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Updated: 19 मार्च, 2021 07:40 PM
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अपने ऊपर हुए कथित हमले से जितनी 'सहानुभूति' मिलने की उम्मीद 'दीदी' ने लगाई थी, वह उन्हें मिल नहीं पाई है. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव को लेकर सामने आए अब तक के ओपिनियन पोल्स (Opinion Poll) भले ही ममता बनर्जी की सत्ता में वापसी का इशारा कर रहे हों, लेकिन तृणमूल कांग्रेस इस चुनाव में अपने स्तर पर कोई कमजोर कड़ी नहीं छोड़ना चाहती है. चुनाव आयोग की रिपोर्ट ने पहले ही टीएमसी मुखिया पर हुए 'हमले' को 'हादसा' बताकर ममता बनर्जी को काफी नुकसान पहुंचा दिया है. वहीं, ममता बनर्जी की सियासी राह में अब्बास सिद्दीकी जैसे कांटों की कमी नही है.

बंगाल में कांग्रेस-वाम दलों का गठबंधन इस चुनावी समर में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के आस-पास भी नजर नहीं आ रहा है. इस स्थिति में भाजपा से मिल रही सीधी कड़ी टक्कर ममता बनर्जी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. भाजपा ने भी ममता बनर्जी को अपने रचे 'चक्रव्यूह' में घेर लिया है. तीसरी बार सत्ता में आने की कोशिश कर रही तृणमूल कांग्रेस के सामने अपने वोटबैंक को मजबूत करने के लिए आखिरी सियासी हथियार कहे जाने वाले 'चुनावी घोषणा पत्र' का बखूबी इस्तेमाल किया है. कहा जा सकता है कि ममता इस घोषणा पत्र के सहारे भाजपा के चक्रव्यूह को तोड़ने में कामयाब हो सकती हैं.

चौतरफा मुश्किलों में घिरी तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ने इस 'ब्रह्मास्त्र' का बेहतरीन इस्तेमाल किया है.चौतरफा मुश्किलों में घिरी तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ने इस 'ब्रह्मास्त्र' का बेहतरीन इस्तेमाल किया है.

ओबीसी के साथ एससी-एसटी वोटबैंक साधने की कोशिश

चुनावी राज्यों में जनता को अपने पक्ष में लाने का आखिरी मौका 'चुनावी घोषणा पत्र' ही होता है. चौतरफा मुश्किलों में घिरी तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ने इस 'ब्रह्मास्त्र' का बेहतरीन इस्तेमाल किया है. ममता बनर्जी ने अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में महिष्य, तिली, तमुल और साहा समुदाय को जोड़ने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स का गठन का वादा किया है. साथ ही उन्होंने भारत सरकार से महतो समुदाय को एसटी का दर्जा देने की मांग करने का वादा भी किया है. ममता का ये दांव गेमचेंजर साबित हो सकता है. तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ने नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने जा रही हैं और इस सीट पर करीब 53 फीसदी मतदाता महिष्य समुदाय से संबंध रखते हैं.

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा पहले ही इन जातियों को ओबीसी में जोड़ने की बात कह चुके हैं. भाजपा शुरुआत से ही ममता बनर्जी पर इन जातियों को आरक्षण से बाहर रखने और 'मुस्लिम तुष्टिकरण' के आरोप लगाती रही है. पश्चिम बंगाल की वर्तमान ओबीसी सूची में 117 मुस्लिम जातियां हैं, जिनमें से 64 को बीते 8 सालों में ममता सरकार ने जोड़ा है. लेफ्ट सरकारों के कार्यकाल में यह संख्या 53 हुआ करती थी.

तमिलनाडु की राह पर चली ममता सरकार

तमिलनाडु में सत्तारुढ़ दल AIADMK ने घोषणा पत्र में हर परिवार को साल के 6 मुफ्त सिलेंडर और घर की एक महिला को 1500 रुपये महीने देने का वादा किया है. तमिलनाडु में चुनावी घोषणा पत्रों में ऐसे लोकलुभावन वादे बहुत ही आम बात नजर आते हैं. चुनाव केवल तमिलनाडु नहीं पश्चिम बंगाल में भी होने हैं और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी अब तमिलनाडु की राह पर चल पड़ी हैं. पूरी तरह से न सही, लेकिन आंशिक तौर पर उन्होंने उसी राह पर कदम बढ़ा दिए हैं. ममता बनर्जी का घोषणा पत्र पूरी तरह से वोटबैंक को साधने की रणनीति पर बनाया गया है और यह इसमें कामयाब होता भी दिख रहा है. ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के ओबीसी और एससी-एसटी समुदाय का वोटबैंक साधने के लिए वादों की जो झड़ी लगाई है, वह चुनाव में उनकी जीत में एक अहम फैक्टर साबित हो सकती है.

दीदी ने राज्य में निम्न आय वर्ग और गरीब एससी-एसटी परिवारों को न्यूनतम मासिक आय देने का वादा किया है. वादे के अनुसार, निम्न आय वर्ग के परिवारों को सालाना छह हजार रुपये दिए जाएंगे. टीएमसी सत्ता में आती है, तो गरीब एससी और एसटी परिवारों को सालाना 12 हजार रुपये मिलेंगे. ये राशि परिवार की महिलाओं के खातों में ही दी जाएगी. चुनावी हैट्रिक लगाने की कोशिश में जुटी तृणमूल कांग्रेस का यह मास्टर स्ट्रोक निश्चित तौर पर 'खेला होबे' के नारे को पूरा करता दिख रहा है. 2011 की जनगणना के अनुसार, पश्चिम बंगाल में 2 करोड़ से ज्यादा की दलित आबादी है. साथ ही अनुसूचित जनजाति की आबादी भी 50 लाख से ज्यादा है. इस स्थिति में ममता बनर्जी का मासिक आय का वादा तृणमूल कांग्रेस के लिए 'संजीवनी' का काम कर सकता है.

2500 'मां कैंटीन' का वादा

ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में युवाओं के लिए भी लोकलुभावन वादे किए हैं. ममता बनर्जी ने युवाओं और छात्रों के लिए चार फीसदी ब्याज दर पर 10 लाख रुपये तक का स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड देने का वादा किया है. ममता बनर्जी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में तमिलनाडु में चल रही कुछ योजनाओं के जैसे ही वादे जनता से किए हैं. राज्य की गरीब जनता को अपनी ओर लाने में दीदी कामयाब भी होती दिख रही हैं. उनका चुनावी घोषणा पत्र तो इसी तरफ इशारा कर रहा है. तमिलनाडु में चल रही 'अम्मा कैंटीन' योजना को विधानसभा चुनाव से एक महीने पहले ही पश्चिम बंगाल में भी 'मां कैंटीन' के नाम से लॉन्च किया गया है. फिलहाल कोलकाता में ही चल रही इस योजना के तहत 5 रुपये में दाल, चावल, सब्जी और अंडे की थाली दी जा रही है. तृणमूल कांग्रेस ने घोषणा पत्र में सालाना 50 शहरों की 2500 मां कैंटीनों के जरिये गरीबों को भोजन उपलब्ध कराने का वादा किया है.

ममता बनर्जी ने विधवा पेंशन को बढ़ाकर 1000 रुपये कर दिया है. छात्रों के लिए टैब और साईकिल की योजना पहले की तरह ही जारी रहेगी. दुआरे सरकार योजना के तहत घर पर ही मुफ्त राशन की डिलीवरी होगी. पांच लाख रुपये का स्वास्थ्य साथी बीमा और हर साल 5 लाख रोजगार देने का वादा तृणमूल कांग्रेस ने किया है. वोटबैंक को साधने की ममता बनर्जी की ये कवायद कितना रंग लाएगी, ये चुनाव के नतीजे बता ही देंगे. पश्चिम बंगाल को लेकर भाजपा ने अभी तक अपना घोषणा पत्र जारी नहीं किया है. भाजपा के 'चिराग' से कौन सा जिन्न निकलेगा, इसके लिए थोड़ा इंतजार करना होगा.

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