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Updated: 13 जून, 2022 08:16 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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राष्ट्रपति चुनाव 2022 (President Election 2022) को लेकर ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की सक्रियता ने साफ कर दिया है कि तृणमूल कांग्रेस का 2024 के आम चुनाव को लेकर इरादा क्या है? अभी तो ऐसा ही लगता है कि ममता बनर्जी ने कांग्रेस मुक्त विपक्ष की मुहिम से कदम पीछे खींच लिये हैं, लेकिन सहयोगी से ज्यादा बड़ा रोल देने को तैयार नहीं लगतीं - विपक्ष का नेतृत्व तो कतई मंजूर नहीं है.

ममता बनर्जी ने राष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा लेकर केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को चैलेंज करने के मकसद से विपक्ष के कई मुख्यमंत्रियों और नेताओं को पत्र भेजकर मीटिंग के लिए बुलाया है - हालांकि, संभावित सूची से गायब कुछ नामों को लेकर ताज्जुब भी होता है. वैसे उसमें राजनीति के अलग समीकरण देखे और समझे जा सकते हैं.

ममता बनर्जी की ये कोशिश सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) की पहल के समानांतर देखी जा रही है - क्योंकि दोनों ही बैठकों की तारीख एक ही है. विपक्ष की तरफ से एक ही उम्मीदवार पर आम राय बनाने की कोशिश से लग रहा था कि राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी को कड़ी चुनौती मिल सकती है.

दिलचस्प बात ये है कि सोनिया गांधी ने विपक्ष को एकजुट करने की पहल की शुरुआत ममता बनर्जी और शरद पवार के साथ बातचीत से की थी. और ममता बनर्जी ने भी पत्र लिख कर सोनिया गांधी को भी बुलाया है. ऐसे में सवाल ये उठने लगा है कि सोनिया की राह में ममता बनर्जी रोड़ा बन रही हैं या बीजेपी की मददगार?

ममता को कांग्रेस का नेतृत्व मंजूर नहीं है

कांग्रेस को लेकर ममता बनर्जी के विचार में बस थोड़ी सी तब्दीली आयी है. ममता बनर्जी को अब कांग्रेस से पूरी तरह परहेज नहीं लगता. वो कांग्रेस को विपक्षी खेमे में साथ रखने को तैयार हो गयी हैं, लेकिन शर्त ये है कि सहयोगी बन कर ही रहना होगा - विपक्ष का नेता बन कर तो हरगिज नहीं.

mamata banerjee, sonia gandhiममता बनर्जी का सोनिया गांधी को स्पष्ट संदेश - कांग्रेस विपक्ष की सहयोगी है, नेता नहीं!

ममता बनर्जी ने विपक्षी दलों के जिन 22 नेताओं को विपक्ष की बैठक में बुलाने के लिए पत्र लिखा है, उनमें एक नाम बतौर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का भी है - टकराव का बिंदु सिर्फ ये है कि ममता बनर्जी ने भी विपक्षी दलों की बैठक उसी दिन बुलायी है, जिस दिन सोनिया गांधी ने - 15 जून को दोपहर बाद 3 बजे. ममता बनर्जी ने जगह भी बता दी है, दिल्ली का कॉन्स्टीट्यूशन क्लब.

ममता और सोनिया ने एक ही दिन मीटिंग क्यों बुलायी: विपक्षी दलों की समानांतर बैठक का मुद्दा तो है ही, कई नेता इस बात से ज्यादा हैरान हैं कि ममता बनर्जी ने वही तारीख क्यों तय की है जो सोनिया गांधी ने पहले से ही बैठक के लिए तय कर रखी है - आखिर ये कोई संयोग है या वास्तव में प्रयोग ही है?

सूत्रों के हवाले से आई मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, ममता बनर्जी उस चर्चा का हिस्सा नहीं थीं जहां सोनिया गांधी की अगुवाई वाली विपक्षी दलों की बैठक की तारीख तय की गयी थी. विपक्षी दलों के कई नेताओं को यही बात परेशान कर रही है कि ममता बनर्जी को ये बात पता कैसे चली? ये तो ऐसा ही लगता है कि जिन लोगों के बीच बैठक की तारीख तय हुई उनमें से ही किसी ने ममता बनर्जी से शेयर किया है. मतलब, ममता बनर्जी न सिर्फ कांग्रेस के खिलाफ गोलबंदी कर रही हैं, बल्कि सोनिया गांधी के कदमों पर भी बारीक नजर रखे हुए हैं.

सोनिया गांधी की तरफ से कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे विपक्षी खेमे के नेताओं से मिल कर बैठक के लिए आमंत्रित कर रहे हैं, जबकि ममता बनर्जी ने खुद सबको अलग अलग पत्र लिख कर बैठक के लिए न्योता भेजा है.

सोनिया से ज्यादा लोगों तक पहुंची हैं ममता बनर्जी

वैसे तो कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की तरफ से भी यही बताया जा रहा है कि सोनिय गांधी ने उनको एक समान सोच वाले विपक्षी दलों के नेताओं से संपर्क और मुलाकात करने को कहा है - और किसी नेता को मीटिंग में नहीं बुलाना है, ऐसा कोई संकेत नहीं दिया गया है - लेकिन कांग्रेस के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते ऐसा लगता है कि अरविंद केजरीवाल जैसे नेता तो मल्लिकार्जुन खड़के के संपर्क और मुलाकात के दायरे से स्वाभाविक रूप से बाहर ही होंगे.

विपक्ष के बाकी नेताओं की ही तरह ममता बनर्जी ने सोनिया गांधी को भी पत्र भेज कर बुलाया है और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी. आम आदमी पार्टी के ही नेता होने के बावजूद ममता बनर्जी पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को भी अलग से पत्र लिख कर बुलाया है. वैसे ही जेडीएस से पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा के साथ साथ उनके बेटे और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी को भी बुलाया है - और उसी क्रम में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को भी.

शिवसेना नेता संजय राउत का कहना है कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को बैठक का न्योता मिला हुआ है, लेकिन वो शामिल नहीं हो पाएंगे - क्योंकि उस दिन वो अयोध्या में होंगे. संजय राउत ने कहा, ‘उद्धव ठाकरे को दिल्ली में 15 जून की बैठक का निमंत्रण मिला है... हम लोग उस समय अयोध्या में होंगे, हमारी पार्टी के एक प्रमुख नेता बैठक में भाग लेंगे.’

अच्छा है. अगर ऐसा कोई मजबूत कारण नहीं होता देखने वाली बात ये होती कि उद्धव ठाकरे किस बैठक में हिस्सा लेते हैं. सोनिया गांधी की बैठक में या ममता बनर्जी की बैठक में? अब अगर किसी प्रतिनिधि को भेजना है तो ये आराम से हो जाएगा. चाहें तो दोनों ही बैठकों में प्रतिनिधित्व कर सकते हैं.

ये तो साफ है कि सोनिया गांधी के मुकाबले ममता बनर्जी ने विपक्ष के ज्यादा नेताओं को बुलाया है. मीडिया रिपोर्ट के जरिये जिन नेताओं के नाम सामने आये हैं उनमें सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट के पवन चामलिंग भी नजर आते हैं और पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती और नेशनल कांफ्रेंस नेता फारूक अब्दुल्ला के साथ साथ अकाली नेता सुखबीर बादल भी.

ममता की मीटिंग के मेहमानों की सूची में पी. विजयन, के. चंद्रशेखर राव, एमके स्टालिन, हेमंत सोरेन, लालू यादव, शरद यादव, अखिलेश यादव, जयंत चौधरी और आईयूएमएल नेता केएम कादर मोहिदीन का नाम भी शामिल है - लेकिन कुछ ऐसे नाम भी हैं जो मिसिंग हैं.

भला ऐसा कैसे हो सकता है कि मीडिया में ज्यादातर नाम आ जायें, लेकिन वे नाम न आयें जिनको लेकर लगता है कि ममता बनर्जी भी विपक्षी खेमे से बाहर का मानती हों. कम से कम ऐसे दो नाम हैं जो न तो बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए का हिस्सा हैं - और न ही सोनिया गांधी के नेतृत्व वाले यूपीए का.

यहां तक कि ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को भी ममता बनर्जी ने बुलाया है, जिनके न्यूट्रल होने के बावजूद एनडीए खेमे का ही माना जाता रहा है - लेकिन जगन मोहन रेड्डी और मायावती?

जगनमोहन रेड्डी को भी नवीन पटनायक की ही तरह एनडीए समर्थक समझा जाता है, लेकिन सवाल है कि ममता बनर्जी ने बीएसपी नेता मायावती को क्यों नहीं बुलाया है?

क्या ममता बनर्जी पहले से ही मान कर चल रही हैं कि मायावती हर हाल में बीजेपी के साथ ही खड़ी रहेंगी. ऐसा ही आरोप मायावती पर कुछ दिन पहले राहुल गांधी ने भी लगाया था, लेकिन मायावती ने बयान जारी कर आरोप का जोरदार खंडन किया था.

यूपी चुनाव 2022 के दौरान भी मायावती पर विपक्ष का साथ न देकर बीजेपी की भीतर ही भीतर मदद करने का आरोप लगा - और अब तो आजमगढ़ लोक सभा सीट पर होने जा रहे उपचुनाव को लेकर भी वैसा ही शक जताया जा रहा है.

मायावती और जगनमोहन रेड्डी को न बुलाया जाना हैरान तो करता ही है, सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात सीपीएम नेता सीताराम येचुरी और सीपीआई नेता डी. राजा को बुलाया जाना लगता है. अब तक तो यही देखा गया है कि ममता बनर्जी दोनों ही नेताओं से दूरी बना कर चलती रही हैं.

क्या कांग्रेस के खिलाफ ममता को सपोर्ट मिलने लगा है?

पश्चिम बंगाल चुनाव 2021 के बाद ये समझ बनी थी कि ममता बनर्जी विपक्ष को तो एकजुट तो करना चाहती हैं, लेकिन कांग्रेस को उससे दूर रखना चाहती हैं. ममता बनर्जी के ऐसा करने की स्ट्रैटेजी भी तभी समझ आ गयी थी, जो अब और भी ज्यादा साफ हो चुकी है.

2019 के आम चुनाव से पहले भी ममता बनर्जी ने सोनिया गांधी को उस विपक्षी खेमे का हिस्सा बनने का ऑफर दिया था जिसका वो खुद अघोषित तौर पर नेतृत्व कर रही थीं. तब शरद पवार के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा और अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा जैसे नेता ममता बनर्जी के दिल्ली पहुंचते ही रणनीतियों में जुट जाते देखे गये थे.

नेताओं की सलाहियत रही कि कांग्रेस हर जगह नेता बने रहने की जिद छोड़ दे और जो जहां मजबूत है, उसके साथ मिल कर हर सीट पर बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के उम्मीदवारों की हराने की कोशिश हो. हाल ही की बात है, राहुल गांधी के क्षेत्रीय दलों की विचारधारा वाले कमेंट की प्रतिक्रिया में भी आरजेडी के मनोज झा सहित कई नेताओं की प्रतिक्रिया भी ऐसी ही रही.

कांग्रेस ये फॉर्मूला मंजूर नहीं हुआ और ये भी देखा गया कि आम चुनाव के नतीजे आने के ठीक पहले टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू के अथक प्रयासों के बावजूद ममता बनर्जी, राहुल गांधी के साथ मीटिंग के लिए तैयार नहीं हुईं. तब राहुल गांधी ही कांग्रेस के अध्यक्ष हुआ करते थे.

और शायद इसीलिए पश्चिम बंगाल का लगातार तीसरा चुनाव जीतने के बाद ममता बनर्जी ने जब दिल्ली का रुख किया तो कांग्रेस से पहले से ही दूरी बनाते देखी जाने लगीं. ममता के दिल्ली पहुंचते ही राहुल गांधी ने विपक्षी नेताओं को बुलाकर मीटिंग शुरू कर दी थी - आप चाहें तो ममता बनर्जी के ताजा कदमों को राहुल गांधी की सक्रियता से जोड़ कर भी देखने और समझने की कोशिश कर सकते हैं.

ये तो ममता के लिए भी झटका है: उद्धव ठाकरे ने तो 15 जून को अयोध्या में होने के कारण ममता बनर्जी की मीटिंग में शामिल होने में असमर्थता जता दी है, लेकिन सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने ये कहते हुए मना कर दिया है कि विपक्ष की एक बैठक पहले से तय होने के बाद वो किसी दूसरी मीटिंग में नहीं जाने वाले. कहने की जरूरत नहीं, ममता बनर्जी को पहले से ऐसी आशंका होगी, लेकिन लगता है वो इस बार किसी को ये कहना का मौका नहीं देना चाहतीं कि किसी नेता या पार्टी विशेष से वो परहेज कर रही हैं, सिवा बीजेपी के साथी और समर्थक राजनीतिक दलों के.

एक सवाल ये भी है कि क्या ममता बनर्जी को कांग्रेस के खिलाफ कोई एकजुट समर्थन मिलने लगा है?

केसीआर और अरविंद केजरीवाल तो कांग्रेस के साथ होने से रहे. अभी तो यही पक्की बात है, बाकी आगे राजनीति है! हो सकता है कांग्रेस के नेता केसीआर को मना भी लें तो अरविंद केजरीवाल तो कभी नहीं मानने वाले. केजरीवाल को गुस्सा इस बात से भी है कि 2019 में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं किया और दिल्ली में हर जगह उनकी पार्टी को पिछड़ना पड़ा - कुछेक सीटों पर तो जमानत भी जब्त हो गयी थी.

ठीक वैसे ही नवीन पटनायक अभी तक एनडीए के साथ देखे गये हैं. ममता बनर्जी उनको साथ लाने की कोशिश कर रही हैं, जिसमें अंदर से कांग्रेस को दूर रखने का ऑफर भी हो सकता है. ऐसे में कांग्रेस के साथ डीएमके, एनसीपी, शिवसेना, जेएमएम और आरजेडी जैसे राजनीतिक दल ही बचते हैं - हो सकता है आरजेडी भी कन्हैया कुमार को लेने की वजह से कांग्रेस से खफा होने के चलते ममता बनर्जी के साथ हो जाये? ममता बनर्जी की पटना रैली में लालू यादव ने जिस तरह का समर्थन दिया था, सभी ने देखा.

ज्यादा न सही, लेकिन अभी जितने राजनीतिक दलों का समर्थन कांग्रेस को है, उतना समर्थन तो अलग से ममता भी जुटा ही लेंगी - और ऐसा हुआ तो राहुल गांधी को नेता मानने की शर्त से ममता बनर्जी को आजादी तो मिल ही जाएगी - 2024 तो अभी थोड़ा दूर है, लेकिन ये भी साफ है कि राष्ट्रपति चुनाव में ममता बनर्जी ने बीजेपी की राह आसान तो कर ही डाली है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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