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Updated: 11 जून, 2022 05:24 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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राष्ट्रपति चुनाव (President Election 2022) की अधिसूचना जारी होते ही संभावित उम्मीदवारों के रूप में दो नाम ट्विटर पर ट्रेंड करने लगे - आरिफ मोहम्मद खां और मायावती. आरिफ मोहम्मद खां फिलहाल केरल के राज्यपाल हैं और यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती बीएसपी की नेता हैं.

ये दोनों ही नेता सत्ताधारी बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट किये जा रहे हैं, लेकिन मुश्किल बात ये है कि सोशल मीडिया पर इनका नाम ट्रेंड करना ही इनके रास्ते की दीवार बन गयी लगती है - क्योंकि अब इनके नाम में सरप्राइज एलिमेंट तो बचा नहीं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीनियर बीजेपी नेता अमित शाह तो ऐसे मामलों में सरप्राइज देने के लिए ही जाने जाते हैं. ये नेता अगर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों की मोदी-शाह की संभावित सूची का हिस्सा भी रहे होंगे तो अब अपना पत्ता साफ ही समझें. हालांकि, ये धारणा भी बीजेपी में 75 साल की रिटायरमेंट की उम्र जैसी ही है. 75 पार कर लेने के बाद भी बीजेपी नेता बीएस येद्दियुरप्पा ने काफी दिनों तक कर्नाटक के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे रह कर बीजेपी के बारे में बनी ये धारणा भी बदल दी है. करीब करीब वैसे ही जैसे मोदी-शाह ने हिमंत बिस्वा सरमा को असम का मुख्यमंत्री बनाकर ये सरप्राइज दे दिया था कि बीजेपी में मुख्यमंत्री तो वही बन सकता है जिसकी राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की पृष्ठभूमि रही हो.

बहरहाल, मायावती के लिए राहत भरी संभावना ये जरूर हो सकती है कि विपक्ष (Opposition Candidate) अपने खाते से बीएसपी नेता को उम्मीदवार बनाने पर विचार करे. मीडिया में कुछ रिपोर्ट तो ये भी कह रही हैं कि बीजेपी में यूपी में भविष्य की राजनीति को ध्यान में रखते हुए मायावती या मुलायम सिंह यादव के नाम पर भी विचार चल रहा है. मायावती की बात तो एक बार सोची भी जा सकती है, लेकिन मुलायम सिंह यादव को बीजेपी की तरफ से राष्ट्रपति भवन भेजे जाने का कोई ज्योतिषीय संयोग भी नहीं लगता.

सुनने में ये भी आ रहा है कि सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने इस बार ऐतिहासिक फैसला ले लिया है - ये पहला मौका होगा अगर वास्तव में कांग्रेस राष्ट्रपति चुनाव में अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारती है. बेशक कांग्रेस ने ऐसा कदम इसलिए बढ़ाया है ताकि विपक्षी खेमे में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को लेकर एक जैसी सोच वाले राजनीतिक दलों के बीच आम राय बन सके - एक सवाल ये भी है कि क्या सोनिया गांधी ने ये फैसला इसलिए लिया है क्योंकि कांग्रेस के पास राष्ट्रपति चुनाव के मैदान में उतारने लायक कोई नेता ही नहीं बचा है?

1. शरद पवार

विपक्षी खेमे में एकमात्र शरद पवार ही ऐसे नेता हैं जो सीनियर होने के साथ साथ और सबसे अनुभवी भी हैं - और आज भी अपने दम पर चुनाव जिताने का माद्दा रखते हैं. 2019 में सतारा हुआ सतारा का वाकया शायद ही कभी कोई भूल पाये.

sharad pawar, sonia gandhi, manmohan singhविपक्ष में शरद पवार के अलावा राष्ट्रपति पद के लिए कोई दमदार उम्मीदवार तो नजर नहीं आ रहा है.

सतारा में शरद पवार की चुनावी रैली थी और मौसम बहुत खराब हो गया था. लोग शरद पवार को रैली रद्द करने की सलाह भी दे रहे थे, लेकिन जो शख्स कैंसर जैसी बीमारी को हरा चुका हो वो कहां आसानी से किसी की अपने कदम पीछे खींच सकता है.

शरद पवार रैली स्थल पर पहुंचे और सीधे मंच पर चढ़ गये - बारिश में भीकते हुए शरद पवार के भाषण का वीडियो वायरल हुआ और वहां जीत भी एनसीपी के ही खाते में जुड़ी. शरद पवार ने साबित कर दिया कि दमखम पूरा बरकरार है.

सोनिया गांधी और राहुल गांधी को ईडी के नोटिस पर पूछताछ के लिए पेश होने जाना पड़ रहा है, लेकिन वही प्रवर्तन निदेशालय शरद पवार को नोटिस भेजने के बावजूद मना कर चुका है कि उनको दफ्तर आने की जरूरत नहीं है. नोटिस मिलने पर शरद पवार ने घोषणा कर दी थी कि वो ईडी के दफ्तर जाकर पेश होंगे, लेकिन स्थिति कल्पना से घबराये पूरे मुंबई पुलिस प्रशासन को शरद पवार से अपना कार्यक्रम रद्द करने के लिए मान मनौव्वल करनी पड़ी थी.

80 साल से ऊपर के हो चुके शरद पवार विपक्षी खेमे के जनाधार वाले नेताओं में सबसे सक्षम नजर आते हैं - और विपक्षी खेमे में ऐसी अहमियत है कि सिर्फ ममता बनर्जी ही नहीं सोनिया गांधी भी उनको अपने पक्ष में बनाये रखने के लिए हर संभव कोशिश करती हैं.

अगर विपक्ष में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में शरद पवार के नाम पर आम राय बनती है तो एनडीए का जो भी उम्मीदवार हो, शरद पवार की चुनौती सबसे जबरदस्त हो सकती है.

2. मायावती

अगर मायावती एनडीए की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनती हैं तो बीजेपी की तरफ से रिटर्न गिफ्ट ही समझा जाएगा. बीते चुनावों को छोड़ भी दें तो यूपी चुनाव 2022 में मायावती की भूमिका पर हमेशा सवाल उठे और उन पर बीजेपी की मददगार बनने तक का आरोप लगा - और बाद में तो राहुल गांधी ने भी ये बात खुलेआम बोल दी थी.

मायावती को अगर विपक्षी खेमे का उम्मीदवार बनाया जाता है तो यूपी की राजनीति बीजेपी के लिए मुश्किल हो सकती है. विपक्ष यूपी के दलित वोटर को समझा सकता है कि बीजेपी इस्तेमाल तो किया लेकिन मायावती पर विश्वास नहीं किया.

अब सवाल ये है कि मायावती को विपक्ष का उम्मीदवार बनाये जाने से किसे सबसे ज्यादा फायदा होगा?

ऐसे फायदे का आधार सिर्फ ये हो सकता है कि यूपी के दलित वोटर को कौन क्या समझा पाता है? अगर कांग्रेस मायावती के वोट बैंक को ये समझा सके तो हो सकता है कि कुछ दलित वोटर पार्टी की तरफ लौट आये.

अगर कांग्रेस मायावती से मिलने वाले फायदे में अखिलेश यादव को भी शेयर होल्डर बना ले तो मामला काफी आसान हो सकता है. फिर कांग्रेस को अखिलेश यादव को यकीन दिलाना होगा कि आने वाले चुनाव में वो अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री पद के लिए सपोर्ट करेगी - और मायावती से मिलने वाले फायदे को दोनों आपस में शेयर करेंगे. मायावती के नाम पर यूपी से बाहर भी पंजाब, कर्नाटक और राजस्थान जैसे राज्यों में थोड़ा बहुत फायदा हो सकता है.

लेकिन ये भी मुंगेरी लाल के हसीन सपने जैसा ही ही हो सकता है - बड़ा सवाल तो ये है कि क्या मायावती बीजेपी उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ने को राजी होंगी भी?

3. मुलायम सिंह यादव

एक मीडिया रिपोर्ट में मुलायम सिंह यादव को बीजेपी की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाये जाने की संभावनाएं जतायी गयी हैं. दलील तो किसी भी तरफ से दी जा सकती है. सवाल ये है कि वो व्यावहारिक पैमाने पर भी तो खरी उतरनी चाहिये.

भला बीजेपी किसी ऐसे नेता को क्यों राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाएगी जो कारसेवकों पर गोली चलवाने में बार बार गर्व जता चुका हो - और जिसके लिए यूपी के मुख्यमंत्री चुनावों में 'अब्बाजान' कह कर बुलाते रहे हों?

रही बात विपक्ष की तो मुलायम सिंह यादव को विपक्ष का उम्मीदवार बनाने से होने वाले फायदे की तो यूपी के अलावा मुश्किल से हिंदी पट्टी के कुछ राज्यों में ऐसी संभावना जतायी जा सकती है. अंग्रेजी के विरोधी होने की वजह से दक्षिण भारत में तो विपक्ष को मुश्किल भी हो सकती है - और ये भी संभव है कि एमके स्टालिन या पी. विजयन जैसे नेता राजी न हों.

खुद भी मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी के लोगों से 2019 में ही बोल दिया था कि 'जिता देना, आखिरी बार चुनाव लड़ रहा हूं.' सेहत का दुरूस्त न रहना भी एक बड़ी बाधा हो सकती है क्योंकि अभी करहल में भी देखा गया कि चुनाव प्रचार के लिए गये तो अखिलेश यादव के लिए वोट मांगना ही भूल गये थे. जब याद दिलाया गया तो लोगों से अखिलेश यादव को वोट देने की अपील की थी.

4. नीतीश कुमार

नीतीश कुमार अकेले ऐसे नेता हैं जिनको 2022 के राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवारी का ऑफर सबसे पहले मिल चुका है. जेडीयू के पूर्व उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने ही ऐसा प्रस्ताव दिया था. समझा जाता है कि प्रशांत किशोर वो प्रस्ताव तेलंगाना के मुख्यमंत्री और टीआरएस नेता के. चंद्रशेखर राव की तरफ से दिये थे - अब ये नहीं मालूम की उस प्रस्ताव की की कोई वैलिडिटी बची हुई है भी या नहीं?

वैसे नीतीश कुमार सरकार के एक मंत्री श्रवण कुमार का कहना है कि जेडीयू नेता ने न तो ऐसा कोई दावा किया है, न ही ऐसी कोई उनकी इच्छा है. ऐसा लगता है कि मौका देख कर ही नीतीश कुमार ने अपने मंत्री से ये बयान दिलवाया है. दरअसल, मंत्री ने उनके 2025 तक बिहार के मुख्यमंत्री बने रहने का भी दावा किया है .

वैसे भी जिस चुनाव में जीत की बहुत ही कम संभावना हो, नीतीश कुमार भला उम्र के इस पड़ाव पर कॅरियर का कबाड़ा जानबूझ कर क्यों करेंगे? अगर ऐसा कोई प्रस्ताव बीजेपी दे तो फायदा ही फायदा है, लेकिन अभी विपक्ष की तरफ होने से तो फजीहत ही है.

5. मीरा कुमार या मनमोहन सिंह

अब अगर सवाल है कि कांग्रेस के पास राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनाने लायक कोई नेता नहीं है क्या? इस सवाल के जवाब में एकमात्र नाम आता है वो है - गुलाम नबी आजाद का.

लेकिन गुलाम नबी आजाद तो कांग्रेस में बागी बने हुए हैं - और अगर उनकी नाराजगी दूर करने के लिए कांग्रेस नेतृत्व उम्मीदवार बनाने का फैसला कर भी ले तो ये जरूर देखा जाएगा कि ऐसा करने कोई राजनीतिक फायदा भी हो सकता है क्या? गुलाम नबी आजाद का प्रभाव क्षेत्र जम्मू-कश्मीर है और वहां बीजेपी के अलावा किसी के लिए भी राजनीति के लिए कम भी संभावना बन रही है.

बात सिर्फ इतनी ही नहीं है, बीजेपी सरकार में पद्म पुरस्कार पाने वाले गुलाम नबी आजाद एनडीए कैंडिडेट के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए राजी होंगे क्या? कहीं ऐसा न हो कि इधर कांग्रेस ने गुलाम नबी आजाद को विपक्ष का उम्मीदवार बनाने की घोषणा की - और उधर माया मोह में पड़ कर वो सेवा में सविनय निवेदन के साथ ठुकरा दें?

ऐसे में कांग्रेस के पास एक विकल्प ये भी बचता है कि वो मीरा कुमार को ही फिर से मैदान में उतार दे. ऐसा कोई नियम तो है नहीं कि एक बार राष्ट्रपति चुनाव में शिकस्त के बाद दोबारा नामांकन नहीं भरा जा सकता.

कोई कुछ भी कहे अब ऐसा भी नहीं कि ग्रैंड ओल्ड पार्टी के पास राष्ट्रपति चुनाव लड़ने लायक एक भी नेता न बचा हो. सोनिया गांधी और राहुल गांधी भले ही अपने लिए ऐसे प्रस्तावों को अपने लिए मिसफिट पाते हों, लेकिन मनमोहन सिंह तो हैं ना!

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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