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Updated: 23 नवम्बर, 2021 06:54 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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कांग्रेस में इन दिनों किताबों के सहारे पार्टी विश्वसनीयता से लेकर उसकी विचारधारा तक पर प्रश्न चिन्ह लगाने का दौर चल रहा है. कुछ समय पहले ही कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने अपनी 'सनराइज ओवर अयोध्या' किताब में हिंदुत्व की तुलना इस्लामिक आतंकी संगठनों से कर बवाल खड़ा कर दिया था. इसके बाद अब कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों को लेकर लिखी गई अपनी किताब '10 फ्लैश प्वाइंट्स-20 इयर्स' में कांग्रेस नेतृत्व को कठघरे में खड़ा कर दिया है. मुंबई में हुए 26/11 हमले की बरसी (2008 Mumbai Attacks) से पहले मनीष तिवारी ने एक ट्वीट कर मनमोहन सरकार के कड़े फैसले न लेने पर सवाल खड़े किए हैं. अगले साल होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से पहले मनीष तिवारी के ये आरोप कांग्रेस को बैकफुट पर लाने के लिए काफी माने जा सकते हैं. 

कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने अपनी किताब के बारे में जानकारी के साथ ही किताब के कुछ अंश भी साझा किए हैं. जिसमें उन्होंने 26/11 के मुंबई हमलों के खिलाफ कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार के रवैये पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है. मुंबई हमलों के बारे में मनीष तिवारी की इस किताब के एक अंश में लिखा गया है कि 'किसी देश (पाकिस्तान) को अगर निर्दोष लोगों को कत्लेआम करने में कोई अफसोस नहीं है, तो ऐसे में संयम ताकत की पहचान नहीं, बल्कि कमजोरी की निशानी है. 26/11 एक ऐसा मौका था, जब शब्दों से ज्यादा जवाबी कार्रवाई दिखनी चाहिए थी. मेरे अनुसार, जिस तरह से अमेरिका ने 9/11 के बाद किया था, उसी तरह मुंबई हमले के बाद भारत को भी तेजी से जवाबी कार्रवाई करनी चाहिए थी.'

Manish Tiwari Book Congressमनीष तिवारी ने मुंबई हमलों के बाद जवाबी कार्रवाई को लेकर कांग्रेस सरकार के रवैये पर प्रश्न चिन्ह लगाया है.

इसी किताब के दूसरे अंश में मनीष तिवारी ने अफगानिस्तान में तालिबान के उदय को लेकर भी चिंता जताई है. उन्होंने तालिबान के प्रभाव में इस्लामिक आतंकवादी संगठनों की ओर से भारत के जम्मू-कश्मीर और उत्तरी-पश्चिमी सीमांत राज्यों की सुरक्षा स्थितियों के खतरे में पड़ने की संभावना जताई है. चीन से लगी सीमा पर देश की सुरक्षा को लेकर भी मनीष तिवारी ने अपनी बात रखी है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो बीते 20 सालों में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े 10 बड़े मामलों की बात करने पर अधिकतर मामले यूपीए की कांग्रेस सरकार के खाते में ही आने की संभावना नजर आ रही है. और, अगर ऐसा होता है, तो ये सीधे तौर पर कांग्रेस आलाकमान को दी जाने वाली चुनौती के रूप में ही सामने आएगा.

हम आह भी भरते हैं, तो हो जाते हैं बदनाम...

किसी जमाने में मनीष तिवारी कांग्रेस आलाकमान के करीबी नेताओं में शुमार हुआ करते थे. लेकिन, भ्रष्टाचार जैसे तमाम मामलों से घिरी कांग्रेस नीत यूपीए सरकार के लिए 2014 में चुनाव लड़ने से मना करने वालों में मनीष तिवारी का भी नाम शामिल था. कहा जाता है कि इसी समय से तिवारी का राहुल गांधी के साथ बना-बनाया गणित बिगड़ने लगा था. कहा जाता है कि 2019 में श्री आनंदपुर साहिब से टिकट दिलाने में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उनकी सिफारिश की थी. लेकिन, राहुल गांधी ने लंबे समय तक उनका नाम लटकाए रखा था. हालांकि, मनीष तिवारी ने श्री आनंदपुर साहिब से जीत हासिल की थी. लेकिन, इसके बाद से ही राहुल गांधी और मनीष तिवारी के बीच मामला बिगड़ने लगा था. वहीं, बीते साल कांग्रेस आलाकमान के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले जी-23 नेताओं में मनीष तिवारी भी शामिल रहे हैं.

पंजाब में चल रहे सियासी ड्रामे को लेकर नवजोत सिंह सिद्धू से लेकर कांग्रेस आलाकमान तक हर कोई उनके निशाने पर रहा था. कैप्टन और सिद्धू के बीच चल रही सियासी खींचतान में मनीष तिवारी ने परोक्ष रूप से अमरिंदर सिंह की ही मदद की थी. जब कैप्टन अमरिंदर सिंह के विरोध के बावजूद नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने की बात चल रही थी. तो, मनीष तिवारी ने पंजाब में हिंदुओं की जनसंख्या के आंकड़ों को सामने रखते हुए पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद पर संतुलन बनाने के लिए जट सिख की जगह किसी हिंदू को ही पद देने का इशारा किया था. वहीं, जब नवजोत सिंह सिद्धू ने फैसले नहीं लेने पर अपना गुस्सा जाहिर करते हुए 'ईट से ईट खड़का देने' की बात कही थी. तब मनीष तिवारी ट्वीट कर लिखा था कि हम आह भी भरते हैं, तो हो जाते हैं बदनाम, वो कत्ल भी करते हैं, तो चर्चा नहीं होती.

Manish Tiwari s Book Congressमनीष तिवारी की किताब सामने आने के बाद एके एंटनी ने सोनिया गांधी से मुलाकात की है.

जी-23 नेताओं पर जवाबी कार्रवाई होगी जल्द

वैसे भी मनीष तिवारी कांग्रेस असंतुष्ट गुट जी-23 के नेता हैं, तो ये किताब पार्टी में उनके भविष्य को भी आसानी से तय कर देगी. क्योंकि, सलमान खुर्शीद का बचाव करने के लिए परोक्ष रूप से राहुल गांधी ने खुद ही हिंदू और हिंदुत्व को अलग-अलग बताने वाली थ्योरी लोगों के सामने रखी थी. लेकिन, मनीष तिवारी को लेकर शायद ही राहुल गांधी कोई बयान जारी करेंगे. क्योंकि, मनीष तिवारी ने हिंदू और हिंदुत्व की इस थ्योरी पर राहुल गांधी का साथ देने के बजाय उन्हें इससे दूर रहने की सलाह दी थी. खैर, किताब के अंश के सहारे भाजपा की ओर से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से लेकर राहुल गांधी तक को घेरा जाने लगा है. भाजपा ने सवाल उठाया है कि उरी और पुलवामा हमले के बाद जैसी कार्रवाई हुई. मुंबई हमलों के बाद वैसी कार्रवाई करने से किसने और क्यों रोका? कहा जाता रहा है कि मनमोहन सिंह सरकार में सभी फैसले 10 जनपथ से लिए जाते थे. इस स्थिति में मनीष तिवारी की इस किताब के जरिये सीधे सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर निशाना साधा जा रहा है.

वहीं, इस ट्वीट के सामने आने के बाद कांग्रेस की अनुशासन समिति के अध्यक्ष एके एंटनी ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की है. जिसके बाद संभावना जताई जा रही है कि मनीष तिवारी के खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है. कुछ ही दिनों पहले जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद के करीबी कहे जाने वाले नेताओं और विधायकों ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपना सामूहिक इस्तीफा सौंप दिया था. माना जा रहा था कि गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस आलाकमान पर दबाव बनाने के लिए ये इस्तीफे दिलवाए थे. 

वहीं, अब मनीष तिवारी की किताब के अंश सामने आने के बाद तय माना जा सकता है कि भविष्य में जी-23 नेताओं के संपर्क वाले कई नेता इस्तीफे देकर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर इस दबाव को और बढ़ाएंगे. इस स्थिति में कांग्रेस के पास दो ही रास्ते बचते हैं, जिसमें से एक राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष पद पर ना बैठाना पूरी तरह से नामुमकिन है. वहीं, दूसरे रास्ते की बात करें, तो जी-23 नेताओं को पार्टी से बाहर निकालने का फैसला ही एकमात्र उपाय है. बहुत हद तक संभावना है कि कांग्रेस आलाकमान अपना सियासी नफा-नुकसान देखते हुए इन नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा ही देगा.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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