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Updated: 17 मई, 2019 03:02 PM
प्रभाष कुमार दत्ता
प्रभाष कुमार दत्ता
  @PrabhashKDutta
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11 अप्रैल 2019 को लोकसभा चुनाव की शुरुआत के साथ ही लग रहा था कि इस चुनाव की असली लड़ाई नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बीच ही है और अंत तक उन्हीं के बीच रहेगी. भाजपा बनाम कांग्रेस की इस लड़ाई में बालाकोट, राफेल डील दो अहम चुनावी मुद्दे थे. अब Loksabha Election 2019 के अंत के ठीक पहले सारा फोकस ममता बनर्जी और नरेंद्र मोदी के बीच हो गया है. ये है पूरब की चुनावी लड़ाई. इस लड़ाई की पृष्ठभूमि में है एक हिंसक आंदोलन जो भाजपा और टीएमसी के कार्यकर्ताओं के बीच अलग-अलग पोलिंग दिनों पर छिड़ चुका है.

हाल ही में अमित शाह की रैली में भड़की हिंसा में भाजपा और टीएमसी दोनों के ही समर्थक घायल हुए और इस हिंसा में 19वीं सदी के समाज सुधारक ईश्वर चंद्र बंदोपाध्याय जिन्हें विध्यासागर के नाम से भी जाना जाता है उनकी मूर्ति क्षतिग्रस्त हुई.

ममता बनर्जी और अमित शाह दोनों ने एक दूसरे पर इस हिंसा का आरोप लगाया है. पीएम मोदी जो बुधवार को बंगाल में दो रैलियों को संबोधित करते हुए कह चुके हैं कि ममता बनर्जी ने भद्रलोक (सज्जनों) को मिटाने की संस्कृति शुरू कर चुकी हैं.

उन्होंने ममता बनर्जी को संदेश देते हुए कहा कि, 'लोकतंत्र ने आपको मुख्यमंत्री की कुर्सी दी है और आप उसकी हत्या कर रही हैं. पूरा देश आपके कारनामों को देख रहा है. दीदी को सत्ता में नहीं रहना चाहिए. पिछले चार-पांच सालों में उन्होंने अपना असली रंग दिखा दिया है.'

नरेंद्र मोदी और ममता बनर्जी के आरोप एक दूसरे को लेकर तीखे होते जा रहे हैं.नरेंद्र मोदी और ममता बनर्जी के आरोप एक दूसरे को लेकर तीखे होते जा रहे हैं.

क्योंकि बंगाल में इतनी हिंसा हो रही है उसे देखते हुए चुनाव आयोग ने वहां चुनाव प्रचार की अवधि कम कर दी है. बंगाल में चुनाव प्रचार 20 घंटे कम कर दिया गया और 17 मई शाम 6 बजे तक की जगह 16 मई रात 10 बजे तक ही चुनाव प्रचार सिमट गया.

हिंसा से परे, 2018 के पंचायत चुनावों में मिला संकेत..

बंगाल के चुनावों में हिंसा कोई नई बात नहीं है. 2018 के पंचायत चुनावों में भी बंगाल ने बेहद हिंसक रूप देखा और दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं की मौत हुई. भाजपा के अनुसार पंचायत चुनावों में उसके 52 कार्यकर्ताओं ने अपनी जान गंवाई और टीएमसी के अनुसार उसके 14 कार्यकर्ता चुनावी हिंसा का शिकार बने.

ममता बनर्जी सरकार के विपरीत भाजपा, कांग्रेस और अन्य वामपंथी दल रहे. इन सभी पार्टियों ने टीएमसी के कार्यकर्ताओं द्वारा धमकी मिलने, हिंसा करने, डराने का आरोप लगाया और नतीजा ये रहा कि ममता बनर्जी की टीएमसी ने 34 प्रतिशत वोटों से जीत हासिल की.

ममता बनर्जी सरकार का पक्ष लेते हुए टीएमसी लीडर डेरिक ओ ब्रायन ने उसके बाद अपनी ट्वीट में लिखा था, 'सभी नए जन्मे हुए विशेषज्ञों के नाम, बंगाल #PanchayatElections का एक इतिहास है. 400 लोग 1990 में CPIM के कार्यकाल में चुनावी हिंसा के कारण मारे गए थे. 2003 में 40 मारे गए थे. हर मौत एक दुखद घटना है. अब मामला सामान्य हो चला है. 58000 पोलिंग बूथ में से 40 में हिंसा. तो क्या % हुआ?'

पिछले साल पंचायत चुनाव के दौरान वामपंथी पार्टियों और कांग्रेस ने वोटिंग में टीएमसी के एकछत्र राज को स्वीकार कर लिया था. पर इन चुनावों ने भाजपा के लिए उम्मीद की एक नई किरण को उजागर कर दिया था. पार्टी को टीएमसी के बाद दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा वोट मिले थे. हालांकि, भाजपा ने इसे कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों द्वारा खाली की गई जगह को भरने के एक मौके की तरह भी देखा.

बंगाल में चुनावी हिंसा आम बात है.बंगाल में चुनावी हिंसा आम बात है.

बंगाल में भाजपा का उदय-

इतिहास की बात करें तो बंगाल ने भाजपा को बहुत कुछ दिया है. भाजपा को उसका पहला स्वरूप भारतीय जन संध के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के रूप में बंगाल ने ही दिया था. आरएसएस के संस्थापक केबी हेग्डेवार ने भी पश्चिम बंगाल में ही दवाओं की पढ़ाई की थी. आरएसएस ने 1950 के दशक में बंगाल से ही हिंदुत्व के काम की शुरुआत की थी.

इतना ही नहीं, 1952 के चुनावों में भारतीय जन संघ ने यहां की 9 लोकसभा सीटों में से 2 में जीत भी हांसिल की थी. पर उसके बाद भारतीय जन संघ की वंशक भाजपा को बंगाल में सिर्फ 1998 में चुनाव जीतने का मौका मिला जब तपन सिकदार ने यहां वांपथी पार्टियों का दबदबा होने के बाद भी सीट जीत ली थी. उन्होंने 2004 तक दम दम लोकसभा सीट पर कब्जा जमाए रखा. अब दम दम भी 19 मई को होने वाली वोटिंग के दौरान 9 लोकसभा सीटों में से एक है.

पिछले 15 सालों में भाजपा बंगाल में अपना कद बढ़ाने की कोशिश कर रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि बंगाल में हिंदी बोलने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है और साथ ही साथ पड़ोसी जिलों में बंगलादेश से प्रवासियों का आना भी बना हुआ है. भाजपा ने घुसपैठियों के खिलाफ भावनाओं को भुनाने की कोशिश की है. इसमें खास तौर पर मुस्लिम हैं क्योंकि बांग्लादेशी हिंदुओं को आमतौर पर केवल प्रवासियों के रूप में देखा किया जाता है.

भाजपा की इस चुनाव रणनीति को बंगाल की सीएम ममता बनर्जी का साथ भी मिला क्योंकि ममता दीदी ने अपनी ओर मुसलमान वोट रखने की पूरी कोशिश की. उन्होंने मौलवियों को पेंशन से लेकर कई स्कीम निकाली जो बंगाली मुसलमानों को टीएमसी का वोटर बनाने के काम आईं.

दुर्गा पूजा और मोहर्रम और सरस्वती पूजा के बीच हुए विवादों ने सिर्फ भाजपा के लिए चुनावी मैदान तैयार करने का ही काम किया है. ममता बनर्जी द्वारा मोदी सरकार का कड़ा विरोध जो National Register of Citizens (NRC) और रोहिंग्या मुसलमानों के मुद्दे पर हुआ उसने भाजपा को ध्रुविकरण का एक और मौका दे दिया और ये भी भाजपा के पक्ष में ही गया. ये भी तब हुआ जब सीपीएम और कांग्रेस बंगाल में अपना कद गंवा बैठीं.

Act East-

ओडिशा नेशनल एक्जिक्यूटिव मीट 2017 में भाजपा की Act East रणनीति बताई गई थी जिसमें ये कहा गया था कि पार्टी अपना बेस पूर्वी राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड और बिहार में बढ़ाएगी. ये राज्य 117 लोकसभा सीटों का गढ़ हैं. 2014 में इनमें से सिर्फ 47 सीटें ही भाजपा की तरफ आई थीं. 42 सीटों के साथ बंगाल तीसरे सबसे ज्यादा सांसद लोकसभा में भेजता है. टीएमसी ने इसमें से 34 सीटें जीती थीं 2014 में और भाजपा को सिर्फ 2 ही मिली थीं.

भाजपा ने हिंदी बेल्ट में लगभग सभी सीटों पर कब्जा जमा लिया था. पार्टी इस राज्य में अब भी कुछ नुकसान की उम्मीद कर रही है. साथ ही, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में कांग्रेस के हाथों हारने के बाद और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के फिर से अपना कद बढ़ाने के बाद पार्टी को बंगाल में अपना बेस तैयार करना जरूरी है.

मोदी लहर के समय 2014 में भाजपा ने करीब 17% वोट अपने खाते में किए थे. उसके बाद 2016 विधानसभा चुनावों में ये आंकड़ा घटकर 10% हो गया था, पर 2018 में पंचायत इलेक्शन के दौरान ये आंकड़ा 18% हो गया जिससे ये समझ आने लगा कि भाजपा की Act East रणनीति काम कर रही है.

पिछले दो सालों में भाजपा से कई अन्य पार्टियों के कार्यकर्ता जुड़े खास तौर पर दक्षिण बंगाल में सीपीएम के कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हुए. पार्टी ने कई टीएमसी और सीपीएम लीडरों को अपने यहां शामिल करने के लिए मेहनत की.

पंचायत चुनावों ने ये बताया कि भले ही बंगाल में भाजपा के पास इतना बड़ा संगठन नहीं है, लेकिन फिर भी उसका कद धीरे-धीरे बढ़ रहा है. ये खास तौर पर लेफ्ट और कांग्रेस पार्टी के वोटर हैं जो अब भाजपा की ओर रुख कर चुके हैं. वरिष्ठ सीपीएम लीडर जैसे बुद्धदेब भट्टाचार्य और मनिक सरकार ने अपने कर्यकर्ताओं को भाजपा की ओर न मुड़ने के लिए चेतावनी भी दी है.

सरकार ने हाल ही में अपने कार्यकर्ताओं से कहा है कि उन्हें टीएमसी से छुटकारा चाहिए और भाजपा को चुनने की गलती वो नहीं कर सकते हैं. ये भयंकर भूल होगी. भट्टाचार्य ने भी अपने एक इंटरव्यू में कहा की टीएमसी के तवे से भाजपा की आग में कूदने का कोई मतलब नहीं है.

बंगाल का फोकस इसी से देखा जा सकता है कि दोनों अमित शाह और नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश जहां 80 लोकसभा सीटें हैं उसके बाद बंगाल के दौरे पर ही सबसे ज्यादा गए. शाह और मोदी ने कम से कम 15-15 रैलियां कीं.

भाजपा के दोबारा केंद्र सरकार में आने की गुंजाइश काफी कुछ बंगाल की 42 लोकसभा सीटों पर टिकी हुई है. और ममता बनर्जी बिना युद्ध के ऐसा होने नहीं देंगी.

(ये स्टोरी सबसे पहले Indiatoday वेबसाइट के लिए की गई थी.)

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लेखक

प्रभाष कुमार दत्ता प्रभाष कुमार दत्ता @prabhashkdutta

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्टेंट एडीटर हैं.

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