न हों. वो प्रियंका गांधी वाड्रा के राजनीतिक मकसद से भी वाकिफ कराने की कोशिश कर रही हैं - और ये भी समझाती हैं कि भीम आर्मी वाले चंद्रशेखर आजाद भी दलितों का कभी भला नहीं कर सकते. बीएसपी और समाजवादी पार्टी नेता पर हमले से परहेज कर प्रियंका गांधी दलित समुदाय और पिछड़ों की नाराजगी नहीं मोल लेना चाहतीं, लेकिन मायावती ये सब पीछे छोड़ चुकी हैं - मायावती का धैर्य जवाब दे चुका है और चाह कर भी दिल की बात जबान पर आने से नहीं रोक पा रही हैं.

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