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Updated: 03 मार्च, 2023 08:40 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने आखिरकार ऐलान कर ही दिया. आने वाले आम चुनाव (General Election 2024) में वो 'एकला चलो...' के सिद्धांत पर ही आगे बढ़ने जा रही हैं. हो सकता है ऐसे और भी क्षेत्रीय नेता हों जो ममता बनर्जी की ही तरह सोच रहे हों - ये घोषणा करते वक्त ममता बनर्जी ने लेफ्ट के साथ साथ कांग्रेस को भी कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की है.

कांग्रेस को लेकर ममता बनर्जी का ताजा गुस्सा तो सागरदिघी उपचुनाव के नतीजे के बाद सामने आया है, लेकिन ऐसा लगता है जैसे अरसे से जो कुछ अंदर भरा पड़ा था, जो अंदर ही अंदर उबल रहा था, बाहर निकल आया है.

और इस तरह ममता बनर्जी का गुस्सा फूट पड़ने की बड़ी वजह राहुल गांधी का रवैया ही लगता है. जिस तरीके से राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने क्षेत्रीय दलों को विचारधारा के नाम पर नीचा दिखाने का बीड़ा उठा रखा है, ममता बनर्जी के पास भी विकल्प ही कहां बचे थे.

ये तो पहले से मालूम था कि त्रिपुरा सहित तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद देश की राजनीति में बहुत कुछ बदलने वाला है - और ममता बनर्जी के अगले आम चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल के साथ गठबंधन न करने का ऐलान भी इसी तरफ एक मजबूत इशारा है.

मुमकिन है कई और भी क्षेत्रीय नेता कतार में खड़े हों. और ममता बनर्जी की ही तरह सही वक्त आते ही अपने एक्शन प्लान की घोषणा कर दें. अखिलेश यादव तो भारत जोड़ो यात्रा के दौरान ही अपना इरादा जता चुके हैं. अरविंद केजरीवाल तो पहले से ही दूरी बना कर चल रहे हैं, अगर केसीआर की तेलंगाना रैली को छोड़ दें तो.

ये तो है कि ममता बनर्जी ने राष्ट्रपति चुनाव के बाद से ही अलग लाइन ले रखी है, लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिये कि नीतीश कुमार के एनडीए छोड़ कर विपक्षी नेताओं से मिलने के बाद भी ममता बनर्जी ने 2024 में मिलजुल कर बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराने का दावा किया था. कांग्रेस का नाम तो ममता बनर्जी ने तब भी नहीं लिया था, लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का साथ देने की बात जरूर कही थी.

लेकिन लगता है राहुल गांधी के मेघालय जाकर टीएमसी पर टिप्पणी से ममता बनर्जी को ज्यादा गुस्सा आया है. मेघालय जाते ही राहुल गांधी को ममता बनर्जी पर गुस्सा आना गैरवाजिब भी नहीं कहा जा सकता, लेकिन ऐसी कोई तात्कालिक वजह तो थी नहीं.

ये तो सच ही है कि मेघालय में कांग्रेस के बूते ही ममता बनर्जी ने पैर जमाया है, लेकिन क्या राहुल गांधी को नजरअंदाज करने की कला नहीं सीखनी चाहिये? निश्चित तौर पर राहुल गांधी को भी गुस्सा आ रहा होगा कि कैसे एक दिन ममता बनर्जी ने उनके नेता मुकुल संगमा को तृणमूल कांग्रेस में लेकर कांग्रेस एक झटके में कमजोर कर दिया, लेकिन ये भी तो नहीं भूलना चाहिये कि ममता बनर्जी उनके लिए मोदी-शाह जैसे दुश्मन तो नहीं हैं जो कांग्रेस मुक्त भारत अभियान चला चुके हैं.

बाकी कोई भी कंफ्यूजन चलेगा, लेकिन अगर राहुल गांधी अपने लिए दुश्मन नंबर 1 की पहचान नहीं कर पाते तो क्या कहा जाये? ये भी ठीक है कि ममता बनर्जी कांग्रेस से लड़ कर ही निकली हैं, और कांग्रेस को पश्चिम बंगाल में बर्बाद करके सरकार चला रही हैं, लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिये कि संघ, बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी से कांग्रेस की लड़ाई में राहुल गांधी के लिए ममता बनर्जी एक काफी मजबूत खंभा हैं.

अगर आगे चल कर विपक्षी दलों के दूसरे नेता भी ममता बनर्जी की ही राह अख्तियार कर लेते हैं, तो कभी सोचा है कांग्रेस का क्या हाल होगा - राहुल गांधी का ये रवैया निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही मजबूत करेगा.

ममता बनर्जी के पास कोई विकल्प भी तो नहीं

त्रिपुरा तो नहीं लेकिन राहुल गांधी ने मेघालय में एक चुनावी रैली जरूर की थी. और राहुल गांधी का भाषण सुनें तो कई बार बीजेपी के मुकाबले उनकी सबसे बड़ी दुश्मन ममता बनर्जी ही लगती हैं.

rahul gandhi, mamata banerjeeराहुल गांधी ने ममता बनर्जी को भी तीसरे मोर्चे की तरफ भेज दिया है

रैली में राहुल गांधी की तरफ से ये समझाने की कोशिश हो रही थी कि कैसे ममता बनर्जी की पार्टी बीजेपी की मददगार बन चुकी है. राहुल गांधी का कहना रहा, ‘आप... टीएमसी का... पश्चिम बंगाल में हिंसा और घोटालों का इतिहास जानते हैं... आप उनके ट्रेडिशन से वाकिफ हैं...'

राहुल गांधी लोगों से कह रहे थे, जैसे गोवा में टीएमसी ने भारी रकम खर्च किये... मेघालय में भी कर रहे हैं... उनका मकसद बीजेपी की मदद करना था... मेघालय में भी उनका यही प्रयास है... ताकि बीजेपी मजबूत होकर सत्ता में आये.’

जवाब तो राहुल गांधी को तृणमूल कांग्रेस महासचिव अभिषेक बनर्जी ने ही दे दिया था, लेकिन ममता बनर्जी ने अब पॉलिटिकल स्टैंड ले लिया है. अभिषेक बनर्जी ने तभी बोल दिया था, 'मैं राहुल गांधी से अपील करता हूं... हम पर हमला करने से अच्छा है कि वो अपनी राजनीति पर ध्यान दें... हमारा विकास कोई पैसे के दम पर नहीं हुआ है... लोगों का जो प्यार मिला है, उससे हमारा विस्तार हुआ है.'

राहुल गांधी की मेघालय में कही गयी बातों का जवाब ममता बनर्जी सागरदिघी के बहाने दे रही हैं. जैसे राहुल गांधी ने मेघालय में टीएमसी पर बीजेपी की मदद का इल्जाम लगाया था, ममता बनर्जी कांग्रेस पर बीजेपी के साथ अनैतिक गठबंधन का आरोप लगा रही हैं.

सागरदिघी सीट पर कांग्रेस की जीत के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना रहा, कांग्रेस और सीपीएम ने तृणमूल कांग्रेस को हराने के लिए बीजेपी के साथ समझौता किया है.

कांग्रेस के बहाने बीजेपी से लोगों को आगाह करते हुए ममता बनर्जी कहती हैं, 'जो लोग बीजेपी को हराना चाहते हैं... मुझे यकीन है कि वे हमारे पक्ष में वोट देंगे... मेरा यह भी मानता है कि जो लोग सीपीएम और कांग्रेस को वोट दे रहे हैं... असल में वे एक तरीके से बीजेपी को ही वोट दे रहे हैं.'

अब तो ममता बनर्जी ने साफ कर दिया है कि 2024 में तृणमूल कांग्रेस का सिर्फ पश्चिम बंगाल के लोगों के साथ चुनावी गठबंधन होगा. कहती हैं, हम किसी राजनीतिक दल के साथ नहीं जाएंगे, हम लोगों के समर्थन के बल पर अकेले ही चुनाव लड़ेंगे.'

और लगे हाथ ममता बनर्जी ये भी बता देती हैं कि कांग्रेस को खुद को बीजेपी विरोधी कहने से बचना चाहिये - असल बात तो यही है कि ममता बनर्जी को ऐसा बोलने के लिए मजबूर करने वाला कोई और नहीं बल्कि राहुल गांधी ही हैं.

कोई कुछ भी कहे, सब बीजेपी के ही मददगार हैं

चाहे ममता बनर्जी अपनी भड़ास निकालने में राहुल गांधी की कांग्रेस पर बीजेपी को मदद पहुंचाने का इल्जाम लगा रही हों, या फिर राहुल गांधी अपने गुस्से का इजहार करते हुए ममता बनर्जी पर बीजेपी को फायदा पहुंचाने का इल्जाम लगा रहे हों - सही बात तो यही है कि दोनों ही अपने अपने तरीके से बीजेपी के लिए अगले चुनाव में कामयाबी की राह बना रहे हैं.

ममता बनर्जी 2021 के पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद ज्यादा एक्टिव देखी गयी हैं, लेकिन वो तो 2019 में भी कोई कम सक्रिय नहीं थीं. कांग्रेस के साथ गठबंधन का सुझाव भी दिया था और पेशकश भी की थी - लेकिन राहुल गांधी नहीं माने.

ड्राइविंग सीट कांग्रेस के पास ही रहेगी, ऐसी बातें राहुल गांधी अब खुल कर कहने लगे हैं लेकिन पहले भी बात बनते बनते इसीलिए खराब हो गयी थी. कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में ममता बनर्जी ने रैली तो विपक्ष को एकजुट करने के लिए ही की थी - और मोदी को एक्सपाइरी डेट पीएम बोलने का मकसद भी तो एक ही था.

राहुल गांधी की आनाकानी के बावजूद विपक्षी दलों के नेताओं ने बीच बचाव कर कुछ बैठकें भी बुलायी थी. तब ममता बनर्जी की पेशकश थी कि कांग्रेस, दिल्ली और आंध्र प्रदेश में तो चुनाव से पहले गठबंधन करे ही, बाकी राज्यों में भी ऐसा कर ले - लेकिन राहुल गांधी ने क्षेत्रीय नेताओं का नाम लेकर कन्नी काट ली थी.

तब ये भी देखने को मिला था कि अरविंद केजरीवाल भी कांग्रेस के साथ गठबंधन करना चाहते थे, लेकिन राहुल गांधी आखिर तक राजी नहीं हुए. हालांकि, उसके लिए तब शीला दीक्षित भी तैयार न थीं. होतीं भी कैसे अरविंद केजरीवाल ने तो उनकी राजनीति ही मिट्टी में मिला डाली थी. ये ठीक है कि कांग्रेस ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी को तीसरे पायदान पर भेज दिया था, लेकिन मिल कर चुनाव लड़ते तो नतीजे अलग भी तो हो सकते थे.

बंगाल चुनावों के बाद जब ममता बनर्जी दिल्ली आयीं तो सोनिया गांधी से भी मिली थीं और साफ साफ कहा था कि प्रधानमंत्री पद कोई मुद्दा नहीं होना चाहिये. सबका एक ही मकसद होना चाहिये कि कैसे बीजेपी को सत्ता से बेदखल किया जाये?

जब वो सोनिया गांधी से मिली होंगी और विपक्षी एकता की बात की होंगी तो उनको भी मालूम होगा ही कि कांग्रेस तो प्रधानमंत्री पद पर दावा छोड़ने से रही, फिर भी वो पीछे तो नहीं ही हटीं - तब भी जबकि राहुल गांधी उनके दिल्ली में कदम रखते ही विपक्षी दलों के नेताओं के साथ मीटिंग करने लगे थे.

ये सब तब हो रहा था जब ममता बनर्जी पहले से ही बोल कर आयी थीं कि वो विपक्षी दलों के नेताओं के साथ बैठक कर बात करना चाहती हैं ताकि कोई ठोस नतीजा निकल सके - जिस शरद पवार से उनको सबसे ज्यादा उम्मीद रही वो तो दिल्ली में होकर भी ममता बनर्जी से नहीं मिले.

और ये भी देखा गया कि वो लालू यादव से मिलने के लिए आरजेडी सांसद मीसा भारती के घर तक पहुंच गये - क्या ये खेल ममता बनर्जी को समझ नहीं आया होगा?

हां, अगली बार जब ममता बनर्जी ने दिल्ली का दौरा किया तो साफ साफ बोल दिया, हर बार सोनिया गांधी से मिलना कोई जरूरी है क्या? कहां लिखा है?

हो सकता है राहुल गांधी के मन में ममता बनर्जी को लेकर ये भी गुस्सा हो कि वो उनको कभी महत्व नहीं देतीं. वो कांग्रेस अध्यक्ष रहते हैं तो भी सोनिया गांधी से मिल कर निकल जाती हैं, उनसे फोन पर बात तक नहीं करतीं.

ऐसे सवाल तो राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता को लेकर शरद पवार भी उठा चुके हैं - और विपक्षी खेमे के कई नेता उनसे परहेज भी करते रहे हैं - लेकिन राहुल गांधी ये लड़ाई दूरी बना कर या हमला बोल कर नहीं, बल्कि दिल जीत कर खुद को साबित करके ही जीत सकते हैं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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